आधुनिक कहाणियां : संपादन रै नांव माथै फगत संचै / डॉ. नीरज दइया / कथेसर

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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: कथेसर  » अंक: अप्रैल-जून 2012  

राजस्थानी मांय जे कोई लेखक सिरजण साथै संपादन रो काम संभाळै तो उण रै जस रो कांई कैणो। सिरजण करणो अर दूजां रै सिरजण री अंवेर संपादक बण'र करणो दोय जुदा-जुदा काम है। संपादक री जिम्मेदारी अर जबाबदारी कीं बेसी मानीजै। राजस्थानी कहाणी पेटै रावत सारस्वत, प्रेमजी प्रेम, कल्याणसिंह शेखावत, श्याम महर्षि, भंवरलाल 'भ्रमर', सांवर दइया, नंद भारद्वाज, मधुकर गौड़, मालचंद तिवाड़ी आद रचनाकारां कहाणी संपादन रो काम करियो है। कोई लेखक जे किणी अकादमी का संस्था खातर संपादन रो काम करै तो समझ में आवै, पण जे कोई रचनाकार बिना किणी अकादमी अर संस्था रै खुद चाल'र संपादन रो काम संभाळै तद उण नै लखदाद तो देवणी ई चाइजै।

संपादन रो अरथाव फगत रचनावां नै भेळी करणी कोनी हुया करै। संपादक नै रचनावां रो चुनाव किणी दीठ नै चेतै राखता थका करणो हुया करै। किणी विधा रै संकलन मांय हरेक रचनाकार नै सामिल करणा संभव कोनी हुवै, पण संपादक री समझ अर दीठ इण सीगै ई परखीजै। किणी मेहतावू रचनाकार नै छोड़'र, जे उण सूं कम मेहतावू रचनाकार नै संकलन में सामिल करै तो सवाल ऊभा हुवै। किणी खास विधा मांय खास-खास रचनाकारां रो ध्यान राखणो घणो जरूरी हुया करै, इण सूं संकलन री साख बधै।

'राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां' संकलन मांय 35 कहाणीकारां री आधुनिक कहाणियां सामिल करीजी है। उण पछै ई केई घणा मेहतावूं अर संभावनावाळा कहाणीकार इण संचै मांय छूटग्या, जियां- लक्ष्मीकुमारी, अन्नाराम सुदामा, मूलचंद प्राणेश, बैजनाथ पंवार, करणीदान बारहठ, राम कुमार ओझा, बुलाकी शर्मा, मदन सैनी, मीठेश निर्मोही, कृष्ण कुमार कौशिक, प्रमोद कुमार शर्मा, निशांत, आनंद कौर व्यास, अरविंद आसिया, रतन जांगिड़, कन्हैयालाल भाटी, मदन गोपाल लढ़ा, सतीश छींपा आद। संकलन मांय सामिल केई कहाणीकार इसा सामिल है जिणा नै इण आधुनिक कहाणी जातरा मांय छोड़'र आं कहाणीकारां मांय सूं केई कहाणीकारां नै सामिल करीजणा हा।

श्याम जांगिड़ रो खुद री कहाणी लेवण रो मोह ई आपां अठै देख सकां।घणी जरूरी बात कै किणी पण संकलन मांय छेकड़ मांय सामिल कहाणीकारां री विगतवार जाणकारी परिचै रै तौर माथै दी जावणी जरूरी हुया करै, बां इण संचै मांय कोनी मिलै। साथै ई संकलन मांय भासा अर वर्तनीगत विविधता देख'र लखावै कै इण पेटै काम करीजणो हो। 'राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां' संचै मांय रचनाकारां नै जिण विगत मांय राख्या है उण मांय कोई दीठ समझ में कोनी आवै। जूना अर नुवां रो का किणी ढंग ढाळै री विगत सूं बिध बैठै बा अठै कोनी। यादवेंद्र शर्मा 'चंद्र' रो नांव पैलपोत राख'र विजयदान देथा नै दूसरै नंबर माथै राखणो अर उण पछै नरसिंघ राजपुरोहित अर सीधो नांव रामस्वरूप किसान रो विगत मांय घपचोळो दरसावै। इण विगत पेटै संपादक आपरी भूमिका मांय कोई खुलासो कोनी करै।

