आया ऊँट पहाड़ के नीचे / शोभनाथ शुक्ल

Gadya Kosh से
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मास्टराइन भौउजी की दबंगई देखिये हफ्ते में एकाध दिन की बात कौन कहे, महीने में एकाध घंटे के लिए भी स्कूल आना नहीं चाहती। जो भी हेड मास्टर आता है वे स्थानीय होने के नाते उस पर किसी न किसी तरह दबाव बनवा ले जातीं और अगर कोई हेडमास्टर कुछ दाँये-बायें करता तो वे पब्लिक की तरफ से इतना शिकायती प्रार्थना पत्र डलवा देंती कि वह बेचारा हेड मास्टर अन्ततः पस्त हो जाता और वे शेरनी की तरह अपना वर्चस्व बनाये रखने में कामयाब हो जाया करतीं।

इस तरह नौकरी करते-करते तेरह महीने से ऊपर गुजर चुके पर न तो हेड मास्टर और न ही विभाग की ओर से उन पर कोई कार्यवाही हो पाई. हेड मास्टर राधेलाल ने आते ही उन पर अनुशासन का कोड़ा चलाया तो ज़रूर था पर महीने भर के अन्दर ही वे निलम्बित हो गये। उनके निलम्बन पर वे ताल ठोंक कर कहतीं...'देखा चला था हमें अनुशासन सिखाने, अरे मैंने तो संदेशा भेजवा कर कहला दिया था कि जैसे चल रहा है चलने दीजिए...मैं कहाँ स्कूल में अपना समय लगा पाऊँगी...और भी तो काम है पर वह माना नहीं उसको तो अपनी दलित जाति का घमण्ड था।'

हुआ यह कि एक दिन हेडमास्टर ने उन्हें बुलवाया और समझाते हुए कहा कि 'देखिये मैड़म यह बड़ा ही दुर्भाग्य था कि आप के पति की असमय में मृत्यु हुई और विभाग की अनुकम्पा से आप को नौकरी मिली तो कम से कम आप उस दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलिये और अपनी ड्यूटी कीजिए...नौकरी को दांव पर न लगाइये न हमारी न अपनी।' बस हेड मास्टर का इतना ही कहना था कि वे उनके कमरे से अपने को अस्त-व्यस्त करते हुए चिल्लाती हुई बाहर निकलीं-'बचाओ...ये हरामी मास्टर तो हमारी देह पर आँख गड़ाये है...कमरे में बुलाकर समझा रहा था कि वह दुर्भाग्य था कि आप विधवा हो गई पर अब आप जीवन को सौभाग्य में बदल सकती हैं...कहते-कहते मेरे शरीर पर हाथ लगा दिया और मैं न भागी होती तो ना जाने...क्या कर बैठता...हरामी कहीं का अपनी औकात भूल गया।'

बात विभाग तक पहुँची। पुलिस थाने में गई और हेड मास्टर साहब निलम्बित हो गये... आगे चलकर पुलिस का लफड़ा भी बढ़ गया और फिर जमानत के लाले पड़ गये उन्हें।

मास्टराइन भौजी बिना पढ़ाये वेतन लेती हैं यह तो सभी जानते थे पर वे अपनी नौकरी के लिए दूसरे के ऊपर इस इल्जाम तक जा सकती हैं...सुनकर सब ने दांतों तले अंगुली दबाई। बाद में आने वाले अब किसी भी हेडमास्टर ने इतना जोखिम उठाने की हिम्मत नहीं ही की...ग्राम प्रधान तक ने हेडमास्टर से यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया था कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता...जाने दो एक टीचर नहीं पढ़ायेगा तो चलेगा...वैसे भी कहाँ सब कुछ दुरूस्त चल रहा है। सरकारें भी तो यही चाहती हैं कि उनके वोटरों पर शिकंजे न कसे जायें तो हेड मास्टर जी आप ही काहें को पंगा लेते हो..., एक तो करेला दूसरे नीम चढ़ा... एक तो औरत दूजे विधवा। चलने दो जैसे चल रहा है। '

हेड मास्टर साहब को प्रधान की बात अंशतः सच ही लगी। उन्हें भी एक सहारा मिल गया पर इसका असर दूसरे अध्यापकों पर पड़ना लाजमीं था...उन्हें कैसे रोका जाय...कैसे टोका जाय? हेड मास्टर के लिए यही सबसे बड़ी मुसीबत थी।

कोई साल भर पहले ही उनके पति का आकस्मिक निधन हुआ था तब गांव-जवार से लेकर विभाग तक उनके पक्ष में सहानुभूति की ऐसी लहर उठी कि राख ठण्डी भी नहीं हो पाई थी कि चारों ओर से मास्टराइन भौजी पर दबाव बनने लगा था। उनकी आंखों के आँसू कहाँ थमे थे जब उनके जेठ ने समझाया था कि छोटे की जगह तुम्हें ही मास्टरी करनी है। तुम प्रार्थना पत्र पर हस्ताक्षर बनाओ बाकी हम संभाल लंेगे। कहाँ स्कूल जाना है तुम्हें...मेरे रहते किसी अधिकारी-हेडमास्टर का कोई दबाव नहीं चलेगा। अधिकारी की शिकायत ऊँचे हुई नहीं कि समझो अफसर पिद्दी हो जाते हैं और तुम औरत हो...मर्द अधिकारी की नब्ज पकड़ने की कला आनी चाहिए तुम्हें। '

काफी ना-नुकुर के बाद अन्ततः तेरहवीं बीतते-बीतते उनका आवेदन विभाग के हवाले हो गया।

मास्टराइन भौजी का चेहरा देखकर लोग यही दुआ करते कि उनकी नौकरी जल्दी पक्की हो जाय। जब से वेे आई इस गाँव-घर में बहू बन कर उनका चेहरा बहुत कम लोगों ने देखा है। घर से बहुत निकली तो द्वार तक...फिर आगे बस...सुबह-शाम मुँह अंधेरे ही वे घर की औरतों के साथ बाहर निकलती... पर अब तो इधर घर में ही शौचालय बन जाने के कारण उतना भी निकलना बन्द हो गया। छोटे की मौत ने उन्हें और भी एकान्तवासी बना दिया। अपने भाई की मौत पर लछमन तिवारी भी टूट से गये थे पर तिकड़मी स्वभाव के कारण वे अभी तक हार नहीं माने थे। मास्टराइन भौजी यूँ तो बी0ए0 पास की डिग्री रखती थी पर कायदे से वे कक्षा सात तक ही स्कूल गईं थीं। बाकी बिना स्कूल गये, बिना पढ़े ही नहीं बल्कि बिना परीक्षा में लिखे वे बी0ए0 तक पहुँच गई और जिस दिन रिजल्ट निकला प्रथम श्रेणी में स्नातक उपाधि उनके सिर माथे पर आ चिपकी...उस दिन तो सबसे ज़्यादा खुशी उनके जेठ को ही हुई थी क्योंकि सुनियोजित अभियान में वे शत प्रतिशत सफल हो गये थे, इसके पूर्व भी गृह परीक्षाएँ तो स्लिप पर अंकित नम्बरों से सरकती रही और बोर्ड में तो फोटो दूसरी लड़की की लगी और परीक्षा पास की इन्होनें। बी0ए0 तो और भी आसान हो गया है। वित्त विहीन डिग्री कालेजों ने शिक्षा के क्षेत्र में इतना अधिक योगदान दिया है कि गावँ-खेड़ा में खेती किसानी करते, बाल बच्चे पैदा करते, पंचायत चुनाव लड़ते लड़के-लड़कियाँ, बुजुर्ग महिला-पुरूष सब के सब बी0ए0 की उपाधि बतौर बोनस प्राप्त कर ही लेते हैं...जगह-जगह भव्य इमारतों के रूप में खड़े ये स्थल...प्रवेश और परीक्षा के खेल में इतने माहिर हो चुके हैं कि अब भट्ठा चलाने वाले, ठेकेदारी करने वाले या पंचर बनाने वाले भी प्रबन्धक बन कर शिक्षादान का पुण्य बटोर रहे हैं।

कुछ इसी तरह की व्यवस्था में संचालित इण्टर कालेज में स0अ0 है लछमन तिवारी... इण्टर कालेज क्या? स्थाई मान्यता तो कक्षा 8 तक की ही है पर शिक्षा विभाग में क्या कुछ नहीं होता। प्राइमरी की अस्थाई मान्यता वाले भी हाई स्कूल-इण्टर तक की कक्षाएँ संचालन के बड़े-बड़े बोर्ड लगा कर बैठे हैं...न अभिभावक कभी पूछता है न विभागीय अधिकारी कि जिन स्कूलों में बच्चे का प्रवेश हाई स्कूल-इण्टर कक्षाओं में हो रहा है वे मान्यता प्राप्त हैं भी या नहीं। जिसका जितना बड़ा बोर्ड उसका उतना बड़ा रूतबा। तिवारी जी यानि...साफ रंग, कद-काठी मझोली पर गठी हुई। मूंछे रखने के शौकीन हैं। धोती-कुर्ता-जाकेट (सदरी) और कन्धे पर मौसम के अनुरूप सफेद शाल...यही पहनावा है उनका। कस्बे की बाज़ार से एक डे़ढ़ किलोमीटर की दूरी पर गांव है उनका...पर दिन भर उनका समय या तो बाज़ार में, ब्लाक पर या फिर शिक्षा विभाग के दफ्तर में ही व्यतीत होता है। पहले तो वे साइकिल से चलते थे पर जब से उनके सर्मपण भाव को शिक्षक संघ ने पहचाना है वे शिक्षक के रूप में उदासीन और शिक्षक समस्याओं के प्रति विनम्र और जागरूक होते चले गये। उन्होंने वर्तमान शिक्षक पीढ़ी की नब्ज को पहचाना है फिर क्या था वे थोक भाव में शिक्षक समस्याएँ इकट्ठा करते और विभागीय अधिकारियों के पास उसके निपटारे हेतु पैरवी में जुट जाते हैं। बाबू की टेबिल से अधिकारियों के आवास तक उनकी कर्मठता वटवृक्ष की तरह फलने-फूलने लगी...कार्यालयी व्यवस्था में लेन-देन एक स्वाभाविक प्रक्रिया मानी जाती है। शुरूआती दौर में यही घूस कही जाती थी फिर सुविधा शुल्क के रूप में गौरवान्वित हुईऔर अब यह 'आर्शीवाद' जैसे पवित्र शब्द के साथ जुड़ गई...इस तरह लछमन तिवारी आशीर्वाद के लेन-देन में इतने अधिक माहिर हो गये कि अब वे नये माडल की बुलेट पर चलने लगे।

