आदमी नहीं झुनझुने हैं हम, चाहे जैसा बजाइए! / जयप्रकाश चौकसे

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आदमी नहीं झुनझुने हैं हम, चाहे जैसा बजाइए!
प्रकाशन तिथि : 27 दिसम्बर 2020


ईसा मसीह के जीवन पर आजकल एक टेलीविजन सीरियल दिखाया जा रहा है जो भारत में ही बना है। अभी कथा के प्रारंभिक भाग में हम देख रहे हैं कि जन्म के समय ही उन्हें मार देने का आदेश दिया गया था। गोयाकि कंस पर हमारा एकाधिकार नहीं है। रावण, कंस, हिटलर सभी देशों में प्रगट होते रहे हैं। ईसा मसीह को सूली पर लटकाए जाने के समय का विवरण नाटकों में प्रस्तुत किया गया है। एक फिल्मकार ने ईसा के क्रॉस पर लटकाए गए जाने का विवरण फिल्म में प्रस्तुत किया। फिल्म में ईसा की हथेली पर पहला कीला ठोकने से पैर में अंतिम कीला ठोकने तक को प्रस्तुत किया गया। फिल्म के प्रदर्शन पर दर्शक सिनेमाघर में चीखने लगे। फिल्म को हिंसा के इस ग्राफिक वर्णन को दिखाने के कारण प्रतिबंधित करने की मांग की जाने लगी। फिल्मकार ने बयान दिया कि उसका उद्देश्य उसे प्राप्त हो गया है। अब फिल्म पर प्रतिबंध लगाए जाने पर उसे कोई ऐतराज नहीं है। अगर हम सिनेमा के परदे पर ईसा को कष्ट दिए जाने का विवरण सहन नहीं कर पा रहे हैं तो जब सचमुच यह घटा होगा तो ईसा को कितना दर्द हुआ होगा। केवल इस बात का एहसास जगाने के लिए फिल्म बनाई गई थी कि हमने संवेदना खो दी है।

विगत सदी के छठे दशक में काफ्का की कथा ‘आउटसाइडर’ का प्रकाशन हुआ। ऐसा पात्र रचा गया जिसे किसी प्रकार की भावना ही महसूस नहीं होती, यहां तक कि जब उसे मृत्युदंड सुनाया जाता है तब भी उसे कोई भय नहीं लगता। इस कथा से प्रेरित खाकसार की कथा ‘एक सेल्समैन की आत्मकथा’ पत्रिका ‘पाखी’ में प्रकाशित की गई थी। उसी दौर में ‘मैट्रिक्स’ श्रंखला भी बनाई गई, जिसमें प्रस्तुत किया गया कि मशीनें मनुष्य नामक बैटरीज से उर्जा प्राप्त करेंगी। मनुष्य का रोबोकरण विज्ञान फंतासी का केंद्रीय विचार रहा है। इसके साथ ही मानव निर्मित रोबो में भावना का उदय होना भी प्रस्तुत किया गया। खेल यह हो गया कि भावना विहीन मनुष्य और मशीनी मानव में भावना का संचारित होना साहित्य और सिनेमा में प्रस्तुत किया जाने लगा। इस विचार की श्रेष्ठ फिल्म ‘बाइसेन्टेनियल मैन’ मानी गई। इस फिल्म में एक रोबो को एक स्त्री से प्रेम हो जाता है। वह अपने विवाह के लिए चर्च और अदालत में प्रार्थनापत्र भेजता है। संस्थाएं असमंजस में पड़ जाती हैं। कई वर्ष बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला आता है कि विवाह का आधार प्रेम है। वह किसी के साथ भी हो तो कोई ऐतराज नहीं किया जा सकता। मनुष्य तो अपनी भावना के कारण पत्थर को भी पूज कर आशीर्वाद प्राप्त कर लेता है। ‘बाइसेन्टेनियल मैन’ में जब सुप्रीम कोर्ट से विवाह की इजाजत मिलती है, तब तक रोबो की एक्सपायरी डेट आ चुकी है। रोबो अपनी एक्सपायरी के समय अपनी मानवी प्रेमिका का हाथ पकड़ता है और दोनों ही एक साथ प्राण देते हैं। अगर दुनिया वाले साथ जीने नहीं देते तो साथ मरना तो उनके अधिकार क्षेत्र में आता है। दुख होता है कि आदमी झुनझुनों में कैसे बदल गए?

यह गौरतलब है कि ईसा की तरह ग्रीक लोककथा से प्रेरित पी.बी.एस. शैली ने ‘प्रोमिथियस अनबॉउंड’ लिखी। यह भी एक व्यक्ति को सूली पर लटकाने की व्यथा-कथा है। प्रोमिथियस पर आरोप लगाया गया था कि उसने आवाम के लिए ज्ञान का प्रकाश चुराया था। धर्मवीर भारती ने से प्रेरित ‘प्रमुथ्यु गाथा’ लिखी परंतु इसमें यह मौलिक बात जोड़ी जिनके लिए प्रमुथ्यु प्रकाश लाया, वे लोग ही तमाशबीन की तरह उसके इर्द-गिर्द खड़े होकर तालियां बजाने लगें। प्रमुश्यु को सूली पर लटकाए जाने से अधिक दर्द आवाम के तालियां बजाने पर हुआ।

ईसा और प्रमुथ्यु को दंडित करने की कथाओं का आज के भावनाहीन मनुष्य से क्या रिश्ता है। क्या एक लम्हे की खता सदियों पाई जा रही है। वर्तमान में आम आदमी की उदासीनता बड़ी समस्या है। गांधी जी अनशन पर बैठते तो अनगिनत लोग भी एक दिन की सांकेतिक हड़ताल करते थे।