अबै सगळां सूं जरूरी बात माथै आवां- 'राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां' कहाणी-संकलन मांय 'आधुनिक' सबद रो अरथाव श्याम जांगिड़ री इण ओळ्यां सूं आपां जाण सकां- 'कहाणी रौ आधुनिक काल 1990 रै बाद रौ ई मान्यौ जावै। क्यूं कै 'सांवर दइया काल' री विगास जात्रा कहाणी नै आधुनिक संदर्भां सूं जोड़ी। 1990 अर इण रै आसै-पासै कैई-कैई रचनाकार सांमी आवै। खासकर बीकानेर अर गंगानगर संभाग में कथा लेखण री अेक लहर-सी चालै। विषय-वस्तु अर शिल्प री विविधता रै पाण कहाणी बीजी भारतीय भासावां सूं होड़ करती लखावै।' (पेज-15)

आं ओळ्यां रै उजास मांय कीं बातां रो खुलासो करां-

1. 'राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां' संकलन मांय कहाणियां बरस 1990 रै पछै री संचै करीजी हुवैला, क्यूं कै श्याम जांगिड़ मुजब कहाणी रो आधुनिक काल 1990 रै बाद रो ई मान्यो जावै।

2. 'सांवर दइया काल' री विकास जात्रा कहाणी नै आधुनिक संदर्भां सूं जोड़ी पण ओ काल बरस 1992 तांई ई मान्यो जाय सकै। सांवर दइया 30 जुलाई, 1992 नै सौ बरस लिया।

3. बरस 1990 अर इण रै आसै-पासै नै ई जे खुलासै रूप लिखां तो बरस 1990 सूं संकलन रै प्रकाशन बरस दिसम्बर, 2011 तांई (पण श्याम जांगिड़ रो बयान 'जागती जोत' रै अप्रैल-सितम्बर, 2011 अंक पेज-19 माथै छप्यो है- 'चौथो संकलन इण ओळियां रो लेखक पांच बरसां पैली 'राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां' नांव सूं संपादित कर्यौ।) इण रो अरथाव हुयो कै संकलनकत्र्ता ओ संचै बरस 2005 तांई पांडुलिपि रूप कर लियो हो। इण संचै मांय बरस 1990 सूं 2005 तांई री प्रकाशित-अप्रकाशित कहाणियां संकलित हुवणी चाइजै।4. आपां जे आ ओळी दूसर देखां कै- बरस 1990 रै आसै-पासै मांय बरस 1973-74 नै ई भेळै मान सकां हां कांई? जे इण सवाल रो जबाव 'हां' हुवै तो कान खूस'र हाथ मांय आय जावैला! पण माफ करजो इण सवाल रो जबाब 'हां' ईज है।

ओ संकलन दोय रचनाकारां विजयदान देथा 'बिज्जी' अर मोहन आलोक नै समरपित है। संकलन मांय सामिल आं री कहाणियां री बात करां- 'बिज्जी' री 'अलेखूं हिटलर' कहाणी सामिल है। आ कहाणी पैली बार डॉ. तेजसिंह जोधा रै संपादन में 'दीठ' पत्रिका में बरस 1974 मांय छपी अर 'अलेखूं हिटलर' (1984) संकलन में सामिल हुई। मोहन आलोक री कहाणी 'कुंभीपाक' डॉ. मेघराज रै संपादन में 'हेलो' पत्रिका में बरस 1973 मांय छपी। जे आं कहाणियां नै श्याम आधुनिक मानै तो आ ओळी अकारथ लखावै- 'कहाणी रौ आधुनिक काल 1990 रै बाद रौ ई मान्यौ जावै।'

