आजाद-कथा / भाग 2 / खंड 62 / रतननाथ सरशार

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जोगिन शहसवार से जान बचा कर भागी, तो रास्ते में एक वकील साहब मिले। उसे अकेले देखा, तो छेड़ने की सूझी। बोले - हुजूर को आदाब। आप इस अँधेरी रात में अकेले कहाँ जाती हैं?

जोगिन - हमें न छे़ड़िए।

वकील - शाहजादी हो? नवाबजादी हो? आखिर हो कौन?

जोगिन - गरीबजादी हूँ।

वकील - लेकिन आवारा।

जोगिन - जैसा आप समझिए।

वकील - मुझे डर लगता है कि तुम्हें अकेला पा कर कोई दिक न करे। मेरा मकान करीब है, वहीं चल कर आराम से रहो।

जोगिन - मुझे आपके साथ जाने में कोई उज्र नहीं; मगर शर्त यही है कि मेरी इज्जत के खिलाफ कोई बात न हो।

वकील - यह आप क्या फर्माती हैं? मैं शरीफ आदमी हूँ।

वकील साहब देखने में तो शरीफ मालूम होते थे, मगर दिल के बड़े खोटे थे। जोगिन ने समझा कि इस वक्त और कहीं जाना तो मुनासिब नहीं। रात को यहीं रह जाऊँ, तो क्या हरज? वकील साहब के घर गई तो देखा, एक कमरे में टाट पर दरी बिछी है, और एक टूटी मेज पर कलम-दावात रखी है। समझ गई, यह कोई टुटपुँजिए वकील है।

रात ज्यादा आ गई थी। जब जोगिन सोई, तो वकील साहब ने अपने नौकर सलारबख्श को यों पट्टी पढ़ाई - तुम सुबह इनसे कहना कि वकील साहब बहुत बड़े रईस हैं। इनके बाप चकलेदार थे। इनके यहाँ दो बग्घियाँ हैं और आदमियों की तनख्वाह महीने में तीन सौ रुपए देते हैं।

सलारबख्श - भला वह यह न कहेंगी कि रईस हैं, तो फटेहालों क्यों रहते हैं? एक तो खटिया आपके पास, और उस पर ये बातें कि हम ऐसे और हम वैसे। हाँ, मैं इतना कह दूँगा कि हमारे हुजूर दिल के बड़े वह हैं।

वकील - वह के क्या माने?

सलाबख्श - अजी, चालाक हैं।

वकील - आज खाना दिल लगा कर पकाना।

सलारबख्श - तो किसी बावरची को बुला लीजिए न! दो रुपए खरचिए, तो अच्छे से अच्छे खाने पकवा दूँ। और इनके लिए कोई मामा रखिए। बे इसके बात न बनेगी। हाँ, चाहे मार डालिए, हमें, हम झूठ न बोलेंगे कभी।

वकील - देखो, सब फिक्र हो जायगी।

सलारबख्श - फिक्र क्या खाक होगी? मुकदमेवाले तो आते ही नहीं।

वकील - अजी, एक मुकदमे में उम्र भर की कसर निकल जायगी।

सलारबख्श - तो क्या मिलेगा एक मुकदमे में!

वकील - अजी, मिलने की न कहो! मिलें, तो दो लाख मिल जायँ।

सलारबख्श - ऐं, इतना झूठ! मियाँ, मैं नौकरी नहीं करने का। देखिए, छत न गिर पड़े कहीं! लोग कहते हैं, काल पड़ता है, हैजा आता है, मेंह नहीं बरसता। बरसे क्या खाक, इस झूठ को तो देखिए, कुछ ठिकाना है, दो लाख एक मुकदमे में आप पाएँगे! कभी बाबा राज ने भी दो लाख की सूरत देखी थी? हमने तो आपके बाबा को भी जूतियाँ चटकाते ही देखा। वह तो कहिए, फकीर की दुआ से रोटियाँ चली जाती हैं। यही गनीमत समझो?

वकील - तुम बड़े गुस्ताख हो!

सलारबख्श - में तो खरी-खरी कहता हूँ।

वकील - खैर, कल एक काम तो करना! जरा दो-एक आदमियों को लगा लाना।

सलारबख्श - क्या करना?

वकील - दो आदमियों को मुवक्किल बना कर ले आना, जिसमें यह समझें कि इनके पास मुकदमे बहुत आते हैं। हम तो रंग जमाते हैं न अपना। यह बात! समझे!

