आपनोॅ-आपनोॅ दुःख / धनन्जय मिश्र
हिमालय रोॅ एकटा छोटोॅ सें तराई में एक टा नामी महात्मा जी आबी केॅ एकान्त जग्घा पर ध्यान साधना करै लागलै। मतरकि हुनी छिपैलॅ नै पारलै आरोॅ हुनका बारे में श्रद्धालु जानी ही गेलै। हेकरोॅ नतीजा ई होलै कि आपनोॅ-आपनोॅ दुःखो रोॅ निवारण लेली कत्ते नी श्रद्धालु हुनको पास आवी केॅ बोललै-"महात्मा जी आपने कृपा करी केॅ हमरा सिनि केॅ दुःखो रोॅ निवारण लेली है रंग रस्ता दिखलावोॅ जेकरा सें हमरा सिनि रोॅ सब दुःख भागी जाय।"
है बात सुनी केॅ महात्मा जी सभ्भे श्रद्धालु सें बोललै-" ठीक्के छै, तोहेॅ सभ्भे शान्ति बनाय केॅ एक-एक करी केॅ आपनोॅ-आपनोॅ दुःखोॅ केॅ सुनाबोॅ। मतरकि दुःखो रोॅ जगह हल्ला-गुल्ला बढ़ै लागलै। महात्मा जी परेशान होय लागलै। फेरू हुनिए हेकरोॅ निदान भी है कहीं के करलकै कि तोरा सिनि आपनोॅ दुःख रूपी समस्या केॅ एकटा कागज रोॅ पूर्जा पर लिखी केॅ है खाली पात्र में डाली दौ। वैसनै होलै।
कुछछु देरी रोॅ बाद आवोॅ महात्मा जी ने हौ सभ्भे पुरजा केॅ आपस में मिलाय केॅ सभ्भे श्रद्धालु सें बोललै-तोरोॅ पूर्जा रोॅ लिखलोॅ सब समस्या कोॅ हम्में देखी लेलीयै। आबे तोहे सभ्भे एक-एक करी केॅ है पात्र सें एक मात्र पूर्जा केॅ खोली केॅ दुःख रूपी समस्या केॅ पढ़ो। अगर तोरोॅ आपनोॅ समस्या सें हौ समस्या कम लागौ तॉ हौ पूर्जा कॉ आपनोॅ पास राखी लॉ, आरू जौ बेसी लागौ तॉ हौ पूर्जा कॉ दोसरोॅ खाली पात्र में वापस करी दौ। सभ्भै नेॅ वहाँ रंग करलकै।
कुछछु देरी रोॅ बाद महात्मा जी ने देखलकै कि समस्या सें भरलोॅ हौ पात्र खाली छेलै आरू वाँही दोसरोॅ तरफ दोसरोॅ खाली पात्र लबालब भरलोॅ रहै आरू सभ्भे श्रद्धालु वहाँ सें जाय चुकलोॅ रहै। मतलब समस्या रोॅ समाधान होय गेलोॅ छेलै।