श्याम जांगिड़ इण संकलन मांय केई कहाणियां तो जूना संपादित कथा संकलनां सूं ली है, जियां भंवरलाल 'भ्रमर' री कहाणी 'बातां' री बात करां। आ कहाणी 'भ्रमर' रै कहाणी संकलन 'तगादो' (1972) सूं सांवर दइया 'उकरास' में ली ही, अर जे इण कहाणी नै राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां मांय संपादक श्याम जांगिड़ सामिल करै तो आधुनिक कहाणी नै 1990 रै बाद नीं मान'र 'सांवर दइया काल' बरस 1970 सूं मान लेवणी चाइजै।

राजस्थानी आंदोलन रा लांठा पेरौकार राजेंद्र बारहठ मुजब राजस्थानी खातर च्यार 'सस्सा' घणा जरूरी है- सिरजण, सम्मेलन, संघर्ष अर संपादन। आं च्यार सस्सा में संकलन नै सामिल करणो चाइजै कांई? स्यात नीं। संकलन रो काम तो साव सरल हुवै, पण संपादन रो काम जिम्मेदारी अर जबाबदारी रो हुया करै। इण कहाणी-संकलन पेटै मोटो सवाल ओ है कै ओ संपादन है का फगत संकलन?

बकौल श्याम जांगिड़- 'गिणती रा साहित्यकार हुवणै सूं आपसदारी रै लिहाज रै चालतै आलोचक नैं कीं टेडी ओळी लिखणै सूं रोकतौ रैयौ। तद आलोचना साहित्य कठै सूं आवै? आज तो वा इज आलोचनां पणप रैयई है, कै म्हैं थारी बडाई करूं थूं म्हारी कर.... अहो रूपम! अहो गायन! अैड़ीथिती में- आचार्य रामचंद्र शुक्ल या रामविलास शर्मा पैदा हुवणां तो दूर, इंद्रनाथ मदान अर शुक्रदेव सिंह भी पैदा को हुवै नीं।' (बिणजारो-2011; पेज-240)

हिंदी साहित्य मांय कीरत कमावणियां रामचंद्र शुक्ल, रामविलास शर्मा, इंद्रनाथ मदान अर शुक्रदेव सिंह नै दूसर राजस्थानी मांय पैदा हुवण री आसा आपां क्यूं पाळा? पण तो ई आ उम्मीद करां कै आलोचना पेटै गंभीर श्याम जांगिड़ खरी-खरी बात कैवैला।

पोथी री भूमिका रै 'उपसंहार' री ओळ्यां है- 'राजस्थानी कहाणी री आजलग कोई सुतंतर पत्रिका नीं हुवता थकां भी आधुनिक कहाणी रौ जिकौ सरूप आपां रै सांमी है, वौ गीरबैजोग कैयौ जा सकै।' पण आपां जाणां कै कथाकार भंवरलाल 'भ्रमर' 'मनवार' अर 'मरवण' नांव सूं कहाणी री सुतंतर दोय पत्रिकावां निकाळी, अर 'मरवण' रा तो केई अंक निकळ्या। 'मरवण' रै पैलै अर दूजै अंक री कहाणियां सूं बण्यै संपादित संकलन 'पगडांडी' री घणी सरावणा ई हुई।

इण ओळी सूं आगै श्याम जांगिड़ लिखै- 'आज री राजस्थानी कहाणी किणी भी भारतीय भासावां री कथावां सूं उगणीस नंई है।' पण दूजै पासी खुद जांगिड़ रो राजस्थानी आलोचना मांय जिको समालोचना भाव रैयो है, उण नै भांडता पूरी आलोचना-परंपरा नै खारिज करता लिखै- 'राजस्थानी भासा में सदीव सूं अेक आपसरी री सहानुभूति अर लिहाजू वातावरण रैयौड़ो है। थे तो लिख-दो सौं की चलसी। न वर्तनी रो झंझट, न विषय री कोई टोक। जद ही अमूमन बोदा अर पड़तल विषयां री कहाण्यां सांमी आवै।' ('राजस्थानी री आधुनिक कहाणी - भाषा शिल्प अर गद्य' जागती जोत, अप्रैल-सितम्बर, 2011 पेज- 23)