काम तो हर शिक्षक-कर्मचारी का पड़ता ही रहता है सो लछमन तिवारी एक सेतु की तरह लोगों को पार उतारने के पवित्र कार्य में लग गये। न तो प्रधानाचार्य ने न विभाग के किसी अधिकारी ने कार्यालय में नियमित उनकी उपस्थिति पर कभी इतराज जताया। लछमन तिवारी ने अपनी पहिचान का दायरा काफी बड़ा बना लिया। वी0आर0सी0 से बी0एस0ए0 दफ्तर तक, डी0आई0ओ0एस0 दफ्तर से डी0डी0आर0-शिक्षा निदेशालय तक। प्राथमिक शिक्षा हो या माध्यमिक या फिर उच्च शिक्षा से जुड़ी किसी की कोई समस्या हो सबका समाधान लछमन तिवारी के जरियेे मौजूद था...जाहिर है सिर्फ़ 'आर्शीवाद' के लेन-देन से ही कार्य की सिद्धि सम्भव नहीं थी सो विधायकों, मन्त्रियों के सम्पर्क हेतु वे सचिवालय तक पसर गये। फिर अधिकारी, उनके द्वारा सौंपे कार्य को करने में ना नुकुर कैसे कर पाता।

अपने इसी प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने अपने छोटे भाई की विधवा पत्नी को मनमुताबिक प्राइमरी स्कूल में अनुकम्पा नौकरी दिला दी, जो पहले से ही घर-परिवार में मास्टराइन भौजी के नाम से जानी जाती थीं। कार्यभार ग्रहण कराने के बाद उन्हांेने सिर्फ़ इतनी हिदायत दी थी कि'अब तुम्हें वेतन लेना है...घर पर रह कर परिवार देखना है और यदा-कदा हेडमास्टर से लेकर वी0आर0सी0 तक पुरूष अधिकारियों की नब्ज पर हाथ रखे रहना है...बाकी तो मैं हूँ। देख लूँगा...'।

जेठ की हिदायत को उन्होंने गांठ बांध ली और साल भर से ऊपर बीतने को आया वे बा मुश्किल दो-चार बार ही स्कूल गई होंगी। यदि किसी हेड मास्टर ने शिकंजा कसना चाहा भी तो वह राधेलाल की तरह परेशान ही रहा

इस बार वित्त विहीन स्कूलों को परीक्षा केन्द्र बनवाने में लछमन तिवारी ने अहम् भूमिका निभाई थी। परीक्षा प्रभारी भगौती सिंह बाबू से उनकी खूब छनती रही है...वित्त विहीन स्कूलों को परीक्षा केन्द्र बनवाने के लिए उनके प्रबन्धकों द्वारा जिस जोड़-तोड़-जुगाड़ का खेल खेला जाता है। इन्हीं शिक्षकों-बाबुओं के बल पर ही उसकी नीलामी तय होती है। फिर क्या...? परीक्षा की सुचिता बनाये रखने के, नकल विहीन परीक्षा कराने के बड़े-बड़े दावों की पोल परीक्षा के पहले ही दिन खुल जाती है...शिक्षा माफियाओं। अधिकारियों-नेताओं की मिली भगत करोड़ों की आमदनी कराती है। लछमन तिवारी, पूरे जिले में इसके एक मात्र ठेकेदार बनकर उभरे थे। विगत तीन वर्षों से डिबार रहने के बाद इस बार वे अपने विद्यालय के अलावा चार अन्य स्कूलों को केन्द्र बनवा ही ले गये थे। खर्चा तो बहुत नहीं आया पर स्वाभिमान को ठेस तो कई-कई बार लगी पर सफलता मान-अपमान की परवाह नहीं करती। प्रबन्धक के खास हैं लक्षमन तिवारी तो प्रधानाचार्य स्वाभाविक तौर पर कुछ कहने की स्थिति में कहाँ रहेंगे। धीरे-धीरे वे पूरी व्यवस्था पर काबिज होते चले गये। लछमन तिवारी ने इस बार फिर से बड़ा सेन्टर बनवा कर आमदनी का जबरदस्त रास्ता खोल दिया है। सब खुश... भागते भूत की लंगूटी सही' की तर्ज पर थोड़ा-बहुत सभी शिक्षकों-कर्मचारियों ने बहती गंगा में डुबकी लगा ली।

स्कूल तो लड़कियों के लिए स्व0 केन्द्र रहता था ही नियमों के विपरीत केन्द्रों की अदला-बदली कराई गई और मन मुताबिक बच्चों को केन्द्र पर भेजा गया सो आपसी समझदारी का परिणाम यह हुआ कि अस्सी प्रतिशत बच्चे प्रथम श्रेणी में, बाकी द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हो गये। अंकपत्र और टी0सी0 भी 500-500 में बिकी... जो बतौर विद्यालय विकास हेतु नजराना ही था...फिर लछमन तिवारी और प्रबन्धक जी की फोर व्हीलर जून के अन्त तक घर पर आ खड़ी हुई. हाँ प्रधानाध्यापक जी भी टी0वी0एस0 सुजुकी से पल्सर पर आ गये।

'यह दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे...' की तर्ज पर भविष्य में यह तिकड़ी इतनी ज़्यादा कारगर साबित हुई कि विद्यालय में छात्र-छात्राओं की अपार भीड़ इकट्ठा हो गई. विधायकों-मन्त्रियों तक चूंकि तिवारी की अच्छी पैठ थी ही सो स्कूल को इन सबकी निधियाँ मिलती रहीं और स्कूल उस क्षेत्र में बिल्डिंग के मायने में नम्बर वन हो गया... अब लछमन तिवारी के घर दरबार लगने लगा। विभागीय कार्यांेे को कराने में तो वे पहले से ही लगे रहे हैं और एडमीशन, परीक्षा में अच्छे अंकों की पैरवी...कई-कई विभागों में नौकरियाँ दिलाने तक के लिए वे सफलता पूर्वक काम करते रहे और भीड़ उनके आगे-पीछे घूमती रही।

काना फूसी की कभी उन्होंने परवाह नहीं की। आलोचना को कोई तवज्जो नहीं दी उन्होंने। उनका कहना था 'कि हम्माम में सभी नंगे हैं। जिनको मौका नहीं मिला वे ही ईमानदारी की शेखी बघारते हैं। मैं तो जिन-जिन नेताओं-मन्त्रियों-अधिकारियों के सम्पर्क में काम लेकर आया' पूँछ उठाने पर मुझे सभी मादा ही नजर आये। 'काम साधने में तिवारी जी अद्भुत कला साधक थे। काम बिगड़ते देख गिड़गिड़ाते-पैर लगने में कोई कोताही नहीं और कमजोर को इस तरह फटकारते कि पूछो मत...सामने वाली की घिग्घी ही बंध जाती थी। वे समय की नब्ज पर हाथ रखे थे...वे जानते थे कि आज अधिकांश लोग सार्टकट का रास्ता चुनना चाहते हैं...' आर्शीवाद' के लेन-देन में कोई हिचक नहीं होती उन्हें...मुँह पर चांदी की जूती मारो काम कराओ...वापस घर। आफिस के चक्कर-काटने में समय की बरबादी ही तो होती है और फिर उन सबको लछमन तिवारी जैसे लोग ही रूचिकर लगते हैं।

एक समय था जब राजनीति ईमानदारों को अपनी ओर खींचती थी पर अब यह सिद्धान्त उलट गया है। भ्रष्ट, बेईमान, गुण्डे-बदमाश-अपराधी अब राजनीति के नवरत्न बन बैठे हैं... चापलूसों-नाकारा लोगों से भरा है राजनीति का दालान...फिर भी लोकतंत्र फलफूल रहा है। चुनाव हो रहे हैं...मंच पर जनहित-विकास, जन सुविधाओं की बातें गायब हैं...मसखरी हो रही है...विदूषकों का भाषण चल रहा है...बड़े-छोटे का लिहाज गायब है...धर्म-जाति की जड़ों में खाद-पानी डाला जा रहा है...वादों की खंझड़ी बज रही है...रोजी-रोटी न्याय की समस्या हल करने के बजाय मुफ्त चीजें देने की फेहरिस्त पढ़ी जा रही है।

जनता क्या सोच रही है वह क्या चाहती है? इन आकाओं को इसकी भनक तक नहीं हैं... इसी तरह के माहौल में लछमन तिवारी भी पंचायत चुनाव में अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं। काफी दिनों से वे महसूस कर रहे हैं कि राजनीति उन्हें अपनी ओर खींच रही है। वे चाह कर भी उससे दूर नहीं रह पायेंगे अब ज़्यादा दिन। रात में अब वे ज्यादादेर तक जागने लगे हैं। खाना तो ग्यारह के पहले खाते ही नहीं हैं। मास्टराईन भौजी की जिम्मेदारी बढ़ गयी है। जेठ ने खाना नहीं खाया तो वे पहले कैसे खा लें...सो जेठ की हर सुविधा का ख्याल रखते-रखते बारह तो बज ही जाते हैं।

लछमन तिवारी के दिमाग में ब्लाक प्रमुखी बैठ गई है। इस बार किसी भी कीमत पर चुनाव में इस पद के लिए जुगाड़ बैठाना ही बैठाना है। अपने हित-मित्रों को अभी से इस काम के लिए लगा दिया है औरतों के बीच मास्टराइन भौजी बराबर बैठकी करती रहती हैं... हालांकि तिवारी की छवि दलाल जैसी है पर यह बात भी लोगों के जेहन में रहती हैं कि जो काम कठिन से कठिन हो उसे लछमन तिवारी चुटकी बजाते करा ले जाते हैं। यह भी कि वे 'आर्शीवाद' के लेन-देन मेंकाम करा लेने के प्रति विश्वसनीय भी हैं... सो उन्हें उम्मीद है कि पंचायत चुनाव तो वे जीत ही लेंगे...गांव-जँवार में हर के दुख-दर्द, शादी-भोज, मरगी-तेरहवीं पर वे अवश्य पहुंँचते हैं।

स्कूल स्टाफ से लेकर नाते-रिश्तों तक तिवारी के पक्ष में अभी तक तो लोग बोलते आये हैं। लछमन तिवारी मानते हैं कि पिच तैयार है बस बल्ला थामने की देर है। रेफरी ने सीटी बजाई नहीं कि मैदान जीत लिया। लछमन तिवारी आज की राजनीतिके लिए उपयुक्त व्यक्ति हैं। उनका सपना बड़ा है, पर वहाँ तक पहुंचने के लिए ब्लाक प्रमुखी को वे बतौर सीढ़ी इस्तेमाल करना चाहते हैं। पंचायत चुनाव में सफलता के बाद किसी भी राजनीतिक पार्टी में वे खप जायेंगे। फिर विधायक-मंत्री बनने का सपना साकार हो जायेगा...उनके सपनों को पंख लग गये हैं। इन सपनों को पंख लगाने में उनके स्कूल का एक चपरासी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। नाम तो उसका राम यस है पर अपजस का टीका उसके माथे पर स्थाई तौर पर चस्पा हो गया है...नौकरी पर रखने के बाद से ही वह स्कूल के कई-कई कामदेखता रहा है। प्रधानाचार्य के व्यक्तिगत कार्य से लेकर प्रबन्धक के तमाम घरेलू कार्य उसके जिम्मे हैं। लछमन तिवारी को सबसे अधिक सम्मान देने के पीछे तिवारी की प्रबन्धक से गहरी दोस्ती ही है...प्रधानाचार्य से कहीं ज़्यादा तिवारी सर को वह ताकतवर मानता है...तीन हजार से नौकरी शुरू कर अब वह सात हजार की तनखाह उठा रहा है...सामानों की खरीद फरोख्त में, छात्र-छात्राओं के प्रवेश से लेकर परीक्षा में उत्तीर्ण कराने तक के खेल में अन्दर-अन्दर उसकी आमदनी 100-200 रूपये रोज की हो जाती है...वित्तविहीन स्कूलों में इससे कम वेतन पर तो अध्यापक पढ़ा रहे हैं।

