आधी हकीकत आधा फ़साना - भाग 3 / राकेश मित्तल
प्रकाशन तिथि : सितम्बर 2014
धुंडीराज गोविन्द फाल्के यानि दादा साहेब फाल्के को भारतीय फिल्मों का जनक माना जाता है। जब अमेरिका में डी. डब्ल्यू. ग्रिफिथ अपनी पहली फिल्म `द बर्थ ऑफ़ अ नेशन’ बना रहे थे, उसके पूरी होने से पहले दादा साहब फालके ने `राजा हरीशचन्द्र’ बनाकर भारत को विश्व सिनेमा के समकक्ष खड़ा कर दिया। ३ मई १९१३ का मुंबई के कोरोनेशन सिनेमा में इसका प्रदर्शन हुआ और यह लगातार १३ दिन तक चली। बाद में २८ जून को एलेक्जेंडर सिनेमा में यह फिर लगी और पुणे, सूरत, कलकत्ता, कोलम्बो तथा रंगून में भी इसके प्रदर्शन हुए। यह तीन रील की फिल्म थी और इसकी अवधि लगभग एक घंटा थी।
`राजा हरीशचंद्र’ को भारत की पहली फिल्म होने का गौरव प्राप्त है। हालाँकि इतिहास की दृष्टि से देखा जाए तो आर. जी. तोरने ने `भक्त पुण्डलिक’ नामक फिल्म इससे भी पहले बनाई थी, जिसका प्रदर्शन १८ मई १९१२ को हुआ था किन्त फिर भी उसे पहली भारतीय फिल्म का दर्जा नहीं दिया गया, क्योंकि वह अपने आप में एक स्वतंत्र फिल्म नहीं थी, बल्कि एक नाटक का फिल्मांकन था। दूसरे, वह एक ` ए डेड मेन्स चाइल्ड’ के साथ दिखाई जा रही थी और इसका कैमरामैन भी विदेशी था जबकि `राजा हरीशचंद्र’ सम्पूर्ण भारतीय फिल्म थी। इसका कथानक, इसके कलाकार, तकनीशियन, लोकेशन आदि सभी भारतीय थे और यह स्वतंत्र रूप से प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म में स्त्री पात्रों की भूमिका के लिए लाख कोशिशों के बाद भी कोई महिला काम करने को तैयार नहीं हुई थी। फिल्म की नायिका तारामती का रोल अन्ना सालुंके नामक पुरुष ने किया था।
`राजा हरीशचंद्र’ की अपार सफलता से उत्साहित दादा फाल्के ने मात्र तीन महीने में एक और फिल्म `मोहिनी भस्मासुर’ बना डाली। दिसंबर १९१३ में मुंबई के ओलम्पिया थिएटर में इस फिल्म का प्रदर्शन किया गया। यह भी लगभग एक घंटे की फिल्म थी। इस फिल्म ने कमला बाई गोखले के रूप में भारत को पहली महिला अभिनेत्री की सौगात दी। कमलाबाई मूलतः रंगमंच की अभिनेत्री थी। वे उन दिनों नाटकों में काम करती थी, जब महिलाओं को नाटक या फिल्म देखना भी अपराध मन जाता था। एक बार `राजा गोपीचंद’ नामक नाटक के मंचन के दौरान उनके पति रघुनाथ की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। तब कमलाबाई ने `शो मस्ट गो ऑन’ के सिद्धांत को ध्यान में रखकर अदम्य सहस का परिचय देते हुए पुरुष की पोषाख पहन कर अपने पति की भूमिका की। उस समय उनकी आयु मात्र २८ वर्ष थी। उनके पोते विक्रम गोखले आज के सफल अभिनेता हैं।
१९१७ में दादा साहब फालके ने `लंका दहन’ नामक फिल्म बनाई, जो भारत की पहली `ब्लॉक बस्टर सुपरहिट’ फिल्म थी। इस फिल्म को पूरे देश मेँ भारी सफलता मिली। अकेले मुंबई में पहले १० दिनों में इसने ३२ हज़ार रुपयों की कमाई की। जिस भी सिनेमाघर में यह फिल्म दिखाई जाती। उसके चारों तरफ बैलगाड़ियाँ खड़ी हो जातीं और टिकिट खिड़की पर होने वाली आय, जो की चिल्लरों में हुआ करती थीं, को बोरों में भर के बैलगाड़ियों पर लाद कर दादा के घर लाया जाता था।