आबार एशो / विजय कुमार सप्पत्ति

Gadya Kosh से
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आज, अभी, कुछ पल पहले

कोने में रखे हुए ग्रामोफोन पर आशा भोंसले की आवाज में एक सुन्दर सा बंगाली गीत बज रहा है। "कोन से आलोर स्वप्नो निये जेनो आमय। !!!" सारे कमरे में रजनीगंधा के फूलो की खुशबु छाई हुई है, ये फूल कल निशिकांत अनिमा के जन्मदिन पर लाया था।

शांतिनिकेतन के एकांत से भरे इस घर की बात ही कुछ अलग थी, अनिमा का मन जब भी अच्छा या खराब; दोनों होता था, तब वो इस घर में आ जाती थी, कोलकत्ता के भीड़ से बचकर कुछ दिन खुद के लिए जीने के लिये।

बाहर में चिडियों की आवाज आ रही है। अनिमा का मन कुछ अलग सा था। कल से मन कुछ एक अजीब सी उधेड़बुन में है। अनिमा का अकेलापन अब किसी का साथ मांग रहा था। संगीत, फूलो की खुशबु, चिडियों की आवाज और मन का कोलाहल सब कुछ आपस में मिलकर अनिमा को उद्ग्विन बना रहा है।

अचानक उसकी तन्द्रा टूटी, निशिकांत ने चाय का कप नीचे रखा और उससे कहा, मैं चलता हूँ अनिमा, अपना ख्याल रखना। अनिमा उठकर खड़ी हुई। वो एकटक निशिकांत को देख रही थी, आँखों में कुछ गीलापन तैरने लगा। निशिकांत ने उसे गले से लगाया और दरवाजे की ओर चल पढ़ा। अनिमा का दिल तेजी से धड़कने लगा। निशिकांत के दरवाजे की ओर बढ़ते हुए एक एक कदम जैसे अनिमा की ज़िन्दगी से उसकी धड़कन लिये जा रहा हो।।

निशिकांत दरवाजे के पास रुका और मुड़कर अनिमा को देखा । एक निश्छल मुस्कराहट और फिर उसने अनिमा की तरफ देखकर विदा के लिये हाथ उठाया।

अनिमा के मुह से रुक- रूककर जैसे एक गहरे कुंए से आवाज़ निकली " आबार एशो !।। आबार एशो निशिकांत आबार एशो !"

निशिकांत चौंककर रुका, पलटा और अनिमा को गहरी नज़र से देखा। अनिमा के आँखों से आंसू बह रहे थे। उसने जीवन में पहली बार किसी को आबार एशो कहा था।

निशिकांत वापस आया और अनिमा ने उसकी तरफ अपनी बांहे फैला दी। निशिकांत अनिमा के बांहों में समा गया। अनिमा सुबकते हुए बोली। “मैं भी तुमसे प्रेम करती हूँ निशिकांत। आमियो तोमाके खूब भालो बासी, निशिकांत। ”

ग्रामोफोन का रिकॉर्ड खत्म हो गया था, चिडियों की आवाजे अब नहीं आ रही थी। सिर्फ अनिमा के सुबकने की आवाज, रजनीगंध के फूलो की खुशबु के साथ कमरे में तैर रही थी। और तैर रहा था दोनों का प्रेम !!

आज से २२ बरस पहले

"चलो हम भाग जाते है सत्यजीत, अनिमा ने सर उठाकर कहा।

अनिमा रो रही थी। सत्यजीत से वो पिछले पांच सालो से प्रेम कर रही है। दोनों ने साथ में उन्होंने सारी पढाई की है। अनिमा ने विश्वभारती विश्वविद्यालय में फाईन आर्ट्स में दाखिला लिया था, उसने पेंटिंग के कोर्स में डिग्री लिया था और एक बड़े पेंटर का सपना देख रही थी। सत्यजीत उसके जूनियर कॉलेज में भी उसके साथ था और उसने भी अनिमा के साथ के लिये इसी विश्वविद्यालय में जर्नालिस्म और मास कम्युनिकेशन में दाखिला लिया था। और अब वो एक बड़ा जर्नलिस्ट बनना चाह रहा था । दोनों के अपने अपने अलग सपने थे, लेकिन दोनों में प्रेम था। सत्यजीत अनिमा से बहुत प्रेम करता था। और उसके संग जीने का सपना भी देख रहा था। लेकिन अब एक बहुत बड़ी मुश्किल आ गयी थी।

सत्यजीत के पिता ने कह दिया कि वो अनिमा से शादी नहीं करेंगा। नहीं तो वो मर जायेंगे। ये फैसला भी अचानक ही आया था। अनिमा के पिता की तीन साल पहले मौत हो गयी थी और अनिमा की माँ ने इस बरस एक दूसरे लेकिन भले आदमी के साथ ब्याह रचा लिया था। बहुत कम लोग ये जानते थे कि अनिमा की माँ को कैंसर है और वो कुछ ही दिन की मेहमान है। सिर्फ कुछ पुराने वादों के लिये और अनिमा के भविष्य के लिये उन्होंने ये ब्याह किया था। अनिमा ने ये सब सत्यजीत को समझाया था। लेकिन सत्यजीत अपने पिता को नहीं समझा पा रहा था। करीब ५ साल का प्रेम अब घरासायी हो रहा था। और अनिमा लगातार रो रही थी।

अनिमा ने कहा, “ मुझे अब इस जगह रहना भी नहीं है। , मैंने कोलकत्ता के एक स्कूल में आर्ट टीचर की जॉब के लिये अप्लीकेशन किया था। मुझे बुलावा आ गया है, मैं जाती हूँ,। तुम आ सको तो आ जाना, मुझे तुम्हारा इन्तजार रहेंगा ”।

सत्यजीत की आँखों में आंसू आ गये, “अनिमा, पिताजी ने कहा है कि मुझे दूसरी लड़की से ही ब्याह करना होंगा। तुमसे मैं कभी भी ब्याह नहीं कर पाऊंगा। ”

अनिमा ने कहा “इसलिए तो कह रही हूँ कि भाग चलते है। बोलो क्या कहते हो सत्यजीत ?”