तिवारी भी रामजस पर काफी भरोसा करते हैं हालांकि नमक से नमक नहीं खाया जाता की तर्ज पर तिवारी उससे सतर्क भी रहा करते हैं...कभी-कभी रामजस की मक्कारी पर वे खिन्न हो जाते हैं पर वह कभी भी तिवारी के प्रति अवज्ञा का भाव नहीं रखता है। तिवारी का आदेश हुआ नहीं कि रामजस एक पैर पर भागता है...स्कूल के कईयों को यह रास भी नहीं आता पर क्या कर सकते हैं। तिवारी तो सबकी मजबूरी है। प्रधानाध्यापक से लेकर प्रबन्धक तक उनके मुरीद जो हैं...और टीचर तो स्कूल के बाद ट्यूशन-कोचिंग में व्यस्त रहते हैं। स्कूल के बाद फिर वे न तो प्रबन्धक की ओर न ही प्रधानाचार्य की ओर मुँह करते हैं। लछमन तिवारी ही ऐसे टीचर है जो स्कूल के विकास के लिए चिंतित रहते हैं। स्कूल प्रबन्धन की कमाई बढ़ाने के रास्ते तलाशते रहते हैं। उनकी सक्रियता हालांकि अन्दर-अन्दर प्रिंसिपल को नागवार लगती है, पर क्या कर सकते हैं। तिवारी के बलबूते ही सबके पास गाड़ियाँ हैं। प्रबन्धक का दबदबा बना है। प्रिंसिपल को कोई अनुशासन सम्बन्धी परेशानी नहीं झेलनी पड़ती है...पवस्त में भी तिवारी का दबदबा जो कायम है, सो वसूली का कभी किसी गार्जियन ने कोई विरोध नहीं किया। एक बार तो शुरूआती दौर में पिं्रसिपल ने तिवारी की सुविधाएँ कम कर दीं और एकाध स्पष्टीकरण तक माँग लिया फिर क्या था जिस वसूली को तिवारी कभी विद्यालय विकास के लिए जायज मानते थे, एकाएक उसे नाजायज-अवैध करार देते हुए पब्लिक से कई शिकायती पत्र डी0आई0ओ0एस0 से लेकर डी0एम0-शिक्षा निदेशक तक डलवा दिया, फिर पैरवी कर जांच करवा दी और अपने ही सामने प्रिंसिपल को गिड़गिड़ाते हुए देखकर बाद में जांच को खत्म भी करवा दिया...तब से पिं्रसिपल ने उनकी तरफ उंगुली नहीं उठाई...ऐसी ही असामान्य स्थिति एक बार और आई थी। रामजस के साथ... हुआ ये कि अचानक एक दिन कुछ अभिभावकों का हुजुम प्रधानाचार्य के कक्ष को घेर लिया। स्कूल में हंगामा शुरू हो गया...'रामजस कहाँ है...उसे बुलाओ...वह हरामी कहीं का चपरासी की औलाद छेड़खानी करता है स्कूल में...बुलाओ उसे।'

प्रधानाचार्य की घिग्घी बंध गई. किसी अन्य टीचरों की हिम्मत नहीं हुई कि इस मसले पर कुछ बोलें। बात प्रबन्धक तक पहुँची पर वे कहीं बाहर गये थे। सब की निगाहें लछमन तिवारी पर लगी थीं पर उनके स्कूल में होने का कोई सवाल ही नहीं था। प्रबन्धक ने बड़े बाबू को तत्काल, तिवारी को बुलाने की व्यवस्था करने का निर्देश दिया। बात तिवारी तक पहुँची और वे संयोग ही था कि ब्लाक पर गप्पे लड़ा रहे थे सो बीस-पच्चीस मिनट में आ धमके।

अभिभावकों ने अब तिवारी की ओर मुँह किया और सप्रमाण अपनी-अपनी शिकायतें रखीं उनके सामने...तिवारी को काटो तो खून नहीं...यह दो कौड़ी का चपरासी और इसकी इतनी बड़ी हिम्मत कि बच्चियों के साथ छेड़खानी कर बैठे...क्लास में अगली सीट पर बैठाने और परीक्षा में अच्छा अंक दिलाने की लालच देकर...तिवारी ने रामजस को वहाँ तत्काल बुलाना उचित नहीं समझा...लेकिन माहौल इतना गरम था कि तुरन्त उस पर पानी भी नहीं डाला जा सकता था। सो तिवारी ने अभिभावकों को अलग कक्ष में बैठाकर चाय नाश्ते की तुरन्त व्यवस्था कराई वहाँ सिर्फ़ प्रधानाचार्य को बुलाया और अभिभावकों के सामने रामजस की नौकरी खत्म कराये जाने का प्रधानाचार्य से आश्वासन दिलाया। एक हफ्ते में जवाब देने हेतु तुरन्त नोटिस टाइप कराई और प्रधानाचार्य के हस्ताक्षर के बाद उसे बड़े बाबू को रामजस को थमाने हेतु सौंप दिया। एक हफ्ते की मोहलत मांगी अभिभावकों से...तिवारी ने और सबके सामने प्रिंसिपल पर और अधिक कड़ाई बरतने का दबाव बनाया। बच्चियों को बुलाकर उन्हें पुचकारा और अब भविष्य में किसी भी तरह की परेशानी को तुरन्त संज्ञान में लाने का सुझाव दिया। अभिभावकों से यहीं पर सारी बातें खत्म करने की गुजारिश की और विद्यालय की इज्जत गांव-जँवार की इज्जत से जोड़ कर प्रबन्धक की ओर से माफी मांग ली।

बात आई गई खत्म हो गई पर रामजस फंस गया तिवारी के जाल में...'बहुत कन्नी काटता था साला...अब देखता हूँ कैसे उबरता है इस मुसीबत से।' तिवारी घर में बैठे अचानक बुदबुदा उठे। मास्टराईन भौजी रसोई में थीं पर उनके कानों तक यह आवाज पहुंची तो कुछ चौकन्नी हुई...चाय का प्याला उनके सामने रखती हुई प्रश्नवाचक निगाहों से देखा जेठ की तरफ।

-'आप कुछ बोले...? क्या।'

-'नहीं मास्टराइन यूँ ही कुछ सोच रहा था।'

-'आप आजकल कुछ ज़्यादा ही सोचने लगे हैं। अरे अभी दो महीने बाद ही चुनाव आने वाला है...आप का इतना दबदबा है तो उसकी चिन्ता में अभी से काहे सर खपा रहे हैं...फिर अभी तक तो कोई आप के खिलाफ मतबूत कन्डीडेट भी नहीं आया है।'

-'नहीं मास्टराईन वह बात नहीं है...आज स्कूल में कुछ ऐसी बात हो गई जिससे पूरी छीछालेदर हो जाती पर वोे तो मैं मौके पर पहुँच गया सो कुछ दिनों के लिए मामला रफा-दफा हो गया...वो ससुरा...मक्कार चपरासी है न रामजस... बहुत ज़्यादा सर पर चढ़ा रखा था प्रबन्धक ने...मास्टरों के बीच भी वह अपने को कुछ खास ही समझने लगा था। पर आज मैदान छोड़ कर भाग खड़ा हुआ।'

-'अरे क्या हुआ वह तो आप को बहुत सम्मान देता है।'

-'हाँ देता तो है जानता है न कि हमारे बिना किसी का काम चलने वाला नहीं है...मैने ही तो उसे रखवाया था पर मक्कार हरामी निकला।'

-'आखिर हुआ क्या...?'

-अरे स्साला...बच्चियों को क्लास में आगे की सीट पर बैठाने तथा परीक्षा में अच्छे नम्बर दिलाने की लालच देकर अश्लील हरकतें करता था...अभिभावकों को जानकारी हुई तो घेर लिया आकर प्रधानाचार्य को...उनकी भी घिग्घी बंध गई थी, वैसे तो बड़े काबिल बनते हैं पर मैं न पहुंचा होता तो आज नंगे हो जाते। '

प्रबन्धक दो दिन बाद लौटे तो अब सबसे बड़ी समस्या के तौर पर राम जस उनके सामने था। 'भई गति साँप छछून्दर केरी' न उगलते बन रहा था न ही निगलते...अगले दिन रविवार था। लछमन तिवारी को बुलवाया, राय-मशविरा किया और फिर चार बजे स्कूल में पूरे स्टाफ की बैठक बुलाली।

सबसे पहले प्रबन्धक ने मास्टरों के समूह को भला-बुरा सुनाया...

-'आखिर तिवारी जी न पहुंचे होते तो स्कूल की इज्जत दूसरे दिन अखबारों में नीलाम हो जाती...आप लोग कुछ नहीं कर पाये आखिर क्यों...? यह सबकी जिम्मेदारी बनती है कि किसी समस्या का सामूहिक तौर पर निदान तलाशा जाय पर नहीं महीनें में वेतन से मतलब...और हाँ जिनके क्लास की बच्चियों की तरफ से यह शिकायत मिली है उन कक्षाध्यापकों की और अधिक जिम्मेदारी बनती है...बच्चों से निरन्तर उनकी प्राब्लम पूछते होते तो यह बात अन्दर ही अन्दर दब जाती...बाहर क्यों कर आती।'

प्रबन्धक के गुस्से के आगे कौन आये। दस बारह हजार महीने का वेतन और स्कूल के सहारे ही ट्यूशन-कोचिंग भी मिल रही है सो दस-पांच हजार की व्यवस्था अलग से...प्रबन्धक के मुंह लग कर कौन जोखिम ले...सब चुप। ऐसे नीरव वातावरण में अचानक लछमन तिवारी की खनकती आवाज गूँजी।

-'भाइयों आप सब यह बताओकि रामजस के साथ क्या किया जाय नोटिस मिली है उसे। जवाब आये तो कोई न कोई एक्शन लेना ही पड़ेगा क्या निर्णय उचित होगा आप सब भी बताइये।'

पूरा स्टाफ चुप...बिल्ली के गले में कौन घंटी बांधे...तभी प्रबन्धक ने प्रधानाचार्य की तरफ देखा...

