आखिर लड़कियाँ भाग क्यों जाती हैं ! / एकता बृजेश गिरि
बेहद संवेदनशील मुद्दा है किसी माँ-बाप की बेटी का घर से भाग जाना! घर-परिवार, समाज में फिर ऐसी बदनामी कि माँ-बाप सिर उठा कर चलना तो दूर किसी से नजर मिला कर बात भी नहीं कर पाते हैं। कुछ माँ-बाप तो इस शर्म से आत्महत्या कर लेते हैं और कुछ माँ-बाप भागने वाली बेटी की हत्या करवा देते हैं। लेकिन आखिर वजह क्या है, लड़कियाँ आखिर भाग क्यों जाती हैं!
एक लड़की जो अपने परिवार में पलती है, पढ़ाई-लिखाई करती है, बड़ी होती है, उस लड़की के बारे में एक दिन पता चलता है कि वह घर से भाग गई! आखिर ऐसी नौबत क्यों आती है कि एक लड़की को अपने परिवार, अपने माता-पिता, भाई-बहनों की परवाह नहीं रहती और वह बरसों का लाड़-प्यार, मान-सम्मान सब कुछ छोड़ कर अनजान रास्ते पर चल पड़ती है!
प्रेम, प्यार, इश्क या मोहब्बत चाहे, जिस नाम से पुकारें लेकिन यही वह कारण है जिसकी वजह से हमारे समाज में अधिकतर लड़कियाँ भागती हैं। इसके बाद कुछ लडकियाँ, हालांकि उनकी संख्या बहुत कम है, सिने जगत से प्रभावित होकर नायिका या मॉडल बनने के लिए भी घर से भागती हैं और कुछ उच्च शिक्षा, कैरियर इत्यादि के सपने संजोये भी घर से भाग जाती हैं लेकिन इनकी संख्या भी बहुत कम है।
अर्थात् प्यार ही वह प्रमुख कारण है जिसके कारण लड़कियाँ घर से भागती हैं और समाज को इन्हीं लड़कियों का भागना ही बहुत अखरता है। यह लेख भी इन्हीं भागने वाली लड़कियों को समर्पित है।
प्रश्न यह उठता है कि किसी से प्यार के कारण लड़कियों को अपने घर से भागना क्यों पड़ता है! क्या प्यार इतनी ही बुरी भावना है! कबीर दास ने तो प्यार की महिमा कुछ इस प्रकार गाई है-"पोथी पढ़ि-पढि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय!" मतलब जिसने प्रेम कर लिया वह विद्वान बन गया तो फिर हमारे समाज में प्रेम को क्यों इतनी हेय दृष्टि से देखा जाता है! या फिर कबीर दास ने जिस प्रेम की बात कही, प्रभु कृष्ण, राधा से जो प्रेम करते हैं, सती ने शिव के लिए जो तपस्या की थी वह दूसरा प्रेम है और हमारे समाज की लड़कियाँ जो प्रेम करती हैं वह कोई दूसरा प्रेम है!
हमारे समाज में अगर एक लड़की किसी से प्रेम करती है तो लोग कहते हैं, फलाने की लड़की का किसी के साथ चक्कर है! उसके संस्कार ठीक नहीं हैं! आखिर क्यों! बात अगर संस्कारों की है तो हमारे पुराण, महाकाव्य भी इस बात के गवाह हैं कि देवी–देवता जिनकी हम पूजा करते हैं, जिनको हम आराध्य मानते हैं, उन्हें भी समय-समय पर प्रेम होता रहा है तो क्या उनके संस्कार भी ठीक नहीं थे! राधा–कृष्ण का प्रेम तो जग प्रसिद्ध है ही, सीता मैया भी विवाह के पहले ही श्रीराम को न केवल पसंद कर बैठी थीं बल्कि उन्होंने मन ही मन उन्हें अपना पति भी मान लिया था।
अब अगर मान लिया जाये कि श्रीराम, राजा जनक-सीता के पिता की शर्तों को पूरा नहीं कर पाते या फिर राजा जनक, श्रीराम को पसंद ही नहीं करते तो सीता जी क्या करतीं!
कोई भी लड़की जो किसी से प्रेम करती है यदि उसके घर वाले उसके प्रेम को स्वीकार नहीं करते हैं तो उस लड़की के पास केवल दो ही विकल्प होते हैं या तो वह अपने प्रेम को भूल कर अपने पिता के कहे अनुसार विवाह कर ले और या फिर अपने प्रेमी का हाथ थाम कर घर छोड़ दे। यदि लड़की पहला विकल्प चुनती है तो भी उसके लिए मुश्किल है क्योंकि किसी को भूलना इतना आसान नहीं होता है और फिर उसको भूलना जिसके साथ मरने-जीने की कसमें खाई हों और भी मुश्किल है। लेकिन, पहले विकल्प में लड़की अपने घरवालों के दबाव में उस व्यक्ति से विवाह तो कर लेती है जिसे उसके पिता चुनते हैं मगर अपने मन में वह अपने प्रेमी की छवि लिये घूमती है। यह स्थिति परिवार और समाज के लिए और भी ज़्यादा खतरनाक है क्योंकि यह कहीं न कहीं विवाहेतर सम्बंधों को जन्म देती है। मन में किसी एक को बसा कर किसी दूसरे से विवाह कर लेने का अर्थ ही है उस दूसरे व्यक्ति को धोखा देना। क्या ये उचित संस्कार हैं!
