आखेट / एक्वेरियम / ममता व्यास
वह बहुत बड़ा शिकारी था, आसपास के इलाकों में उसके जैसा कोई आखेटक नहीं था। उसके तूणीर में अनेक प्रकार के तीर हमेशा होते थे। जिनसे वह निरीह और मासूम प्राणियों का शिकार करता था। अक्सर उसे कुलाचें भरती चंचल हिरणियाँ लुभाती थीं, लेकिन उसे शेरनी का शिकार करना अति प्रिय था।
कहते थे जंगल में शेर का नहीं उस आखेटक का राज चलता था। उसकी पैनी नजर से कभी कोई शिकार बच नहीं सका। कोई कितने भी घने जंगल में खुद को छिपा ले वह शिकार को सूंघ ही लेता था।
शिकार का पीछा करना और जब तक शिकार उसके निशाने पर न आ जाए चैन से नहीं बैठना यही उसका जुनून था।
अपने लक्ष्य को पाने के लिए उसने कभी दिन देखे न रात। वह महीनों अपने घर से दूर रहकर घने अंधेरे जंगलों में छिपा रहता। अपनी धुन का वह पक्का शिकारी कभी निराश नहीं हुआ और न उसने कभी शिकार का इरादा ही बदला। जिस शिकार पर नजर पड़ी उसे मार कर ही उसे चैन मिलता था।
ऐसी तमाम विशेषताओं के बावजूद उसके स्वभाव में एक बड़ी ही विचित्र बात थी। शिकार के वक्त जैसी लगन, उत्साह, खुशी, अधीरता, पागलपन, जिज्ञासा और दीवानापन उसके चेहरे से झलकता था। शिकार के ढेर होते ही वे सब एक पल में गायब हो जाते थे। हैरानी की बात ये थी कि शिकार के बाद उसके सुन्दर मुख पर कभी विजयी मुस्कान नहीं देखी। इसके विपरीत उसे अवसाद से घिरा हुआ पाया, उकताया हुआ ही देखा।
हाँ, एक और अजीब बात थी उसमें, जंगल में जितने भी शिकार उसने किये उन्हें कभी भी छुआ तक नहीं, उठाया नहीं, ना उनके पास ठहरा और न उन्हें साथ ले गया। शिकार के पास जाना या झुक कर उसे उठाना उसकी आन, वान और शान के खिलाफ था। झुकना उसे पसंद नहीं था और जमीन पर गिरी चीज उसके लिए कोई मायने नहीं रखती। भले ही वह चीज उसी के द्वारा गिराई गई हो।
उसे देख ऐसा लगता था जैसे वह शिकार करने के लिए ही जन्मा हो लेकिन उसकी ये विचित्र आदत कि शिकार करने के बाद उस शिकार यूं बेकदरी से छोड़ जाना कभी समझ नहीं आया।
उसे अपने लक्ष्य से बहुत प्रेम था और जिस दम तक वह शिकार न कर ले वह बड़े प्रेम से अपने शिकार को घंटों निहारता रहता था। शिकार करने के कोण बनाता था और पागलों की तरह पीछा भी करता था लेकिन शिकार करते ही, उस प्राणी के दम तोड़ते ही, वह एकदम उस शिकार से नजरें फेर लेता था।
जिस चंचल हिरनी या शेरनी के शिकार के लिए वह दीवाना होकर अपना चैन-सुकून गंवा देता था उन पर तीर चलाते ही और उनके घायल होते ही वही खूबसूरत शिकार उसके लिए खून से सने मांस के लोथड़ों से ज़्यादा नहीं होता था।
वह हिकारत से उन्हें देखता और आगे बढ़ जाता। एक कमाल की बात ये भी थी कि वह आखेटक मांसाहारी भी नहीं था कि नर्म गर्म गोश्त खाकर अपनी भूख मिटा लेता, न वह कोई चतुर व्यापारी ही था जो उन प्राणियों की सुन्दर खाल बेचकर धन कमा लेता। फिर वह क्या था? वह बस आखेटक ही था। आखेट उसका खेल था मनोरंजन था, आनन्द था।
यही वजह थी कि वह अपने द्वारा मारे हुए जीवों को बड़ी लापरवाही से जंगल में छोड़ देता था बाद में अन्य जंगली जानवर उन्हें अपना भोजन बना लेते थे। जब एक जंगल से उसका मन भर जाता तो फिर किसी नए जंगल की तलाश में निकल पड़ता था।
इस बार उसने नया रास्ता पकड़ा और नए जंगल खोजे. नए जंगल के नए नियम होते हैं इस बार उसने पहली बार बोलता हुआ जंगल देखा। जिसका हर पेड़, हर जीव बात करता था। उसने एक चंचल हिरणी भागती देखी। वह उस हिरनी के पीछे कई बरसों तक भागता रहा आखिर एक दिन हिरनी रुक गयी। आखेटक ने धनुष संभाला और तीर छोडऩे ही वाला था कि हिरणी हंस पड़ी।
आखेटक ने तीर रोक दिया और हैरान हो गया। पहली बार उसका इरादा बदल गया। बोला-"बहुत शिकार किये मैंने कोई हिसाब नहीं लेकिन पहली बार तुम्हें मारने का कोई इरादा नहीं।"
हिरणी ने कहा-"आखेटक तुम तीर चलाओ या तो मुझे मार दो या लौट जाओ."
आखेटक बोला-"रुक जाओ तुम।"
हिरणी बोली-"जिन्दगी भर आखेट करते रहे तुम, तुम्हारे तूणीर में जान ले लेने वाले अनगिनत तीर हैं, लेकिन रोक लेने वाला एक भी तीर नहीं, बहुत आसान है मार देना, बहुत कठिन है रोक लेना।"
आज पहली बार आखेटक ने अपने तूणीर को खाली पाया था।