आज का मिथक / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'
"का हो रहा है भाई? इ सब का है?" जीतेन्दर ने आते ही पूछा।
"एटलस देख रहा हूँ यार। सोच रहा हूँ एक बार मैगलन की तरह विश्व-परिक्रमा करूं।" शिवनंदन ने जवाब दिया।
"हाः हाः हाः। विश्व-परिक्रमा ! घर से कभी बाहर निकला? कई बार घूमने की प्लानिंग हुई और तुम हरेक बार...।"
"का करूं यार? पत्नी के चलते...।"
"तो मैगलन की यात्रा से क्या मिलेगा? केवल पानी ही पानी !"
जीतेन्दर की बात शिवनंदन को जँच गई। उसने प्लानिंग बदल दी। पत्नी से बोला---मैं विले पोस्ट की तरह हवाई मार्ग से विश्व-परिक्रमा करूंगा।
"हूँह ! बिक जाओगे। सारी संपत्ति उड़ जाएगी। यदि ऐसा ही शौक है तो क्यों नहीं गणेश भगवान की बुद्धि अपनाते हो?" पत्नी ने सलाह दी।
"हूँ...। पर मां-बाप क्या सोचेंगे? मैं देवता नहीं न हूँ।लाज लग रही है।"
"यह कलयुग है। एक उपाय कहूँ?"
"कहो।"
"आओ मेरे साथ।"
दोनों बाहर निकले। पत्नी आंगन के बीचो-बीच खड़ी हो गई।.. और शिवनंदन उसकी परिक्रमा करने लगे।