भारतीय भासावां मांय जठै मुलकां बायरो लेखन होय रैयो है तौ दूजै पासी प्रयोग अर विमर्श रै इण दौर मांय राजस्थानी कहाणी मांय गिणती रा कहाणीकार है, जिकां रै सिरजण सूं कहाणी भारतीय परिवेस मांय ऊभी है। फगत संपादक बण'र राजस्थानी कहाणी माथै ग्यान देवण री कोसिस में अमूमन बोदा अर पड़तल विषयां री कहाण्यां मांय सूं कीं ढंग री कहाणियां श्याम जांगिड़ भेळी करण री मेहबानी करी है। संकलन मांय संपादक लिख्यो है- 'राजस्थानी कहाणी विधा नै चुकता रूप सूं लोककथा सूं मुगत करणै रौ श्रेय सांवर दइया नै ई जावै। अत: 1970 सूं 1990 रौ काल राजस्थानी कहाणी रौ 'सांवर दइया काल' मानीजै। सांवर दइया रौ ओ काल फगत कहाणी रै लेखै ई नीं, समचौ राजस्थानी साहित्य तांई भी सुनेरौकाल कैयौ जा सकै।' (पेज-14) पण सवाल ओ है कै कांई इण 'सुनेरौकाल' पछै आधुनिक काल आयो?

कांई कारण रैया हुवैला कै संपादक श्याम जांगिड़ किणी हिंदी कथा-संकलन री खोड़ खुड़ावता आधुनिक कहाणियां री इण पोथी मांय 'पाथर जुग' सूं भूमिका चालू करण री खेचळ करी। स्यात परंपरा रो पुरसारो करण री मंछा रैयी हुवैला, पण 'आधुनिक कहाणी: परंपरा विकास' (अर्जुनदेव चारण) पोथी री कठैई अेक ओळी कोनी बरती।

बकौल श्याम जांगिड़- 'जदि कोई आलोचनां माथै काम करणौ भी चावै, तो किताबां हाथ लागणी अबखी हुवै। राजस्थानी री किताबां ले-दे नै तीन सौ कॉपी छपै। जकी दोय-च्यार साल बाद खुद साहितकार कनै भी ल्हादै नीं ल्हादै। कैयो नी जा सकैं सो, किताबां री नदारदगी सही मूल्यांकन नै प्रभावित करै। आप कनै जदि पोथी नीं है तो आप पोथ्यां रा नांव भलांई गिणवा दो, रचना रै 'काटेंट' माथै तो कीं लिख कोनी सकौ?' (बिणजारो-2011; पेज-240)

आं ओळ्यां रै सांच हुवण री साख भरतो म्हैं घणै सम्मान साथै लिखणो चावूं कै किणी डॉक्टर थोड़ी कैयो है कै आप आलोचना माथै काम कर'र माथो खराब करो। जदि (हिंदी रै यदि सबद सूं श्याम जांगिड़ सबद लिखै जदि, जद कै राजस्थानी मांय यदि खातर 'जे' सबद रूप बरतीजै।) श्याम जांगिड़ नै जाण लेवणो चाइजै कै कोई आलोचनां माथै नीं, कोई आलोचना पेटै काम करणो चावै तो केई अबखा काम पार घालणा पड़ै।

इण संचै री भूमिका बांच'र आ बात सरतिया तौर माथै कैयी जाय सकै कै किताबां री नदारदगी सूं सही मूल्यांकन प्रभावित हुयो है। उम्मीद करूं कै संकलनकत्र्ता जिण उमाव मांय 'सांवर दइया काल' री थरपणा करै, तो कम सूं कम सांवर दइया रै सगळै कहाणी संग्रै री खोज-खबर करसी अर वां नै बांचण रा जतन करैला।

