आगांक सोच / एस. मनोज

Gadya Kosh से
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"मैंया आब अहाँ एकटा खिस्सा सुनाबियौ," अपन-अपन खिस्सा सुनयलाक बाद चिंकी, पिंकी आ सोनू बाजल।

"हम आब कौन खिस्सा सुनाबियौ। जहिया सँ तों सभ गाम आइल छें, तहिया सँ त' हम खिस्सा सुनाबिते छियौ। आब हमरा कोनो खिस्सा मोन नहि अछि।" गर्मीक छुट्टीमे गाम आएल पोता-पोतीक संग गप करैत मैंया बजलीह।

"नै मैंया, नै। अहाँके खिस्सा सुनबै पड़त।" सोनू बाजल आ फेर चिंकी, पिंकी मैंया सँ निहोरा कर'लागल त' मैंया बजलीह-"बेस, थम्ह। हमरा कोनो खिस्सा मोन पाड़' दे।"

मैंयाक आश्वासनक बाद बच्चा-बुच्ची कने शान्त भ'गेलैक आ मैंया आँखि बन्न क' मुड़ी झुका क'कोनो खिस्सा मोन पाड़ै लगलीह। क्षणे पलकमे बच्चा सभक चटकी मटकी चल' लगलै। कियो मुस्काबै, कियो आँखि देखाबै त'कियो चुप रहबाक संकेत करै। फेर अपनेमे टोका-टोकी शुरू भ' गेलैक। मैंया चुप रहबाक संकेत देलनि त' सोनू बाजल-"मैंया प्लीज, एकोटा खिस्सा।"

मैंया पोताक अनुरोध टारि नहि सकली आ बाजली-"हम अपन नेनपनक एकटा खिस्सा सुनाबियौ?"

तीनू भाइ बहिन हँ-हँ बाजल आ मूरी डोला क' सहमति देलक।

मैंया अपन नेनपनक खिस्सा सुनाब' लगलीह-"तहिया हम पिंकीक बयसक रहल होयबै। अपना बाबाक संग जयमंगलागढ़ बैलगाड़ी सँ गेल रहियै। भिनसरे जखन घर सँ चललियै, तखन मौसम ठीक रहै, मुदा जेना-जेना हमर गाड़ी मंझौल सँ गढ़ दिस बढ़ल गेलै तेना-तेना मौसम खराप भेल गेलैक।"

"फेर पानि पड़य लागल होयतै आ मैंया भींज गेल होयथिन?" पिंकी मैंयाक खिस्साकें आगां बढ़बयबाक कोशिश कयलक, मुदा मैंया पिंकीकें टोकैत बजलीह-"नहि, से नहि भेलैक"।

पिंकी-"तखन?"

चिंकी-"सुनभी तखन न।" बिच्चेमे टुप-टुप कथी ले' करै छहीं। "

मैंया-"सुनै जाह।"

हँ हँ करैत तीनू भाइ-बहिन शान्त भ'गेल आ मैंयाक मुँह ताक' लागल।

मैंया-"हम सभ जाधरि गढ़ पर पहुंचलियै, बरखाक बुन्न खस'लागलै। हमसभ गाड़ी सँ उतरि क' मंदिरक बरंडा पर चलि गेलियै। ओतय सँ देखलियै जे मंदिरक एक दिस कावर झील रहै आ दोसर दिस खूब दूर धरि पसरल जंगले-जंगल। बरखा बुन्नीक कारण चिड़ै सभ उड़ि-उड़ि अपन खोंता दिस जाय लागलै। तखन चिड़ै सभक चहकब बड़ मनभावन लागै। हम देखलियै, चिड़ै सभ उड़ि-उड़ि आबै आ अपन खोतामे जा क'बैस जाय, चूँ चूँ, ची-ची कर' लागै। ओ अपना बच्चा सभक लोलमे लोल सटाबै आ ची ची, ची-ची करै। लागै जे अपन बच्चा सभके दुलार क'रहल छै आ कहि रहल छैक-बिपत्ति कालमे हम आबि गेलियौ ने तोरा लग। आब तोरा किछु नहि हुअ देबौ। दोसर दिस गाछीमे बानर सभ एक गाछ सँ दोसर गाछ आ दोसर गाछ सँ तेसर गाछक नीचाँ भागि-भागिकें जाय। कखनहुँ कोनो-कोनो बानर मंदिरो दिस आबै। हम त' डेरा जइयै, मुदा कियो-कियो सियान लोक ओकरा मंदिर दिस सँ भगा दै।"

मैंयाकें बीचमे टोकैत चिंकी बाजल-"मैंया, बानर एकदम अहाँ लग आबि गेल रहय। बाप रे बाप, हमरा त'कथा सुनि क' डर लागैए, मैंयाक की हाल भेल हेतनि?"

