आत्मनिर्भरता / सुकेश साहनी
एक पौधा प्या'स से छटपटा रहा था। ज्यों-ज्यों उसकी पत्तियों के छिद्रों से पानी भाप बनकर उड़ता जा रहा था, उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी। भंयकर सूखे के कारण लोग पानी की एक-एक बूँद को तरस रहे थे, ऐसे में भला पौधो को कौन पूछता, जमीन की नमी बिल्कुल सामप्त हो गई थी। नागफनी सूखे से बेअसर मस्ती में झूम रही थी। उसने नागफनी से पूछा, "बहन, मैं तो पानी की कमी के कारण मरा जा रहा हूँ। तुम कैसे इससे प्रभावित हुए बिना मस्ती में जी रही हो?"
नागफनी पौधे की बात सुनकर गंभीर हो गई. बोेली, "भैया मेरी मस्ती का राज है मेरी आत्मनिर्भरता। तुम्हें तो पता है कि लोगों के द्वारा मेरी कितनी उपेक्षा की जाती है। मुझे कोई दो बूंद पानी को भी नहीं पूछता। पृथ्वी पर अपना आस्तित्व बनाए रखने के लिए मुझे बहुत संघर्ष करना पड़ा है। मैंने अपनी पत्तियों को काँटों में परिवर्तित कर लिया है, ताकि केवल जमीन से प्राप्त नमी को अधिक से अधिक समय तक अपने उपयोग में ला सकूँ। आज तुम्हें अपनी जान के लाले पड़े हैं, क्योंकि तुम जीवनभर दूसरों पर आश्रित र"
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