सत्यजीत उदास होकर कहने लगा। “नहीं अनिमा; मैं नहीं भाग पाऊंगा। जिंदगी भर के लिये एक बदनामी। मेरे परिवार की बदनामी। कुछ दिन रूककर देखते है, सब ठीक हो जायेंगा। ”

अनिमा ने कहा, “नहीं सत्यजीत कुछ ठीक नहीं होंगा। करीब एक साल से यही कह रहे हो, कब ठीक होंगा। बोलो आज फैसला करो। ”

सत्यजीत ने कुछ अटकते हुए कहा, “नहीं अनिमा, मैं नहीं आ पाऊंगा। ”

अनिमा के आंसू रुक गये। उसने आंसू पोछा और फिर सत्यजीत की बांहों में आकर कहा, “देखो सत्यजीत, हमारा प्यार हमारे साथ है, सब ठीक हो जायेंगा, तुम चलो मेरे साथ। ”

सत्यजीत ने सर झुका कर कहा, “नहीं अनिमा, मैं नहीं आ पाऊंगा। ”

अनिमा फिर रोने लगी, थोड़ी देर बाद उसने अपने आंसू पोंछे और खड़ी हो गयी।

अनिमा ने आँख भर कर सत्यजीत को देखा। और कहा, “मैं चलती हूँ सत्यजीत, अब कभी नहीं मिलना मुझसे। ”

सत्यजीत की आँखे भर आई, वो परिस्थितियों के आगे विवश था। वो कुछ बोल न सका।

थोड़े दूर जाने के बाद अनिमा रुकी, पलटी और सत्यजीत को देखा।

सत्यजीत ने कहा, “आबार एशो अनिमा। "

अनिमा मुड कर चल दी। हमेशा के लिए सत्यजीत के ज़िन्दगी से चली गयी। !

आज से 13 बरस पहले

“ये मेरा घर है और जो मैं चाहूँगा, वही होंगा”। देबाशीष गरज कर बोला।

अनिमा ने कहा। “अगर तुम ये सोचते हो की ये सिर्फ तुम अकेले का घर है तो फिर मेरा क्या काम यहाँ ?"

देबाशीष ने गुस्से में कहा, “तुम मेरी बात क्यों नहीं सुनना चाहती हो। "

अनिमा ने कहा “ इसमें सुनने लायक क्या है। पेंटिंग मेरी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा हिस्सा है, मैं कैसे बंद कर दूं, सिर्फ तुम्हारे अंह की शान्ति के लिए मैं अपने जीवन में मौजूद एक ही ख़ुशी है, वो भी खो दूं। "

अब अनिमा रोज रोज के इन झगड़ो से तंग आ चुकी थी। तीन साल पहले उसने देबाशीष से शादी की थी। वो भी प्रेम विवाह। देबाशीष भी उसकी तरह एक पेंटर था। और पेंटिंग ही उन दोनों को करीब लायी थी। सब ठीक चल रहा था। फिर आर्ट के फॉर्म में बदलाव आया। अनिमा ने अपने आप को कंटेम्पररी आर्ट में ढाल दिया, और इस बदलाव ने पेशा और पैसो में बढोत्तरी की। लेकिन देबाशीष अपने आप में बदलाव नहीं ला सका, नतीजा ये हुआ की। देबाशीष की पेंटिंग्स लोग कम खरीदने लगे और करीब करीब बिकना भी बंद हो गया।

लेकिन अनिमा एक सफल आर्टिस्ट बन गयी। चारो तरफ उसका नाम हुआ। बहुत सी एक्सिबिशन भी होने लगी, और अच्छे दामो पर उसका आर्टवर्क बिकने भी लगा। बस देबाशीष का अंह उसके सर पर सवार हो गया। ये घर भी दोनों ने मिलकर ख़रीदा था। और करीब एक साल से अनिमा ही इस घर का पूरा खर्चा उठा रही थी। अनिमा को कहीं भी कोई भी तकलीफ नहीं थी, देबाशीष से वो प्रेम करती थी। लेकिन रोज देबाशीष का पीकर आना और फिर लड़ना। और आज सुबह से ही देबाशीष पीकर घर में उत्पात मचा रहा था। बात सिर्फ इतनी थी, अनिमा को फ्रांस जाना था, और देबाशीष नहीं चाहता था की वो फ्रांस जाए। अनिमा के लिए जो प्रेम उसके मन में था अब उस प्रेम की जगह ईर्ष्या ने ली थी।

देबाशीष ने चिल्लाकर कहा, “देखो अनिमा, तुम ये पेंटिंग छोड़ दो, हम प्रिंटिंग का काम करेंगे। ”

अनिमा ने आश्चर्य से कहा, “ये क्या कह रहे हो, मैं ऐसा कुछ भी नहीं करुँगी। पेंटिंग मेरे लिए सब कुछ है। तुम अपनी जिद छोड़ दो। हम मिलकर एक आर्ट गेलरी खोलते है, और सब कुछ ठीक हो जायेंगा। ”

देबाशीष फिर चिल्लाकर बोला। “नहीं, जो मैं कहूँगा वही तुम करो, मत भूलो की तुम मेरी बीबी हो। ”

अनिमा अक्सर शांत ही रहती थी। लेकिन आज वो भी गुस्से में थी।

उसने भी चिल्लाकर कहा। “मैं वही करुँगी, जो मेरा मन कहेंगा। मत भूलो, की तुमसे मैंने शादी भी इसलिए की थी, की मैं तुमसे प्रेम करती हूँ और मेरे मन ने इस की इजाजत दी थी। "