सलारबख्श - अगर दो-एक को फाँस-फूँस कर लाए भी, तो फायदा क्या? टका तो वसूल न होगा।

वकील - वह समझेंगी तो कि यह बहुत बड़े वकील हैं।

सलारबख्श - अच्छा, इस वक्त तो सोइए। सुबह देखी जायगी।

दोनों आदमी सोए। सबसे पहले जोगिन की आँख खुली। सलारबख्श से बोली - क्यों जी, इनका नाम क्या है?

सलारबख्श - इनका नाम है हींगन।

जोगिन - क्या? हींगन? तब तो शरीफ जरूर होंगे। और इनके बाप का नाम क्या है? बैंगन!

सलारबख्श - बाप का नाम मदारी।

जोगिन - वाह, बस, मालूम हो गया। और पेशा क्या है?

सलारबख्श - दलाली करते हैं।

जोगिन - ऐं, यह दलाल हैं?

सलारबख्श - जी, और क्या! बाप-दादे के वक्त से दलाली होती आती है।

वकील साहब लेटे-लेटे सुन रहे थे और दिल ही दिल में सलारबख्श को गालियाँ दे रहे थे कि पाजी ने जमा-जमाया रंग फीका कर दिया। इनते में बारह की तोप दगी और वकील साहब उठ बैठे।

वकील - पानी लाओ। आज वह दूसरा खिदमतगार कहाँ है?

सलारबख्श - हुजूर, चिट्ठी ले गया है।

वकील - और मामा नहीं आई?

सलारबख्श - रात उसके लड़का हुआ है।

वकील - और कालेखाँ कहाँ मर गया आज!

सलारबख्श - लालखाँ के पास गया है हुजूर!

वकील - और हमार मुहर्रिर?

सलारबख्श - उन्हें नवाब साहब ने बुलवा भेजा है।

वकील - सब मुवक्किल कहाँ हैं?

सलारबख्श - हुजूर सब वापस चले गए।

वकील - कुछ परवा नहीं। हमको मुकदमों की क्या परवा!

सलारबख्श - हुजूर के घर की रियासत क्या कम है!

वकील - (जोगिन से) आज तो आप खूब सोईं।

जोगिन - मारे सर्दी के रात भर काँपती रही। कसम ले लो, जो आँख भी झपकी हो। यह तो बताइए, आपका नाम क्या है!

वकील - हमारा नाम मौलवी मिर्जा मुहम्मद सादिकअली बेग, वकील अदालत।

जोगिन - 'घर की पुटकी बासी साग।'

वकील - ऐ, और सुनिए।

जोगिन - तुम्हारा नाम हींगन है? और बैंगन के लड़के हो? दलाली करते हो?

वकील - हींगन किस पाजी का नाम है?

सलारबख्श - इनसे किसी ने हींगन कह दिया होगा।

वकील - तेरे सिवा और कौन कहने बैठा होगा?

सलारबख्श - तो क्या मैं ही अकेला आपका नौकर हूँ कुछ? पंद्रह-बीस आदमी हैं। किसी ने कह दिया होगा! इसको हम क्या करें ले भला?

वकील - ऊपर से हँसता है बेगैरत! (जोगिन से) हमसे एक फकीर ने कहा है कि तुम जल्द बादशाह होने वाले हो।

जोगिन - हाँ, फिर उल्लू तुम्हारे सिर पर बैठा ही चाहता है। दो ही तरह से गरीब आदमी बादशाह हो सकता है - या तो टाँग टूट जाय, या उल्लू सिर पर बैठे। अच्छा, आपकी आमदनी क्या होगी?

वकील - यह न पूछो। कुछ रुपया गाँव से आता है, कुछ वसीका है, कुछ वकालत से पैदा करते हैं।

जोगिन - और सवारी क्या है आपके पास?

वकील - आजकल तो बस, एक पालकी है और दो घोड़े।

जोगिन - बँधते कहाँ हैं?

सलारबख्श - इधर एक अस्तबल है, और उसके पास ही फीलखाना।

जोगिन - ऐं, क्या आपके पास हाथी भी है?

वकील - नहीं जी कहने दो इसे। यह यों ही कहा करता है।

जोगिन - अच्छा, वकालत में क्या मिलता होगा?

वकील - अब तो आजकल मुकदमें ही कम हैं।

जोगिन - तो भी भला?

सलारबख्श - इसकी न पूछिए, किसी महीने में दो-चार हाथी आ गए, किसी महीने दस-पाँच ऊँट मिल गए।

वकील - तू उठ जा यहाँ से। हजार बार कह दिया कि मसखरेपन से हमको नफरत है; मगर मानता ही नहीं शैतान! तुझसे कुछ कहा था हमने!

