आदरांजलि: एक भूतपूर्व कवि प्रधानमंत्री / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 18 अगस्त 2018
ऋषिकेश मुखर्जी को अपनी बनाई फिल्मों में सबसे अधिक प्रिय फिल्म थी धर्मेंद्र अभिनीत 'सत्यकाम' जो बॉक्स ऑफिस पर असफल रही थी। ज्ञातव्य है कि जबाली के तथाकथित अवैध पुत्र 'सत्यकाम' ने ग्रंथों का अध्ययन करके नाम कमाया था। फिल्म का नायक सरकारी इंजीनियर है और रिश्वत नहीं लेने के कारण उसके तबादले होते रहते हैं। सत्यकाम को कैंसर हो जाता है। फिल्मकार का अभिप्राय यह था कि समाज का कैंसर भ्रष्टाचार है। राज कपूर की 'अावारा' के अंतिम दृश्य में नायक जेल में बंद है और उसका पिता जेल के सींखचों के बाहर खड़ा है। वह अपने पुत्र से मिलता है। एक शॉट इस तरह से लिया है कि जज सीखचों में बंद-सा दिखाई पड़ता है और खिड़की से आ रहे प्रकाश में नायक नहाता-सा दिखता है, जो प्रायश्चित कर रहा है। जज की यह ज़िद कि अच्छे का पुत्र अच्छा और बुरे का पुत्र बुरा टूट चुकी है।
स्टीवन स्पीलबर्ग की सबसे कम चर्चित फिल्म 'कलर पर्पल' है। दक्षिण अफ्रीका से गुलामी कराने के लिए लोग लाए जा रहे हैं। पानी के जहाज में उन्हें यातना दी जाती है तो वे विद्रोह कर देते हैं। वे सब पकड़े जाते हैं उन्हें अदालत लाया जा रहा है। अदालत की दीवारों पर अब्राहम लिंकन, जॉर्ज वाशिंगटन इत्यादि महान नेताओं की आदमकद पेंटिंग्स लगी हैं। उन 'मुजरिमों' की सफाई में खड़ा वकील कहता है कि महान नेता जिनकी पेंटिंग लगी है वे देख रहे हैं कि जिस देश की रचना के लिए उन्होंने त्याग किए। क्या वह देश न्याय करेगा कि मनुष्य को गुलाम बनाना अपराध है। उस जहाज में कैदियों के साथ ही एक गमला भी लाया गया है, जिसमें एक दुर्लभ फूल अंकुरित है। सफाई देने वाला वकील इस गमले को भी एक साक्ष्य की तरह प्रस्तुत करता है। इसी तरह 'जॉली एलएलबी' के अदालत के दृश्य में जज अपनी मेज पर रखे एक छोटे से पात्र में अंकुरित पौधे को पानी देने के बाद कार्यवाही प्रारंभ करते हैं। पत्थरों से बनी सड़कों पर भी पत्थरों के जुड़ाव की जगह किंचित जगह छूट जाती है, जिसमें कोंपल खिलती है। कोंपल जानती है कि वह किसी राहगीर के जूते के नीचे कुचली जाएगी। परंतु इस भय के कारण अंकुरित होने की प्रक्रिया रुकती नहीं है। ओबामा के चुनाव जीतकर अमेरिका के प्रेसीडेंट बनने के दशकों पूर्व इरविंग वालेस के उपन्यास 'द मैन' में वर्णित है कि एक हवाई जहाज दुर्घटना में अमेरिका के कुछ नेताओं की मृत्य हो जाती है और उनके संविधान के अनुसार सबसे सीनियर सीनेटर को अंतरिम समय के लिए प्रेसीडेंट का पद दिया जाता है। इस तरह एक अश्वेत व्यक्ति शिखर पद पर विराजता है। उसके प्रमुख विरोधी की सुपुत्री प्रार्थना करती है कि उसे सचिव बना लें। इस घटना के समय प्रेसीडेंट की एक पुत्री जो श्वेत रंग की थी का विवाह एक गोरे व्यक्ति से हुआ है परंतु पुत्री ने अपना असली परिचय छिपाया है। पिता के प्रेसीडेंट बनने के बाद वह उनकी ख्याति के फव्वारे में स्नान करना चाहती है, लेकिन मन मसोसकर रह जाती है।