देबाशीष ने कहा, “तो तुमने मुझ पर उपकार किया। अब एक उपकार और करो, या तो वो करो, मैं चाहता हूँ या फिर मुझे छोड़कर चली जाओ। "

अचानक कमरे में ही एक दर्द भरा सन्नाटा छा गया।

बहुत देर की चुप्पी के बाद अनिमा उठी और घर से बाहर चल पड़ी।

देबाशीष ने चिल्लाकर कहा, “कहाँ जा रही हो, मैंने गुस्से में कह दिया तो चले ही जाओंगी। ”

अनिमा ने बिना मुड़े कहा, “नहीं देबाशीष, अब नहीं। अब हम साथ नहीं रह सकते। मैं तुम्हे छोड़कर जा रही हूँ। "

देबाशीष कुछ बोल न सका।

जैसे ही अनिमा दरवाजे के पास पहुंची, देबाशीष ने कातर स्वर में कहा " आबार एशो अनिमा "

अनिमा ने न कोई जवाब दिया, न पलटकर देखा और न ही रुकी, वो हमेशा के लिए देबाशीष के घर से और उसकी ज़िन्दगी से निकल गयी…। !

आज से 8 बरस पहले

शमशान के चौकीदार ने पुछा , “कौन हो तुम?” अनिमा ने कुछ नहीं कहा, सिर्फ उसके मुह से निकला "श्रीकांत ” शमशान में लगभग रात हो चुकी थी और इस वक़्त वैसे भी कोई नहीं आता, और ऐसे समय में एक महिला का शमशान में होना। चौकीदार ने गौर से अनिमा को देखा। अनिमा का चेहरा किसी मुर्दा चेहरे से कम नहीं लग रहा था। आँखे सूखी हुई सी थी। चौकीदार ने पुछा। “तुम कौन हो। श्रीकांत बाबु के लोग तो आकर चले गए। ” अनिमा ने उसकी ओर देखा। शमशान के गेट पर लगे हुए पीले बल्ब की रौशनी में चौकीदार ने अनिमा का चेहरा देखा और बहुत कुछ उस नासमझ को समझ गया। उसने चुपचाप अनिमा को अपने पीछे आने का इशारा किया। एक करीब करीब जल चुकी चिता के पास उसे ले आया और उस चिता के तरफ इशारा किया। अनिमा चिता देखकर पथरा गयी। बहुत देर से रुके हुए आंसू अब न रुक सके। वो जोर जोर से रोने लगी। चौकीदार चुपचाप खड़ा रहा। दुनिया में सच शायद सिर्फ शमशान में ही दिखता है।

बहुत देर तक रोने के बाद वो चुप हो गयी।

श्रीकांत जैसा आदमी, अनिमा ने दूसरा नहीं देखा था। और शायद अब कभी देखेंगी भी नहीं। सब कुछ जैसे एक लम्हे में उसकी आँखों के सामने लहरा गया।

श्रीकांत को माँ सरस्वती का वरदान था। वो कवि, संगीतकार, गायक, चित्रकार सब कुछ था। लेकिन उसकी ज़िन्दगी में जिससे उसका ब्याह हुआ था। वो भी प्रेम विवाह, वो ब्याह सुखमय नहीं था। स्त्री कर्कशा थी और दिन रात उसका जीवन नरक बनाये हुए थी। श्रीकांत की पत्नी का स्वभाव उससे बिलकुल भी मेल नहीं खाता था। रोज किसी न किसी बात पर झगडा एक बहुत ही कॉमन बात थी। श्रीकांत तंग हो चला था ज़िन्दगी से। नतीजा, रोज़ ही श्रीकांत शराब के नशे में अपने आपको डुबो देता था। ऐसे ही एक शाम को श्रीकांत की मुलाकात अनिमा से हुई। कोलकत्ता में उत्तमकुमार पर आधारित एक शो था। जिसमे श्रीकांत ने बहुत से गीत गाये, और जब अनिमा का प्रवेश वहाँ हुआ, तब वो स्टेज पर एक गाना गा रहा था, " दिल ऐसा किसी ने मेरा तोडा " गाना सुनकर अनिमा रुक गयी थी। उस दिन दोनों का परिचय एक दुसरे से हुआ।

दुसरे दिन श्रीकांत अनिमा के घर पहुँच गया सुबह ही। अनिमा उसे देखकर चौंक गयी थी। श्रीकांत ने उसके ओर कुछ रजनीगंधा के फूल बढाए और कहा। “अनिमा मुझे झूठ बोलना नहीं आता। कल पहली बार ऐसा हुआ की तुमसे मिला और मैंने शराब नहीं पी। और रात को सो भी नहीं पाया। तुम्हारे बारे में ही सोचते रहा। क्या ये प्रेम है ?”

अनिमा सकते में आ गयी, सो तो वो भी नहीं सकी थी। उसने भी श्रीकांत के बारे में सोचा था। अनिमा ने कुछ नहीं कहा।

श्रीकांत ने फिर कहा। “मैं शादीशुदा हूँ। और मुझे अपने शादी पर अफ़सोस तो बहुत बार हुआ है, लेकिन आज बहुत ज्यादा अफ़सोस है। ”

अनिमा ने उसे घर के भीतर बुलाया और कहा, “चाय तो पी लीजिये। कल आप बहुत अच्छा गा रहा थे। ”

श्रीकांत ने कहा, “मैं अब तुम्हारे लिए गाना चाहता हूँ। ”

अनिमा ने सकुचा कर पुछा। “क्या गाना चाहते हो ?"

श्रीकांत ने कहा “तुम्हे उत्तमकुमार बहुत पसंद है। उसी के प्रेम भरे गीत तुम्हारे लिए मेरे मन के भावो के साथ गाना चाहता हूँ। ”

अनिमा ने ठहरकर कहा, “मुझे ज़िन्दगी बहुत पसंद है। ”

श्रीकांत बहुत देर तक उसे देखता रहा। और फिर धीरे से कहा, “तुम बहुत बरस पहले मुझसे नहीं मिल सकती थी अनिमा ?”

