आतंकवाद आधारित फिल्में और 'जयचंद' / जयप्रकाश चौकसे

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आतंकवाद आधारित फिल्में और 'जयचंद'
प्रकाशन तिथि : 16 फरवरी 2019


कुछ वर्ष पूर्व शूजित सरकार की जॉन अब्राहम अभिनीत 'मद्रास कैफे' का प्रदर्शन हुआ था। पहली बार मानव बम बनी श्रीलंकाई महिला भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या करती है। इस जघन्य हत्या का षड्यंत्र लंदन स्थित मद्रास कैफे नामक रेस्तरां में रचा गया था। यह एक रोचक थ्रिलर था, जिसमें भारतीय गुप्तचर हत्या का स्थान और समय की जानकारी प्राप्त करके राजीव गांधी को आगाह करता है कि अपना कार्यक्रम स्थगित कर दें परंतु वे ऐसा नहीं करते। राजीव गांधी को भरोसा था कि उनका कत्ल नहीं होगा। प्रकरण का प्रारंभ हुआ जब श्रीलंका की तत्कालीन सरकार ने 'वॉइस ऑफ अमेरिका' रेडियो स्टेशन श्रीलंका में स्थापित करने की आज्ञा दी।

रूस ने भारत पर दबाव बनाया कि वह अमेरिका के इस प्रयास को विफल बनाए, क्योंकि यह रेडियो स्टेशन जहरीला प्रचार करेगा। कुछ भीतरी जानकारों का कहना है कि बोफोर्स सौदे के मध्यस्थ को मिलने वाली रकम से हथियार खरीदकर उन शक्तियों को मजबूत बनाया गया, जो उपद्रव करके 'वॉइस ऑफ अमेरिका' की श्रीलंका में स्थापित होने की योजना को ही ध्वस्त कर दें। सैन्य शक्ति की दृष्टि से दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका हमेशा भयभीत रहता है। शस्त्र भय से मुक्त नहीं करते, वरन उनके संग्रह से भय बढ़ जाता है। इसके बाद श्रीलंका में श्रीलंका लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्‌टे) नामक संस्था ने भारी उपद्रव मचाया। जब श्रीलंका सुलग रहा था तब तत्कालीन भारतीय सरकार ने लिट्‌टे को नुकसान पहुंचाने के लिए भारतीय सेना वहां भेजी। इसी कारण लिट्‌टे राजीव गांधी की हत्या के षड्यंत्र को क्रियान्वित करने में तत्परता से जुट गया। इस सियासत से जुड़ा है गहरा मानवीय पक्ष। मानव बम बनना स्वीकार करने वाले व्यक्ति के मनोभाव क्या हैं? वह आत्महत्या करते हुए अनेक निरपराध व्यक्तियों की मृत्यु का कारण भी बन रहा है।

अपने शरीर को हथियार में बदलने का निर्णय आसान नहीं होता। संकीर्ण विचारों की उग्रता और गति अत्यंत तेज होती है। सद्‌विचार एक कान से सुने जाते हैं दूसरे कान से निकाल दिए जाते हैं परंतु वैचारिक संकीर्णता गहरे जाती है। वह मनुष्य को चाबी से चलने वाला खिलौना बना देती है। इन्हें हम रोबो नुमा मनुष्य भी कह सकते हैं।

'मद्रास कैफे' को फ्लैशबैक द्वारा प्रस्तुत किया गया है। जॉन अब्राहम चर्च में शांति प्रार्थना करने जाते हैं। उनके मन को यह विचार मथ रहा है कि वे पूर्व प्रधानमंत्री को बचा नहीं पाए, क्योंकि वे उनकी जनसभा में समय पर पहुंच नहीं पाए। भीड़ को चीरकर वहां तक पहुंचने का प्रयास उन्होंने किया परंतु कुछ ही क्षणों के विलंब के कारण षड्यंत्र सफल हो गया। उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दिया। गुप्तचर होने के कारण ही उनकी पत्नी की भी हत्या कर दी गई थी। इस पूरी तहकीकात में एक ब्रिटिश पत्रकार उसे सूचनाएं देती है और धन्यवाद ज्ञापन के रूप में वह कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज और फोटोग्राफ भेज देता है। मणिरत्नम ने उत्तर पूर्व में होने वाली घटनाओं से प्रेरित शाहरुख खान और मनीषा कोइराला अभिनीत 'दिल से' बनाई थी, जिसका संगीत एआर रहमान ने दिया था। गीत बहुत लोकप्रिय हुए थे। फिल्म में मनीषा कोइराला उत्तर-पूर्व की रहने वाली हैं। भारतीय सेना ने वहां बहुत सख्ती बरती थी। फिल्म में मनीषा कोइराला अभिनीत पात्र 26 जनवरी को दिल्ली में आयोजित समारोह में मानव बम बनकर जाने के लिए प्रशिक्षित की गई थी। शाहरुख खान अभिनीत पात्र से उसे प्रेम हो जाता है। उसके भीतर द्वंद्व है कि वह अपने प्रेम को बचाए या अपनी बिरादरी पर हुए अत्याचार का बदला ले। यह फिल्म भी एक थ्रिलर की तरह रची गई थी।

नायिका सुरक्षा के लिए किए गए तमाम तामझाम को भेदकर 26 जनवरी की परेड देखने वाले दर्शक समूह में जा पहुंचती है। घातक हमला किए जाने के कुछ पल पहले ही नायक उसे खींच कर भीड़ से दूर ले जाता है। उनके बीच मार्मिक संवाद होता है। अंततोगत्वा वह अपने शरीर में लगे बम का बटन दबा देती है। दोनों के जिस्म के चीथड़े उड़ जाते हैं परंतु यह घटना परेड से दूर जगह पर हुई है। अत: अवाम को कोई नुकसान नहीं पहुंचता।

आधुनिक आतंकवाद का जन्म भी उस समय हुआ जब अमेरिका ने सदियों से रहने वाले फिलिस्तीनी लोगों की जमीन पर इजराइल की स्थापना की। विस्थापित फिलिस्तीनी लोगों ने इजराइल पर आतंकी हमले किए। अमेरिका का अवाम अमन पसंद परिवार की कद्र करने वाला है परंतु नेतृत्व ने स्वयंभू हवलदार की तरह अन्य देशों के मामले में हस्तक्षेप किया है। वियतनाम और कोरिया में खूब मार खाई है। यह विचारणीय है कि विभिन्न आतंकी हमलों में मरने वाले की संख्या दूसरे विश्व युद्ध में मरने वालों से अधिक है। सभी आतंकी हादसों में देश के ही किसी जयचंद ने दुश्मन की मदद की है। मुंबई में आरडीएक्स भी लाया गया था, क्योंकि हमारे अपने ही एक भ्रष्ट अफसर ने आतंकियों की मदद की थी। हाल के पुलवामा आतंकी हमला की भी इटेंलीजेंस को पूरी जानकारी थी। जाने कैसे पूर्व जानकारी मिलने पर भी कुछ नहीं किया गया। कारगिल में सैनिक जमावड़े की सूचना भी एक चरवाहे ने ही दी थी।