प्रेसीडेंट का एक पुत्र है जो श्वेत अमेरिकियों के खिलाफ हिंसा करने वाले दल का सदस्य है। सारे पात्र दुविधा में उलझे हैं। प्रेसीडेंट की सचिव उस पर आरोप लगाती है कि उसके दुष्कर्म का प्रयास किया गया है। नियमानुसार सीनेट में प्रकरण आता है। पक्ष-विपक्ष के बीच जमकर विद-विवाद होता है। नियम यह है कि प्रेसीडेंट के महाभियोग प्रस्ताव को पास कराने के पक्ष में 100 सीनेटरों में से 70 का वोट पड़ना चाहिए। इससे कम संख्या होने पर प्रस्ताव गिर जाता है। प्रस्ताव के पक्ष में 76 मत पड़ जाते हैं और अंतिम वोटर है विपक्ष का नेता जिसकी सुपुत्री ने प्रकरण दर्ज किया है। सब मानते हैं कि प्रस्ताव पास होगा और प्रेसीडेंट को पद छोड़ना होगा। विपक्ष के नेता का कहना है कि उसकी सुपुत्री को हैलुसिनेशन होता है यानी वह कुछ घटनाओं की कल्पना करती है और अपनी कल्पना को यथार्थ मानने लगती है। वह उसके इलाज की फाइल भी सदन में रखता है और अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध अपना मत रखता है।
इसी तरह ही अटल बिहारी वाजपेयी के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव एक वोट से गिर गया था। गणतंत्र व्यवस्था में हर दल अपने चुनाव जीतकर आने वाले सदस्यों को सदन में मौजूद रहने का आदेश जारी करता है। जिसे राजनीतिक भाषा में व्हिप अर्थात कोड़ा (हंटर) कहते हैं। गणतंत्र व्यवस्था की यह दुविधा है कि दल के अनुशासन के तहत दल की नीतियों के पक्ष में बात की जाए परंतु हर व्यक्ति की विचार प्रक्रिया स्वतंत्र रहे यह भी आधारभूत बात है। इस तरह द्वंद्व की दशा बनती है। अटल बिहारी वाजपेयी ने सदन में हमेशा राष्ट्रहित व मानव कल्याण के लिए किए गए फैसलों का स्वागत किया और कभी 'व्हिप' से भयभीत नहीं हुए। उन्होंने बांग्लादेश के स्वतंत्र होने के बाद इंदिरा गांधी की प्रशंसा की। सदन में उनके ओजस्वी भाषण देने पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनकी प्रशंसा की। हमारे गणतंत्र में राजनीतिक विरोध का अर्थ शत्रुता नहीं रहा है परंतु वर्तमान में कुछ अजीबोगरीब बातें घटित हो रही हैं।
सुकरात का विचार था कि जब राजा कवि या कवि ह्रदय होगा, तब सबको न्याय मिलेगा। हमारे नेहरू और अटलजी कवि रहे हैं। अटलजी ने भारत-पाक के बीच समझौता एक्सप्रेस का आरंभ किया था। वे यह बात जानते थे कि आणविक हथियार से लैस होने के बाद युद्ध की बात करने या किसी मुल्क को नेस्तानाबूद करने का विचार ही गैर-व्यावहारिक है। अब बाजार युद्ध भूमि है। वाजपेयी का प्रयास था कि उनका दल आधुनिकता के विचार को आत्मसात करें। कोई भी राजनीतिक दल आरएसएस की तरह अनुशासित नहीं है और अगर वे आधुनिकता, सहिष्णुता और वैचारिक स्वतंत्रता को आत्मसात करें तो एक सकारात्मक शक्ति का उदय संभव है। अपने तानाशाह के द्वारा निर्मित जंजीरों से मुक्ति प्राप्त करना ही असली युद्ध है।