आधी हक़ीक़त आधा फ़साना – भाग 9 / राकेश मित्तल
प्रकाशन तिथि : मार्च 2015
जिस तरह 1950 से 1970 का समय भारतीय सिनेमा और संगीत का स्वर्ण युग कहा जाता है, उसी तरह 1980 से 2000 के समय को हम बॉलीवुड़ का संक्रमण काल कह सकते हैं। यह वह समय था जब भारतीय सिनेमा, विशेषकर हिंदी सिनेमा में बेहद ख़राब फ़िल्में बनने लगी। सिनेमा को समाज का दर्पण कहा जाता है। जैसे-जैसे समाज में नैतिक मूल्यों का पतन होता गया, उसका प्रभाव सिनेमा में भी दिखाई देने लगा। यह समय कादर खान और शक्ति कपूर के फूहड़, द्विअर्थी संवादों और जितेंद्र-श्रीदेवी-मिथुन चक्रवर्ती या गोविंदा-करिश्मा कपूर मार्का मसाला फिल्मों से भरा रहा। पिछले सौ सालों में हिंदी सिनेमा के कुछ सबसे बुरे गीत भी इसी दौर में रचे गए। कुछ अच्छे और समर्थ फिल्मकारों ने भी बाजार का रुख और दर्शकों का मिज़ाज़ भांपते हुए बेहद चलताऊ किस्म की फ़िल्में बनाई।
हालाँकि ऐसा नहीं है कि इस दौर में सिर्फ ख़राब फिल्में ही बनी। कुछ बहुत अच्छी फ़िल्में भी इस दौरान बनती रहीं किन्तु उनकी संख्या बुरी फिल्मों के मुकाबले बहुत काम थीं। इसी बीच कुछ युवा फिल्मकारों ने अलग तरह का ट्रेंड स्थापित करने की कोशिश की, जिनमें सूरज बड़जात्या, आदित्य चोपड़ा, करण जौहर और मंसूर खान जैसे नाम उल्लेखनीय हैं। सूरज बड़जात्या ने `हम आपके हैं कौन’ और `मैंने प्यार किया’, `हम साथ-साथ हैं’ जैसी फिल्मों से पारिवारिक मनोरंजन की एक नई किस्म इज़ाद की। उनकी फिल्मों की धुआंधार सफलता ने बड़े-बड़े फिल्म पंडितों को दांतों तले अंगुली दबाने पर मज़बूर कर दिया। `हम आपके हैं कौन’ ने अपनी सारी पूर्ववर्ती फिल्मों को पीछे छोड़ते हुए बॉक्स ऑफिस पर कमाई का नया रिकॉर्ड स्थापित किया। `शोले’ , `मुगले आज़म’ और `मदर इंडिया’ जैसी फिल्मों की कमाई को पीछे छोड़ते हुए वह उस समय तक भारत की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई।
वहीँ दूसरी तरफ आदित्य चोपड़ा और करण जौहर जैसे फिल्मकारों ने शाहरुख़ खान के साथ एक नए किस्म के `एन.आर.आइ.’ सिनेमा की शुरुआत की। अब हिंदी फिल्मों का नायक गरीब मज़दूर या किसान नहीं रह गया था बल्कि अमीर बाप का, विदेशों में पलने, घूमने-फिरने और रोमांस करने वाला सर्वगुण संपन्न रईसज़ादा था, जिसके पास किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी। इस तरह के सिनेमा का मुख्य निशाना भारतीय मूल के विदेशों में बसे दर्शक थे, जिनके डॉलरों वाली कमाई से फिल्मकारों की यह पीढ़ी समृद्ध हो रही थी। शिफॉन की साड़ियों में खूबसूरत, स्वप्निल, सजीली गुड़ियाओं-सी नायिकाएं युवा दिलों में उमंगें जगा रहीं थीं। भारतीय सिनेमा इस समय अपनी एक नयी ज़मीन और दिशा तलाश रहा था...............।