आखिरी हथियार / दीनदयाल शर्मा
श्याम ओर मोहन दो दोस्त थे। दोनों आठवीं में पढ़ते थे। वे पहली कक्षा से ही एक साथ पढ़ते आ रहे थे। कक्षा में कभी मोहन प्रथम आता तो कभी श्याम। दोनों में प्रथम आने की होड़ सी लगी रहती।
एक बार मोहन को अंग्रेजी गृहकार्य की कॉपी में अध्यापक जी ने 'गुड' दे दिया। अध्यापक जी द्वारा गुड देने पर मोहन बहुत प्रसन्न हुआ। फिर वह अपनी गृहकार्य की कॉपी में ओर ज्यादा सफाई से लिखने का प्रयास करने लगा। अब उसे सभी विषयों की कॉपी में अक्सर गुड मिलने लगा।
श्याम को यह देखकर जलन हुई कि मोहन को गृहकार्य में अध्यापकों की तरफ से इतने अधिक 'गुड' क्यों मिलते हैं ? 'गुड' तो श्याम को भी मिलते थे लेकिन सिर्फ तीन-चार 'गुड' से उसे कोई संतुष्टिï नहीं हुई।
सोचते सोचते एक दिन श्याम ने एक तरकीब निकाली और अध्यापकों द्वारा दिए गए गुड की अपनी रफ कॉपी में नकल करने लगा। जब उसे विश्वास हो गया कि अध्यापक जी के 'गुड' और उसके 'गुड' में कोई अन्तर नहीं है तब उसने अपनी कॉपियों में जगह-जगह 'गुड' लिख लिए। श्याम अब मन ही मन अपनी तरकीब पर बहुत खुश हो रहा था।
अब श्याम को अध्यापकजी की तरफ से किसी कॉपी में गुड नहीं मिलता तो व चुपके से अपने आप ही लिख लेता।
एक दिन श्याम ने मोहन से कहा, 'मोहन, तुम्हारी कॉपियों में कितने गुड हैं। गिनना तो जरा।'
मोहन को पक्का विश्वास था कि उसकी कॉपियों में श्याम से ज्यादा गुड हैं। अत: उसने फटाफट गिन कर बताये कि कुल इक्यावन गुड हैं। फिर मोहन ने श्याम से पूछा, 'तुम्हारी कॉपी में ?'
श्याम ने गर्व से कहा, 'मेरी सभी कॉपियों में पैंसठ गुड हैं।'
मोहन बोला, 'नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता। जितने मैंने गुड लिये हैं उतने तुम्हारे कभी नहीं हो सकते।'
श्याम ने आंखें मटकाते हुए कहा, 'तुम ठीक कहते हो। तुम्हारे जितने कहां हैं। मेरे तो तुमसे ज्यादा हैं।'
'अपनी कॉपियां दिखाना तो।' मोहन ने उत्सुकतावश श्याम से उसकी कॉपियां मांगी।
श्याम ने गर्व से सीना तानते हुए अपनी सभी कॉपियां मोहन के आगे रख दीं और बोला, 'विश्वास नहीं हो तो गिनकर देख लो।'
तब मोहन ने श्याम की सभी कॉपियां देखी और अध्यापकों द्वारा दिए गुड भी देखे। इतने ज्यादा गुड देखकर उसे शक हुआ। फिर भी उसने एक-एक करके सारे गुड गिने। कुल पैसठ थे।
मोहन बोला, 'श्याम तुमने इतने गुड कब ले लिये ? मुझे तो शक हो रहा है।'
मोहन के इतना कहते ही श्याम ने उसका गला पकड़ लिया और छाीना-छपटी में उसका बुशर्ट भी फाड़ दिया।
'अरे श्याम, क्या बात है.. क्यूं झगड़ रहा है?' कक्षा अध्यापक विद्यासागर ने कक्षा में घुसने हुए गुस्से से कहा।
श्याम बोला, 'सरजी, झगड़ा तो मोहन ही कर रहा है जी।'
'क्या बात है मोहन।' अध्याक ने पूछा।
'कुछ नहीं सरजी।' मोहन ने कहा।
'तो फिर आपस में क्यंू झगड़ रहे हो? तुम दोनों इधर आओ।' अध्यापक जी ने कहा तो श्याम और मोहन उनके पास जाकर खड़े हो गए।
'अब बताओ बात क्या है?' अध्यापक जी ने पूछा।