-'आप ही बताइये महोदय, रामजस का जो भी जवाब आयेगा वह अलग है पर इतनी बड़ी गलती करने की हिम्मत कैसे कर बैठा वह...आप का अनुशासन मुझे कमजोर लग रहा है।'

-'नहीं सर ऐसी बात नहीं है, पर मैं भांप नहीं पाया कि यह ऐसी हरकत भी कर रहा होगा...'

-'यही देखना, भाँपना तो आप का काम है आप को सारी सुविधाएँ मिली है, स्कूल की तरफ से...ऊपर से तीस हजार वेतन दे रहा हूँ... कहाँ किस स्कूल में इतना मिल रहा है...पता करिये तब मालूम पड़ेगा...फिलहाल मैं इस घटना से बहुत पजेल्ड हूँ...यह तो स्कूल की रेपुटेशन को ही खत्म कर देगा...आप समझिये इसको।'

प्रबन्धक ने थोड़ी देर तक चुप्पी साधी। माथा पकड़ कर बैठे रहे फिर लछमन तिवारी की तरफ मुखातिब हुए।

-'तिवारी जी आप ही इसका कोई हल खोजिए बाकी ये सब तो बकचोद हैं सब के सब।'

तिवारी ने बड़े बाबू से रामजस को हाजिर होने के लिए कहा। रामजस सिर झुकाये, हाथ जोड़े सामने उपस्थित हुआ। प्रबन्धक ने जलती निगाहों से देखा उसे... 'तेरी हिम्मत कैसे हुई रे हरामी बोल नहीं तो जेल भिजवा दूँगा और नौकरी जायेगी अलग से।'

रामजस क्या करता। तीनों के पैरों पर गिर पड़ा बारी-बारी से पर तिवारी ने उस पर ध्यान कम ही दिया। उनका मकसद था अध्यापकों की राय जानना। फिर तिवारी जी मुखातिब हुए स्टाफ की तरह और पूछा-'बोलिये भाई आप लोग जो कहेंगे वही किया जायेगा इसके साथ... स्कूल की इज्जत-प्रबन्धक की इज्जत को ध्यान में रख कर अपनी राय दीजिए...बोलिये।'

एक क्षण के लिए सन्नाटा छा गया कमरे में। तिरछी नजरों से एक दूजे को देखने लगे लोग...फिर गणित अध्यापक अनन्त कुमार सिंह ने कहा 'यह तो बहुत बड़ा अपराध है और स्कूल की विश्वसनीयता पर बट्टा लगा है तो हम सब की राय है कि रामजस को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाय ताकि अभिभावकों को लगे कि स्कूल का प्रशासन सख्त है। अन्य अध्यापकों से भी पूंछ लिया जाय सर।'

तिवारी ने अन्यों की तरह निगाह उठाई तो सभी ने एक स्वर से अनन्त कुमार का समर्थन कर दिया।

मीटिंग खत्म हो गई. तिवारी ने सभी केा विदा किया और रामजस की तरफ मुखातिब होकर बोले...'कल तक जवाब दो वरना अपना रास्ता नापो...समझे।'

अगले दिन सुबह ही रामजश तिवारी के दरवाजे पर मुँह लटकाये आ बैठा। अभी तो तिवारी जी मुँह में दातुन डाले लोटा उठाये ही थे कि मुसीबत सामने खड़ी मिली खैर तिवारी आधे घण्टे में वापस लौट कर आने की बात कहकर जानवरों की तरह इशारा किया और आगे बढ़ गये। रामजस की समझ में तुरन्त आ गया कि उसे क्या करना है। मास्टराइन भौजी के पांव छुए और जानवरों को चारा पानी देने में लग गया। काम निपटा कर बैठा ही था कि मास्टराइन भौजी की चाय आ गई. चाय थमाते हुए उन्होंने रामजस की बखिया उधेड़ना शुरू कर दिया और अन्त में यह कहते हुए कि 'जेठ जी तुम्हारे बारे में इतने चिंतित थे कि रात भर सोये नहीं' रामजस को सहानुभूति से सराबोर कर दिया। वह चाय पीता रहा, अपनी नौकरी, बाल बच्चों की ज़िन्दगी की भीख मांगता रहा और मास्टराइन भौजी गरम लोहे पर वार पर वार करती रहीं...'चिंता मत करो जेठ जी हैं तो तुम्हारे लिए कोई न कोई रास्ता अवश्य निकालेंगे...वैसे मैनेजर साहब और हेड मास्टर जी तो तुम्हें बिल्कुल नहीं चाहते...हाँ जेठ जी तो बता रहे थे कि पूरा स्टाफ तुम्हारे खिलाफ है।'

तिवारी जी लौटे तो रामजस ने उनका लोटा थाम लिया। मांजा और लोटे भर पानी से तिवारी जी का हाथ-पैर धुलवाया...तब तक मास्टराइन भौजी चाय लाकर खड़ी हो गईं।

-'जेठ जी आप तो सबके कल्याण के लिए लगे रहते हैं अब देखा ई रामजस का ...इसका उद्धार तो आप ही के वश की बात है, पर ई देखना भी ज़रूरी है कि मैनेजर-प्रिंसिंपल कैसे मानते हैं और आप ही के दबाव से मामला सब साइड हो सकता है।'

-'देखो मास्टराइन मामला थोड़ा टिपिकलहो गया है पर देखता हूँ चाय पी लूँ फिर फोन पर बात करके बताता हूँ...' तिवारी जी चाय पी रहे थे और मन ही मन मौके का फायदा उठाना भी चाह रहे थे...वैसे भी कौन किसे घास डालता है...फंसे तभी गांठ ढ़ीली होती है...'।

तिवारी ने घर आये शिकार की डीलिंग का काम मास्टराइन को सौप रखा है। उनका काम था ऐसे लोगों को डराना-धमकाना और फिर 'आर्शीवाद' लेने-देने के लिए तैयार करना...रामजस भी इस समय मास्टराइन के लिए एक शिकार ही था। प्रबन्धक से बात हुई और तिवारी ने दो लाख तक में मामला निपटा देने की बात रामजस के कान में धीरे से बता दी...रामजस की गिड़गिड़ाहट बढ़ गयी, 'कहाँ से लाऊँगा साहब इत्ता...कुछ और कम पर बात बन जाये तो जी जाऊँगा...'

तिवारी के बोलने के पहले ही मास्टराइन भौजी बोल उठी-

-'देखो रामजस...दो साल का वेतन समझो नहीं मिला...और हाँ अगर अभिभावकों का जोर दबाव बना रहा तो एफ0आई0आर0 भी हो सकता है और फिर ऐसे केसेज में जल्दी जमानत भी नहीं होती है...फिर तो जो सोचो...वैसे जेठ जी तो कम से कम में चाहते हैं पर पूरा स्टाफ तुम्हारे खिलाफ है और सबसे दुश्मनी नहीं मोल ली जा सकती...अब जैसा सोचो तुम चाहो तो मैनेजर से जाकर मिल लो...'

-'नाहीं साहब हम और कहीं नाहीं जाबै, हमरा कल्यान तो यहीं से होना है। बाकी सब तो इन साहब का पिछलग्गू हैं।'

बात तय होते ही तिवारी ने प्रिंसिपल द्वारा मांगे गये स्पष्टीकरण का जवाब लिखवा दिया और कल शाम तक बाकी इंतजाम का निर्देश देकर उसे घर भेज दिया। अगले दिन डेढ़ लाख तिवारी जी के खाते में जमा हो गया बाकी पचास में मैनेजर को संतुष्ट किया और निलम्बन माह का वेतन प्रिंसिपल के हवाले हो गया। अब रामजस की प्रतिदिन शाम की हाजिरी तिवारी के घर तय हो गई...जानवरों को चारा-पानी, घर के रसोई का भी थोड़ा बहुत काम वह निपटाता और तब घर जाता। हाँ तिवारी की उदारता इतनी थी कि शाम का खाना वह यहीं खाकर तभी घर जाता था।

दूसरे दिन शाम को प्रबन्धक के घर कुछेक कार्यकारिणी सदस्यों के साथ तिवारी जी और प्रधानाचार्य उपस्थित थे। बैठक में रामजस के बारे में निर्णय पर अन्तिम मुहर लगनी थी। लम्बी वार्ता के बाद तय हुआ कि कुछ बिन्दुओं के स्पष्टीकरण से असहमति होने की दशा में 15 दिन का एक मौका देते हुए पुनः रामजस से स्पष्टीकरण मांगा जाय। तिवारी का कहना था कि प्रकरण को लम्बा खींचने से अभिभावकों को लगेगा कि उनके साथ न्याय होगा और फिर धीरे-धीरे लोग इस प्रकरण को भूलने भी लगेंगे। प्रबन्धक ने प्रधानाचार्य को नोटिस दोबारा देने की हिदायत दी और अन्तिम निर्णय तिवारी के ऊपर छोड़ दिया। दो महीने के बाद अन्ततः प्रधानाचार्य ने उसका सस्पेंशन वापस ले लिया। इसके लिए रामजस को बतौर नजराना 5-7 किलो घी और एक महीने तक एक किलो दूध प्रतिदिन प्रिंसिपल के घर समर्पित करना पड़ा। इस पर तिवारी ने कोई आपत्ति नहीं जताई और प्रिंसिपल के यहाँ पहुंच कर इस व्यवस्था की सूचना सबसे पहले उनकी पत्नी को उपलब्ध कराई और यहाँ भी अपनी पोजीशन मजबूत कर ली उन्होंने।

एक बड़ी समस्या का सफलतम समाधान निकाल कर खुशी-खुशी घर पहुंचे तिवारी तो मास्टराइन की उदास आँखों में पीड़ा-खीझ का समन्दर लहराते हुए दिखा।

-'क्या हुआ मास्टराइन कुछ खास बात हुई क्या? घर में सब ठीक तो है...' तिवारी ने बुलेट खड़ी कर बरामदे में कदम रखते हुए पूछ लिया। पर उनकी तरफ से कोई उत्तर नहीं आया और वे 'यह कहते हुए अन्दर चली गई कि कपड़ा लत्ता उतारिये-मुँह हाथ धो लें मैं चाय बना कर लाती हूँ।'

तिवारी अपने को सामान्य करने में लग गये। वे आज बड़ी तिकड़मी जीत हासिल किये थे। रामजस को उसकी औकात बताना और फिर अपने तत्काल प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए उसे वापस नौकरी पर ले आना। रामयस के लिए तिवारी जी अब किसी भगवान से कम नहीं थे। तिवारी इस खुशखबरी को मास्टराइन तक पहुंचा कर हल्का होना चाह रहे थे पर यहाँ तो उन्हें कुछ दाल में काला नजर आ रहा था।