और यदि वह लड़की दूसरा विकल्प चुनती है तो फिर वही बदनामी, संस्कार खराब होने का ताना, परिवार की शर्मिंदगी इत्यादि। आखिर कोई बीच का रास्ता भी तो होना चाहिए.
एक लड़की, जिसके माता-पिता उसे बहुत प्यार करते हैं, बचपन से उसकी पसंद के खिलौने, उसके कपड़े इत्यादि खरीदते रहते हैं लेकिन जब एक लड़की के जीवन साथी चुनने का प्रश्न आता है तब वे लड़की की पसंद क्यों नहीं पूछते हैं, इस बार भी वे लड़की की पसंद को अपनी पसंद आखिर क्यों नहीं बनाते हैं, जैसा कि वे बचपन से करते आये हैं! आखिर क्यों वे उस व्यक्ति को अपनी काबिलियत सिद्ध करने का अवसर प्रदान नहींa करते हैं, जिसे उनकी बेटी ने पसंद किया है! आखिर क्यों वे अपने फैसले अपनी बेटी पर थोपना चाहते हैं! उन्हें क्यों ऐसा लगता है कि उनकी बेटी ने जिसे चुना है, वह व्यक्ति एकदम बेकार ही होगा! प्राचीन काल में भी तो स्वयंवर के माध्यम से लड़कियों को अपनी पसंद का वर चुनने का अधिकार था तो आज का समाज तो उस काल से बहुत ज़्यादा आधुनिक है फिर इस मामले में हम क्यों पिछड़े हुये हैं!
कोई भी लड़की अपने माँ-बाप को दुःखी कर कोई भी कदम उठाना नहीं चाहती है और शादी के लिए घर से भागना तो कतई नहीं चाहती है क्योंकि हर लड़की का यह सपना होता है कि उसकी शादी धूमधाम से हो, उसके माता-पिता की उपस्थिति में हो इसलिए अगर कोई लड़की घर से भागने का निर्णय लेती है तो जाहिर-सी बात है कि इससे पहले उसके दिमाग में बहुत सारी उथल-पुथल होती है लेकिन अपनी इस उथल-पुथल को वह अपने परिवार में किसी से साझा नहीं कर पाती क्योंकि हमारे समाज में आज भी लड़कियों को अपनी शादी के विषय में बोलने का अधिकार नहीं दिया गया है, उनकी पसंद-नापसंद जानने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। ऐसे में लड़की बाहर वाले की बात पर अधिक भरोसा करने लगती है और इस बाहर वाले का प्रभाव लड़की पर इतना अधिक पड़ने लगता है कि उसे अपने ही परिवार के सदस्य दुश्मन लगने लगते हैं! जिन परिवारों में माँ-बाप और बेटियों के बीच संस्कारों की गहरी खाई खुदी होती है, जहाँ बेटियाँ अपने मन की बात अपने माता-पिता से नहीं कह पाती हैं, अक्सर देखा गया है, उन्हीं परिवारों की लड़कियाँ घर से भागती हैं!