सलारबख्श - हाँ, हाँ, याद आ गया। लीजिए अभी जाता हूँ।

वकील साहब सलारबख्श के साथ बरामदे में आए कि कुछ और समझा दें, तो सलारबख्श ने कहा - अभी सबों को फाँसे लाता हूँ। आप इतमिनान से बैठें। मगर यह भी बैठी रहें, जिसमें लोग समझें कि वकील की बड़ी आमदनी है। मैं कह दूँगा कि गाना सुनने के लिए नौकर रखा है। सौ रुपए महीना देते हैं।

वकील - सौ नहीं दो सौ कहना!

सलारबख्श - वही बात कहिएगा, जो बेतुकी हो। भला किसी को भी दुनिया में यकीन आवेगा कि यह वकील दो सौ रुपए खर्च कर सकता है?

वकील - क्यों,क्यों?

सलारबख्श - अब आप तो हिंदी की चिंदी निकालते हैं। धेले-धेले पर तो आप मुकदमे लेते हैं; दो सौ की रकम भला आप क्या खर्च करेंगे?

वकील - अच्छा, बक न बहुत। जा, फाँस ला दो-चार को।

सलारबख्श बाहर जा कर दो-चार अड़ोसियों-पड़ोसियों को सिखा पढ़ा कर मूँछों पर ताव देते हुए आया और हुक्का भर का जोगिन के सामने पेश किया!

जोगिन - क्या कक्कड़वाले की दुकान से लाए हो? हटा ले जाओ इसे! तुम्हें मदरिया भी नहीं जुरता?

वकील - अरे, तू यह हुक्का कहाँ से उठा लाया? वह हुक्का कहाँ है, जो नसीरुद्दीन हैदर के पीने का था? वह गंगा-जमनी गुड़गुड़ी कहाँ है, जो हमारे साले ने भेजी थी।

सलारबख्श - वह हुजूर के बहनोई ले गए।

वकील - तो आखिर, पेचवान और चाँदी का हुक्का क्यों नहीं निकालते? यह भदेसल हुक्का उठा लाए वहाँ से।

सलारबख्श - खुदावंद, वह बस तो बंद हैं।

जोगिन - आखिर यह सब समान बंद कहाँ है? जरी सा तो मकान आपका, मुर्गी के टापे के बरब्बर। वह किन कोठों में बंद है सबका सब?

इतने में एक मुकदमेवाला आया। एक हाथ में झाड़ू, दूसरे में पंजा। आते ही झाड़ू कोने में खड़ी कर दी और पंजा टेक कर बैठ गया। वकील साहब सिर से पैर तक फुँक गए। पूछा - तुम कौन? उसने कहा - हम भंगी हैं साहब! जोगिन मुसकिराई। वकील ने सलारबख्श की तरफ देखा। सलारबख्श सिर खुजलाने लगा।

वकील - क्या चाहता है?

भंगी - हुजूर, मेरी टट्टी का एक बाँस कोई निकाल ले गया। हुजूर को वकील करने आया हूँ। गुलाम हूँ खुदावंद।

वकील - कोई है, निकाल दो इस पाजी को।

सलारबख्श - खुदावंद, अमीरों का मुकदमा तो आप लें, और गरीबों का कौन ले? वकील तो दर्जी की सुई है, कभी रेशम में, कभी लट्ठे में!

वकील - गरीबों का मुकदमा गरीब वकील ले।

सलारबख्श - अब तो हुजूर, इसकी फरियाद सुन ही लें। अच्छा मेहतर, बताओ क्या दोगे?

मेहतर - हमारे पास तो दो मट्टू-साही हैं।

वकील - (झल्ला कर) निकालो, निकालो इस कंबख्त को!