चाय की चुस्कियाँ लेते हुए तिवारी ने फिर अपनी बात दोहराई-

-'क्यों क्या बात है इतनी उदास क्यों नजर आ रही हो...तुम्हारी ये रोनी सूरत हमें बिल्कुल नहीं पसन्द है...और हाँ आज तो वही निर्णय हुआ जो मैं चाहता था। रामयस को बहाल कर दिया और अब वह तुम्हारा मुरीद बन गया है जैसा चाहो वैसा काम कराओ।'

पर मास्टराइन की चुप्पी ज्यों की त्यों बरकरार रही...अब तिवारी के लिए यह भारी पड़ रहा था सो उन्होंने थोड़ी आवाज कड़क करते हुए पुनः पूछा...'किसी ने कुछ कहा हो तो बताओ...घर में-बाहर कोई भी बात हो बताओ...निःसंकोच।'

-'क्या बतायें...आज विद्यालय में नई हेडमिस्ट्रेस ने ज्वाइन कर लिया। हमें तो एक बजे के बाद पता चला। आते ही उन्होेंने मीटिंग की। हाजिरी रजिस्टर सीन किया और दो लोगों को अनुपस्थित दिखाकर तुरन्त सूचना बी0आर0सी0 भिजवा दी और जब मुझे सूचना मिली तो मैं भागते स्कूल पहुँची...' मास्टाइन की आवाज में पीड़ा और तिलमिलाहट का अनुपात बराबर था।

-'अचानक...और मुझे पता नहीं चला।'

-' हाँ अचानक ही तो हुआ यह सब...स्कूल में किसी को इसकी भनक तक नहीं लग पाई. मैंने अपना पक्ष रखा पर उन्होंने कोई बात नहीं सुनी।

-'यही तो तुमने ग़लत किया जो भागते स्कूल पहुंच गई...अरे क्या कर लेती... जब उनकी तरफ से बुलाया जाता तब जाती तो स्वाभिमान कम से कम बना तो रहता...खैर कौन है कहाँ से आईं हैं कुछ पता लगाया...' तिवारी जी की सारी खुशी कफूर हो गई थी और वे कुचले सांप की तरह फन हिला रहे थे।

-'हाँ पता तो चला...करमोली ग्रामसभा के एक जूनियर स्कूल में सहायिका थी अभी पिछले महीने ही तो वरिष्ठताक्रम में पदोन्नति सूची जारी हुई थी। सरोजनी बाला नाम है उनका... बड़ी कड़क लगी मैं तो उलझने वाली थी पर मास्टर रमेशर पासी ने कनखियों से मना कर दिया। वह आदमी हम लोगों का समर्थक है।'

-'...हाँ यह तो पता था कि पदोन्नति सूची जारी हुई है पर अभी ज्वाइनिंग की बात तो चली ही नहीं थी। पंचायत चुनाव बाद ज्वाइनिंग होनी थी...खैर सरोजनी बाला कहाँ कि किस गांव-परिवार की है ज़रा पता लगाना है मुझे... देखता हूँ कितना उछलती हैं...अभी उन्हें पता नहीं होगा कि मैं कौन हूँ और आप हमारे परिवार की हैं...'।

-'चलिये छोड़िये...फिर देखियेगा। अब तो लगता है संघर्ष की नींव पड़ ही गयी है। कुछ न कुछ तो दिक्कतें आयेंगी ही। महिला होने के नाते लड़ाई थोड़ी कठिन हो गयी है ...अरे उधर देखिये रामजस आ रहा है।'

-'आओ रामजस ...अरे कल आते आज तो वैसे भी कोई खास काम नहीं है। मैं भी तुम्हारे प्रकरण में महीनों से माथा पच्ची करते थक गया हूँ खैर चलो तुम्हारे पक्ष में निर्णय हो गया...नहीं तो परेशानी खड़ी हो जाती और देखो मास्टरों ने एक स्वर से जिस तरह तुम्हारा विरोध किया...शायद मुझे लगता है प्रिंसिपल की शह थी क्या? अन्यथा गणित मास्टर सब की ओर से ऐसी राय क्यों व्यक्त करते।'

-'हाँ गुरु जी...रामजस ने तिवारी के पाँव पकड़ लिये। मास्टराइन भौजी की चरण वन्दना की...और कहा साहब तो काफी माहौल मेरे खिलाफ बनाये हुये थे। इसी से स्टाफ भी विरोध में आ गया था लेकिन आप तो हमारे लिए भगवान बन कर खड़े थे और मैं जेल जाने से भी बच गया... अब हुकुम करिये क्या करना है...'

-'देखो रामजस दो महीने बाद चुनाव आना है। क्षेत्र में इनकी पोजीशन ठीक है। इन्होंने बहुत हित किया है लोगों का...बस तुम्हे अपनी विरादरी में इनके लिए माहौल बनाना है। अपनी विरादरी में कोई खड़ा न होने पाये इसका ध्यान रखना। बाकी तुम्हारी मदद हम लोग हमेशा करते रहेंगे।' मास्टराइन भौजी ने अपना मंतव्य स्पष्ट कर दिया था। 'बैठो चाय बनाती हूँ' वे उठने को हुई तो रामजस ने उन्हें रोक दिया-'आप बैठिये मुझे बताइये क्या करना है एक बार थोड़ा देखना पड़ेगा फिर सब समझ में आ जायेगा। चलिये बता दें मैं चाय बनाता हूँ...' कहकर वह उठ गया।

चाय आई तो तिवारी जी ने पी कर तारीफ की... ' बिल्कुल मास्टराइन जैसी चाय बनाई तुमने अब इन्हें थोड़ा आराम मिलेगा। ज़रूरी काम निपटा कर रामजस जाने को हुआ तो मास्टराइन भौजी ने खाने के लिए रोक लिया।

× × ×

सुबह जल्दी-जल्दी तैयार हो गई मास्टराइन स्कूल जाने के लिए...आज रात थोड़ी नींद भी कम ही आई थी उन्हें...बार-बार सरोजनी बाला का चेहरा कौंधता...अब तक की दबंगई क्षण में मटिया मेट हो गई थी...पहली बार किसी ने उनके कालम में अनुपस्थित लिखा था और तुरन्त सूचना भी वी0आर0सी0 तक पहुँचा दी...क्या समझती है अपने आप को...अरे तेरा जीना हराम कर दूँगी अगर तूने मुझे छेड़ा तो...हेड मास्टर राधेलाल का इतिहास इसे बताना है' ...रात में कई-कई बार वे बुदबुदा उठी थीं।

इतनी सुबह मास्टराइन को तैयार होते देख तिवारी ने पूंछ ही लिया...'क्या बात है कहीं जाना है क्या...?'

-'सोच रही हूँ दो चार दिन स्कूल चली जाऊँ। उसका रंग ढंग तो देखूँ क्या कर सकती है वह? कहाँ तक जा सकती है? यह भी तो पता लगाना है कि कहाँ की कैसे है? अपने पक्ष के मास्टरों को लगाना है इसके पीछे...ये औरत जितना ही अनुशासन कसेगी-उत्पात मचायेगी उतना ही टीचर इसके खिलाफ लामबन्द होंगे और मेरा पलड़ा भारी होगा।'

-'अरे वाह! सोचा तो तूने बड़ी मार्के की बात...उसके बारे में पता तो चल ही जायेगा...पर एक बात सुनो...अगर इतनी जल्दी तुम उसकी इच्छा के अनुसार काम शुरू कर दोगी तो फिर वह हाबी हो जायेगी और तुम कमजोर पड़ जाओगी। फिलहाल दो चार दिन स्कूल मत जाओ देखो उसका एक्शन क्या होता है...बाकी चिन्ता मत करो...तुम मुझे जानती हो...मैं उसे कैसे पस्त करूँगा...बताऊँगा।'

फिलहाल मास्टराइन ने आज स्कूल जाने का इरादा त्याग दिया। लेकिन बारह बजते-बजते उनके शुभ चिन्तक मास्टर का फोन आ गया। अनुपस्थिति दर्ज कर दो लोगों की सूचना बी0आर0सी0 भेज दी गई. मास्टराइन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ आया। तिवारी जी तो घर पर थे नहीं पर उन्हें फोन से सूचना दे दी गई. लछमन तिवारी के लिए इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता था? क्षेत्र में ही थे 10 मिनट के लिए स्कूल गये थे। प्रधानाचार्य से ज़रूरी काम बताकर वे बी0एस0ए0 दफ्तर की तरफ निकले थे पर रास्ते में यह अशुभ सूचना पाकर वे वी0आर0सी0 की तरफ मुड़ गये। संयोग से बी0ई0ओ0 मिल गईं।

सामान्य शिष्टाचार बरतने के बाद तिवारी जी सीधे अपने मकसद पर आ गये...मैडम हरपालपुर के जूनियर स्कूल में जो प्रधानाध्यापिका हैं, उनके बारे में बात करनी हैं आप कहें तो शिकायत करू'ँ।'

'हाँ बोलिए-साथ ही अपना परिचय भी बताइये चूंकि मैं भी अभी यहाँ के लिए नई ही हूँ...' बी0ई0ओ0 ने अपना मंतव्य स्पष्ट कर दिया।

-'देखिये मैडम मैं तो फिलहाल इण्टर कालेज में टीचर हूँ और शिक्षक संघ का नेता भी हूँ आपके विभाग के कई-कई कार्य मेरे द्वारा ही निपटते हैं...आप को भी ज़रूरत पड़ेगी तो मैं ही काम आऊँगा और तब आप को मेरा परिचय जानने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। दूसरी बात यह है कि उस स्कूल में मेरे छोटे भाई की पत्नी टीचर है। उसे परेशान किया जा रहा है... सो मैंने सोचा आप से सबसे पहले शिकायत कर दूँ...आप से उम्मीद है कि आप सरोजनी बाला को थोड़ा समझा देंगी।'

-'ठीक है पर किस तरह परेशान किया जा रहा है इसकी शिकायत यदि लिखित कर दें तो मैं कभी भी जांच कर लूंगी।'

-'ठीक है...ठीक है...अभी तो मौखिक ही कह रहा हूँ लिखित तो बाद में दूँगा...' कहते हुए तिवारी बाहर आये और अपनी बुलेट उठा ली...पर उन्हें यह मुलाकात संतोषजनक नहीं लगी। क्या रास्ता हो सकता है सरोजनी बाला से निपटने का...'वे मन ही मन सोचते जा रहे थे...क्योंकि शिकायत तो कोई हो नहीं सकती...कोई और रास्ता तलाशा जाय'।

