आजाद-कथा / भाग 1 / खंड 58 / रतननाथ सरशार
रूम पहुँचकर आजाद एक पारसी होटल में ठहरे। उसी होटल में जार्जिया की एक लड़की भी ठहरी हुई थी। उसका नाम था मीडा। आजाद खाना खा कर अखबार पढ़ रहे थे कि मीडा को बाग में टहलते देखा। दोनों की आँखें चार हुईं। आजाद के कलेजे में तीर सा लगा। मीडा भी कनखियों से देख रही थी कि यह कौन आदमी है। आदमी तो निहायत हसीन है, मगर तुर्की नहीं मालूम होता है।
आजाद को भी बाग की सैर करने की धुन सवार हुई, ते एक फूल तोड़ कर मीडा के सामने पेश किया, मीडा ने फूल तो ले लिया, मगर बिना कुछ कहे-सुने घोड़े पर सवार हो कर चली गई। आजाद सोच रहे थे कि यहाँ किसी से जान न पहचान, अब इस हसीना को क्योंकर देखेंगे? इसी फिक्र में बैठे थे कि होटल का मालिक आ पहुँचा। आजाद ने उससे बातों-बातों में पता लगा लिया कि यह एक कुँआरी लड़की है। इसकी खूबसूरती की दूर-दूर चर्चा है। जिसे देखिए, इसका आशिक हे। पियानो बजाने का दिली शौक है। घोड़े पर ऐसा सवार होती है कि अच्छे-अच्छे शहसवार दंग रह जाते हैं।
शाम के वक्त आजाद एक किताब देख रहे थे कि एक औरत ने आ कर कहा - एक साहब बाहर आपकी तलाश में खड़े हैं। आजाद को हैरत कि यह कौन है? बाहर आए, तो देखा, एक औरत मुँह पर नकाब डाले खड़ी है। इन्हें देखते ही उसने नकाब उलट दी। यह मीडा थी।
मीडा - मैं वही हूँ, जिसे आपने फूल दिया था।
आजाद - और मैंने आपकी सूरत को अपने दिल पर खींच लिया था।
मीडा - यहाँ कब तक ठहरिएगा?
आजाद - लड़ाई में शरीक होना चाहता हूँ।
मीडा - इस लड़ाई का बुरा हो, जिसने हजारो घरों को बरबार कर दिया! भला, अगर आप न जायँ, तो कोई हर्ज है?
आजाद - मजबूरी है!
मीडा ने आजाद का हाथ पकड़ लिया और बाग में टहलते-टहलते बोली - जब तक आप यहाँ रहेंगे, मैं रोज आऊँगी।
आजाद - मेरे लिए यह बड़ी खुशनसीबी की बात है। मैं अच्छी सायत देख कर घर से चला था।
मीडा - आपने वजीर जंग से अपने लिए क्या तय किया?
आजाद - अभी तो उनसे मिलने की नौबत ही नहीं आई।
मीडा - मुझे उम्मेद हैं कि मैं आपको कोई अच्छा ओहदा दिला सकूँगी।
आजाद - आपका वतन कहाँ है?
मीड़ा - जार्जिया।
आजाद - तो यह कहिए, आप कोहकाफ की परी हैं।
इस तरह की बातें करके मीडा चली गई। आजाद कुछ देर तक सन्नाटे में खड़े रहे। इतने में एक फ्रांसीसी अफसर आ कर बोला - तुम अभी किससे बातें कर रहे थे?
आजाद - मिस मीडा से।
अफसर - तुम्हें मालूम हैं, उससे मेरी शादी होनेवाली है?
आजाद - बिलकुल नहीं।
यह सुनते ही उस अफसर ने, जिसका नाम जदाब था, तलवार खींच कर आजाद पर हमला किया। आजाद ने खाली दी। एकाएक किसी ने पीछे से आजाद पर तलवार चलाई। तलवार छिछलती हुई बाएँ कंधे पर लगी। पलट कर आजाद ने जो एक तुला हुआ हाथ लगाया, तो वह जख्मी हो कर गिर पड़ा। आजाद सँभलने ही को थे कि जदाब फिर उन पर झपटा। आजाद ने फिर खाली दी और कहा - मैं चाहूँ तो तुम्हें मार सकता हूँ। मगर मुझे तुम्हारी जवानी पर रहम आता है। यह कह कर आजाद ने पैंतरा बदला और तलवार उसके हाथ से छीन लीं। इतने में होटल से कई आदमी निकल आए और आजाद की तारीफ करने लगे। जदाब ने शरमिंदा हो कर कहा - मुझे इसका अफसोस है कि मेरे एक दोस्त ने मुझसे बगैर पूछे आप पर पीछे से हमला किया। इसके लिए मैं आपसे माफी माँगता हूँ। दोनों आदमी गले तो मिले, मगर फ्रांसीसी के दिल से कुदूरत न गई।
दूसरे दिन मियाँ आजाद हमीदपाशा के पास गए, जो जंग के वजीर थे। हमीद ने आजाद का डील-डौल देखा और उनकी बातचीत सुनी, तो फौजी ओहदा देने का वादा कर लिया। आजाद खुश-खुश लौटे आते थे कि मीडा घोड़े पर सवार आ पहुँची।
मीडा - आप कहाँ गए थे?
