आफळ / मदन गोपाल लढ़ा

Gadya Kosh से
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आ कांई आफत हुई है! समझ सूं बारै हुग्यो सौदो। अबै इलाज करां ई तो कांई? सोवूं चावै जागूं। घरै होवूं चावै दफ्तर। रात-दिन म्हारो कहाणीकार अेक कहाणी सारू ताफड़ा तोड़ै। कहाणी ई अैड़ी, जैड़ी पैलां लिखीजी नीं हुवै। लोग पढता ई रैय जावै। इण सारू बो कोई ‘प्लॉट’ सोधै। ओळूं रै बुगचै नैं संभाळै। बाळपणै री बातां नैं खंकेरै। पत्रकारिता रै दिनां नैं पंपोळै। ग्रामसेवकी री डायरियां नंै फिरोळै। गुजरात प्रवास रा चितराम चेतै करै। आपरै आखती-पाखती पत्रकार साकिन, गुमेजी मजूर लीलू का पारकी पीड़ माथै रोवणियै देबुड़ै जैड़ा पात्रां नंै ढूंढै। केई सैंधा-अणसैंधा लोगां री सूची बणावै। घटनावां डायरी में अटकावै। इत्ती खेचळ पछै ई कहाणी लिखणो हाथ री बात है कांई? धक्को कर्यां निबंध का संस्मरण तो घड़ीज सकै, पण कहाणी रो रचाव सोरो कोनी। रामजी घालै ओ हुनर! लिखणियां गुलेरी जी दांई च्यार कहाणियां में ई कथा-जातरा में पग-मंडाण कर देवै तो केई बरस बीतै ज्यूं पोथी रा ढिग लगावता थकां ई कहाणी तांई कोनी पूग सकै।

कवि वृंद मुजब ‘करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।’ तो म्हैं ई म्हारी ‘जड़मति’ नंै ‘सुजान’ बणावण खातर खपूं। म्हारो कहाणीकार जद बीच बजार ई जक को लै नीं तो रेलगाड़ी में सचळो कींकर रैय सकै। रेल अबार महाजन सूं हनुमानगढ सारू टुरी है। घणकरा लोग गाड़ी में हताई करै का तास रम’र बगत टिपावै। म्हारो राम तास खेलणी तो जाणै कोनी अर बोलणै में ई मूंजी। म्हारै सारू फगत दो काम बच्या है- बारी सूं बारै तकावणो का आंख्यां मींच’र सोचणो। बारी सूं बारै देखणै में अडक़ांस आ ही कै म्हनैं बारी सारली सीट कोनी मिली। नीचै आळी सीट रै गैलरी पासलै खंूणै माथै बैठ्यो हो म्हैं। सेवट म्हैं आंख्यां मींच’र सिर सीट रै टिका लियो अर सोचणो सरू। ले-धे खसूं कै कदास कोई कहाणी रो सिरो हाथ लाग जावै।

म्हारो कहाणीकार घटनावां री विगत सूं ई कोनी धापै। बो पात्रां रै मन मांयली दुनियां रा चितराम कोरणा चावै। मानखै री मनगत रै मंडाण री खामचाई तो कोई सांवर दइया सूं सीखै। मायड़ भाषा रा लूंठा लिखारा सांवर जी री ओळूं नंै मनोमन निवण करूं। अरदास भळै करूं कै संजय आळी बा दीठ म्हनैं ई सूंपै सांवरो। केई ताळ आफळ करूं पण कथा सूझै, नीं लघुकथा। धापेड़ो आंख्यां खोलूं। झोळै सूं पोथी काढूं पण बांचणै रो मन कोनी हुवै। डब्बै में चौगड़दै तकावूं। म्हारी सीट पर तीन जणां- बारी खंनै बीसेक बरसां री अेक छोरी, उणरै पछै अेक डोकरो अर खूंणै माथै म्हैं। साम्हीं बारी खंनै अेक जुवान, बिचाळै अेक अधखड़ लुगाई अर म्हारै अेन साम्हीं खूंणै माथै अेक दस-बारै साल रो छोरो। गैलरी रै परलै पासै दोनूं बार्यां खंनै अेक मोट्यार अर अेक लुगाई आम्हीं-साम्हीं बैठ्या है। लुगाई सागै दो-ढाई बरसां रो अेक टाबर ई है जको अबार बारी रा सिरीया झाल्यां ऊभो बारै तकावै। म्हारै सिर ऊपरली सीट जाबक खाली तो साम्हीं ऊंचली सीट माथै सामान धर्योड़ो। कीं सामान सीट रै हेठै भळै राख्योड़ो है।

