आत्मविश्वास का ताबीज / लता अग्रवाल
जैसे-जैसे परीक्षा का समय पास आ रहा था नीलू कुछ उदास होता जा रहा था; छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना उसका स्वभाव बन गया था, मम्मी सुलभा चिंता में थी। ... ' नीलू ऐसा तो कभी नहीं था, आजकल क्या हो गया है इसे, कुछ कहता भी नहीं बात-बात पर गुस्सा करता है यह तो बहुत ग़लत बात है। इस बार उसकी दसवीं बोर्ड की परीक्षा है, अगर वह इसी तरह गुस्सा करता रहा तो इसका असर उसकी पढ़ाई पर पड़ेगा। नीलू क्लास का होनहार बच्चा है उसकी प्रिंसिपल भी उसकी बहुत तारीफ करती हैं, ...तो क्या नीलू स्कूल में सभी लोगों से इसी तरह का व्यवहार कर रहा है ... यूँ तो बड़ा डिसिप्लिन है, सभी से बहुत अच्छे से बात करता है। सुलभा याद करने की कोशिश कर रही है कि पिछले दिनों उसके साथ क्या घटा जिससे उसके व्यवहार में यह परिवर्तन आया है। मगर उन्हें ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
उस दिन शाम को जब नीलू के पिता दफ्तर से लौटे तो उन्होंने उनके समक्ष अपनी चिंता रखते हुए कहा,
"सुनिए जी! क्या आप भी नीलू के व्यवहार में कुछ बदलाव महसूस कर रहे हैं इन दिनों ... उसका व्यवहार कुछ उखड़ा-उखड़ा नहीं लग रहा आपको? मुझे तो बहुत चिंता हो रही है ...पहले वह कभी इस तरह बात नहीं करता था।"
"सुलभा! यह उम्र का पड़ाव है ...बच्चों में परिवर्तन होता है।"
"मुझे नहीं लगता यह उम्र के पड़ाव वाला चक्कर है, ऐसा तो कभी ना था शुरू से मैं ही पढ़ाती हूँ उसे, प्रिंसिपल हमेशा तारीफ करती हैं, आपका बेटा बहुत व्यवहार कुशल है। पढ़ाई में भी अव्वल रहता है ... फिर अचानक ये ...अब तो पढ़ाई में भी उसका मन नहीं लगता जाने कहाँ खोया रहता है। अगर यही हाल रहा तो इस बार बोर्ड के रिजल्ट में बुरा असर पड़ेगा बस एक महीना ही रह गया है परीक्षा।"
"इतनी चिंता कर रही हो तो तुम रोनी और साक्षी से बात क्यों नहीं कर लेती... अगर स्कूल में कोई बात हुई होगी तो वह बता देंगे।"
"आप ठीक कहते हैं।" सुलभा ने तय कर लिया कि आज वह रोनी और साक्षी से बात करेगी,
शायद समस्या का कोई हल निकले, पहले वह रोनित के घर गई मगर रोनित ने इस सम्बंध में अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा,
"आंटी! नीलू कुछ बदल-सा गया है, आजकल वह हमारे साथ नहीं रहता, ...कहाँ रहता है पता नहीं ...इसलिए इस सम्बंध में कुछ नहीं बता पाऊंगा।" मायूस सुलभा साक्षी के घर पहुँची उन्होंने पहले साक्षी की मम्मी को अपनी परेशानी बताई, फिर दोनों ने मिलकर साक्षी से बात की उनके अनुसार भी,
"आजकल नीलू हम लोगों के साथ नहीं रहता।"
"फिर किसके साथ रहता है बेटे, मुझे बताओ"