तिवारी सीधे घर पहुँच गये उनका मन किसी अन्य कार्य में लगा ही नहीं। जल्दी घर आना देखकर मास्टराइन भी चकित रह गईं...तिवारी के चहरे पर थोड़ी थकान थी शायद वह चिंता और उलझन के कारण आ गई थी। मास्टराइन से बी0ई0ओ0 से हुई मुलाकात की बात बताकर वे कपड़े उतारने लगे फिर आराम से पसर गये तखत पर...आंखें छत पर जा टिकी मानो उनके अहम पर लगी चोट छत पर पसर गई हो और वे समेटना चाह रहे हो उसे।

मास्टराइन ने नींबू पानी का शरबत बनाकर उन्हें थमा दिया। यूं तो समस्याओं से जूझने निपटने मंे माहिर हैं पर मास्टाराइन को लेकर वे डिस्टर्ब हो गये। दूसरों की समस्याओं को देखना, समझना और फिर उसके समाधान की जुगत बैठना अलग किस्म का आनन्द देती है पर अपने घर की परेशानी, समस्या कुछ ज़्यादा ही तकलीफ देय होती है। अपना दर्द अपना ही होता है। पूरे हफ्ते भर की अनुपस्थिति रजिस्टर पर चढ़ गई और आज तो प्रधानाध्यापिका ने हद ही पार कर दी। मास्टराइन के नाम घर के पते पर नोटिस भेज दी। यह सूचना मास्टराइन को मिली तो गरम बालू में लावे की तरह भुन उठीं लेकिन उन्हांेने स्कूल न जाने का अपना इरादा अभी नहीं बदला और नहीं नोटिस का कोई जबाव देने का मन बनाया। शाम को तिवारी के घर पर आने से उनकी पीड़ा मुखर हो उठी। -'आप कुछ नहीं कर रहे है। सरोजनी बाला को हल्के मंे ना लीजिए...उसकी बदतमीजी देख रहे हैं। आज यह नोटिस आ गई है। पढ़िये इसे...अब और दिन तक अनुपस्थिति रहना ठीक नहीं है। कहाँ हम लोग सोच रहे थे कि वह संदेशा भेजकर बुलवायेगी...पर नहीं लगातार अनुपस्थिति किया और अब ये नोटिस...सोच रही हूँ कल जाँऊ और टोकाटाकी पर भिड़ जांऊ देखा जायेगा जो होगा...पर आप क्या सोचे हैं। पुरूष अधिकारी से कोई भय नहीं, उसे तो नीचा दिखाने के पचासों हथकंडे हैं पर औरत से कैसे भिड़ा जाय? क्या इल्जाम लगाया जाय...?' -' ...आप परेशान मत होइये...ग्राम सभा के दो चार लोगों से इसके खिलाफ शिकायती पत्र लिखवा रहा हूँ बी0एस0ए0 से लेकर डी0एम0 तक फिर ज़रूरत पड़ी तो आगे मण्डल से सचिवालय तक शिकायत हो जायेगी। ...फिलहाल अगले हफ्ते जाइए और मिड-डे-मील की पोजीशन देखिए और बच्चों से खराब खाने की शिकायत कराइये और खाने का बहिष्कार कराइए. दो चार टीचर जो हमारे पक्ष के हैं उन्हें अपने साथ लीजिए...क्यांेकि सभी त्रस्त हैं। मास्टर भला कहाँ समय से स्कूल जाना चाहता है और अब समय से पहुंचना चालू हो गया है और पढ़ाना भी...सुना हैघर जाने के लिए लोग शनिवार को इंटरवल में अब नहीं निकल पाते हैं और सोमवार को देर से आने की कोई छूट नहीं...नंदलाल यादव मिला था बता रहा था कि हम लोगों ने इतनी छूट के लिए सामूहिक निवेदन किया था पर मैडम ने यह छूट लेने वाले को लिखित अप्लीकेशन देने को कह दिया। अब भला बताओ कोई लिखित कैसे देगा वह भी नाजायज छूट लेने के लिए.

'...लेकिन नोटिस का जबाव तो देना ही होगा। ...नहीं तो वह दस्तखत भी न करायेगी, तो झंझट हो जायेगा...'। मास्टराइन की बेचैनी बढ़ रही थी।

'...ठीक है देखा जायेगा। हम अधिकारियांे से बात कर लें...विधायक जी तो हैं ही हमारे पक्ष के, उनके कान में भी यह बात डाल देता हूँ। अगले हफ्ते सचिवालय भी जाना है। बी0एस0ए0 अपना ट्रंासफर चाहते हैं। उनसे भी इसका इलाज तलाशना है। बी0एस0ए0 साहब से आज बात की है...'।

'...तो इसे जल्दी करें नहीं तो बात बढ़ रही है और अब वे बेलगाम हो रही हैं'।

...'कल बी0एस0ए0 ने सरोजिनी बाला कोे आफिस बुलवाया है। मैं वहीं रहँूगा।'

× ×

अगले दिन निर्धारित समय पर सरोजिनी वाला बी0एस0ए0 दफ्तर में पहुँच गईं। -'बी0एस0ए0 साहब डी0एम0 साहब के यहाँ गये है'। दिनेश बाबू ने सूचना देते हुए बगल में कुर्सी सरका दी। 'बैठिये मैडम और कैसे चल रहा है स्कूल। काफी त्रस्त कर रखा है आप ने मास्टरो को...'। -'कौन कह रहा है। दिनेश बाबू...बताइये तो सही'।

मैंने तो सुन रखा है। आते जाते लोग बताते रहते है। तब तक तिवारी जी भी आ गये। तिवारी के आते ही कई बाबू लोग उठ खड़े हुए. उनको बैठने की कुर्सी दी गई और तुरन्त चपरासी भेजकर बड़े बाबू ने चाय नाश्ता मंगवा लिया। -लीजिए मैडम ये तिवारी भी आ गये...इनकी भयेहू भी आप के यहाँ टीचर हैं वह भी आप से त्रस्त है शायद। ये तिवारी जी बता रहे थे। ' दिनेश बाबू अपने विभाग में काफी मुंहफट बाबू माने जाते हैं। कमाओं खिलाओ...फिर खिलाओ कमाओ का फंडा जानते हैं दिनेश बाबू। तिवारी जी से खूब छनती है। सरोजिनी बाला ने देखा गौर से तिवारी को।

'...अच्छा आप के बारे में बी0ई0ओ0 साहिबा बता रही थीं। कोई शिकायत थी आपको ...पर आप की भयेहू तो कभी स्कूल आती ही नहीं...' मुँह की बात छीन ली तिवारी ने और बड़े ही सूखे अन्दाज में बोल उठे-'देखिए मैडम आप के जूनियर-प्राइमरी के क्या हालत हैं हमसे छुपी नहीं है। आधे कर्मचारी कहाँ ड्यूटी पर आते हैं। आप के स्कूल में ही अभी तक कहाँ सभी टीचर रोज रहा करते थे। आप अध्यापिका है, तानाशाह नहीं हैं। संभल कर नौकरी करिये...'।

-'तो आप यह कहना चाहते हैं कि जो पढ़ाने नहीं आते उन्हें पूरी छूट दी जाय...क्यों दिनेश बाबू ऐसा कोई आदेश आप ने जारी करवा दिया है क्या।'

मामला गरमाता कि घंटी की आवाज सुन चपरासी दौड़ा। शायद बी0एस0ए0 साहब आ गये हैं। कुछ देर बाद बडे़ बाबू को बुलावा आया। दिनेश बाबू ने कनखियों से देखा तिवारी जी को और फिर मैडम की तरफ मुखातिब हुए-'देखो मैडम राजकाज यूँ ही चलता रहता है बहुत फटफटाइये तो भी न फटफटाइये तो भी। हर विभाग ने अपनी सुविधानुसार एक ढ़र्रा बना लिया है उसी पर सब चलते आ रहे हैं। आप बताओ क्या रामराज में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था? मैं तो बीस बरस से इसी विभाग में हूँ और देखता चला आ रहा हूँ। अधिकारी आते जाते हैं। हेडमास्टर आये-गये, मुझे तो नहीं लगता कि कभी भी चारों कोना दुरूस्त रहा है।' कहकर लम्बी सांस ली दिनेश बाबू ने। अपनी बातों के समर्थन मंे उन्होंने औरों की तरफ निगाह डाली, जिनमें अधिकांश टीचर थे और अपना-अपना स्कूल छोड़ कर आये थे। कईयों ने दिनेश बाबू के पक्ष में हाँ में हाँ मिलाया पर मैडम सरोजिनी बाला ने प्रतिकार करते हुए कहा।

'...दिनेश बाबू चारों कोना दुरूस्त रह सकता है किन्तु नाकारा और भ्रष्ट लोगों से नहीं होगा यह। यह उन लोगांे से होगा जिनके अन्दर नैतिक बल है, जो अपनी जिम्मेदारियाँ समझते हैं। जिनकी इच्छा शक्ति ही मर गई हो वे ही इस तरह की निराशाजन्य बातों में विश्वास करते हैं...हमारा काम, हमारी जिम्मेदारी अन्य विभागों से भिन्न है, हम एक बहुत बड़ी पीढ़ी को प्रशिक्षित करते हैं। हमारे ऊपर नौनिहालों को सभ्य-संस्कारवान और ऊर्जावान नागरिक बनाने की जिम्मेदारी है जो देश के भविष्य के निर्माता बनते हैं। जिला प्रशासन भी वह काम नहीं कर सकता है जो हम करते हैं। रही बात गप्पबाजी की तो चाहे जो जैसे चाहे बतियाता रहे...तालियाँ बनाने वालों की, खुशामद करने वालो की कहाँ कमी है? पर दिनेश बाबू जिस दिन जाल में स्वयं शिकारी आता है तब औकात समझ में आती है...'

तिलमिला कर रहे गये दिनेश बाबू...तिवारी जी की मूंछें तो इतने देर में न जाने कितनी बार गिरी उठी होंगी। बात आगे बढ़ती कि चपरासी ने मैडम को अंदर जाने का इशारा किया।

'...आइये मैडम बैठिये...कैसी हैं? स्कूल कैसा चल रहा है। सूना है आप काफी मेहनत कर रही है। बी0ई0ओ0 बता रही थीं...'।

' ...जी सर मैं तो कोशिश में हँू कि विद्यालय मॉडल स्कूल बन जाय, लोग अपने बच्चो को यहाँ डालने में गर्व महसूस करें। सर आपका सपोर्ट रहा तो स्कूल अच्छा चलेगा...सर कैसे याद किया आपने...कहीं से कोई गड़बड़ी तो नहीं महसूस की आपने...?

