आधी हकीकत आधा फ़साना - भाग 7 / राकेश मित्तल

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आधी हकीकत आधा फ़साना - भाग 7
प्रकाशन तिथि : जनवरी 2015


भारत की बोलती फिल्मों की प्रथम पीढ़ी के फिल्मकारों का जन्म सन 1890 से 1905 के बीच हुआ था। सन 1915 -25 के दौरान जब यह पीढ़ी जवान हुई तो उनमें अंग्रेजी दासता के प्रति क्रोध के साथ-साथ स्वीकार्यता का भाव भी था। वे स्वराज्य की कामना तो करते थे लेकिन कहीं न कहीं यह भी मानते थे कि भारत से अंग्रेज़ों का शासन शीघ्र समाप्त नहीं होगा। न्यू थिएटर्स के संस्थापक बीरेंद्रनाथ सरकार और बॉम्बे टाकिज़ के संस्थापक हिमांशु रॉय की पढ़ाई-लिखाई लन्दन में ही हुई थी।

सन 1940 से 50 के बीच जवान हुई पीढ़ी इससे बिलकुल भिन्न थी। पिछले दस वर्षों से वे यह जानते थे कि हिंदुस्तान आज़ाद होगा ही। अब सवाल यह है कि यहाँ का शासन किस प्रकार का हो? रुसी शासन पद्धति और वहां का योजनाबद्ध विकास उन्हें आकर्षित करता था। प्रगतिशील युवा मार्क्सवाद से प्रभावित हो रहा था। उस समय के अधिकांश गंभीर फ़िल्मकार वामपंथ की ओर मुड़ गए। चेतन आनंद, बलराज साहनी, ख्वाजा अहमद अब्बास, जिया सरहदी, सत्यजीत रॉय, ऋत्विक घटक, मृणाल सेन, कैफ़ी आज़मी, साहिर लुधियानवी आदि सभी अपने आपको वामपंथी कहलाना पसंद करते थे। उन दिनों बुद्धिजीवियों में `इप्टा’ का सदस्य होना प्रतिष्ठा की बात मानी जाती थी। उस दौर में अनेक ऐसी फ़िल्में बनी जो गरीबों से सहानुभूति रखती थी।

1950 के दशक में राजकपूर, देव आनंद, दिलीप कुमार, गुरुदत्त, राज खोसला, जैसे नौजवान अपनी जमीन तलाश रहे थे। उम्र के प्रथम पच्चीस वर्षों में ये सभी युवक यह तो मनवा चुके थे कि उनमें विशिष्ट प्रतिभा है। वे अपनी प्रतिभा को दिशा देना भी जानते थे। छब्बीस वर्ष की आयु में गुरुदत्त ने `बाज़ी’ का निर्देशन किया। पच्चीस वर्षीय राज खोसला उनके सहायक थे और सत्ताईस वर्षीय देव आनंद नायक। फिल्म सुपरहिट रही। पच्चीस वर्ष की उम्र में राजकपूर ने अपनी पहली फिल्म `आग’ का निर्देशन किया जो असफल रही किन्तु अगले ही वर्ष `बरसात’ बनाकर उन्होंने कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।

1950 से 1970 का समय भारतीय सिनेमा का स्वर्णयुग कहा जाता है। `आवारा’, `प्यासा’, `दो बीघा जमीन’, `मदर इंडिया’, `मुगले आज़म’, `गाइड’, `नवरंग’, `पाथेर पांचाली’, `चारुलता’, `मेघे ढाका तारा’, `स्वयंवरम’, जैसी अनेकों कालजयी फिल्मों का निर्माण इस दौर में हुआ। जहाँ अभिनय में दिलीप कुमार, देव आनंद, मधुबाला, नर्गिस, मीना कुमारी, नूतन, वहीदा रहमान, वैजयंती माला, बलराज साहनी, मोतीलाल, प्राण जैसे कलाकार सक्रिय थे तो निर्देशन में सत्यजीत रॉय, ऋत्विक घटक, मृणाल सेन, गुरुदत्त, विमल रॉय, राज कपूर, मेहबूब खान, वी. शांताराम जैसे निष्णात निर्देशक एक से बढ़कर एक फ़िल्में बना रहे थे।

गीत-संगीत में लता मंगेशकर, आशा भोंसले, गीता दत्त, मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार, मुकेश, मन्ना डे, हेमंत कुमार, नौशाद, शंकर जयकिशन, एस. डी. बर्मन, मजरूह सुल्तानपुरी, साहिर लुधियानवी जैसे लोगों ने सिनेमा को समृद्ध किया। हिंदी फिल्मों के श्रेष्ठतम गीत इसी दौर में रचे गए।