जिण रचनाकारां नै पोथी समरपित करी है वां मांय अेक बिज्जी है, जिण बाबत श्याम जांगिड़ रो बयान 'जागती जोत' मांय है- 'विजयदान देथा रै अतूट लोक-कथा लेखन रै बाद जद वां रो आधुनिक कथा रो संग्रह 'अलेखूं हिटलर' आयौ तद कथा-जगत मांय एक अचूंभै भरियै वातावरण बणियो।.. सायत अै बी लोक कथा ई हुली- दूजा लिखारा सोची। पण 'अलेखूं हिटलर' सारौ भरम तोड़ नाख्यौ।' इण पेटै म्हारो कैवणो है कै जांगिड़ खुद पोथी 'अलेखूं हिटलर' (राजकमल प्रकाशन सूं छपी) आंख्यां मांय कर काढ'र पैली खुद ई खुद रो भरम भांगण रो जतन करैला। पोथी बांच'र श्याम जाणैला कै आं मांय केई कथावां नै छोड़'र बाकी री लोककथावां ई हुली नीं, साच मांय लोककथावां ही है।

श्याम जांगिड़ मुजब- 'आलोचक रा खुद रा मानदंड पैली सूं तय हुवणा जरूरी है।' (बिणजारो-2011; पेज-241) सवाल है कै कांई आलोचक नै आगूंच सींव मांय बंध जावणो चाइजै? का किणी पुरस्कार मान-सम्मान री लालसा राखणी चाइजै? कांई कारण रैया कै कहाणी रै घेर-घुमेर दीठाव नै जांगिड़ सावळ देख-परख नीं सक्या। आलोचना मांय किणी विधा-परंपरा रो पूरी जाणकारी नीं हुयां चूक हुया करै। दाखलै रूप बात करां तो श्याम जांगिड़ री इण ओळ्यां नै देखां- 'नोहर रै पासै एक गांव है परलीका, वठै अेकै साथै आठ ठावा कहाणीकार है, जिका लगोलग इण विधा माथै काम कर रैया है। रामस्वरूप किसान रो ओ गांव- कहाणीकारां रो गांव गिणीजै।' (जागती जोत, अंक- अप्रैल-सितम्बर, 2011; पेज-16) इण संकलन में परलीका रा आठूं ठावा कहाणीकारां नै सामिल कोनी करीज्या। परलीका मांय कहाणी-साहित्य री आ चेतना कहाणीकार सत्यनारायण सोनी री चेतन करियोड़ी है।

छेकड़ मांय पूरै मान-सम्मान साथै श्याम जांगिड़ नै वां री खुद री ओळ्यां चेतै करावणी चावूं जिकी वां मधुकर गौड़ खातर मांडी है- 'हिंदी सूं राजस्थानी माथै किरपा करण नै आयौड़ा गौड़ सा'ब दे-दनादन पोथी छपवा रैया है। कथा री समझ भलांई मत हुवौ पण अै दो पोथी संपादित कर नाखी। फेरूं बी अै 'सोळा जोड़ी आंख' संकलन छपवा'र अेक नवो अर पैलौ काम कर्यौ है। इण संकलन में अै राजस्थानी री सोळा महिला लेखिकावां नै पैली बार सामल कीनी है। इण कारज रै खातर धन्यवाद रा पातर है।' (जागती जोत, अंक- अप्रैल-सितम्बर, 2011; पेज-20)

धन्यवाद रा 'पातर' तो श्याम जांगिड़ खुद है। जिकां रो मानणो है कै राजस्थानी भासा में सदीव सूं अेक आपसरी री सहानुभूति अर लिहाजू वातावरण रैयोड़ो है, पण अठै आप श्याम जांगिड़ खुद ई इण वातावरण रै रंग रंगीजग्या। वां मधुकर गौड़ नै धन्यवाद रा 'पातर' समझ'र आपरी समझ दरसा दीवी। (बांचणियां, माफ करजो श्याम नै ठाह कोनी कै राजस्थानी मांय वेश्या खातर पातर सबद बरतीजै।) संपादक री भूमिका भलांई साव अकारथ हुवै, पण ओ संचै पचास रिपिया मांय घणो-घणो रंगधारी है। बोधि प्रकाशन नै घणा-घणा रंग कै कम कीमत अर सांतरै गेट-अप मांय बै लगोलग राजस्थानी री पोथ्यां प्रकाशित कर रैया है।