-'नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं हैं पर कुछ लोग तो चाहते ही है कि स्कूल व्यवस्था ढ़ीली ढ़ाली हो तो ठीक...सब बहती गंगा में हाथ धोते रहते हैं। फिर भी विभाग का पूरा सपोर्ट है आप को...' तब तक तिवारी जी अन्दर आने की परमीशन मांग बैठे।

'आइये तिवारी जी, बैठिये ये हरपालपुर की नई हेड मिस्टेªस बहुत अनुशासित और कर्तव्यनिष्ठ।'

'...जी इन्हीं की बारे में मैं भी आप से कुछ निवेदन करना चाहता हूँ। मेरे छोटे भाई की पत्नी इन्हीं के स्कूल में पढ़ा रही हैं। जाने क्यों मैडम उनसे कुछ ज़्यादा ही चिढ़ी हुई हैं। अभी बाहर दिनेश बाबू के पास भी आप का मिजाज कुछ गरम किस्म का ही रहा है।' -'खैर छोड़िए...' बी0एस0ए0 ने मैडम की तरफ मुखातिब होकर कहा कि देख लीजिएगा तिवारी के भाई की विधवा है, कोई परेशानी न होने पाये...बाकी पठन-पठान, अनुशासन-प्रशासन दुरूस्त रखिये मैं यही चाहता हूँ। '

'...जी सर मेरी तरफ से किसी से कोई मनमुटाव, चिढ़ जैसी कोई बात नहीं है। हाँ जो लोग स्कूल आते ही नहीं उन्हें रजिस्टर पर कैसे प्रजेंट किया जाय। फिर देर से आना जल्दी भागना और संडे छुट्टी के लिए एक दिन पहले एक दिन बाद में आना न आना जैसी स्थितियाँ बनाने की कोशिश की जाती है। मैं चाहती हूँ कि टीचर समय से आयें, समय तक रहे मुझे ऐसे लोगों से कोई परेशानी नहीं होगी, पर स्कूल हफ्तों तक न आने वालों की उपस्थिति कैसे अंकित की जा सकती है। अनुपस्थित तो अनुपस्थित...मैं प्रतिदिन अनुपस्थिति की सूचना वी0आर0सी0 भेजती हूँ सर आप बताइये जो विद्यालय आता ही नहीं उसके साथ क्या किया जाए...?'

सरोजिनी बाला की दलील के सामने किसी के पास कौन-सा उत्तर होगा भलॉ। तिवारी अन्दर ही अन्दर टीस रहे थे। पर बी0एस0ए0 के सामने 'ठीक है तिवारी जाओ देखता हूँ' कहने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। तिवारी उठे और बाहर आ गये। बी0एस0ए0 साहब ने मैडम को सांमजस्य बैठाकर चलने की नसीहत देकर विदा कर दिया।

तिवारी को अब जिले स्तर पर कोई उम्मीद नहीं थी सो उन्होंने राजधानी की तरफ का रूख कर लिया। दो-तीन दिन तक वहाँ जमे रहे और ग्रामीणों के कुछ अप्लीकेशन पर उन्होंने जांच का आदेश करवा दिया। अभिभावकोें को जलील करने, मिड-डे-मील के मानक भोजन में कटौती करने, अध्यापकों को खासकर दलित अध्यापकों को अपमानित करने, बच्चों को पीटने आदि सम्बन्धी कई शिकायती पत्रों पर जांच हेतु डीएम को आदेश हो गया। अगले हफ्ते से ही जांच मंे तेजी आ गई. डी0एम0 ने एस0डी0एम0 और बी0एस0ए0 के साथ डी0आई0ओ0एस0 को भी जांच के लिए नामित कर दिया। तिवारी को इसकी जानकारी मिल गयी पर वे निश्चिंत थे कि दो अधिकारी तो उनके प़क्ष के ही हैं और वे निश्चिंत हो गये।

अचानक तीनों की संयुक्त टीम स्कूल में साढे़े ग्यारह बजे पहुँची तो मास्टराइन भौजी के साथ दो अन्य शिक्षक गायब थे। हेडमिस्ट्रेस ने उपस्थित पंजिका पर अनुपस्थिति अंकित कर रखी थी और सूचना बी0आर0सी0 भेज चुकीं थीं। मिड-डे-मील का खाना चेक हुआ, बच्चों से खाने के वक्त सूचना प्राप्त की गई. बच्चों के भोजन को लेकर कोई शिकायत नहीं मिली और स्टॉफ को बुलाकर प्रधानाध्यापिका के रवैये के बारे में अलग से जानकारी हासिल की गई. जिन अभिभावको के नाम से शिकायत की गई थी उन्हें गांव से बुलाकर उनका स्टेटमेन्ट लिया गया और टीम वापस हो गयी। इधर जब मस्टराइन भौजी को अन्य दो टीचरों सहित नोटिस तामील कराई गयी तो उनके पैरों तले की जमींन हिलने लगी।

एक हफ्ते बाद जांच अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी। कहीं से शिकायतों की पुष्टि नहीं हो पाई थी। जिन अभिभावकों के हस्ताक्षर से शिकायत की गई उन सबने इस बावत अनभिज्ञता जाहिर करते हुए लिखित उत्तर दे दिया था। अब तिवारी गच्चा खा चुके थे पर वे हार मानने वाले नहीं थे। मास्टराइन भौजी ने अगले हफ्ते से स्कूल जाना शुरू कर दिया, लगभग बीस दिन की अनुपस्थित का वेतन रूक गया था। अब उसे निकालने की जद्दोजहद शुरू हो गई. दो अन्य अध्यापको के वेतन भी 5-5 दिन के प्रभावित हुए थे।

मुफ्त की रोटियाँ तोड़ने वालों को कार्य संस्कृति अच्छी नहीं लगती...काम करना उनके लिए अपमान जैसा लगता है। नाकारापन जब अपनी हदें पार कर जाता है तो ईमानदार और कर्मशील व्यक्ति उसे बर्दाश्त नहीं होता है। वह तरह-तरह के रूप धारण करता है। दबंगई, लुच्चई, गुण्डई, बदतमीजी कई रूप हैं उसके...अन्ततः अपनी सुरक्षा में नाकारापन हमलावर हो जाता है। यह और बात है कि उसे होश आता है पर सब कुछ गवंाकर लेकिन वह बार-बार सच के विरूद्व झूठ को प्रतिस्थापित करने की कुचेष्टाताएँ करता ही रहता है। झूठ पर झूठ...इस पर परदा डालते-डालते हुए अंततः वह बेनकाब ही होता है।

मास्टराइन भौजी के साथ तिवारी सहित कईयों का ऐसा ही सामूहिक कुचक्र चलता रहता है। अपने नाकारापन पर टिप्पणी उन्हें बर्दाश्त नहीं होती और वे जूतम पैजार पर आमादा हो जाते हैं। अहंकार की तुष्टि का शायद यही रास्ता उन्हें अच्छा लगता है। मास्टराइन अब रोज-स्कूल जा रहीं हैं पर पढ़ाना उनके स्वभाव का हिस्सा कहाँ बन पाया है... कक्षा में बच्चों को डांट डपटकर बैठाये रखना अनुशासन की इतिश्री है उनके लिए...कक्षा में प्रायः सो जाना उनकी दिनचर्या में शुमार है।

बच्चों के माध्यम से उनके कक्षा में सोने की बात अभिभावकों तक पहुँची और फिर अभिभावकों की तरफ से लिखित शिकायत हेड मिस्टेªस और डी0एम0 तक चली गयी। जांच में वाकई मास्टराइन भौजी सोती हुए मिलीं...सरोजिनी बाला ने उन्हें समझाने की कोशिश की पर नाकारापन अपने हदें पार कर गया था और वह फन काढ़कर काटने दौड़ पड़ा। मास्टराइन की तरफ से शुरू हुई तू-तू, मैं-मैं से अलग हो गयींप्रधानाध्यापिका और तुरन्त लिखित नोटिस थमा दी गई उन्हें। पर यह क्या नोटिस पाते ही वे इतना तिलमिलाईं कि उन्होंने सरोजिनी बाला पर हाथ उठा दिया। उनकी साड़ी पकड़कर खींच ली और मरने-मारने पर आमादा हो र्गइं। स्टाफ के लोगदौडे¬़ पर मास्टराइन के मुँह से कीडे़ पडने वाली जुबान से निकलती गालियों की झड़ी से सब सहम गये...तब तक एक शिक्षिका ने पूरे माहौल की फोटो ले ली और रिकार्डिंग भी कर ली। स्कूटी उठाकर हेड मिस्ट्रेस पहले पुलिस थाने पहुँचंी, लिखित तहरीर दी और फिर बीआरसी पहुचंकर वहाँ मौजूद अधिकारियो से पूरा हाल कह सुनाया। शाम होते-होते स्कूल की घटना की फोटो रिकार्डिग सहित सोशल मीडिया पर बायरल हो गई.

अगला दिन दुर्भाग्य या सौभाग्य जो भी कहें, घनघोर हंगामे का रहा। स्कूल में विभागीय अधिकारियों, पुलिस वालों की भीड़ इकट्ठा हो गई. मास्टराइन तो गायब थीं पर उनके समर्थन में दो एक अध्यापकों का रवैया सरोजनी बाला को संदिग्ध लगा। उन्हांेने उन्हें अपने कक्ष में बुलाया और सीधे टिट-फार टैट के फामूले पर उतर आईं...' देखो जो सच है वही कहना है मैं पक्षपात नहीं चाहती पर जो हुआ उसको तोड़ मरोड़कर बयानबाजी करना महंगा सौदा होगा...हमला किसने किया? गाली किसने दी? कारण क्या था इसे सिर्फ़ सच-सच कहना है नहीं तो आप ने मेरे साथ अश्लील अभद्रता का व्यवहार किया मुझे हाथ लगाया...का इल्जाम जड़ दूंगी फिर मास्टराइन भौजी द्वारा झूठा इल्जाम लगाने पर हेडमास्टर राधेलाल के साथ जो हुआ वही सेम आप सब के साथ होगा...समझे सिर्फ़ सच ही कहना वरना आप जानते हैं..., मरता क्या न करता तिकड़ के जाल को तिकड़म से ही काटा जा सकता है शराफत से नहीं।

सरोजिनी बाला के दिमाग में हेडमास्टर राधेलाल की दुर्दशा हमेशा नाचती रहती। उनका क्या दोष था सिर्फ़ यही कि स्कूल मंे न आने वाले कर्मचारियों को जिम्मेदारी का अहसास करा रहे थे पर मास्टराइन द्वारा लगाया गया चारित्रिक इल्जाम झूठ का पुलिंदा होते हुए उन्हंे दण्डित कर गया... पर मियाँ की जूती मियाँ के सर...अब देखिये ये लोग कैसे मछली की तरहछटपटाते हैं।

लछमन तिवारी को अब बचाव की मुद्रा मंे आना पड़ा। थाने पर कई फोन कराये कि एफ0आई0आर0 न लिखी जाए अगर लिखी भी जाय तो हल्की धारा लगाई जाय। बी0आर0सी0 पर जांच रिपोर्ट को हल्का करने हेतु काफी दौड़ धूप की उन्हांेने पर आंशिक सफलता ही मिल पाई. अब मास्टराइन के सामने एक ही चारा था कि वे मेडिकल लगाकर कुछ दिनों के लिए बैठ जाँय।