अनिमा ने कहा, “ज़िन्दगी के अपने फैसले होते है श्रीकांत। "

उस दिन के बाद श्रीकांत और अनिमा अक्सर मिलते रहे, हर दिन के साथ श्रीकांत के मन का तनाव बढता ही रहा, वो अनिमा के बैगर नहीं रह पा रहा था लेकिन अपनी पत्नी को कैसे छोड़े, कहाँ जाये, क्या करे। वो अपने आपको भगवान की आँखों में कसूरवार नहीं ठहराना चाहता था।

इसी कशमकश में एक साल बीत गया। श्रीकांत ने अनिमा को और अनिमा ने श्रीकांत को इतनी खुशियाँ दी, जिन्हें शब्दों ने नहीं समाया जा सकता था। दोनों जैसे एक दुसरे के लिए बने हो। लेकिन जैसे ही वो अलग होते थे। दोनों ही दुःख में घिर जाते थे। अनिमा की पेंटिंग्स में उदासी झलकने लगी। श्रीकांत और बहुत ज्यादा पीने लगा था।

परसों श्रीकांत ने कहा की वो अनिमा से मिलना चाहता है, अनिमा ने उसे घर बुलाया, लेकिन श्रीकांत ने कहा की वो उससे किसी नदी के किनारे मिलना चाहता है। कोलकत्ता के बाहर गंगा के घाट पर दोनों मिले। ढलती हुई शाम और आकाश में छायी हुई लालिमा और गंगा का बहता हुआ पानी जैसे दोनों से बहुत कुछ कहने की कोशिश कर रहा था।

श्रीकांत ने उसे एक गीत सुनाया। “तुझे देखा, तुझे चाहा, तुझे पूजा मैंने। "

उस रात श्रीकांत ने बहुत सी बाते की। लेकिन वो कुछ विचलित था।

अनिमा ने पुछा भी, “क्या बात है श्रीकांत ?” लेकिन श्रीकांत कुछ नहीं बोला।

कल जब शाम को वो विदा हुआ, तो श्रीकांत ने उसे बहुत देर तक गले लगाया रखा और फिर धीरे से कहा, “अगले जन्म मुझे जल्दी मिलना अनिमा !” अनिमा की आँखों में आंसू तैर गये !

आज सुबह अनिमा को पता चला कि श्रीकांत ने खुदखुशी कर ली।

अनिमा पागल सी हो गयी और अब वो शमशान में उसकी चिता के पास बैठकर रो रही है। अनिमा को लग रहा था कि खुद उसकी ज़िन्दगी राख है !

चौकीदार ने धीरे से कहा, “बहुरानी, रात ज्यादा हो चली है अब आप जाओ। "

अनिमा चौंक कर उठी। फिर वो धीरे धीरे बाहर की ओर चली, बार बार वो मुड़कर पीछे देखती थी की राख के ढेर से श्रीकांत उठ कर खड़ा होंगा और कहेंगा, “आबार एशो अनिमा !!!”

अनिमा इन शब्दों को लिए इस बार बैचेन थी, वो रुक जाती अगर श्रीकांत उसे पुकारता। लेकिन राख के ढेर में सिर्फ उनके प्रेम की चिंगारियां ही बची हुई है। अनिमा अपने आप में नहीं रही। उस दिन से वो खामोश हो गयी।

आज से दो महीने पहले

अनिमा अब ज्यादातर चुप ही रहती थी, उसने अपने एकाकी जीवन में सिर्फ पेंटिंग्स को ही जगह दे दी थी। उसकी पेंटिंग्स अब और भी ज्यादा मुखर हो चली थी। दर्द के कई शेड्स थे अनिमा के पास जो उन्हें वो कैनवास पर उतार देती थी।

ऐसे ही एक प्रदर्शनी में उसकी मुलाकात निशिकांत से हुई। आकार-प्रकार गेलरी में उसकी पेंटिंग्स का शो चल रहा था। और करीब लंच का समय था, जब वो बाहर जाने के लिए निकल रही थी, तब उसने देखा की एक लम्बा सा आदमी उसकी एक पेंटिंग के सामने खड़ा होकर कुछ लिख रहा था।

वो उसके पास गयी और पुछा, “ कैन आई हेल्प यू सर ?” उस आदमी ने पलट कर अनिमा को देखा। वो एक करीब ४० साल का आदमी था। जो की एक कुरता पहना हुआ था और हाथ में एक डायरी में कुछ लिख रहा था। वो निशिकांत था । उसने अनिमा से पुछा। “आप ?” अनिमा ने कहा “ ये पेंटिंग मैंने बनायी हुई है, ” निशिकांत ने मुस्करा कर अनिमा से कहा, ” यू हैव आलरेडी हेल्प्ड मी बाय मेकिंग सच ए वंडरफुल पेंटिंग !”।

अनिमा ने मुस्कराकर कहा, “थैंक्स। आप क्या पेंटिंग खरीदना चाहते है, कुछ लिख रहे है ?”। निशिकांत ने कहा “नहीं नहीं, मैं तो इस पेंटिंग को देखकर एक कविता लिख रहा हूँ। ” अनिमा ने आश्चर्य से पुछा, “अच्छा, क्या लिखा है बताये तो सही। ”

पहले हम आपस में परिचित हो जाए। “मेरा नाम निशिकांत है। ” निशिकांत ने कहा। ”और मेरा अनिमा" अनिमा ने मुस्कराते हुए कहा।

निशिकांत ने कहा “अनिमा नाम तो बहुत अच्छा है, पर वैसे इसका मतलब क्या है। "

अनिमा ने कहा “शायद आत्मा या फिर आन्सर माय प्रेयर, मैंने कहीं पढ़ा था। "

निशिकांत ने हाथ जोड़कर कहा, हे देवी, तब तो आन्सर माय प्रेयर इन अडवांस। ”

अनिमा मुस्करा उठी !

