आप तो ऐसे न थे / सुशील यादव
‘आप’ तो ऐसे न थे ........!
‘आप’..... में कितनी खूबियाँ थी क्या कहें?
सुबह –सुबह उठ के ‘झाड़ू’ लगा लेते थे| गाय को चारा-भूसा हमारे उठने के पहले खिला देते थे| आपको झूठ बर्दाश्त नहीं होता था| झूठ के खिलाप आपका सत्याग्रह दो समोसों के साथ टूटते हर पडौसी ने देखा है|
वो हमारी प्यार भारी नोक-झोक वाले दिन न जाने कहाँ गए?
मुझे अच्छी तरह से याद है , जब हम पहली बार मिले थे तो आपने क्या –क्या वायदे किये थे| रामलीला देखने के बहाने हम मिल लिया करते थे|
आपने कहा था हमारी जिन्दगी में महंगाई कोई अहमियत नहीं रखेगी| हम हर जुर्म से लोहा लेगे| आज आपको कबाड़ इकट्ठा करते देख दुःख होता है|
आप-ने वचन दिया था, चाहे कुछ भी हो जाए ‘खडूस’ पडौसियों से संबंध नहीं रखेगे| पतली दाल खा लेगे मगर तंदूर की मुर्गी को ताकेंगे नहीं?कोई दिखावा , कोई नुमाइश नहीं होगी| जैसे सब रहते हैं वैसे जियेंगे , क्यां कि ‘सब के साथ’ जीने का मजा ही अलग है?कहाँ गए आप-के वादे?
माना कि आपके ‘सपने’ विराट थे , मगर ‘विराट कोहली’ भी बेचारा कई बार जीरो में आउट हो जाता है| हर बाल में ‘हिट’ करने वाला शर्तिया ये नहीं कह सकता कि उसकी सेंचुरी मुक्कम्मल होगी| धुरंधर बालर-फिल्डर से गेम निकाल ले जाना कभी-कभी किस्मत का खेल होता है, ये आप मानने से कतराते क्यों हैं?
आमीन ....