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लछमन तिवारी इधर इस तरह की समस्या में उलझेही थे कि अगले दिन ही पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी हो गई. अगले हफ्ते नामांकन होना है...काफी दिनों से उनकी तैयारी, चल रही थीं, रामजस रात-दिन जुटा रहता था। मास्टराइन भौजी भी कई गांवांे की महिलाओं के बीच बैठक कर चुकी थी। बहुतों का समर्थन मिल रहा था उन्हें। काफी लोगों का काम कराते रहे हैं तिवारी...उसका लाभ तो यही लिया जा सकता है...लेकिन मास्टराइन के स्कूल की समस्या ने उनका ध्यान बांट दिया था।

सरोजिनी बाला की ससुराल इसी इलाके मेें थी। श्रीवास्तव परिवार काफी सम्पन्न और पहुचें लोग थे। यह लड़ाई जो मास्टराइन की ओर से अनायास शुरू की गई थी सरोजिनी बाला के लिए प्रतिष्ठा बन गई थी। चुनाव के घोषणा होते ही उनके दिमाग के किसी कोने मंे एक आइडिया आया...लछमन तिवारी को चुनाव लड़ने से कैसे रोका जाय? इस बावत क्यों न तिवारी के प्रबन्धक से मुलाकात की जाय? प्रबन्धक के फोन नम्बर की तलाश की उन्होंने और दूसरे दिन सुबह-सुबह फोन मिला दिया।

...'हाँ, प्रबन्धक जी मैं हरपालपुर के जूनियर स्कूल की हेडमिस्ट्रेस बोल रही हूँ। कैसे है आप? -' ठीक हूँ...कहिये मैडम कैसे याद किया...? ' -' ...यूँ ही प्रबन्धक जी...कोई खास बात नहीं है। आप तो इस क्षेत्र के मानिन्द व्यक्तियों में हैं। अच्छा खासा स्कूल चला रहे हैं। ...पर प्रबन्धक जी, स्कूल वह भी वित्तविहीन चलाना बहुत मुश्किल काम है। यहाँ तो हम सबके सरकारी स्कूलों में लोग काम करना ही नहीं चाहते। स्कूल-कालेजों के हालात तो और बदतर हैं। वैसे लोग बताते है कि आप का स्कूल अच्छा चल रहा है। हम तो अपने स्कूल के आठ पास बच्चों को आप के यहाँ ही भेज देते हैं पर बच्चे बताते हैं कि कुछेक अध्यापक स्कूल आते ही नहीं और दिन भर नेता गीरी करते रहते हैं। ...यह सब थोड़ा दुरूस्त हो जाय तो और प्रगति हो स्कूलों की। "

...'हाँ वह तो है, वजह यहहै कि मैं थोड़ा अपने धन्धे के काम से बाहर रहता हूँ तो थोड़ा बहुत समझौता करना पड़ता है।'

'...जी सर, कुछ तो मजबूरी होती ही है। पर उसका फायदा उठाने वाले लोग स्कूल को भी, कहीं न कहीं आप को भी बदनाम करते हैं।'

सरोजिनी बाला अपने मकसद की ओर धीरे-धीरे बढ़ रहीं थीं। थोड़ी चुप्पी के बाद वे फिर कह उठीं। -' ...सर कभी मौका मिले तो इधर हमारे स्कूल भी आइये वैसे इस चुनाव में आप को खड़ा होना चाहिए। इत्ता बड़ा आपका स्टाफ है, मदद में लग जायेगा। फिर हम लोग तो हैं ही... गांव गिरांव में आपकी अच्छी इमेज है। पर वह तिवारी जी हैं न आप के स्कूल के उनकीभयेहू ने और उन्हांेने स्वंय भी इमेज खराब कर रखा है। सुना है...तिवारी को आप चुनाव भी लड़ाना चाहते हैं तो और खराब स्थिति हो जायेगी।

'...मैडम जी, यह हमारे वश का काम नहीं है।'

'...प्रबन्धक जी सुनिये तो जरा...चुनाव कन्डीडेट नहीं लड़ता चुनाव सपोर्टर और जनता लड़ती है। प्रधानी हो या फिर ब्लॉक प्रमुखी दोनों में कोई एक पद तो आप के पास आना ही चाहिए इस बार...तिवारी अगली बार लड़ लेंगे...आप मीटिंग कर चुनाव लड़ने की घोषणा कीजिए फिर तो सभी मदद में आ जायंेगे...'।

'...ठीक है मैडम विचारता हूँ...,। -' ...ठीक है सर...सोचिये मौका अच्छा है...ईश्वर और जनता आप के साथ ज़रूर रहेंगे।

सरोजिनी बाला ने अपना काम कर दिया था। चिंगारी परचा दी थी धुँआ और लपटें तो निकलना ही निकलना था। उधर प्रबंधक ने यह बात पत्नी व परिवार के अन्य सदस्यों तक पहुंचाई...घर में मीटिंग बैठी और अंतत चुनाव लड़ना तय हो गया। नामांकन के तीन दिन पहले उनकी घोषणा स्कूल कमेटी व कर्मचारियों के बीच सार्वजानिक हो गई. तिवारी जिन्होंने वर्षों से चुनाव लड़ने व जीतने की भूमिका तैयार कर ली थी लगा पहाड़ से हजारों फीट खन्दक मंे जा गिरे... कभी उन्होंने सोचा भी नहीं था कि प्रबन्धक इस तरह का कदम उठायेंगे...क्या कर सकते हैं। कुछ बोल तो सकते नहीं। क्योंकि कमेटी के सदस्यों और स्टाफ की संयुक्त राय हो चुकी थी।

प्रबन्धक ने तिवारी की ओर देखा और कहा...आप सभी को आज से ही लग जाना चाहिए चुनाव में और तिवारी जी जिसके साथ हैंतो समझो चुनाव जीत लिये हम। लछमन तिवारी'भय गति संाप छछूदर केरी' , जैसी हालात में पहुँच चुके थे। हाँ करने के सिवा और कोई चारा नहीं था।

मीटिंग से बाहर निकलते ही प्रबन्धक ने सबसे पहले फोन किया सरोजिनी बाला को... -'हाँ...मैडम आप के सुझाव को हमारे परिवार व स्टाफ ने पसन्द किया और चुनाव लड़ने का निर्णय ले लिया गया है। कैसा रहेगा...अब आप सब के मदद की ज़रूरत है।' -' ...बहुत अच्छा निर्णय लिया आपने, अब चुनाव का कुछ दूसरा ही रूप बनेगा...बहुत बहुत बधाई इस निर्णय के लिए आप को सर।

एक मजबूत खम्भा तोड़ कर रख दिया सरोजिनी बाला ने। बिन मांगे मुराद के मिलने जैसी रही यह आनंददाई सूचना। अब आयेगा ऊँट पहाड़ के नीचे। सरोजिनी बाला के होठों पर विजय की सांकेतिक मुस्कान दौड़ गई.

× × ×

हारे जुआरी की तरह तिवारी जी बुलेट उठाकर घर की तरफ चले तो लगा उनका माथा फट जायेगा...क्या करें-क्या न करें...? बगावत कर चुनाव लड़ते हैं तो नौकरी जायेेगी यह तय है। ...प्रिंसिपल के बाद सबसे ज़्यादा वेतन उठाते हैं तिवारी जी...28 हजार यह भी चली जायेगी तो क्या होगा...इसी नौकरी के बहाने तो उन्होंने इतना बड़ा ताम-झाम फैला रखा है। पैसा...सम्पर्क सब कुछ हैं, इसी के बल बूते।

विचारों के बंवडर में उड़ते-उड़ते तिवारी जी कब घर के दरवाजे पर पहुँच गये पता ही नहीं चला। उन्होंने बुलेट बंद की। दरवाजे पर खड़ी पुलिस की जीप देखकर वे चौंके सामने दो महिला सिपाही सहित दारोगा जी बरामदे में पड़ी कुर्सियों पर आराम फरमा रहे थे।

'क्यों आये हैं' सोचा उन्होंने फिर उनकी आशंका बढ गई. 'कहीं स्कूल का प्रकरण तो नहीं...मास्टराइन कहाँ होगी? दिखाई तो नहीं पड़ रही हैं...'

सोचते हुए वे दरोगा के पास आ खड़े हुए.

'...कहिये दरोगा जी कैसे आना हुआ।'

'...देखिये तिवारी जी मास्टराइन के खिलाफ एफ0आई0आर0 हुआ है। इन्हांेने स्कूल के हेडमिस्टेªस पर थप्पड़ मारा है। सरकारी कामकाज में बाधा भी पहुंचाई है। जान से मारने की धमकी भी दी है। जांच की गई और वहाँ मौजूद कर्मचारियों ने बयान में इसकी पुष्टि की है। इन्हें थाने चलना है'। पुलिस ने एफ0आई0आर0 की कापी दिखा दी तिवारी को।

तिवारी को काटो तो खून नहीं। वे ठकरा मार गये...पैरवी में कहाँ चूक हो गयी। जिस सरोजिनी बाला को उन्होंने तिनका समझा था वह तो परचती चिनगारी निकली। एक ही साथ दो-दो मुसीबतें...बदनामी अलग से। उन्होंने एक बार घर के अंदर निगाह डाली। मास्टराइन भौजी आंगन मंे खड़ी सिसक रही थीं। तिवारी के लिए इससे ज़्यादा असहनीय व अपमानजनक पीड़ा और क्या हो सकती है। वहीं खड़े-खड़े लछमन तिवारी ने अपने अगल-बगल निगाह दौड़ाई तो देखा कि अधिकांश औरतंे-बच्चे उनकी तरफ एकटक देख रहे थे। इस तरह झांकते लोगों पर उन्हें खीझ हुई, पर चारों तरफ ताकते लोगों की निगाहों का सामना करना उनके लिए भारी पड़ रहा था। उनका सर चकरा गया। वे एक क्षण के लिए हिले-सँभलने की कोशिश की पर अचानक कांप कर धड़ाम से गिर पड़े दरवाजे पर।

मास्टराइनभौजी अन्दर से दौड़ी पर तब तक महिला पुलिस ने उनकी कलाई थाम ली। अगल-बगल की औरतें घर से बाहर निकल आईं पर उनकी हिम्मत आगे बढने की नहीं हुई.

पालतू कुत्ता रोमी दौड़कर आया और तिवारी के पास बैठकर हॉफने लगा...पुलिस की जीप स्टार्ट हुई और आगे बढ़ गई। दरवाजे पर सूखने हेतु फैले अनाज पर अभी तक चिड़ियों का जो झुण्ड निश्चिंत होकर दाना चुग रहा थायकायक एक साथ पंख फड़फड़ाकर उड़ गया।