निशिकांत ने कहा “ देखिये, ये जो आपकी पेंटिंग है आपने इसका शीर्षक " क्षितिज " दिया हुआ है अब आपके पेंटिंग में आपने दूर में एक हलकी सी लाइन ड्रा किया हुआ है और वहां पर आपने दो इंसान बनाए हुए है जो की प्रेमी प्रेमिका है। करेक्ट ? “

अनिमा ने कहा, “हाँ, ये तो सही है और ये पेंटिंग भी मुझे बहुत पसंद है। पर आपने लिखा क्या है ये तो बताये। ”

निशिकांत ने पढ़कर सुनाया

</poem> ""क्षितिज""

तुमने कहीं वो क्षितिज देखा है, जहाँ, हम मिल सकें ! एक हो सके !! मैंने तो बहुत ढूँढा; पर मिल नही पाया, कहीं मैंने तुम्हे देखा; अपनी ही बनाई हुई जंजीरों में कैद, अपनी एकाकी ज़िन्दगी को ढोते हुए, कहीं मैंने अपने आपको देखा; अकेला न होकर भी अकेला चलते हुए, अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए, अपने प्यार को तलाशते हुए; कहीं मैंने हम दोनों को देखा, क्षितिज को ढूंढते हुए पर हमें कभी क्षितिज नही मिला ! भला, अपने ही बन्धनों के साथ, क्षितिज को कभी पाया जा सकता है, शायद नहीं; पर, मुझे तो अब भी उस क्षितिज की तलाश है ! जहाँ मैं तुमसे मिल सकूँ, तुम्हारा हो सकूँ, तुम्हे पा सकूँ। और, कह सकूँ; कि; आकाश कितना अनंत है और हम अपने क्षितिज पर खड़े है काश, ऐसा हो पाता; पर क्षितिज को आज तक किस ने पाया है किसी ने भी तो नही, न तुमने, न मैंने क्षितिज कभी नही मिल पाता है पर; हम; अपने ह्रदय के प्रेम क्षितिज पर अवश्य मिल रहें है ! यही अपना क्षितिज है !! हाँ; यही अपना क्षितिज है !!! </poem>

कविता सुनाने के बाद निशिकांत ने अनिमा की ओर देखा। अनिमा उसकी ओर ही देख रही थी। पता नहीं उसके दिल में कैसे हलचल मचल रही थी। कभी वो अपनी पेंटिंग को और कभी वो निशिकांत को देखती।

निशिकांत ने आश्चर्य से पुछा, “क्या हुआ। ठीक नहीं है क्या। ” अनिमा ने कुछ नहीं कहा, उस पेंटिंग को उतारकर निशिकांत को दे दिया और कहने लगी, “मुझे वो कविता दे दो। “ निशिकांत कुछ न कह सका। फिर कुछ देर बाद कहा। “ठीक है। कविता भी ले लो। और अपनी पेंटिंग भी रख लो। मैं खरीद नहीं पाऊंगा। ”

अनिमा ने कहा “पैसो की कोई बात ही नहीं है। तुम इसे ले जाओ “ निशिकांत ने कहा, “एक काम करते है, इसे तुम अपने पास रख लो, मैं तुम्हारे घर आकर देख लिया करूँगा। ” इसी बहाने तुमसे मिलना भी हो जाया करेंगा।

दोनों हंसने लगे।

कुछ इस तरह से हुआ दोनों का परिचय, दोनों मिलने लगे करीब करीब हर दुसरे दिन। अनिमा को निशिकांत अच्छा लगने लगा था। उसमे वो ठहराव था जो की उसकी भावनाओ को रोक पाने में सक्षम था। और निशिकांत को अनिमा अच्छी लगने लगी थी। अनिमा में जो शान्ति थी, वो बहुत ही सुखद थी। निशिकांत के मन को तृप्ति हो जाती थी, जब भी वो अनिमा के साथ समय बिताता था।

दोनों की बहुत सी मुलाकाते हुई इन दिनों और दोनों ने अपनी बीती ज़िन्दगी को एक दुसरे के साथ शेयर किया। निशिकांत का प्रेम किसी से हुआ था, जिसने बाद में निशिकांत को छोड़कर किसी और व्यक्ति से शादी कर ली थी, तब से निशिकांत बंजारों सा जीवन ही जी रहा था, एक कवि था, और यूँ ही कुछ यहाँ वहां लिखकर जी रहा था। अनिमा से मिलकर उसे बहुत अच्छा लगा, अनिमा की ज़िन्दगी को जानकार बहुत दुःख हुआ।

और उसने एक दिन कहा भी अनिमा से, “कब तक तुम परछाईयो के साथ जीना चाहती हो। जस्ट लुक फारवर्ड। मुझे ऐसा लगता है कि, हमें आगे की ओर बढना चाहिए। जीवन अपने आप में एक रहस्य है और उसने अपने भीतर बहुत कुछ छुपा रखा है। जैसे कि हमारी दोस्ती। हम दोनों ही कोलकत्ता में रहते है और अब मिले है !! “

अनिमा ने मुस्करा दिया और सोचने लगी की सच ही तो कह रहा है। इन दो महीनो में दोनों एक दुसरे के बारे में बहुत कुछ जान गए थे और एक दुसरे को चाहने भी लगे थे।

समय पंख लगाकर उड़ने लगा, समय की अपनी गति होती है।

परसों...