इण मुआयनै पछै म्हनैं अेक कौतक सूझ्यो। अठै बैठी सवारियां री मनगत री पड़ताल करूं। म्हारै अचंभै रो छेड़ो नीं! स्यात सांवरै म्हारी पुकार सुणली। म्हैं दूजां री मनगत नंै पड़तख बांच सकै हो। चमत्कार हुग्यो ओ तो। कठैई आ संजय आळी दीठ तो कोनी मिलगी म्हनैं? म्हैं म्हारै कहाणीकार नंै हेलो कर्यो।

सै सूं पैलां म्हारै खंनै बैठ्यै डोकरै रै मन री फिरोळ करूं। डोकरो आपरै गांव जावै। गैलरी रै परलै पासै बीं रा बेटो-बहू बैठ्या है टाबर सागै। डोकरो आज अणमनो है क्यूंकै बै आपरै गांव में बडेरां रै घर नैं बेचण जावै। बो तो घणो ई कोनी चावै पण बेटै-बहू आगै चाली कोनी। तीन बरस हुग्या उणरी जोड़ायत नैं सुरग सिधार्यां। हाथै रोटी पेस कोनी पड़ै इण सारू इकलोतै बेटै खंनै सहर आवणो पड़्यो। गांव आळो घर बंद करणो पड़्यो। बड्डै रो काळजो अजै ई घर में बसै पण जोर कांई? बेटै-बहू खातर गांव आळो घर अणचाइजतो है। जद गांव में बसणो ई कोनी फेर बीं घर री टंडवाळी रो कांई मतळब है? म्हैं बेटै री मनगत रो सोझो लियो। बेटा जी तो न्यारी सोचै। ‘हर साल रंग-कळी कराओ अर हर महीनै बिजळी-पाणी रो बिल भरो। जे भाड़ै देवां तो बिसा कारी-कुटका में लागजै। इणसूं चोखो है घरियै नंै बेच’र नामी कंपनियां रा शेयर ले लेवूं। संसेक्स में आग लाग रैयी है आजकळै। अठारै हजार रो आंकड़ो तो पार करग्यो। अेक जम्प में रकम दूणी समझो।’ बहूराणी कांनी झांकूं। अठै तो दूजी ई रील चालै, ‘घर बेचतां ई गाड़ी लेस्यां-‘ओमनी’। पाड़ोसी सोमाणी जी रै ‘नैनो’ के आगी, मिसेज सोमाणी तो मावै ई कोनी। जद देखो नैनो-नैनो रा गीत गावै। गांव आळो घर बिकणै री देर है, क्वाटर रै आगै ‘ओमनी’ नीं खड़ी करवा द्यूं तो? फेर देखूं, कांई बोलै बा?’

बेटो-बहू आपरै सपनां में मगन है फेर बापड़ै डोकरै री पीड़ री गिनार कुण करै? अबै म्हैं पूठ फोरी अर म्हारी सीट माथै बारी खंनै बैठी छोरी रै मन मांयली दुनिया नंै जोवणो सरू कर्यो। छोरी रै हाथ में मोबाइल हो अर कानां में इयरफोन घालेड़ा। मोबाइल सूं गाणां सुणतां थकां ई उणरो जीव गाणां में दर ई कोनी। बीं रै अंतस में तो तालामेली लाग रैयी है। घर वाळा भाई रै सट्टै में बीं नैं परणावणो चावै पण छोरो उणनंै दाय कोनी। बो छोरो उमर में उणसूं डेढो है अर डील में दूणो। बा अेक छोरै नंै चावै पण बो अजै बेरुजगारी सूं जूझै। आज बा आपरी बैन खंनै जावै। बीं नैं आपरै मन री बात बतावैला। स्यात बा कीं मदद कर सकै।