आजाद - वजीर-जंग के पास। कल तो आपकी बदौलत मेरी जान ही गई थी।
मीडा - सुन चुकी हूँ।
आजाद - अब आपसे बोलते डर मालूम होता है!
मीडा - जीत तो तुम्हारी ही हुई। हम मुझे दिल में बुरा समझ रहे होगे; मगर मेरा दिल काबू से बाहर है। मेरा दिल तुम पर आया है। मैं चाहती हूँ, मेरी तुम्हारे साथ शादी हो।
आजाद - मुझे अफसोस है कि मेरी शादी तय हो चुकी है। खुदा को गवाह करके कहता हूँ, आपकी एक-एक अदा मेरे दिल में चुभ गई है। मगर मैं मजबूर हूँ।
मीडा ने उदास हो कर कहा - पछताओगे, और घोड़ा बढ़ा दिया। उसी रात को मीडा ने हमीदपाशा से जा कर कहा कि आजाद नाम का जो हिंदुस्तानी आज आपके पास आया था, वह रूस का मुखबिर है। उससे होशियार रहिएगा।
हमीद - तुम्हें इसका पूरा यकीन है?
मीडा - मुझे आजाद के एक दोस्त ही से यह बात मालूम हुई।
हमीद - तुम्हारा जिम्मा।
मीडा - बेशक।
यह आग लगा कर मीडा घर आई; मगर बार-बार यह सोचती थी कि मैंने बहुत बुरा किया। एक बेगुनाह को मुफ्त में फँसाया। खयाल आया कि जा कर वजीर-जंग से कह दे कि आजाद बेगुनाह है; मगर बदनामी के खौफ से जाने की हिम्मत न पड़ती थी। मियाँ आजाद होटल में बैठे हुक्का पी रहे थे किए तुर्की अफसर ने आ कर कहा - आपको टर्की की सरकार ने कैद कर लिया।
आजाद - मुझको?
अफसर - जी हाँ।
आजाद - आप गलती कर रहे हैं।
अफसर - नहीं, मुझे आप ही का पता दिया गया है।
आजाद - आखिर मेरा कसूर?
अफसर - मुझे बताने का हुक्म नहीं।
तीन दिन तक आजाद कैदखाने मे रहे, चौथे दिन हमीदपाशा के सामने लाए गए।
हमीद - मुझे मालूम हुआ कि तुम रूसी जासूस हो।
आजाद - बिलकुल गलत। मैं कश्मीर का रहनेवाला हूँ। आप बतला सकते हैं किसने मुझ पर इलजाम लगाया?
हमीद - एक शरीफ लेडी ने, जिसका नाम मीडा है।
आजाद मीडा का नाम सुनते ही सन्नाटे में आ गए। दिल के टुकड़े-टुकड़े हो गए। मुँह से एक बात भी न निकली। अब आजाद फिर कैदखाने में आए, तो मुँह से बेअख्तियार निकल गया - मीडा! मीडा!! तूने मुझ पर बड़ा जुल्म किया!
आजाद को इसका इतना रंज हुआ कि उसी दिन से बुखार आने लगा। दो तीन दिन में उनकी हालत इतनी खराब हो गई कि जेल के दारोगा ने सुबह-शाम सैर करने का हुक्म दे दिया। एक दिन वह शाम को बाहर सैर कर रहे थे कि एक खूबसूरत नौजवान घोड़ा दौड़ता हुआ उनके करीब आ कर खड़ा हो गया।
जवान - माफ कीजिएगा, आपकी सूरत मेरे एक दोस्त से मिलती है। मैंने समझा शायद वही हों। आप कुछ बीमार मालूम पड़ते हैं!
आजाद - जी हाँ, कुछ बीमार हूँ। मुझे खयाल आता हे कि मैंने कहीं आपको देखा है।
जवान - शायद देखा हो।
यह कह कर वह मुसकिराया। आजाद ने फौरन पहचान लिया। यह मुसकिराहट मीडा की थी। आजाद ने कहा - मीडा, तुमने मुझ पर बड़ा जुल्म किया, मुझे तुमसे ऐसी उम्मेद न थी।
मीडा - मैं अपने किए पर खुद शरमिंदा हूँ। मुझे माफ करो।