कोलकत्ता के आकृति आर्ट गेलेरी में अनिमा के पेंटिंग्स की प्रदर्शनी का आज आखरी दिन था। पिछले १० दिनों में काफी अच्छा प्रतिसाद मिला था और वैसे भी अनिमा भट्टाचार्य, पेंटिंग और कंटेम्पररी आर्ट की दुनिया में एक सिग्नेचर नाम था। उसकी काफी पेंटिंग्स बिक चुकी थी। लेकिन अनिमा का मन ठीक नहीं था। पिछले कई दिनों से निशिकांत उसके मन में अपना घर बनाते जा रहा था। वो कई बार खुद से ये सवाल पूछती, कि क्या उसके जीवन में अब कोई परमानेंट पढाव आने वाला है ? वो व्यथित थी। भविष्य में क्या है, कोई नहीं जानता था। लेकिन अनिमा को लग रहा था कि निशिकांत ही उसका भविष्य है।

वो अपने ही विचारों में खोयी हुई थी कि अचानक ही उसके पीछे से किसी ने धीमे से उसके कानो में कहा, “सपने देख रही हो अनिमा।। और वो भी खुली हुई आँखों से । !”

अनिमा ने मुस्कराते हुए कहा, ' हाँ, निशिकांत, तुम्हारा सपना देख रही हूँ। ”

निशिकांत ने सामने आकर कहा, “अनिमा, मैं तो तुम्हारे सामने ही हूँ, सपने में देखने की क्या बात है। ”

दोनों खिलखिलाकर हंसने लगे।

निशिकांत ने कहा, “ मैंने तुम्हारी एक पेंटिंग, जिसमे तुमने एक लम्बा रास्ता दिखाया है और रास्ते के अंत में एक स्त्री को पेंट किया है। उगते हुए सूरज के साथ, उस पर एक कविता लिखी है। "

अनिमा ने कहा, “पता है निशिकांत, पहले जब मैं पेंट करती थी, तो बस अपने लिए ही करती थी, लेकिन अब जब से तुम मिले हो, तुम्हारे लिए पेंट करती हूँ। और मुझे ये अच्छा भी लगता है, हाँ तो बताओ क्या लिखा है। मैंने तो उस पेंटिंग का कोई नाम भी नहीं दिया है। "

निशिकांत ने कहा, “अनिमा, मैंने तो नाम भी दे दिया है और कविता भी लिखी है, तुम्हे जरुर पसंद आएँगी। ”

अनिमा ने हँसते हुए कहा, “तुम लिखो और मुझे पसंद नहीं आये, ऐसा कभी हुआ है निशिकांत ? ” निशिकांत ने अपनी डायरी निकाली और अनिमा की आँखों में झांकते हुए कहा, “तो सुनो देवी जी। अर्ज किया है ”

अनिमा ने हँसते हुए कहा, “अरे आगे तो बढ़ो “ निशिकांत ने कहा। “अनिमा, तुम्हारी पेंटिंग और मेरी कविता का नाम मैंने रखा है " आबार एशो " !!!”

अनिमा चौंक गयी, “क्या ?”

निशिकांत ने उसका हाथ पकड़ कर उसकी पेंटिंग के पास ले गया। और उससे कहा, “अब तुम ध्यान से इस पेंटिंग को देखो, तुम्हे लगता नहीं है कि कोई इस औरत से कह रहा है कि आबार एशो। इस रास्ते में मौजूद हर पेड़, हर बादल, हर किसी से कह रहा है कि आबार एशो। बोलो !”

अनिमा ने कुछ नहीं कहा। बस पेंटिंग की ओर देखती रही। फिर निशिकांत को देख कर कहा। “निशिकांत, मैंने अपने जीवन में कभी भी किसी को आबार एशो नहीं कहा।। कोई ऐसा मन को भाया ही नहीं कि उसे फिर से बुला सकूँ। अपने जीवन में। अपने जीवन की यात्रा में। ”

निशिकांत ने गंभीर होकर कहा, “तुम्हे कभी तो किसी को आबार एशो कहना ही पड़ेंगा अनिमा। ज़िन्दगी में कभी तो रुकना ही पड़ता है। ”

अनिमा ने गीली होती हुई आँखों को छुपा कर कहा, “अच्छा अपनी कविता तो सुनाओ। ”

निशिकांत ने उसे गहरी नज़र से देखते हुए कहा। ”सुनो। शायद इसे सुन कर तुम किसी को कह सको, आबार एशो !”

निशिकांत ने कहना शुरू किया। और उसकी धीर -गंभीर आवाज, अनिमा के मन मे उतरनी लगी। !

आबार एशो [ फिर आना ]

सुबह का सूरज आज जब मुझे जगाने आया
तो मैंने देखा वो उदास था
मैंने पुछा तो बुझा बुझा सा वो कहने लगा।
मुझसे मेरी रौशनी छीन ले गयी है;
कोई तुम्हारी चाहने वाली,
जिसके सदके मेरी किरणे
तुम पर नज़र करती थी !!!

रात को चाँद एक उदास बदली में जाकर छुप गया;
तो मैंने तड़प कर उससे कहा,
यार तेरी चांदनी तो दे दे मुझे।
चाँद ने अपने आंसुओ को पोछते हुए कहा
मुझसे मेरी चांदनी छीन ले गयी है
कोई तुम्हारी चाहने वाली,
जिसके सदके मेरी चांदनी
तुम पर छिटका करती थी;

रातरानी के फूल चुपचाप सर झुकाए खड़े थे
मैंने उनसे कहा,
दोस्तों मुझे तुम्हारी खुशबू चाहिए,
उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा
हमसे हमारी खुशबू छीन ले गयी है
कोई तुम्हारी चाहने वाली,
जिसके सदके हमारी खुशबू
तुम पर बिखरा करती थी;

घर भर में तुम्हे ढूंढता फिरता हूँ
कही तुम्हारा साया है,
कही तुम्हारी मुस्कराहट
कहीं तुम्हारी हंसी है
कही तुम्हारी उदासी
और कहीं तुम्हारे खामोश आंसू
तुम क्या चली गयी
मेरी रूह मुझसे अलग हो गयी

यहाँ अब सिर्फ तुम्हारी यादे है
जिनके सहारे मेरी साँसे चल रही है।
आ जाओ प्रिये
बस एक बार फिर आ जाओ
आबार एशो प्रिये
आबार एशो !!!!!