"आंटी! हमारे क्लास में एक नया लड़का आया है राधे...नीलू आजकल उसके साथ ही ज़्यादा रहता है। हमें तो वह लड़का ठीक नहीं लगता इसलिए हम नहीं रहते उसके साथ। नीलू को भी हमने उसके साथ जाने से मना किया... मगर नीलू को उसका साथ ज़्यादा अच्छा लगा इसलिए उसने हम लोगों से नाता तोड़ लिया और हाँ! आंटी जी हमने देखा है नीलू उसे पैसे देता है और जिसके बदले में वह नीनू को पता नहीं क्या-क्या चीजें ला कर देता है। कभी तिलक लगाता है, कभी फूल पत्ती देता है ...तो कभी लाल–पीले कपड़े में बंधा कुछ।" साक्षी के इतना कहते ही सुलभा को कुछ समय पहले का वह किस्सा याद आ गया जब एक दिन स्कूल से आकर नीलू ने बताया था उसका एक नया साथी बना है राधे, उसकी मम्मी किसी बाबाजी को मानती है, जिन्होंने उसके लिए एक ताबीज दिया है और कहा है इसे पहनकर परीक्षा में उसके अच्छे नम्बर आयेंगे । तब सुलभा ने बात को गंभीरता से न लेते हुए यूँ ही समझा दिया था नीलू को कि,
"यह सब मनगढ़ंत बातें हैं नीलू, भला ऐसा कहीं होता है।"
"फिर भी मम्मी एक बार आप भी राधे की मम्मी के साथ जाकर उन बाबा जी से मेरे लिए ताबीज ले आइये न! वैसे भी आजकल जो कुछ भी पढ़ता हूँ भूल जाता हूँ।"
"बेटे! अक्सर परीक्षा के समय बच्चों के साथ ऐसा होता है, क्योंकि उन्हें परीक्षा का तनाव होता है ... जब परीक्षा हाल में बैठोगे न तब सब याद आ जाएगा। इन बाबा जी के पास कुछ चमत्कारिक शक्ति होती तो क्या वे इस तरह लोगों के आश्रय में पलते।" नीलू ने काफ़ी एसक्यूज़ दिए मगर मम्मी ने यह कहकर सब नकार दिए कि,
"नीलू तुम होनहार छात्र हो, ऐसे ढोंगी बाबाओं के चक्कर से दूर रहो ...कोई भी सच्चे बाबा बच्चों को यही सलाह देंगे कि 'मन लगाकर पढ़ाई करो' यही परीक्षा में अच्छे अंक लाने का मूल मंत्र है। ये शोर्टकट रास्ता अपनाने वाले लोग जीवन में सफल नहीं हो पाते नीलू ...तुम्हें मेहनत करनी है। मन लगाकर पढाई करो बेफिजूल की बातों में ध्यान मत दो।"
सुलभा को अपनी ही गलती लग रही थी कि नीलू तो नादाँ है, उसे उस दिन उसकी बात को गहरे से सुनकर तर्क के साथ उसे समझाना चाहिए था। मेरा बच्चा मन में जाने क्या दुविधा ले बैठा है ...और उस मकड़जाल राधे के चंगुल में फंस गया। सारी बातें जानकर इतना समझ पाई सुलभा कि उसे अपना बेटा मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गया है ...अगर वापस लाना है तो मनोवैज्ञानिक तरीक़ा अपनाना होगा, उसने आज नीलू के स्कूल से आते ही कहा,
"आज तुम्हारे लिए खुशखबरी है बेटे।"
"मेरे लिए क्या खुशखबरी हो सकती है मम्मी" उसने बुझे मन से कहा।
"याद है तुमने एक बार मुझसे कहा था एक बाबा जी के बारे में ...कि वह बच्चों को ताबीज देते हैं!"
"हाँ! हाँ! कहा था।" नीलू उत्साह के साथ बोल पड़ा मगर अगले ही पल बुझा-बुझा-सा बोला,
"मगर क्या हो...आपने तो मना ही कर दिया अब मैं तो अच्छे नंबर से पास नहीं हो पाऊंगा, देखिये इस बार टेस्ट में राधे के नंबर अच्छे आए ...यह सब बाबा जी के ताबीज का ही कमाल है।"
"ओह! मेरे बच्चे तुम तो बहुत बीमार हो गए हो तुमने ...अपने मन में ये कैसी बेतुकी बातें बैठा ली हैं।" सुलभा मन ही मन बेटे की हालत देखकर दुखी हो रही थी। अगले ही पल उसने नीलू से कहा,
"अच्छा अब अपनी आँखें बंद करो और अपना हाथ आगे।" नीलू ने अनमने भाव से आँख बंद कर अपना हाथ आगे कर दिया सुलभा ने लाल धागे में बंधा वह ताबीज उसकी हथेली पर रख दिया जिसे देख नीलू ख़ुशी से उछल पड़ा,
"वाह माँ! आख़िर आप ले आईं मेरे लिए बाबा जी से ताबीज!"
