आधी हकीकत आधा फसाना / प्रमोद यादव
‘क्या बात है बेटे..स्कूल से आते ही बस्ता खोल बैठ रहे हो..खाना नहीं खाना क्या?’ मम्मी ने पूछा.
‘नहीं मम्मी..पहले मुझे हिन्दी का होम वर्क करना है..ये सब्जेक्ट मुझे बहुत भारी लगता है..ऊपर से टीचर ने कहा है कि कल राजा हरिश्चंद्र के बारे में पढ़कर आना.. ये कौन थे मम्मी? ‘इंगलिश मीडियम के क्लास फोर्थ के बच्चे ने अपनी मम्मी से कहा.
‘बेटा..हजारों साल पहले अयोध्या में एक सत्यवादी राजा हुआ करते थे..उनका नाम हरिश्चंद्र था..वे भगवान् श्रीराम जी के वंशज थे..’
‘मम्मी..आप तो उनके बारे में सब जानती होगी..मुझे कल की तैयारी करा दो न..मैं पुस्तक खोलता हूँ..एक बार आप भी पढ़ कर देख लीजिये ..’ बेटे ने विनती के स्वरों में कहा.
‘हाँ..करा देती हूँ..पर पहले आप कुछ खा लीजिये..मुझे भी बड़ी भूख लगी है..चलो..खाते-खाते राजा की कहानी भी सुनाते जाऊँगी..’ मम्मी बोली.
‘ठीक है..निकालिए खाना..’ बेटे ने कहा और दोनों डायनिंग टेबल में आमने-सामने खाने बैठ गए.
‘मम्मी..टीचर ने कहा है कि राजा के विषय में पढ़कर आना और बताना कि किन बातों के लिए वे प्रसिद्ध थे..’ बेटे ने खाते-खाते कहा.
‘बेटा .वे अपने सत व दान के बल पर सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र कहलाये..वे सदा सच बोलते और अपने वचनों पर दृढ रहते थे.. दानवीर तो ऐसे कि एक मुनि को उन्होंने अपना सर्वश्व दान कर दिया...राज-पाट ,खजाना...सब कुछ..’
‘दान क्या होता है मम्मी? ‘बेटे ने भोलेपन से पूछा.
‘दान का मतलब होता है- फ्री में कोई चीज किसी को देना..उसका दाम नहीं लेना..पैसे नहीं लेना..जैसे भिखारी को अनाज या पैसा देते हैं- वो दान है..ब्राह्मणों को पूजा-पाठ में जो देते हैं-वो दान है..जरूरतमंद और गरीबों को जो मुफ्त में कोई चीज देते हैं वो दान है..दान में जो कुछ भी देते हैं,देने के पश्चात उस पर दाता का कोई अधिकार नहीं रह जाता.. ‘
‘दान देने से क्या मिलता है मम्मी? ‘
‘पुण्य....पुण्य मिलता है बेटा..आत्मा को शान्ति मिलती है.. दुआ मिलती है..’
‘मम्मी..ये बताईये..क्या राजा हरिश्चंद्र कभी झूठ नहीं बोलते थे? ‘
‘नहीं बेटा..वे हमेशा सच ही बोलते थे..इसलिए तो वे सत्यवादी के नाम से मशहूर हुए..उनके सत्य धर्म के तपोबल से देवताओं का सिंहासन तक हिल गया था..तब उनके सत्य धर्म को डिगाने देवताओं ने मुनि विश्वामित्र को भेजकर उनकी परीक्षा ली थी ..’
‘कैसी परीक्षा मम्मी? ‘बेटे ने कौतूहल से पूछा.
‘बहुत लम्बी कहानी है बेटा..संछेप में बताऊँ तो कहानी यूं है कि मुनि ने उनसे उनका सारा राज-पाट, खजाना तो दान में ले ही लिया..उसके अलावा और सहस्त्र सोने की मुद्राओं की मांग दक्छिना के रूप में की तो उन्होंने अपनी रानी और एकलौते बेटे को एक ब्राह्मण को बेच दिया..और स्वयं एक चांडाल के हाथों बिक कर समय पर वचनानुसार मुनि को दक्छिना अदा किया ..फिर एक दिन..’
आगे कुछ बोलती कि बेटे ने अचानक पूछा-’मम्मी..क्या आदमी-औरत,बच्चे भी बिकते थे?
‘हाँ बेटा..बड़े-बड़े लोग.. अमीर लोग ..जरूरतमंद लोग खरीदते थे.. उन्हें दास और नौकर बनाकर रखते थे..’