कविता सुनाकर निशिकांत ने अनिमा को देखा।

अनिमा के जीवन का सारा दर्द जैसे आंसुओ के रूप में बह रहा था। उसका अकेलापन, उसकी तकलीफे सब कुछ जैसे उसे अपराधी ठहरा रहे थे कि उसने कभी भी किसी को आबार एशो नहीं बोला। और न ही किसी के आबार एशो कहने पर रुकी या फिर वापस आई ; अचानक श्रीकांत जैसे राख से निकल कर सामने खड़ा हो गया

निशिकांत उसे देखते रहा, फिर आगे बढकर उसे अपनी बांहों में लेकर उसके सर को हलके थपथपाने लगा। अनिमा थोड़ी देर में संयत हो गयी।

उसने निशिकांत से कहा। “कल मैं शान्ति निकेतन जा रही हूँ, कल मेरा जन्मदिन है, कल घर पर आ जाना। ”

निशिकांत ने मुस्कराकर कहा, “ मैं जानता हूँ। मैं आ जाऊँगा। ”

निशिकांत चला गया, कल आने के लिए। और अनिमा गहरे सोच में डूब गयी। पता नहीं क्या क्या उसके मन में कितने तूफान आ जा रहे थे।

कल...

शाम के करीब ५ बजे थे। दरवाजे के घंटी बजी तो अनिमा ने दरवाजा खोला, सामने निशिकांत था। अपने हाथो को पीछे में छुपाये हुए। जैसे ही अनिमा नज़र आई, निशिकांत ने रजनीगंधा के फूलो का एक छोटा सा गुलदस्ता उसे दिया। और बहुत ही अच्छे से, थोडा झुककर, थोड़े से नाटकीय ढंग से कहा, “जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाये “। अनिमा ने मुस्करा कर कहा। “थैंक्स। और इतना फार्मल होने की कोई जरुरत नहीं है। ”

निशिकांत ने घर के भीतर आकर कहा, “ और कोई नहीं है , क्या सिर्फ मैं ही इनवाईटेड हूँ। ?” अनिमा ने कहा “ हां सिर्फ तुम। अब कहीं कोई और नहीं है। "

निशिकांत चौंककर अनिमा को गहरी नज़र से देखने लगा। अनिमा ने एक सफ़ेद रंग की तात की साड़ी पहनी हुई थी, जिसके किनारे पर लाल और हरे रंग की बोर्डर बनी हुई थी। और उस बोर्डर पर छोटी छोटी चिड़ियाएँ बनी हुई थी। जिनका रंग थोडा सा आसमानी नीला था।

निशिकांत ने कहा। आज तो बड़ी अच्छी लग रही हो । अनीमा शायद अभी अभी नहाई हुई थी। उसके गीले बालो से पानी की बूंदे टपक रही थी। निशिकांत धीरे धीरे पास आया और कहा मैंने तुम्हारे लिए तीन गिफ्ट लाया हूँ। एक तो ये रजनीगंधा के फूल है, जो कि, अनिमा ने बात काटकर कहा, “मुझे बहुत पसंद है। ” निशिकांत मुस्करा कर बोला “और दुसरे ये एक सीडी है जो की किशोर कुमार के गानों की है। ” अनिमा ने उस सीडी को लेते हुए कहा, “अहो, ये भी मुझे पसंद है। ” निशिकांत ने मुस्कराते हुए कहा, “और तीसरी ये एक किताब है : ज़ाहिर - पाउलो कोहेलो की। ये भी पसंद आएँगी तुम्हे। ”

अनिमा ने मुस्कराकर कहा, “और एक गिफ्ट है और वो तुम हो। मैंने तुम्हारे लिए बहुत सारा बंगाली खाना बनाया है, जैसे आलू पोश्तो,” निशिकांत ने बात काटकर कहा, “ये तो मुझे बहुत पसंद है, ” अनिमा ने मुस्कराकर कहा “और मूंग की दाल, और बैंगन भाजा फ्राय। ” निशिकांत ने कहा, “यार पहले खाना खिला दो। बर्थडे तो बाद में मना लेंगे। ”

दोनों खिलखिलाकर हंसने लगे। निशिकांत ने देखा की, आज अनिमा बहुत खुश नज़र आ रही है। और ये ख़ुशी उसके सारे पर्सनालिटी पर छाई हुई है।

अनिमा के घर निशिकांत पहली बार आया था। अनिमा का घर एक कलाकार का ही घर था। बहुत करीने से बहुत सी चीजो से सजा हुआ था। एक कोने में ग्रामोफोन रखा था, उसे देखकर निशिकांत ने आश्चर्य से पुछा ये चलता है ? अनिमा ने कहा, हां भई चलता है, आओ तुम्हे कुछ पुराने गाने सुनाऊं। दोनों ने बैठकर बहुत से गाने सुने।

फिर अनिमा ने कुछ पुरानी पेंटिंग्स दिखाई निशिकांत को। निशिकांत ने कुछ नयी कविता सुनाई अनिमा को।

रात को दोनों ने जमीन पर बैठकर मोमबत्तियो की रोशनी में भोजन का इंतजाम किया। सुरीला संगीत और हलकी हलकी खुशबु रजनीगंधा के फूलो की। और फिर खिडाखियों से छन कर आती हुई चांदनी। एक परफेक्ट रोमांटिक माहौल था।