'सरजी, मोहन क्या बतायेगा। मैं बताता हूं। सरजी, मेरे कॉपियों में ज्यादा गुड देखकर मोहन मुझ पर शक करने लगा था। इसने कहा था कि तुम्हारे इतने गुड नहीं हो सकते। जबकि मेरे इससे ज्यादा गुड है।' श्याम ने कहा।
अध्यापक जी बोले, 'तुम दोनों अपनी अपनी कॉपियां लेकर आओ।'
'सरजी, कॉपी क्या लाऊ। मेरी कॉपियों में गुड मोहन ने स्वयं मिने हैं।' श्याम ने सफाई देते हुए कहा।
'मैने क्या कहा, सुना नहीं। अपनी अपनी कॉपिया लेकर आओ।' अध्यापक जी का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था।
तब मोहन ने झट से अपने बस्ते से सारी कॉपियां निकालकर अध्यापकजी को थमा दी और श्याम धीरे-धीरे अपने बस्ते से कॉपियां निकलाने लगा।
'जल्दी करो श्याम।'
'अभी लाया सरजी।'
मोहन श्याम के उतरे चेहरे को देखकर भांप गया था कि अब उसकी पोल खुलेगी।
श्याम अध्यापक जी को अपनी कॉपियां थमाते हुए मरियल-सी आवाज में बोला, 'ये लीजिए सरजी।'
श्याम की कॉपियां लेकर अध्यापक जी जैसे-जैसे कॉपी के पन्ने पलटते जा रहे थे, श्याम की धड़कन बढ़ रही थी।
'क्यों श्याम, ये गुड किसने दिया है?' अध्यापक जी ने उसकी कॉपी में लिखे गुड की ओर इशारा करते हुए पूछा।
'यह तो आपका दिया हुआ है सरजी।' श्याम ने विश्वास के साथ कहा।
'सच कह रहे हो ?'
'हां...हां जी।'
'और यह गुड ?'
'यह भी आपका दिया हुआ है सरजी।'
'ठीक है, बैठो। मैं हाजिरी लेता हूं।' अध्यापक जी ने हाजिरी रजिस्टर खोलते हुए कहा। कक्षा में चुप्पी छा गई।
दिन भर की पढ़ाई के बाद जब स्कूल की छुट्टïी हुई तो सब बच्चे अपने अपने घरों की ओर भागने लगे। विद्यालय के अध्यापकगण भी अपने-अपने घरों की ओर जाने लगे।
'सरजी, एक मिनट रूकना जी।'
'कहो, क्या बात है ?' विद्यासागर जी ने पीछे देखते हुए कहा। उन्होंने देखा कि उनकी कक्षा का छात्र श्याम उनके सामने खड़ा है।
'जी... जी....।'
'हां...हां कहो बेटे, किसी ने तुम्हे पीटा क्या ?' विद्यासागर जी ने प्यारे से श्याम के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा।
श्याम की रूलाई फूट पड़ी। वह रोते रोते बोला, 'मैंने आपसे झूठ बोला था सरजी। कॉपियों में वे गुड मैंने ही लिखे थे जी।'
'मुझे पता है बेटे।'
'आपको पता था। तो आपने मुझे पीटा क्यों नहीं सरजी ?' श्याम रोते-रोते ही बोला, 'सरजी, मैं अब कभी झूठ नीं बोलूंगा जी... और न ही कभी ऐसा काम करूंगा जी।'
विद्यासागर जी चुपचाप चलते रहे। 'आपने मुझे माफ कर दिया सरजी ?' श्याम ने भोलेपन से पूछा।
'ठीक है कर दिया। अब अपने घर पहुंचो।' विद्यासागर जी ने कहा।
तभी श्याम अपने सरजी के पैरों से लिपट गया और जोर-जोर से रोते हुए बोला, 'सरजी, मेरी पिटाई करो। मेरी पिटाई करो सरजी। मैंने गलती की है। मेरी पिटाई करो, सरजी, आपको पता था कि वे गुड मैंने लिखे हैं तो भी आपने मुझे पीटा नहीं। मेरी पिटाई करो सरजी।' विद्यासागर जी की आंखें भर आईं। वे वहीं बैठ गये और श्याम को अपनी छाती से लगाते हुए भर्राये गले से बोले, 'बेटे, किसी को सुधारने का आखिरी हथियार पिटाई ही तो नहीं है। और श्याम अपने सरजी के गले में बांहें डालकर जोर से लिपट गया।