वकील साहब ने गुस्से में मेहतर की झाड़ू उठा ली और उस पर खूब हाथ साफ किया। वह झाड़ू-पंजा छोड़ कर भागा।

जोगिन - अच्छा, आप अब अलग ही रहिएगा। जा कर गुस्ल कीजिए।

वकील - आज तो बड़ी सर्दी है।

जोगिन - अल्लाह जानता है, गुस्ल करो, नहीं तो छुएँगे नहीं।

सलारबख्श - हाँ, सच तो कहती हैं।

वकील - तू चुप रह।

जोगिन ने सलारबख्श को हुक्म दिया कि तुम पानी भरो। सलारबख्श पानी भर लाए। वकील साहब ने रोते-रोते कपड़े उतारे, लुँगी बाँधी और बैठे। जैसे बदन पर पानी पड़ा, आप गुल मचा कर भागे। सलारबख्श चमड़े का डोल लिए हुए पीछे दौड़ा। फिर पानी पड़ा, फिर रोए। जोगिन मारे हँसी के लोट-लोट गई। बारे किसी तरह आपका गुस्ल पूरा हुआ। थर-थर काँप रहे थे। मुँह से बात न निकलती थी। उस पर सलारबख्श ने पंखा झलना शुरू किया, तब तो और भी झल्लाए और कस कर उसे दो-तीन लातें लगाईं। सलारू भाग खड़े हुए।

जोगिन - अब यह दरी तो उठवाओ।

वकील - क्यों, दरी ने क्या कसूर किया?

सलारबख्श - हुजूर, भंगी तो इसी पर बैठा था।

वकील - अरे, तू फिर बोला! कसम खुदा की, मारते-मारते उधेड़ कर रख दूँगा।

जोगिन - सलारबख्श, वह चाँदनी उठा ले जाओ।

दरी उठी, तो कलई खुल गई। नीचे एक फटा-पुराना टाट पड़ा थ, बाबा आदम के वक्त का। वकील कट गए। जोगिन ने कहा - ले, अब इस पर कोई फर्श बिछवाओ।

वकील - वह बड़ी दरी लाओ, जो छकड़े पर लद कर आई थी।

सलारबख्श - वह! उसको तो एक लौंडा चुरा ले गया।

जोगिन - खुदा की पनाह, छकड़े पर लद कर तो मुई दरी आई, और जरा सा लौंडा चुरा ले गया!

वकील- अच्छा, वह न सही, जाओ, और जो कुछ मिले उठा लाओ।

यह कह कर वकील साहब तो बरामदे में चले गए और सलारबख्श जा कर अपना कंबल और एक दस्तख्वान उठा लाया। वकील कमरे में आए, तो देखा कि दस्तरख्वान बिछा हुआ है और जोगिन खिलखिला कर हँस रही है। सलारबख्श एक कोठरी में छिप रहा था। वकील ने झल्ला कर डंडा निकाला और कोठरी में घुस कर उसे दो-तीन डंडे लगाए। फिर डाँट कर कहा - आखिर जो तू मेरा नमक खाता है, तो मेरा रंग क्यों फीका करता है? मैं एक कहूँ तो दो कहा कर। खैरख्वाही के माने यह हैं। सिखला दिया, समझा दिया; मगर तू हिंदी की चिंदी निकालता है।

सलारबख्श - अच्छा, हुजूर जैसा कहते हैं, वही करूँगा। और भी जो कुछ समझाना हो, समझा दीजिए। फिर मैं नहीं जानता।

वकील - अच्छा, हम जाते हैं, तू आ कर कहना कि कसूर माफ कीजिए। और रोना खूब।

वकील साहब यह हिदायत करके चले गए और जोगिन से बातें करने लगे। इतने में सलारबख्श रोता हुआ आया। जोगिन धक से रह गई। सलारू थोड़ी देर तक खूब रोए, फिर वकील के कदमों पर गिर कर कहा - हुजूर, मेरा कसूर माफ करें।

वकील - अबे, तो कोई इस तरह रोता है?

जोगिन - मैं तो समझी कि आपके अजीजों में से कोई चल बसा।

इतने में वकील साहब के नाम एक खत आया। जोगिन ने पूछा - किसका खत है?

वकील - साहब के पास से आया है।

जोगिन - कौन साहब? कोई अंगरेज हैं?

वकील - हाँ, जिले के हाकिम हैं। हमसे याराना है।

सलारबख्श - आपसे न! और उनसे भी तो याराना है, जिन्होंने जुर्माना ठोंक दिया था?

वकील - साहब ने हमें बुलाया है।

जोगिन - तो शायद आज तुम्हारी दावत वहीं है? तभी आज खाना-वाना नहीं पक रहा है। दोपहर होने को आई, और अभी तक चूल्हा नहीं जला।

वकील - अरे सलारू, खाना क्यों नहीं पकाता?

सलारबख्श - बाजार बंद है।

जोगिन - आग लगे तेरे मसखरेपन को! यहाँ आँतें कूँ-काँ कर रही हैं, और तुझे दिल्लगी सूझती है!

