आत्महत्या के कारणों को तलाशती फिल्म / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 11 मई 2018
हर्ष छाया लंबे समय से चरित्र भूमिकाएं कर रहे हैं और अब उन्होंने एक फिल्म निर्देशित की है जिसका नाम है 'खजूर पर अटके'। कहावत है कि आसमान से गिरे और खजूर पर अटके। खबर है कि इस हास्य फिल्म को एक मृत्यु के इर्द गिर्द बुना गया है जैसे कुंदन शाह की फिल्म थी 'जाने भी दो यारों'। दरअसल कुंदन शाह की फिल्म भ्रष्टाचार पर बनी थी कि किस तरह ठेकेदार और मंत्री की साठ गांठ से देश को लूटा जाता है। एक दुश्चक्र है कि अमीर व्यक्ति नेता को चुनाव लड़ने के लिए धन देता है और चुनाव जीतने के बाद नेता धनवान को और अधिक धन कूटने का लाइसेन्स दिलाता है। इस तरह अमीरी और गरीबी के बीच की खाई निरंतर बढ़ रही है। इसी खाई से अपराध जन्म ले रहा है। दरअसल आसमान से गिरे और खजूर पर अटके एक मुहावरा है जिसका अर्थ है कि एक संकट से निकलकर दूसरे संकट में उलझ गए परन्तु यह यथार्थ में घटित भी हुआ है।
प्रसिद्ध उपन्यासकार हेमिंगवे हवाई जहाज के इंजन में खराबी के कारण विमान से गिरे और एक घने वृक्ष की डालियों में उलझ गए। उनकी मृत्यु का समाचार जारी हुआ परन्तु वे डालियों से निकाले गए। एक बार युद्ध के समय उन्हें गोलियां लगीं और मृत्यु का समाचार जारी हुआ परन्तु वे घायल अवस्था में अस्पताल लाए गए जहां लंबी चिकित्सा के बाद वे सेहतमंद हो गए। कुछ वर्षों बाद हेमिंगवे ने आत्महत्या कर ली और उसके पूर्व लिखे पत्र में लिखा कि अब वे शिकार पर नहीं जा सकते, हाथों में कंपन के कारण लिख नहीं पाते, यकृत कमजोरी के कारण शराब नहीं पी पाते, इसलिए आत्महत्या कर रहे हैं। उनकी आत्महत्या का समाचार प्रकाशित नहीं किया गया क्योंकि दो बार मीडिया गलत साबित हुआ था। अत: उन्हें दफन करने के बाद ही मृत्यु का समाचार जारी हुआ। कुछ लोग कब्र के पास खड़े रहे कि जाने कब वे कब्र से भी जीवित निकल आएं। उनके उपन्यास 'द ओल्डमैन एंड द सी' तथा 'फॉर हूम द बेल टोल्स' पर फिल्में बनाई जा चुकी हैं। इस तरह हेमिंगवे आसमान से गिरकर खजूर पर अटके भी थे।
गुरुवार सुबह जी. एक्शन नामक चैनल पर 'अंतिम न्याय' नामक एक फिल्म का प्रदर्शन हुआ। दमित कन्या अदालत को चुनौती देती है कि क्या वे उस साधनहीन महिला को न्याय दे पाएंगे क्योंकि सारे अपराधी बड़ी पहुंच वाले व्यक्ति हैं। उसे न्याय मिलता है परन्तु वह जानती है कि उसे फिर फंसाया जाएगा। उसका पति पहले स्वयं जहर खाता है और फिर अपनी पत्नी को खिलाता है। वे दोनों जहर खाकर ठहाके लगाते हैं कि मृत्यु के साथ ही वे दमनचक्र से मुक्त हो रहे हैं। इसी क्षण महिला दराती अपने पति को देती है कि जहर खाने से मृत्यु होने पर उनका रक्त धरती पर नहीं गिरेगा। अत: पति दराती से पत्नी का गला काट दे ताकि उसका रक्त धरती पर गिरे। कभी न कभी ये रक्त हिसाब मांगेगा। फिल्म देखकर आप सुन्न पड़ जाते हैं कि क्या हम इस कदर असमानता व अन्याय आधारित व्यवस्था में जीने के लिए अभिशप्त हैं?
रितिक रोशन अभिनीत फिल्म 'काबिल' में भी दृष्टिहीन पत्नी आत्महत्या करती है क्योंकि उसके साथ दूसरी बार बलात्कार हुआ और बार-बार किए जाने की धमकी उसे दी गई है। सारी व्यवस्था के चौपट होने जाने के कारण अपराध जारी हैं। अपराध हर कालखंड में हुए हैं परन्तु आज हमें उनके आंकड़े उपलब्ध हैं। साथ ही यह भी सत्य है कि बलात्कार की सभी घटनाओं की रिपोर्ट नहीं की जाती। ग्रामीण क्षेत्र के थाने में रपट दर्ज कराने आए व्यक्ति से कहा जाता है कि क्षेत्र में स्थित एक राजनैतिक दल का दफ्तर है। पहले वहां जाकर बात करें। आजकल न्याय वहीं से होता है। इस तरह एक समानांतर थाना, न्यायालय इत्यादि संस्थाओं का निर्माण हो रहा है जो संविधान के परे और ऊपर स्थित हो रही हैं। इसी कालखंड में विज्ञान भी एक वैकल्पिक (अल्टरनेट) संसार रच रहा है गोयाकि चक्र भीतर चक्र घूम रहे हैं।
बादल सरकार के एक नाटक के पहले अंक में एक व्यक्ति पड़ोसी द्वारा की गई आत्महत्या के कारण का अनुमान लगाता है। दूसरे अंक में उसकी पत्नी अपना संस्करण बताती है। तीसरे अंक में आत्महत्या करने वाला व्यक्ति हाजिर होता है और दोनों से पूछता है कि उसकी आत्महत्या के कारणों के आकल्पन करने वाले पहले यह बताएं कि वे आत्महत्या क्यों नहीं करते? क्यों अपने उद्देश्यविहीन बेमकसद से जीवन को ढो रहे हैं? इसी संदर्भ में लिऑन दादेत नामक दार्शनिक ने सन् 1930 में लिखा था 'एक आदमी को रोजगार की तलाश होती है। रोटी, कपड़ा और मकान उसकी आवश्यकताएं हैं। उसकी एक और जरूरत आत्महत्या भी है। मनुष्य समाज द्वारा बनाया जाता है तब कहें कि मनुष्य की आत्महत्या समाज की भी जरूरत बन जाती है। आत्महत्या पर्यावरण की रक्षा की तरह आवश्यक हैं'।
ये विचार लेखक के नहीं हैं। यह बताना कठिन है कि सन् 1930 में लियॉन दादेन ने इस तरह क्यों सोचा। क्या उसने सन् 1933 की आर्थिक मंदी का अंदाजा लगा लिया था?