आदिवासी / हेमन्त शेष
सब आदिवासी घने जंगलों में पैदा होते और रहते हैं, एक-एक पेड़ पत्ती और कंदमूल पहचानते हैं, हाथ से बुना कपड़ा पहनते हैं, देवताओं को मानते हैं, ओझाओं का सम्मान करते हैं, कबीले की पंचायत का फैसला मानते हैं, बच्चे पैदा करना जानते हैं, जानवरों के नाम, उनकी आदतें, पक्षियों की बोली और उनके मिलने की जगह पहचानते हैं, इलाज के लिए खुद अपनी दवा, पीने के लिए अपनी दारू, चलाने के लिए अपना धनुष-बाण, पहनने के लिए अपने गहने, रहने को अपना मकान, बजाने को अपना ढोल, टापू के पार जाने को अपनी नौका, किसी बाजार से नहीं खरीदते, खुद अपने हाथ से बनाते हैं. वे आर्ट-स्कूलों में नहीं जाते, पर एन.आई.डी और जे जे स्कूल की सिगरेट के सुट्टे लगातीं नींद में भी जींस ही पहनने वाली लड़कियों से बेहतर चित्रकारी करते हैं. हालांकि लगभग रोज़ वे कुछ खाते हैं, पर पता नहीं क्यों आदिवासी हमेशा आधे-भूखे रहते हैं?
भारत सरकार हर साल २६ जनवरी को नाचने के लिए उन्हें नई दिल्ली बुलवाती है, और हमेशा आधे भूखे रहते हुए भी सब आदिवासी इतना अच्छा नाचते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री की तरफ प्रशंसा-भाव से देखते मॉरिशस और कांगो के राष्ट्रपति उनके लिए खड़े हो कर तब तक ताली बजाते रहते हैं जब तक वे समूह में नाचते-नाचते लंबे राजपथ से ओझल नहीं हो जाते...