आदित्य चोपड़ा और द्विवेदी की पृथ्वीराज रासो / जयप्रकाश चौकसे

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आदित्य चोपड़ा और द्विवेदी की पृथ्वीराज रासो
प्रकाशन तिथि : 26 जुलाई 2018


चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने 'चाणक्य' सीरियल से नाम कमाया था। उन्होंने सनी देओल के साथ 'मोहल्ला अस्सी' नामक फिल्म बनाई जो सेन्सर के जाल से बड़ी कठिनाई से निकली परंतु निर्माताओं के आपसी मतभेद के कारण अभी तक प्रदर्शित नहीं हुई। द्विवेदीजी ने 'पिंजर' भी बनाई है। ताजा समाचार यह है कि फिल्मकार आदित्य चोपड़ा और चंद्रप्रकाश द्विवेदी मिलकर 'पृथ्वीराज चौहान' नामक ऐतिहासिक नायक पर पटकथा लिख रहे हैं तथा अक्षय कुमार ने अभिनय करना स्वीकार कर लिया है। प्राय: अक्षय कुमार किसी भी फिल्म को चालीस दिन से अधिक का समय नहीं देते परंतु इतिहास आधारित फिल्म इस समय सीमा में नहीं बनाई जा सकती, क्योंकि एक युद्ध को फिल्माने में लंबा समय लग सकता है। यह संभव है कि अभिनय क्षेत्र में अमर हो जाने के लिए अक्षय कुमार इस फिल्म के लिए अधिक समय दें। हर महिला कलाकार के मन में एक 'मदर इंडिया' या 'पाकीज़ा' अभिनीत करने का मोह होता है। इसी तरह हर अभिनेता के मन में एक 'आवारा' या 'गंगा जमुना' अथवा 'दीवार' करने का मोह होता है।

इतिहास में विवरण है कि राजा जयचंद पृथ्वीराज चौहान के प्रति अपने मन में इतना द्वेष रखते थे कि उन्होंने अपनी सुपुत्री संयोगिता के स्वयंवर में चौकीदार का पुतला ऐसा बनाया मानो पृथ्वीराज खड़े हों। सुरक्षा के सारे जतन के बावजूद पृथ्वीराज चौहान स्वयंवर से संयोगिता को ले जाने में सफल हुए थे। वे संयोगिता से पहले भेंट कर चुके थे और दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते थे। इतिहास प्रेरित हो या विज्ञान फंतासी हो, सारी कथाएं प्रेम की धुरी पर ही घूमती हैं। बहरहाल, मोहम्मद गौरी ने बारह बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया और हर बार उसकी मात हुई। जयचंद ने अपने व्यक्तिगत बैर के कारण गौरी की मदद की और पृथ्वीराज चौहान बंदी बना लिए गए। उनके साथ राज कवि चंदबरदाई भी कैद किए गए। दुष्ट मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान की आंखें फोड़ दीं और उन्हें बेड़ियों से जकड़ दिया। उसे अपने बार-बार पराजित होने का बदला लेना था। तानाशाह और नपुंसक लोग दूसरों को कष्ट देने में आनंद प्राप्त करते हैं।

सामंतवादी लोग प्राय: कवियों एवं संगीतकारों की कद्र करते थे। महान तानसेन अकबर के नौ रत्नों में से एक थे। बैजू बावरा एक किंवदंती है। इतिहास को खंडित करने के लिए किंवदंतियां रची जाती हैं। अपनी पराजय से भरे इतिहास में कुछ गौरव पाने के लिए किंवदंतियां रची जाती हैं। संगीत क्षेत्र में बैजू बावरा तानसेन को पराजित करें तो हमारे सामूहिक अवचेतन में विजय का मिथ्या भाव हमें रोपित करना बड़ा अच्छा लगता है। तानसेन की पराजय में हम अकबर की पराजय देखकर खुश होते हैं। बहरहाल, पृथ्वीराज चौहान को तमाशा बनाने की खातिर दरबार के प्रांगण में उन्हें लाया गया। उनके साथ चंदबरदाई भी आए। हर तानाशाह जानता है कि अवाम तमाशबीन है और अपने कुराज को ढंकने के लिए लगातार तमाशे रचते रहना सत्ता में बने रहने की एक तिकड़म मात्र है। इसी तरह का एक तमाशा रचा गया और कैदी पृथ्वीराज के अचूक निशाना लगाने का खेल अवाम के मनोरंजन के लिए रचा गया। दृष्टिबाधित कैदी पृथ्वीराज चौहान को तीर कमान दिया गया। उनके कवि चंदबरदाई ने कहा, 'चार हाथ चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूके चौहान'। अचूक निशानेबाज पृथ्वीराज चौहान ने सुल्तान को तीर से मार दिया परंतु सुल्तान की सेना ने पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई को भी मार दिया। चंदबरदाई का महाकाव्य है 'पृथ्वीराज रासो'। इस फिल्म के लिए अक्षय कुमार अनुबंधित किए जा चुके हैं परंतु रितिक रोशन बेहतर चुनाव होते। चंदबरदाई की भूमिका अभिनीत करने के लिए ऋषि कपूर का चयन किया जाना चाहिए। इतिहास प्रेरित फिल्में बनाने में बहुत पैसा लगता है और लागत को सुरक्षित करने के लिए कलाकारों की भीड़ जुटानी पड़ती है। तमाशे को रोचक बनाने के लिए संयोगिता के स्वयंवर दृश्य में स्वयं पृथ्वीराज ही बुत बने खड़े हैं। ऐसा करने पर दर्शक को 'मुगल-ए-आज़म' का दृश्य भी याद आएगा, जिसमें मधुबाला बुत बनी खड़ी हैं और अपनी ओर आने वाले तीर से भी डरती नहीं। बादशाह अकबर के प्रश्न के जवाब में अनारकली कहती हैं कि उसने आंखें बंद नहीं कीं, क्योंकि वे अफसाने को इतिहास में बदलते हुए देखना चाहती थीं।

जीवन के सारे कष्ट भोगते हुए भी अवाम फिल्में देखने जाता है, क्योंकि उसे भी अफसाने को बॉक्स ऑफिस इतिहास में बदलते देखने की चाह होती है। प्रांतीय सरकारों ने पहले रद्‌द किए गए मनोरंजन कर को पुन: लगाने का प्रयास किया है। मनोरंजन पर कर लगाना ऐसा ही है जैसे हवा पर कर लगाना। हर आम आदमी को गिनकर सांस लेना पड़ सकता है।