आपके सपने भी बदल गए क्या? / देव प्रकाश चौधरी
जिंदगी बदल गई। मौत बदल गई। परिचित आवाजों और परिचित चेहरों के लिए तरसता मन बदल गया। कोरोना की वज़ह से घर में रहने का नशा और उल्लास ज़्यादा दिनों तक टिक नहीं पाया तो हम सबकी नींद बदल गई और अब एक रिपोर्ट कहती है कि हमारे सपने भी बदल गए हैं। दुनिया भर में लोग, अपने अनुभव पर अविश्वास की इस घड़ी में बुरे और डरावने सपने ज़्यादा देख रहे हैं।
सोम दत्त शर्मा ने तीन दिन पहले भी घर में बताया था, पर किसी ने यक़ीन नहीं किया और आज रात फिर...धू-धू कर जल रहा है उनका घर। घर के सभी लोग गायब। वह अकेले एक कोने में डर से सुबकते हुए... फिर अचानक एक काले सांढ़ का प्रवेश... सांढ़ ने उठाकर उनको ज़ोर से पटक दिया और नींद खुल गई। उन्हें कुछ वक़्त लगा यह समझने में कि उन्होंने जो देखा, वह सपना था। बुरा सपना और फिर एक ही सपना आख़िर दो बार क्यों?
दिल्ली के एक मध्यमवर्गीय मुहल्ले की संकरी-सी एक गली में उनका मकान है। अँधेरा उतरता है तो मकान जैसे नीचे धंसने लगता है। रात में डूबते जहाज़ की तरह वह धंसता जाता है...फिर भी बुरे सपने उन्होंने पहले कभी नहीं देखे। कोरोना की वज़ह से पिछले दो महीने से ज़्यादा समय से वह घर में हैं। घर में रहने का नशा और उल्लास एक सप्ताह में ख़त्म हो गया। इसके बाद उनकी ख़ुद की नींद गई और उन्होंने हर वक़्त अपने घर को 'ऊंघता और थका' हुआ पाया। तो क्या नींद ही वह वज़ह है, जिसके चलते उन्हें बुरे सपने आ रहे हैं। मनोवैज्ञानिक और मानवीय सपनों को पढ़ने वाले कहते हैं, ऐसा हो सकता हैं।
हालांकि एक छोटी-सी सरकारी नौकरी करने वाले सोम दत्त शर्मा अकेले नहीं हैं, जिनको बुरे सपने आते हैं। दुनिया भर में लोगों के साथ ऐसा हो रहा है। कोरोना के इस कोहराम के बाद लोग रात में बुरे सपने ज़्यादा देख रहे हैं और नींद खुलने पर उन्हें एक उदास और खोखली सुबह हाथ लगती है। ब्रिटेन की मनोवैज्ञानिक और 'द ड्रीम डिक्शनरी ऑफ ए टू जेड' की लेखिका थेरेसा चेउंग ने अपने एक रिसर्च पेपर में लिखा है कि 'लॉकडाउन ड्रीम्स' हमें एक विचलित संसार की ओर लेकर जा रहे हैं-" हममें से दो-तिहाई लोगों को 'असामान्य रूप से वीभत्स' सपने आ रहे हैं। कोरोना के खतरे के बाद उपजे लॉकडाउन के हालात में या तो हमारी नींद में व्यवधान हो रहा है या हम उदास अवस्था में ज़्यादा नींद ले रहे हैं। नींद में व्यवधान और लंबी नींद दोनों ही अधिक रेम (रैपिड आई मूवमेंट) स्लीप की संभावना को बढ़ाते हैं और यह वह अवस्था है, जहाँ सबसे अधिक स्वप्न देखे जाते हैं।
मनोवैज्ञानिकों की राय में सोमदत्त शर्मा के बुरे सपनों की वज़ह अत्यधिक चिंता और कम नींद हो सकती है। सोम दत्त शर्मा की तरह ही गाजियाबाद के काग़ज़ व्यवसायी मनु नागर को एक सपना बार-बार परेशान कर रहा है। सपने में वह ख़ुद को कुछ कुत्तों से घिरा पाते हैं, जो उन पर हमला करना चाहते हैं। लॉकडाउन से पहले उन्हें ऐसे सपने आए हों कभी, उन्हें याद नहीं। चंडीगढ़ की एक स्कूल शिक्षिका सपने में एक डरावना-भुतहा खंडहर देखती हैं। हालांकि ज़िन्दगी में खंडहर का भी बहुत महत्त्व है। जब हमें वर्तमान का बोझ असह्य हो जाता है और मन अतीत की ओर लौटना चाहता है तो हमें अपने शहर के खंडहर भी याद आते हैं। यह इतिहास बोध हमारी ज़रूरत है। यह अलग बात है कि जब शहर नहीं बने थे तो खंडहर भी नहीं थे। वह एक अलग युग था। हमारी स्मृति इतिहास नहीं बनी थी। आदिम युग की कल्पना करें, तब आदमी अपना अतीत और अपना वर्तमान साथ लेकर चलता था। उसे भविष्य की ज़रूरत नहीं थी। लेकिन आज ऐसा नहीं है। हम एक ऐसे वक़्त में जी रहे हैं, जहाँ हमें अतीत की भी ज़रूरत है और भविष्य की भी...और भविष्य चाहिए तो सपने देखने होंगे। लेकिन सपनों में खंडहर, कुत्ते और सांढ़ ...!