वकील ने बाहर जा कर सलारू से कहा - बनिये से आटा क्यों नहीं लाता?

सलारबख्श - हुजूर, कोई दे भी! कोई दस बरस से तो हिसाब नहीं हुआ। बाजार में निकलता हूँ, तो चारों तरफ से तकाजे होने लगते हैं।

वकील - अबे, इस वक्त तो किसी बहाने से माँग ला। आखिर कभी-न-कभी मुकदमे आवेंगे ही। हमेशा यों ही सन्नाटा थोड़े ही रहेगा?

खैर, सलारबख्श ने खाना पकाया, और कोई चार बजे आठ मोटी-मोटी रोटियाँ, एक प्याली में माश की दाल और दूसरे में आध पाव गोश्त रख कर लाया!

वकील - अबे, आज पुलाव नहीं पका?

सलारबख्श - हुजूर, बिल्ली खा गई।

वकील - और गोश्त भी एक ही तरह का पकाया?

सलारबख्श - हुजूर मैं पानी भरने चला गया, तो कुत्ता चख गया।

जोगिन - यहाँ की बिल्ली और कुत्ते बड़े लागू हैं।

सलारबख्श - कुछ न पूछिए।

इतने में किसी ने दरवाजे पर हाथ मारा।

सलारबख्श - कौन साहब हैं?

वकील - देखो, मामू साहब न हों। कह देना, घर में नहीं हैं।

सलारबख्श - हुजूर, वह है मम्मन तेली।

वकील - कह दो, हम तेल-वेल न लेंगे। रात को हमारे यहाँ मोमबत्तियाँ जलती हैं, और खाने में तेल आता नहीं। फिर तेली का यहाँ क्या काम?

सलारबख्श - मुकदमा लाया है हुजूर!

तेली मैले-कुचैले कपड़े पहने हाथ में कुप्पी लिए आ कर बैठ गया।

वकील - क्या माँगता है?

तेली - एक आदमी ने हम पर नालिश कर दी है हुजूर! अब आप ही बचावें तो बच सकता हूँ।

वकील - मेहनताना क्या दोगे?

सलारबख्श - हाय,हाय, पहले इसकी फरियाद तो सुनो कि वह कहता क्या है! बस, मुर्दा दोजख में जाय चाहे बिहिश्त में, आपको अपने हलवे-माँडे से काम। बताओ भई, क्या दोगे?

तेली - एक पली तेल।

वकील - निकाल दो इसे, निकाल दो!

तेली - अच्छा साहब, तीन पली ले लोक।

सलारबख्श - अच्छा, आधी कुप्पी तेल दे दो। बस, इतना कहना मानो।

वकील - हैं-हैं, क्यों शरह बिगाड़ते हो? तुम जाओ जी!

सलारबख्श - पहले देखिए तो! राजी भी होता है?

तेली आधी कुप्पी तेल देने पर राजी न हुआ और चला गया? थोड़ी देर के बाद सलारबख्श ने दबी जबान कहा - हुजूर शाम को क्या पकेगा?

वकील - अबे, शाम तो हो गई। अब क्या पकेगा?

सलारबख्श - खुदावंद, इस तरह तो मैं टें हो जाऊँगा। आप न खायँ, हमारे वास्ते तो बतला दीजिए।

वकील - अपने वास्ते छिछड़े ले आ जा कर।

सलारबख्श - (आहिस्ता से) वे भी बचने जो पावें आपसे।

जोगिन को हँसी आ गई। वकील ने कहा - मेरी बात पर हँसती होगी? मैं ऐसी ही कहता हूँ। इस पर जोगिन को और भी हँसी आई।

वकील - अल्लाह री शोखी -

खूब रू जितने हैं दिल लेती है सबकी शोखी;

है मगर आपकी शोखी तो गजब की शोखी!

रात को जोगिन ने अपने पास से पैसे दे कर बाजार से खाना मँगवाया, और खा कर सोई। सुबह को वकील साहब की नींद खुली, तो देखा, जोगिन का कहीं पता नहीं। घर भर में छान मारा। हाथ-पाँव फूल गए। बोले - सलारू गजब हो गया! हमारी किस्मत फूट गई।

सलारबख्श - फूट गई खुदावंद, आपकी किस्मत फूट गई।

वकील - फिर अब?

सलारबख्श - क्या अर्ज करूँ हुजूर!

वकील - घर भर में तो देख चुके न तुम?

सलारबख्श - हाँ और तो सब देख चुका, अब एक परनाला बाकी है, वहाँ आप झाँक लें।