आमार प्रणव दा / विनीत कुमार
जी न्यूज की हेडर देखकर पोल्टू दा ने दांत पीसने शुरु कर दिए थे।
"दो जूता मारो स्साले इन चैनलों को। अभी से ही लिख रहा है महामहिम प्रणव।"
सुलक्षणा अचानक से उठकर चल दी थी। पोल्टू दा एकदम से खुश हो गए। सोचा, सुलक्षणा को ये हेडर इतनी बुरी लगी कि वो इसे देख भी नहीं पा रही है। टाटा स्काई रिमोट की लाल बटन को दांत पीसते हुए दबाया और सुलक्षणा की तरफ बढे।
"आमिओ देखते पारि नाय", सुलक्षणा को टाइट हग देते हुए जोर से किस्स किया। आज बहुत प्यार आ रहा था सुलक्षणा पर औऱ वैसे भी हम जिस बात को पसंद नहीं करते, पार्टनर भी न करे तो प्यार दुगुना हो जाता है... अपने कमरे में आकर सुलक्षणा ने आठ साल पुरानी अटैची निकाल ली थी। रंगीन अखबार इतिहास के गडढे में धंसकर मटमैला हो गया था। आनंद बाजार का शहर/आसपास का पन्ना निकाला। उसने अभी तक पूरा अखबार ही रखा था, उसकी कतरन भर नहीं। जूड़े में बेली का गजरा, लाल पाढ़वाली छपा साड़ी, बड़ी-सी बिंदी, पैरों में घुंघरु, चेहरे पर मुस्कान और बंगाल के बड़े नेता प्रणव दा से पुरस्कार लेती हुई। सुलक्षणा उस तस्वीर को फिर से चूमती है। वो खुश होती है कि जिस प्रणव दा ने उसे आज से आठ साल पहले पुरस्कार दिया, अब राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं।
"जान, एटा देख न एकटू, आमार प्रणव दा"
पोल्टू दा का इंटरवल के बाद फिर से दांत पीसना जारी था...