अबै म्हैं साम्हली सीट माथै बारी खंनै बैठ्यै जुवान कांनी मूंडो कर्यो। तो आ बात है! भाईजी री सै सूं मोटी चिन्ता बेटिकट हुवणो है। बीं नैं डर है कठैई टी.टी. नीं आज्यै। स्यान तो जावैला ई, चट्टी भळै लागैला। प्लेण्टी जोगा पीसा ई तो गूंजै में है कोनी। इण सूं चोखो है टिकट ले लेंवतो। पूरै रास्तै ओझको तो कोनी रैवतो। सागड़द्यां रै सिखायां गूंग करली। आयंदै ध्यान राखसूं। बो अबार पटवारी रा इमत्यान देय’र आयो है। सोचै कदास इण परीक्षा में पास हो जावूं तो बेरुजगारी सूं लारो छूटै। इण अळोच सूं बारै निकळ्यां उणरो ध्यान साम्हीं बैठी छोरी कांनी जावै। बो लुकती निजरां सूं छोरी नंै तकावै अर मुळकै भळै!

म्हनैं इण खेल में मजो आय रैयो हो। अबै म्हैं साम्हली सीट माथै बिचाळै बैठी लुगाई री तिथ ली। लुगाई आपरै छोरै नैं स्कूल छोड़ण जावै ही। छोरो जवाहर नवोदय विद्यालय, महियावाळी में सातवीं जमात में भणै अर स्कूल रै छात्रावास में रैवै। कालै भोर में ओ मास्टरां नैं बिनां बतायां घरै आग्यो। लुगाई सोचै कै कदास ओ पढ़-लिख’र आपरै पगां ऊभो हुयजै। इणरा बापू गाभा सीड़ता उमर गाळ दी। ओ कीं बणजै तो बां नैं दिन-रात सूई सूं डोभा कोनी फोड़णा पड़ै। आजकळै पढ़ाई माथै कित्तो खरचो लागै। आ तो भली हुई कै जवाहर नवोदय विद्यालय में प्रवेस मिलग्यो। पण अबै घर रो मोह तो छोड़णो ई पड़सी।

लुगाई री मनगत ठाह पड़्यांं म्हारो ध्यान छोरै कांनी गयो। बो इकलंग म्हारै कांनी तकावै हो। अरे....ओ तो म्हारै बाबत ई सोचै। म्हारी रुचि बधगी। देखूं दिखांण कांई सोचै है ओ। म्हैं बीं री मनगत बांची।’ ओ आदमी बावळो है कांई? कणां रो डोभा फाड़-फाड़’र दूजां नैं तकावै। इणरा मिनख देख्योड़ा कोनी कांई? सीधो रोही सूं आयेड़ो लागै। दीसै तो पढ्यो-लिख्यो है। गूंजै में कलम टांग्योड़ी है। झोळो पोथ्यां सूं भर राख्यो है। पोथी ई हाथ में ले राखी है पण अेक हरफ बांच्यो कोनी। कठैई सूं तचका’र तो कोनी लायो पोथ्यां..?’

बो बीजी केई बातां सोची हुवैला पण म्हैं निजरां फेर ली। छोरै री सोच सूं म्हारोमूड बिगड़ग्यो। नालायक कठै रो! उणियारो जोवो, कित्तो मासूम पण सोच कित्ती माड़ी। ओ किसो पढ’र न्याल करै। म्हारो मन बदळग्यो। अबै म्हैं कीं कोनी जाणनो चावूं।

चाणचकै म्हारो कहाणीकार साम्हीं आ ऊभो हुयो। बण कैयो, ‘बियां आ बात ओपती तो कोनी। जियां परायै घर में ताक-झांक करणो माड़ी बाण है बियां ई दूजां रै मन-मगजी में झांका घालणो ई चोखी बात कोनी।’

‘तो ठीक है। म्हनैं कोनी चाइजै संजय आळी दीठ। म्हैं तो थारै सारु ई आफळ करै हो।’ म्हैं कैयो !

‘आप म्हनैं कीं कैयो?’ सारै बैठ्यै डोकरै म्हनैं पूछ्यो।

‘हंऽऽ..नीं...कीं...नीं...।’ म्हैं गैल छुड़ाई अर मनोमन मुळक्यो।