आदित्य चोपड़ा व आमिर खान की ठग / जयप्रकाश चौकसे

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आदित्य चोपड़ा व आमिर खान की ठग
प्रकाशन तिथि :13 फरवरी 2017


आमिर खान की आगामी फिल्म का नाम 'ठग' है? वे अपनी हर फिल्म के लिए शूटिंग के पूर्व और पश्चात उतना ही परिश्रम करते हैं, जितना शूटिंग के समय। हर निर्णय के पहले भी वे बहुत सोच-विचार करते हैं और तमाम दुविधाओं के निवारण के बाद ही निर्णय लेते हैं। 'दंगल' के लिए उन्होंने अपना वजन बढ़ाया और प्रदर्शन के बाद घटाया गोयाकि वे अपने शरीर को बांसुरी की तरह इस्तेमाल करते हैं और मनभावन सुर में शरीर को साधते हैं परंतु ऐसा करने पर बांसुरी विद्रोह भी कर सकती है गोयाकि शरीर कह सकता है कि अब उसके साथ और खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। दशकों पूर्व किसी फिल्म में एक गीत था, 'विरहा ने कलेजा यूं छलनी किया जैसे जंगल में कोई बांसुरी पड़ी हो।' यह संभवत: 1937 की कोई फिल्म है परंतु कवि ने कमाल की रचना की है। वर्षों पूर्व लखनऊ के एक सरदार ने घोर परिश्रम करके सारे गीतों के मुखड़े और फिल्म प्रदर्शन का वर्ष लिखा तथा पांच खंडों में इसे जारी किया था। उपरोक्त मुखड़ा उसी ग्रंथ में पढ़ा था परंतु वह स्मृति में हमेशा के लिए अटक गया है।

जबलपुर के चंद्रकांत रॉय ने वर्षों पूर्व ठगों का गहन अध्ययन किया और उनका शोध प्रकाशित भी हुआ है तथा छोटे परदे पर इसी विषय से जुड़े एक सीरियल में वे विशेषज्ञ रहे हैं और हर एपिसोड पर उनके विचार भी दिखाए जाते हैं। चंद्रकांत रॉय ज्ञानरंजन की 'पहल' से भी जुड़े थे। आजकल 'पहल' के सहयोगी संपादक राजकुमार केसवानी हैं, जिन्हें पुराने गीतों की गहरी जानकारी है और इस अखबार में उनके लेख भी नियमित रूप से प्रकाशित होते हैं। इसी ठग विधा पर विष्णु खरे ने भी एक पटकथा लिखी है। एचएस रवैल की दिलीप कुमार, संजीव कुमार, बलराज साहनी, जयंत इत्यादि द्वारा अभिनीत 'संघर्ष' में भी ठगों के जीवन की कथा थी। उस दौर में अंग्रेज अफसर भी ठगों से भयभीत थे और उन्हें समाप्त करने के लिए योजनाबद्ध ढंग से जुटे थे।

ठग किसी भी धर्म के अनुयायी रहे हों परंतु वे सब दुर्गा के भक्त रहे हैं और ठगी पर निकलने के पहले मां दुर्गा की आराधना करते थे। वे अपने रेशमी रूमाल से गले में एक खास ढंग से फंदा डालते थे। शव को देखकर ही बताया जा सकता था कि यह काम किसी ठग ने किया है। चोरी का काम ठगी से अलग है। बंगाल के मनोज बसु ने चोरी पर एक मनोरंजक किताब लिखी है- 'रात के मेहमान।' यह आश्चर्यजनक है कि प्राचीन काल में राजकुमारों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में उन्हें चोरी भी सिखाई जाती थी ताकि वे अपने शासन काल में चोरों को पकड़ने में प्रवीण बन जाएं। राजा भी एक तरह की चोरी ही करते रहे हैं, क्योंकि वे अवाम को लूटते रहे हैं परंतु उनका कार्य वैधानिक माना जाता है। आज के नेता भी इस कला को बखूबी जानते हैं। सरकारी बजट द्वारा भी अवाम को लूटा ही जाता है। अवाम भी कम चतुर नहीं है। प्रजा और राजा एक-दूसरे के वैचारिक सहोदर होते हैं।

बहरहाल 'रात के मेहमान' में एक दोहा इस तरह है, 'चोर चक्रवर्ती कथा बड़ी ही मधुर। सुन सुन लोग इसे होते हैं चतुर।' इसमें यह भी उल्लेख है कि चौर्य कर्म का एक गुरु अपने शिष्य से गुरुदक्षिणा मांगता है कि वह गुरु की चतुर बहू के हाथ के कंगन चुराकर लाए। गुरु जानता है कि उनके इस शागिर्द के मन में उनकी बहू के लिए आसक्ति है। बहू स्वयं चौर्य शास्त्र में पारंगत है। अत: यह कठिनतम परीक्षा है। उपन्यास में इस तरह के अनेक मजेदार प्रसंग है।

चोर के लिए यह जरूरी है कि अंधेरे कमरे में सोने वालों की सांस से वह जान ले कि कमरे में कितने व्यक्ति हैं और उनमें से कितने गहरी नींद में हैं। कच्ची नींद में चोरी करने का जोखिम नहीं उठाया जाता। बहरहाल, आमिर खान अभिनीत यह फिल्म आदित्य चोपड़ा बना रहे हैं। आमिर और आदित्य की टीम पहले भी सफल फिल्म दे चुकी है। दोनों का दृष्टिकोण व्यावसायिक है और वे कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। वर्तमान कालखंड में तो शिखर पर बैठे लोग भी ठगी विधा में प्रवीण हैं। एक नेता ने फरमाया कि गन्ने के किसानों को अमुक रकम दी गई है, जबकि सभा में मौजूद किसानों ने कहा कि उन्हें कुछ नहीं मिला। यह सारा कारोबार अब प्रतिदिन अधिक रहस्यमय होता जा रहा है। यह संभव है कि आदित्य व अामिर खान की फिल्म में अगले आम चुनाव के ुछ समय पूर्व प्रदर्शित हो। ठग बनाम ठग युद्ध मजेदार हो सकता है।