"कैसे न लाती बेटा तुम्हें हर बार की तरह परीक्षा में अच्छे अंकों से पास होते जो देखना चाहती हूँ।"
"थैंक... यू मम्मा! थैंक यू वेरी मच!" कहते हुए नीलू मम्मी से लिपट गया। सुलभा बेटे की ख़ुशी से अभिभूत थी उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली,
"बेटे खाली ताबीज पहनने से काम नहीं चलेगा, बाबा जी ने कहा है मन लगाकर पढ़ाई भी करना होगी... जो भी पढ़ोगे वह याद हो जाएगा।"
"ओके मम्मी! मैं आज से ही अपनी पढ़ाई शुरु कर देता हूँ परीक्षा को एक ही महीना रह गया है।"
"अब आप इसे गले में पहना भी दो।" कहते हुए नीलू मम्मी के सामने झुक गया। सुलभा ने नीलू के गले में वह ताबीज डाल दिया। नीलू के व्यवहार में परिवर्तन देख नीलू के पापा ने सुलभा से अकेले में पूछा,
"क्या बात है भाई ...तुमने तो कमाल ही कर दिया। ऐसा क्या किया कि तुम्हारा बेटा वापस लौट आया।"
"यह राज की बात है, समय आने पर बताऊंगी।"
" नीलू के एग्जाम हो गए ...आज रिजल्ट आने वाला है। जैसे ही अख़बार आया नीलू, मम्मी-पापा सभी उसमें नीलू का रोल नंबर खोजने लगे। नीलू फर्स्ट क्लास पास हुआ था। वह ख़ुशी से झूम उठा, बोला
"देखा मम्मी बाबाजी के ताबीज का कमाल... फर्स्ट आया हूँ मैं।" ...अपनी दोनों हथेलियों में बेटे का चेहरा लिए सुलभ बोली,
"बेटे! यह बाबा जी का नहीं ... तुम्हारा अपना कमाल है।"
"मेरा वह कैसे ...?"
"आपने ही तो मुझे बाबाजी का तावीज़ ला कर दिया था। तभी पहनते ही मेरा मन पढ़ाई में लगने लगा और मुझे अपना पढ़ा हुआ सब याद आने लगा।"
"नहीं बेटे, ताबीज़ मैंने दिया था... मगर वह ताबीज बाबा जी से नहीं लिया था, मैंने बाज़ार से खरीदा था।" नीलू के पापा भी गंभीरता से बात सुन रहे थे,
"वो इसलिए बेटा कि मैं जान गई थी कि मेरा बच्चा वहम का शिकार हो गया है और वहम का कोई इलाज़ नहीं ... उसे केवल उसी के अस्त्र से मारना होता है। कहते हैं ना हमेशा अच्छा मित्र बनाना चाहिए, तुमने अपने अच्छे मित्रो को छोड़कर ग़लत मित्र का साथ पकड़ा ...राघव ने तुम्हारे मन में ताबीज का भ्रम इतनी गहराई से भर दिया कि तुम्हारा विश्वास अपने ऊपर से उठ गया। तावीज़ को ही तुम अपनी ताकत मानने लगे थे ...तुम्हारा विश्वास टूटते में कैसे देख सकती थी इसीलिए मैंने 'आत्मविश्वास का ताबीज' ख़ुद बनाया और तुम्हें दिया, इसे खोल कर देखो इसके भीतर कुछ नहीं है। आज तुम प्रथम आए हो अपनी पढ़ाई के दम पर ... भविष्य में कभी इस तरह वहम फैलाने वाले मित्रो से दूर रहना और अपने विश्वास के बल काम करना। याद रखो, सफलता की कुंजी एकमात्र आपका अपना विश्वास है।"
" आप ठीक कहती हैं मम्मी... मैं भटक गया था, कहते हुए नीलू ने गले का ताबीज उतार कर वापस माँ की हथेली में रख दिया।