क्या इन सपनों के कोई अर्थ भी हैं। बात होती है, बीएचयू में ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर विनय कुमार पांडेय से। मानवीय सपनों के अध्येता रहे प्रोफेसर पांडेय कहते हैं-"हर किसी के सपनों का अलग-अलग संसार है। स्वाभाविक समय में जो सपने देखते हैं, उनके अर्थ निकाले जा सकते हैं। व्याख्या हो सकती है। यह कोरोना काल है। सब डरे हुए हैं। सब तनाव में हैं। ऐसे में ये बुरे सपने तनाव और डर का नतीजा हैं। इस बुरे दौर के ये बुरे सपने निरर्थक हैं।"
प्रोफेसर पांडेय की बातों का मर्म हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में हुए एक-एक शोध से समझा जा सकता है। कुछ दिन पहले मेडिकल स्कूल में मनोवैज्ञानिक डिडरे लेह बैरेट ने हाल ही में भारी मात्रा में देखे गए सपनों का एक सर्वेक्षण किया है। उस सर्वेक्षण से पता चलता है कि कोरोना वायरस फैलने के बाद दुनिया भर में लोगों ने भारी संख्या में बुरे सपने देखे हैं। इससे पहले इसी स्कूल में 9 / 11 घटना के बाद सपनों को लेकर एक शोध हुआ था। तब अमेरिका के लोगों ने बहुत ज़्यादा संख्या में बुरे सपने देखे। मनोवैज्ञानिक बैरेट के शोध भी बताते हैं कि बुरे सपने अत्यधिक चिंता के नतीजे हो सकते हैं।
"हाँ...काम-काज ठप होने की वज़ह से पिछले दो महीने से बहुत चिंता में हूँ," व्यवसायी नागर को लगता है कि रात के बुरे सपने दिन को बेकार कर देते हैं, "हम एक मनहूस दिन के बारे में सोच-सोच कर दुखी होते रहते हैं।"
रात की नींद में देखे गए सपने की व्याख्या का लंबा इतिहास रहा है। स्वप्न व्याख्या के सर्वाधिक पुराने लिखित उदाहरणों में से एक बेबीलोनिया के महाकाव्य 'एपिक ऑफ गिलगमेश' से मिलता है। गिलगमेश ने सपना देखा कि एक कुल्हाड़ा आसमान से गिरा था। लोग प्रशंसा और पूजा में उसके चारों ओर एकत्र हो गए थे। गिलगमेश ने अपनी माँ के सामने कुल्हाड़ा फेंक दिया और फिर उसे गले से लगा लिया। उसकी माँ निनसुन ने सपने की व्याख्या की थी-"लगता है, शीघ्र ही कोई शक्तिशाली व्यक्ति प्रकट होगा। गिलगमेश उसके साथ संघर्ष करेगा और उसे पराजित करने की कोशिश करेगा, लेकिन वह सफल नहीं होगा। अंततः वे दोनों जिगरी दोस्त बन जाएंगे और कोई बड़ा काम करेंगे। चूंकि सपने में तुमने मुझे गले लगाया था, इसका मतलब यह है कि वह तुम्हें कभी नहीं छोड़ेगा।"