‘अब क्यों नहीं बिकते मम्मी? ‘
‘बिकते अब भी हैं बेटे..पर आप नहीं समझोगे..अभी कहानी सुनो...तो हुआ यूं कि. राजा हरिश्चंद्र चांडाल के हाथों बिक कर श्मशान में रहते और जो भी मरघट में शवदाह कराने आता ,उनसे “कर” वसूल करते..एक दिन उनके बेटे को एक सांप ने काट दिया और वह मर गया..तब रोती- बिलखती उसकी माँ उसे शवदाह के लिए मरघट लेकर पहुंची..वहां राजा से जब अचानक मिली तो दोनों खूब रोये..शवदाह की बात आई तो राजा ने सीधे कहा कि बिना “कर” लिए वह न जलाने देगा न ही बहाने.. वह धर्म-विरूद्ध काम नहीं करेगा.. तब रानी बोली कि अब मेरे पास यह आधी साडी ही बची है..आधी मैंने पहले ही कफ़न बना बेटे को ओढा चुकी..अब इसे ही “कर” के रूप में स्वीकारो..इतना कह वह साड़ी देने को हुई कि तभी सारे देवतागण प्रगट हुए और उन पर फूलों की वर्षा होने लगी..राजा की सत्यनिष्ठा से प्रसन्न हो इन्द्र ने उनके बेटे को पुनः जिला दिया और उसे अयोध्या की राजगद्दी पर बैठाया..और राजा हरिश्चंद्र को स्वर्ग चलने का आमंत्रण दिया..’
‘मम्मी ..इसका मतलब ये हुआ कि सच बोलने से स्वर्ग मिलता है और जो कुछ भी खो जाता है उसे फिर से पाया जा सकता है..’ बेटे ने कहानी के सार पर टिपण्णी की.
‘हाँ बेटा..आप भी तो राजा बेटे हो..कभी झूठ नहीं बोलना..और दान- दक्छिना देने में कभी कोई कोताही नहीं करना..टीचर को बता देना कि वे सत्यवादिता और दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे..अब जाओ.. सो जाओ..सुबह जल्दी उठना है..’ इतना कह वह भी उठकर चली गई.
दूसरे दिन दोपहर बेटा स्कूल से लौटा तो उसे केवल जांघिये में देख उसकी मम्मी घबराकर चीख सी पड़ी- ‘अरे ...ये क्या हुआ..आपके कपडे कहाँ है?..टाई कहाँ है? जूते-मोज़े कहाँ है? स्कूल-बैग कहाँ है? और आपका मुंह सूजा-सूजा कैसा है? आपके बाल इतने अस्त-व्यस्त कैसे हैं? एक साथ कई सवालों की झड़ी लगा दी.
‘मम्मी..मैंने अपना स्कूल ड्रेस,टाई,जूते-मोज़े और पुस्तक-कापी सब..एक साथ वाले गरीब स्टूडेंट को दान कर दिया..बेचारे को टीचर रोज डांटकर क्लास से बाहर कर देता था..’
मम्मी ने माथा पकड़ लिया, कहा- ‘अब तुम क्या पहनोगे? किस पुस्तक से पढोगे?’
‘पापा दूसरी ला देंगे न..’ बेटे ने सहजता से जवाब दिया.
‘नहीं लायेंगे... सुनेंगे तो गजब ढा देंगे.. अच्छा ये बताईये..आपका मुंह कैसा सूजा है..दिखाओ.. गले में खरोंच भी है..क्या हुआ? कैसे हुआ? ‘मम्मी गले को देखते व्याकुल हो बोली.
‘मम्मी..आज हमारे क्लास में नीटू ने टीचर की कुर्सी में डामर का टुकड़ा रख दिया था..वे बैठे तो वह फुलपेंट में चिपक गया..वे बहुत नाराज हुए..पूछा कि किसकी शैतानी है? सब चुपचाप रहे.. किसी ने कुछ नहीं बोला..मुझसे जब पूछा तो मैंने सच-सच बता दिया ..स्कूल की छुट्टी हुई तो बाहर नीटू ने मुझे पीटा....आपने ही तो कहा था- हमेशा सच बोलना चाहिए..’ बेटे ने स्पष्टीकरण दिया.
मम्मी परेशान कि अब क्या करे? उसे कैसे समझाये?
‘देखो बेटा..जो हो गया सो हो गया.. पापा को यह सब बताने की जरुरत नहीं..मैं सब ले दूंगी.. अब दूसरी बार दान तभी करना जब कमाने लगो और अपनी हैसियत देख करना.... अब ध्यान से मेरी बात सुनो..इसे गाँठ बाँध लो..भविष्य में फिर कभी इसे मत दोहराना..कोई कुछ भी पूछे.. कहे..बोले....मौन ही रहना.. इससे आत्मबल बढ़ता है.. मौन से मन की शक्ति बढ़ती है..तभी कल्याण होगा..कोई कितना भी उकसाने की कोशिश करे.. भड़काने का प्रयास करे...बिलकुल गूंगे-बहरे की तरह रहना..कभी मौन नहीं तोड़ना.. तभी आगे भविष्य में आप कुछ बन पायेंगे..’
बेटे ने मम्मी की बातों को गाँठ बाँध लिया.
लगभग पांच दशक बाद वही बेटा देश का प्रधान मंत्री बना और दस साल तक अपने इसी गुण के चलते देश पर राज किया.
(उपरोक्त व्यंग्य में कही गई आधी बाते हकीकत है और आधा फ़साना..अब पाठक तय करें कि क्या हकीकत और क्या फ़साना?)