आप भी सीसीडी में चले जाइएगा / विनीत कुमार
चायवाले ने उनसे बिना पूछे ही कांच के गिलास में दो चाय बढ़ा दिए थे।
"अरे नहीं माधो, रागिनी अब अफसर बन गयी है, आज सीसीडी में कॉफी पिलाएगी कॉफी। तू आज रहने दे।"
माधो को 12 रुपये की बिक्री की चिंता नहीं थी, हुलसकर कहा "अच्छा माने इहौ अफसर बिटिया। वाह भइया, हमरा चाय पीके मैडमजी अफसर बन गई है, इससे खुश की बात औ क्या हो सकता है। अच्छा तो है, एक-एक करके सब हमरी चाय पीके धीरे-धीरे सीसीडी में घुस जाते हैं। औ तुमरा क्या हुआ भइया, तुम कब घुसोगो सीसीडी में?"
रागिनी के यूपीएससी क्वालिफाई होने की खुशी के बीच माधो का ये सवाल इतनी तेजी से घुलकर उदासी में तब्दील हो जाएगी, रघु इसके लिए तैयार न था। रागिनी माहौल को हल्का करना चाहती थी।
"अरे माधो भइया, आज तुम भी चलो न हमारे साथ सीसीडी।"
"हम..धत्त मैडम। हम आपदोनों के बीच जाकर क्या करेंगे, उहां आप जाइए, आराम से सोफा में धसिए औ रघु भइया से पूछ-पूछके शक्कर डालिए औ काफी बनाइए"
"तो तुम यहां क्या करते थे हमारे बीच?"
"हियां? हियां चाय ढारते थे औ रघु भइया और आपकी आंखों के बीच की आवाजाही देखते थे। पवन चक्की जैसी फुक्क-फुक्क आती-जाती नजरें, सैइकिल जैसी टकरातें नजरे देखते थे और भीतरे-भीतर आशीष देते थे कि दुनहुं का एके साथ कुछ हो जाए।"
"ओह माधो भइया, कमऑन। अब तुम भी कविया गए।"
"काहे, पिछला चार महीना से रेनु, निराला, शमशेर का खिस्सा-चर्चा करके हमरा भेजा निचोड़ती थी दुनहुं मिलके त उस समय नहीं समझ आता था कि माधो भइया को कुछ बुझाता है भी कि नहीं।"
"हम तुमको बहुत मिस्स करेंगे माधो भइया। चलोगे हमारे साथ जहां पोस्टिंग होगी?"
"हमको छोडिए रघु भइया को लेले जाइए। उ आपके बिना तैयारी करेंगे। हहरके मर जाएंगे इ मुकर्जीनगर के जंगला में।"
"क्यों रघु, तुम क्यों चुप्प हो?"
"कुछ नहीं रागिनी, सोच रहा था तुमने आज पहली बार मुझसे गिफ्ट मांगी है, क्या दूं?"
"अच्छा, तुम... तुम मुझे माधो भइया की इस दूकान का एक टुकड़ा दे दोगे, सरकारी क्वार्टर की ड्राइंगरुम में बहुत खूबसूरत लगेगी। है न। हमारे रोज मिलने की जमीन, सपने बुनने की जमीन और माधो भइया को पकाने की जमीन।"