अतः अब आवश्यकता है कि माता-पिता अपनी लड़कियों की परवरिश के साथ-साथ उनसे मित्रता करें ताकि वे अपने मन की सभी बातें अपने माता-पिता से साझा कर सकें।
साथ ही, यदि एक पिता अपनी बेटी की पसंद को स्वीकार कर ले तो फिर उनकी बेटी को घर से भागने की आवश्यकता ही क्या है! मानती हूँ, एक पिता के लिए ये थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि उसे लगता है कि वह अपनी बेटी के लिए जिस व्यक्ति को चुनेगा बस एकमात्र उसी के साथ उनकी बेटी खुश रहेगी! लेकिन ऐसे पिताओं को एक बार अपना हृदय अवश्य टटोलना चाहिए कि क्या वे सचमुच अपनी बेटी की खुशी चाहते हैं या फिर अपनी ऊँची जाति, शान, प्रतिष्ठा के कारण अपनी बेटी का विवाह अपनी बराबरी के व्यक्ति से करना चाहते हैं और बस इसीलिये उन्हें बेटी द्वारा पसंद किया व्यक्ति बेकार लगता है। यदि कोई पिता सच में अपनी बेटी की खुशी चाहता होगा तो वह उसकी पसंद में भी खुश रहेगा क्योंकि उसे पता होगा कि किसी दूसरे व्यक्ति के साथ ब्याह देने में उसकी बेटी की खुशी नहीं है।
मेरे विचार से तो हर पिता को अपनी बेटी की पसंद को अपनी काबिलियत सिद्ध करने का अवसर अवश्य प्रदान करना चाहिए और अगर उसकी काबिलियत में कुछ उन्नीस-बीस रह ही जाता है तो अपनी तरफ से भी उसकी मदद कर देनी चाहिए क्योंकि एक पिता जब अपनी बेटी के लिए स्वयं वर चुनता है तो भी वह वर पक्ष वालों की सभी मांगो को पूरा करता है।
यदि पिता अपनी बेटी की पसंद को एक सिरे से न नकारे तथा उसे यह आश्वासन दे कि उसका विवाह उसकी इच्छा से ही होगा तो लड़कियों को भागने की आवश्यकता ही नहीं होगी। पिता अपनी बेटी को समय दे ताकि उसकी बेटी और उसका प्रेमी अपने पैरों पर खड़े हो सकें, वे एक-दूसरे को और अच्छी तरह परख लें। हो सकता है कि इस अवधि में बेटी को अपनी पसंद में स्वयं ही खोट दिखाई देने लगे और वह उस व्यक्ति को अपना जीवन साथी न बनाना चाहे। प्रारम्भ में ही पिता द्वारा नकार दिये जाने के कारण बेटियों के भागने की संभावनायें प्रबल हो जाती हैं क्योंकि ये मनुष्य की प्रकृति है, उसे जिस काम को करने से रोका जायेगा, वह अदबदा कर वही काम करेगा।
अब कुछ बातें उन लड़कियों से जो किसी से प्रेम करती हैं: प्रेम इस जगत का सबसे पवित्र भाव है। धरती पर यदि प्रेम हो तो बाकी सभी झमेले समाप्त हो जायें। लोग कहते हैं कि प्रेम अंधा होता है क्योंकि यह ऊँच-नीच, जात-पात, धन-दौलत कुछ नहीं देखता। जाहिर-सी बात है कि एक लड़की प्रेम में अंधी होकर किसी ऐसे व्यक्ति को चुनती है जो उसके मुकाबले कहीं नहीं ठहरता। लेकिन प्रेम का मतलब ये तो नहीं कि कोई जीवन भर के लिए ही अंधा हो जाये। प्रेम जैसे सर्वोत्कृष्ट भाव का स्थान सर्वोपरि बना रहे, इसका दायित्व भी तो उसी का है जो प्रेम में अंधा हो चुका है। अपने प्रेमी के साथ भविष्य के सपने देखने के साथ ही उन सपनों को पूरा करने का धरातल मजबूत करना भी उसी का दायित्व है और यह तब तक नहीं हो सकता जब तक कोई लड़की अपने पैरों पर न खड़ी हो।
किसी से प्रेम करके घर से भाग जाना कोई उतनी बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात यह है कि घर से भागने के बाद, अगले दिन से आप अपने जीवन को किस प्रकार जियेंगी! अभाव के थपेड़ों में कहीं आपका प्रेम हवा न हो जाये इसलिए प्रेम करने के बाद और घर से भागने के पहले स्वयं को आर्थिक, शारीरिक और मानसिक रूप से इतना मजबूत बनाइये कि आने वाले समय में कोई भी मुश्किल आये तो आप और आपका प्रेमी उन मुसीबतों का हँसते-हँसते मुकाबला करे न कि आप दोनों प्रेम को अपमानित कर एक-दूसरे का साथ छोड़, भाग खड़े हों और फिर एक बार समाज में हँसी के पात्र बनें।
जब आप स्वयं अपने लिए जीवन साथी चुन रही हैं तो आपको अपने फैसले के परिणामों की जिम्मेदारी भी स्वयं लेनी होगी। किसी भी प्रकार की ऊँच-नीच होने पर अब आप अपने पिता के घर वापस नहीं आ सकतीं क्योंकि आपने अपना भविष्य स्वयं चुना है इसलिए आपकी, खुद को और अपने प्रेम को सही साबित करने के प्रति दोहरी जिम्मेदारी हो जाती है और ये जिम्मेदारी आप तभी निभा पायेंगी जब आप स्वयं में सक्षम होंगी। आपकी सक्षमता आपके प्रेमी को भी और बेहतर करने की प्रेरणा देगी और हो सकता है कि आप दोनों की इस सक्षमता को देख कर आपके माता-पिता भी आपकी पसंद को स्वीकार कर लें और आपको घर से भागने की आवश्यकता ही न पड़े।