आत्म-अवलोकन का अवसर / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
आत्म-अवलोकन का अवसर
प्रकाशन तिथि : 02 नवम्बर 2012


आज शाहरुख खान का जन्मदिन है। वह लगभग बाईस साल से मनोरंजन उद्योग में सक्रिय हैं। दिल्ली के मध्यमवर्ग का यह व्यक्ति लाखों अन्य लोगों की तरह एक छोटा-सा सूटकेस और भव्य सितारा स्वप्न लिए मुंबई आया था, परंतु भाग्य ने साथ दिया और अपने परिश्रम के दम पर आज वह एकल व्यक्ति उद्योग बन चुका है। शाहरुख ने अपने किसी सपने में भी यह नहीं देखा होगा कि एक दिन ऐसा आएगा, जब वह सो रहे होंगे, तब भी उनकी कंपनियां और पूंजी निवेश उनके लिए नोट छाप रहे होंगे। विगत दो दशकों में उनका यह पहला जन्मदिन है, जब उसके पथ-प्रदर्शक यश चोपड़ा दुनिया में नहीं हैं, परंतु एक आखिरी भेंट 'जब तक है जान' के नाम से दे गए हैं, जिसका बॉक्स ऑफिस निर्णय १३ नवंबर को आएगा। आजकल सिताराजडि़त भव्य फिल्म पहले तीन दिन भारी भीड़ एकत्रित करती है और फिल्म को व्यापक समर्थन नहीं मिलने पर भी पहले तीन दिन की आय के आधार पर उसे सफल मान लिया जाता है। यह कितनी अजीब बात है कि दर्शक की पसंद-नापसंद बॉक्स ऑफिस पर निर्णायक नहीं रही। आंकड़ों का खेल है सिनेमा, कुछ लोग आंकड़ों से मात खा रहे हैं। यही हाल संसद का है, जो अब अवाम की प्रतिनिधि संस्था नहीं रही। वहां भी आंकड़े ही चल रहे हैं, आंकड़े ही लडख़ड़ा रहे हैं। अवाम की दशा जीडीपी या राष्ट्रीय संपत्ति से नहीं आंकी जा सकती। दर्द को तौलने वाली तुला कहीं नहीं है। नम आंखें किसी नज्म को जन्म नहीं दे रही हैं। कैसा बांझ कालखंड है?

बहरहाल यह गौरतलब है कि क्या समृद्धि के शिखर पर बैठे शाहरुख खान एक प्रसन्न व्यक्ति हैं? क्या वह रोज रात चैन की नींद ले पाते हैं। सफलता के भार को वहन करना आसान नहीं होता। भीतर से आध्यात्मिक रूप से मजबूत आदमी के लिए यह कपास का भारहीन बोरा है और अंदरूनी द्वंद्व में फंसे आदमी को लगता है कि वह आसमान उठाकर चल रहा है। कमर का दर्द हमेशा रीढ़ की हड्डी में लोचे के कारण नहीं होता। शाहरुख खान सफलता के भार को कैसे लेते हैं, यह कोई रहस्य नहीं है।

उन्होंने शिखर पर पहुंचने के पहले ही 'आई एम द ग्रेटेस्ट' कहना शुरू कर दिया था। ऊपरी तौर पर इसे उनका अहंकार माना गया, परंतु संभवत: वह अपने अवचेतन में गहरे पैठे किसी भय के भूत को भगाने के लिए 'ग्रेटेस्ट' का जाप करते थे, जैसे बच्चों को सिखाया जाता है कि भय लगने पर राम का नाम जपने या अल्लाह को स्मरण करने से भय भाग जाता है। हर आदमी स्वयं को आश्वस्त करता रहता है। इसी तरह मीडिया द्वारा उन्हें 'किंग खान' कहने पर वह कैसे एतराज करते और बार-बार हजार मुंह से एक ही बात सुनते रहने पर यकीन भी होने लगता है।

असफलता से कुछ लोग कुंठित हो जाते हैं, स्वयं को नष्ट करने पर आमादा हो जाते हैं। इच्छामृत्यु के विविध रूप होते हैं। अजीब बात यह है कि आज के दौर की अकल्पनीय सफलता भी कुंठा को जन्म देती है और स्वयं को हानि पहुंचाने वाले काम मनुष्य करने लगता है। शाहरुख भलीभांति जानते हैं कि सितारा शाहरुख होने का अर्थ क्या है और कहीं न कहीं वह अपनी सफलता से आतंकित भी हैं। उनकी कुछ विगत फिल्में नहीं चलीं, परंतु उन्होंने अपने मन में उन्हें सफल ही माना है। दरअसल सफलता के प्रति घोर आग्रह ही इस तरह का मोह तथा भ्रम पैदा करता है।

शाहरुख खान ने कुछ अवसरों पर स्वयं को पठानी योद्धा सिद्ध किया है, जैसे बालासाहब ठाकरे के विरोध के बावजूद 'माय नेम इज खान' का प्रदर्शन करने में वह सफल रहे तथा अमर सिंह के मुंह पर उसकी आलोचना की और अमिताभ बच्चन से कभी आतंकित नहीं हुए। परंतु इसी प्रकरण में छुपी है उनकी एक कमजोरी भी और वह यह है कि 'माय नेम इज खान' अच्छी फिल्म नहीं थी और यह बात वह स्वीकार नहीं करते। करण जौहर उनके अनुगृहीत हैं और उन्होंने शाहरुख की अपनी अवधारणा पर फिल्म की रचना की और पात्र की अपनी जन्मजात चाल को छोड़कर उस पर महानता आरोपित की। दर्शक उस पात्र को पसंद करते हैं, जो अपनी साधारण स्थिति से ऊपर उठकर महानता अर्जित करता है। आरोपित महानता हास्यास्पद होती है।

आज शाहरुख खान को अजीब लगता है कि कोई और उनसे अधिक लोकप्रिय है। अनेक अन्य सितारे हैं, जिनकी फिल्में उनसे कहीं अधिक व्यवसाय कर रही हैं। उनकी छवि विराट है, परंतु भारतीय फिल्म व्यवसाय पहले से अधिक बढ़ चुका है। दरअसल यथार्थ को स्वीकार करना एक सफल व्यक्ति के लिए अत्यंत कठिन होता है। शाहरुख खान दिल्ली से जब आए थे, तब उनके चेहरे पर एक मासूमियत, एक जिज्ञासा थी। आज अपने भीतर के संघर्ष के कारण चेहरे के भाव बदल गए हैं। उनकी स्थिति उस धावक की तरह है, जो वर्षों से लगाार दौड़ रहा है और अब उसकी सांसें उससे हिसाब मांग रही हैं। वह देख रहा है कि अन्य धावक विजयी फीते तक पहुंच गए हैं। बहरहाल 'जब तक है जान' के साथ अब यश चोपड़ा के निधन की भावना जुड़ गई है। एक विदाई की शहनाई पाश्र्व में गूंज रही है, अत: भारी भीड़ जुट सकती है। आज शाहरुख के पास कई विकल्प हैं, अटूट धन है, परंतु उन्हें स्वयं को खोजने का अवसर भी है। अपने भय और मोह पर विजय पाने का समय है।