आनंद राय और हिमांशु शर्मा को धन्यवाद / जयप्रकाश चौकसे

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आनंद राय और हिमांशु शर्मा को धन्यवाद
प्रकाशन तिथि :23 मई 2015


रोहिणी नक्षत्र लगने के पहले ही गर्मी बढ़ जाती है, महंगाई के कारण पेट में भी ज्वाला दहक रही है। 'बॉम्बे वेलवेट' के कारण सिनेमाघरों और फिल्म उद्योग में भयावह मायूसी छाई है। इन विपरीत परिस्थितियों में फिल्मकार आनंद राय, लेखक हिमांशु शर्मा की 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' दर्शक के तन और मन पर शीतल गुलाब जल की तरह पड़ती है और सिनेमाघरों में गूंजते ठहाके सारी विपरीत परिस्थितियों को ठेंगा दिखाते हैं और कमोबेश यह संदेश देते हैं कि देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है

इतना आनंद देने के लिए आनंद राय और उनकी टीम को पूरा देश धन्यवाद कह रहा है। इस टीम की यह तीसरी लगातार सफलता है। उनका सिनेमाई देशी ठाठ और मुहावरे से यह उम्मीद भी बनती है कि तकनीकी गुणवत्ता से सजी-धजी चौंकाने वाली हॉलीवुड की एक्शन फिल्मों से हमारा सिनेमा अपनी नितांत देशज शैली से निपट सकता है। प्राय: किसी सफल फिल्म का भाग दो बनाना कठिन होता है, परन्तु आनंद राय ने भाग दो को भाग एक से अधिक रोचक बनाया है और यह दूल्हा तथा दुल्हन कतई 'सैकंड हैंड' नहीं लगते। सारे पात्र खूब मंजकर बेहतर रोशन होते हैं। फिल्म का प्रारंभ शादी के दृश्य से होता है और पार्श्व में 'सुन साहिबा सुन प्यार की धुन, मैंने तुझे चुन लिया, तू भी मुझे चुन' मात्र भाग एक से दूसरे के जुड़ने के लिए रखा गया है। परन्तु दूसरा दृश्य लंदन के मैरिज काउंसिलिंग का है, जो संभवत: इस दशक का सबसे अधिक हास्यरस में डूबा हुआ दृश्य है और एक तरह से यह दर्शकों को आने वाली घटनाओं के लिए तैयार कर रहा है और भाग एक के अंत के बाद विवाह क्यों टूट रहा है, उसका भी मजेदार विवरण देता है। यह भी गौरतलब है कि फिल्म के अंतिम भाग में पांचवें दशक की एक फिल्म का गाना बहुत सटीक जगह इस्तेमाल किया गया है। वह गीत है जा जा बेवफा, कैसी प्रीत कैसा प्यार रे, तू न किसी ता मीत रे, झूठी तेरी प्यार की कसम

आनंद राय प्रारंभ में सन 85 में प्रदर्शित फिल्म के गीत का इस्तेमाल करते हैं, जो प्रेम की विजय का गीत है, तो आखिरी हिस्से में पांचवें दशक की फिल्म का गीत इस्तेमाल करते हैं, जो प्रेम पर सवाल उठा रहा है। आनंद राय अपनी फिल्म का पूरा ढांचा ही भावना की मजबूती से खड़ा करते हैं और वे ये भी जानते हैं कि ईंटों के बीच की जुड़ाई कितनी महत्वपूर्ण है और अगर इसमें कसर रह जाए तो ढांचा गिरने लगता है और इस आशय का संवाद भी रखते हैं कि रिश्तों की ईंट किस तरह जोड़ी जाती है। लेखक हिमांशु शर्मा और आनंद राय का रिश्ता भी कुछ इसी तरह की जुड़ाई का प्रमाण है।

भाग एक में तनु का चरित्रचित्रण और कंगना रनोट का अभिनय प्रभावोत्पादक रहा और इस फिल्म में उनकी दोहरी भूमिकाएं हैं। कंगना ने तनु को उसके क्षण-क्षण बदलते मूड को और अधिक प्रखर रूप में भाग दो में प्रस्तुत किया है। हरियाणवी खिलंदड़ लड़की का पात्र नया है और इसे अभिनीत करने में कंगना ने भी अपने को अंदर-बाहर दोनों स्वरूप में ऐसा बदला है कि यकीन करना मुश्किल होता है कि क्या एक ही अभिनेत्री इस कदर दोहरी भूमिकाओं में रम सकती है।

सन् 1963 में प्रदर्शित 'राम और श्याम' में अभिनय सम्राट दिलीप कुमार ने जो कमाल किया था, वह इतने दशकों बाद इस फिल्म में देखने को मिला है। कंगना अपार प्रतिभाशाली हैं और सच तो यह है कि सभी फिल्मकारों व लेखकों के लिए वह एक चुनौती हैं कि क्या अजब-गजब आप मेरे लिए लिख सकते हैं। आर. महादेवन का ही दम है कि वह कंगना की आंधी में उड़ नहीं जाता। राज शेखर के सारे गीत मुझे बरबस शैलेंद्र की याद दिलाते हैं। एक बानगी "दिल इश्क से बिंधा है, एक जिद्दी परिन्दा है, उम्मीदों से है घायल, उम्मीद पे जिंदा है।" आनंद राय की टीम से दर्शक बहुत उम्मीद कर सकते हैं।