खाने के बाद, जमीन पर ही बीचे हुए गद्दों पर बैठकर दोनों ने बाते कहनी चाही।। पर अनिमा ने मुंह पर उंगली रख कर मना कर दिया। बस उसने कहा, “रात की इस खामोशी को कहने दो और जीवन को बहने दो। कुछ न कहो। बस मौन में रहो। ”

निशिकांत ने मुस्करा कर कहा, “अच्छा जी, अब तुम भी कविता करने लगी। ”

फिर बहुत देर तक वो दोनों चुपचाप बैठे रहे। निशिकांत धीरे से उठकर अनिमा के पास बैठ गया। अनिमा ने उसकी ओर मुंदी हुई आँखों से देखा।

निशिकांत ने कहा, “अनिमा, मैं कुछ कहना चाहता हूँ। ” अनिमा ने कुछ न कहा, बस एक प्रश्न आँखों में लेकर देखा। निशिकांत ने देखा की उसके होंठो पर बहुत प्यारी से मुस्कान उभर आई है। निशिकांत ने उसके सर पर हलके से अपना हाथ रखा। और धीरे से कहा।। “आमी तोमको भालो बासी अनिमा। सच में। बस अब एक ठहराव चाहिए जीवन में। और मैं तुम्हारे आँचल तले ठहरना चाहता हूँ। अनिमा। ”

अनिमा ने उसकी ओर देखा, कुछ न कहा। और आँखे बंद कर ली।

निशिकांत बहुत देर तक अनिमा की तरफ देखता रहा, सोचा की, वो कुछ कहेंगी जवाब में, लेकिन अनिमा ने कुछ न कहा।। रात बहुत गहरी होती जा रही थी। निशिकांत उसी गद्दे पर लेट गया। पता नहीं उसे कब नींद आ गयी, सफ़र की थकान थी।।

पर अनीमा की आँखों में नींद नहीं थी। उसके जेहन में निशिकांत के शब्द ठकरा रहे थे।। बस अब एक ठहराव चाहिए जीवन में। और मैं तुम्हारे आँचल तले ठहरना चाहता हूँ, अनिमा …। !

बाहर, रातरानी के फूलो ने और आसमान पर छाए हुए तारो ने और गहरी होती हुई रात ने इनके प्रेम को एक निशब्द सा मौन ओड़ा दिया था।

आज...

सुबह चिडियों की तेज आवाजो से निशिकांत की नींद खुली। निशिकांत उठा तो देखा, अनिमा उसके साथ ही सो गयी थी, और सुबह की गहरी नींद में उसे देखना बहुत सुखद लग रहा था। निशिकांत बहुत देर तक उसे देखता रहा और फिर उठकर फ्रेश होकर चाय बनायी। उसने अनिमा को उठाया और उसे चाय पीने को कहा, अनिमा स्नान कर आई। श्रीकृष्ण ठाकुरजी की पूजा की गयी। फिर दोनों ने चाय पी।। चाय पीने के दौरान कोई कुछ नहीं बोला, अनिमा को निशिकांत की कही, कल रात की बात की गूँज सुनाई देने लगी। अनिमा ने गहरी नज़र से निशिकांत को देखा। निशिकांत चुपचाप चाय पी रहा था।

अचानक निशिकांत उसकी तरफ मुड़ा और कहा, “तुम्हारे घर में ये फूलो के पौधे और उन पौधों पर बसती हुई ये चिड़ियाँ नहीं होती तो, ये घर तुम्हारी identity नहीं बन पाती।”

अनिमा ने स्निग्ध मुस्कान के साथ कहा , “हाँ निशिकांत, तुम सच कह रहे हो” फिर अनिमा ने कहा, “चलो, तुम्हे कोई गीत सुनकर विदा करते है। ”

अनिमा ने ग्रामोफोन पर आशा भोंसले का एक बंगाली गाने का रिकॉर्ड लगाकर शुरू कर दिया। कमरे में कोने में रखे हुए ग्रामोफोन पर आशा भोंसले की आवाज में एक सुन्दर सा बंगाली गीत बजने लगा, "कोन से आलोर स्वप्नो निये जेनो आमय!!!" सारे कमरे में रजनीगंधा के फूलो की खुशबु छाई हुई थी, अनिमा ने आँखे बंद कर ली, और निशिकांत ख़ामोशी से उसे देखते रहा!

अभी...

ग्रामोफोन का रिकॉर्ड बंद हो गया था, चिडियों की आवाजे अब नहीं आ रही थी। सिर्फ अनिमा के सुबकने की आवाज, रजनीगंधा के फूलो की खुशबु के साथ कमरे में तैर रही थी। और तैर रहा था दोनों का प्रेम !!

बहुत देर तक एक ख़ामोशी, जिसमे पता नहीं कितने संवाद भरे हुए थे; छायी रही।

अचानक ही एक कोयल ने कुक लगायी। अनिमा ने धीरे से अपना चेहरा उठाया।

निशिकांत ने उसके चेहरे को अपने हाथो से थाम कर कहा। " आमी तोमाके भालो बासी अनिमा " अनिमा ने उसकी छाती में अपने चहरे को छुपा कर कहा। “आमियो तोमाके खूब भालो बासी, निशिकांत। ”

अचानक बादल गरज उठे। निशिकांत ने कहा “ये बेमौसम की बरसात। this is climatic change !!"

अनिमा ने शर्मा कर कहा, “हाँ न, climatic change ही तो है। नहीं ?” निशिकांत भी मुस्करा कर कहा, “ हाँ। ”

अनिमा ने कहा, चलो, आज एक गाना सुनते है। उसने गाईड फिल्म का गाना लगा दिया " आज फिर जीने की तमन्ना है। आज फिर मरने का इरादा है "

गाने के बोल और सुरीला संगीत, घर में गूंजने लगे और अनिमा और निशिकांत दोनों के चेहरे खिल गए ! दोनों का प्रेम रजनीगंधा के फूलो के साथ शान्तिनिकेतन के इस कमरे में महकने लगा।