पिंकी बाजल-" की भेल होयतै? किछु नहि भेल होयतै। मैंयाक संगमे बाबा रहथिन से। '

चिंकी-"भप। मैंयाक संगमे बाबा रहथिन। मैंया अपने बच्चा रहथिन आ हिनका संग में बाबा?" ओ मैंया दिस धुरि क' पुछलक-"तहिया अहांक बियाह नै ने भेल रहय मैंया?"

मैंया बच्चा सभक बुद्धिमत्ता आ कौतूहल पर मोने मोन प्रसन्न होयत रहलीह आ चुपचाप तीनू भाइ-बहिनक गप्प सुनैत रहलीह। जखन दूनू बहिनकें गप्प अपनेमे ओझरा गेलैक त'मैंया बाजली-"हम कहियौ? हमर बियाह नहि भेल रहै, मुदा बाबा संगमे रहथिन। बाज, कोना क' बाबा संगमे रहथिन?"

दूनू बहिन कखनहुं सोनूक मुँह ताकय, कखनहु मैंयाक। जखन नहियें बूझि सकलै त' फेर मैंया बाजली-" गे! तोहर बाबा नहि रहथुन, हमर बाबा रहथिन। आब बाज, तोहर मैंयाक संगमे बाबा रहथिन ने?

सोनू बाजल-हँ, हँ, हम्मेअर बूझबे नहि कैलियै। आब मैंया आगूक खिस्सा कहियौ। जखन बनरबा सभ इमहर-ओमहर दौड़ै रहै त' की भेलैक? "

मैंया बजलीह-"की होयतै? बड़ी कालधरि बरखा बुन्नी होइत रहलै आ हम सभ मंदिर पर ठाढ़ भेल बानर आ चिड़ै सभक खेला देखैत रहलियै। चिड़ै सभक खोंता गाछ पर हवामे डोलै। खोंता पर पानि पड़ै, मुदा खोतामे पानि नहि जाइ. चिड़ै सभ नहि भिजय। एक तरहें जानवर ले' दुरकाल बीतैत रहै। हम अपन बाबाकें कहलियै-अनचोके कतेक संकट आबि गेलैक। चिड़ै लेल बेसी संकट नहि छैक, मुदा बानर सभकें प्राण बचैनाइ मोश्किल भेल छैक।"

हमरा बाबा किछु कहथिन ताहिसँ पहिनहि मंदिर पर बला पंडित जी बाजलाह-"ई पहिल बेरक बरखा बुन्नी नहि ने छिकै दाय। सभ साल एहने मौसम होइत छैक। बरखाक बाद बनरबा सभ मीटिंग कयलक। अपन-अपन घर बनयबाक लेल तैयारी कयलक। कोनो-कोनो बरख त'ओमहर बीच जंगल दिस काठो बांस जमा करैत छैक, मुदा जहिना-जहिना मौसम ठीक भेल गेल, बनरबा ओ सभ काज बिसरल गेल। आ फेर जे परिणाम भोग' पड़ैत छैक से त'देखिये रहल छहक। दोसर दिस ओ सभ चिड़ै छैक, जे सभ अपना खोंता लेल पहिनेसँ तैयारी करैत छैक। आइ जाहि चिड़ै सभक खोंता उजरि गेल होयतैक, ओकर मरम्मति ओ सभ काल्हिये सँ कर' लागत। ई बनरबा सभ संकट सँ बचै लेल कोनो तैयारी नहि करतै आ फेर संकटमे पड़तै। बुझलहीं बुच्ची।"

मैंया तीनू बच्चाक मुँह दिस ताकि फेर बजलीह-" हमर बाबा तहिया कहने रहथिन पंडित जीक बात बूझलहीं न।

सुखी रहय जे आगूक सोचय आ तकरा ल' काज करय। "