सपनों के मनोविज्ञान पर शोध करने वाले मानते हैं कि एक आम इंसान, खासकर एक भारतीय मन सपनों में भी चमत्कार की उम्मीद करता है। ट्रजेडी हमारे स्वभाव में नहीं है। यह भी सच है कि इस कोरोना काल में लोग अपने सपनों पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। सोशल साइट्स पर अपने ऊल-जुलूल सपनों को याद करते हुए पोस्ट लिखनेवालों की संख्या भी बढ़ी है। हालांकि, इस तरह की घटनाएँ हमारे सपनों को कैसे और क्यों प्रभावित करती हैं, यह बताना मुश्किल है। विषय में ढेर सारे लोगों की दिलचस्पी होने के बावजूद, सपने देखने को अभी भी विज्ञान पूरी तरह से परिभाषित नहीं कर पाया है। पहली बार मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने बताया था कि किसी भी अन्य मानसिक प्रक्रिया की तरह, स्वप्न प्रक्रियाओं का अपना मानसिक इतिहास है और अजीबोगरीब विशेषताओं के बावजूद, मानसिक जीवन के अनुक्रमों में उनका वैध और व्यापक स्थान है। मनोवैज्ञानिक चार्ल्स युंग ने स्वप्न के विषय में कुछ बातें फ्रायड से अलग कही हैं। उनके कथनानुसार स्वप्न के प्रतीक सभी समय एक ही अर्थ नहीं रखते। स्वप्नों के वास्तविक अर्थ जानने के लिए स्वप्नद्रष्टा के व्यक्तित्व को जानना, उसकी विशेष समस्याओं को समझना और उस समय देश, काल और परिस्थितियों को ध्यान में रखना नितांत आवश्यक है। एक ही स्वप्न भिन्न-भिन्न स्वप्नद्रष्टा के लिए भिन्न-भिन्न अर्थ रखता है और एक ही द्रष्टा के लिए भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भी उसके भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं। वृहदारण्यक उपनिषद में भी कहा गया है कि स्वप्नावस्था में जीव लोक-परलोक दोनों देखता है और दुख, सुख दोनों का अनुभव करता है। स्वप्न अवस्था में जीव देश-विदेश, नदी, तालाब, सागर, पर्वत मैदान वृक्ष, मल, मूत्र, स्त्री, पुरुष, क्रोध, भय आदि नाना प्रकार के संसार की रचना कर लेता है। यह एक प्रकार से जीव द्वारा स्वप्न में एक सृष्टि यानी रचना होती है। स्वप्न के रहस्य ज़रूर उलझे हुए हैं, लेकिन रात के सपने सुखद हों तो सुबह हमारे चेहरे पर चमक और ताज़गी लौट आती है। लेकिन अगर डरावने हों तो दिन तो बिगड़ ही जाता है। हालांकि दिन में जो घटता है, रात में सपने भी तो अक्सर उसी के आते हैं। मनुष्य के इतिहास में शायद ही कोई ऐसा विकसित दौर हुआ हो, जिसमें किसी बीमारी ने ऐसी वैश्विक केंद्रीयता पाई हो। रोजमर्रा की ज़िन्दगी हो, धर्म हो, विज्ञान हो या राजनीति हो, ऐसा कुछ न बचा, जिस पर कोरोना ने गहरा प्रभाव न डाला हो। ज़िन्दगी डर-सी गई है। हालात और सपने फिलहाल ज़रूर डरा रहे हैं। लेकिन हम मनुष्य हैं और हमारी चाह वहाँ तक जाती है, जहाँ हर किसी के लिए मृत्यु खड़ी है। हमेशा एक नई शुरुआत के लिए नए सिरे से गुमनामी की ज़रूरत होती है। फिर हमारी ज़िन्दगी बदलेगी। सपने भी बदलेंगे। हमारे आपके सपने एक-दूसरे का सहारा बनेंगे और फिर आप दुष्यंत कुमार की तरह कह पाएंगे-"मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे।"