आरण्यक / मनोज दास / दिनेश कुमार माली
प्रोफ़ेसर मनोज दास ओडिया तथा अंग्रेजी भाषा के मूर्धन्य लेखकों में गिने जाते हैं, उन्हें पद्मश्री सम्मान, सरस्वती सम्मान, शारला पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि से नवाजा गया है. आपका जन्म सन 1934 में ओडिशा के बालेश्वर जिले के भोगराई गाँव में हुआ , मगर 1963 से आप अरविन्द आश्रम, पांडिचेरी में रह रहे हैं तथा श्री अरविन्द इंटरनॅशनलसेंटर ऑफ़ एजुकेशन, पांडिचेरी में सेवाएं दे रहे है। श्री अरविन्ददर्शन के प्रवक्ता के रूप में आप जाने जाते हैं, साथ ही साथ विख्यात अंग्रेजी पत्रिका 'हेरिटेज' के संपादक रह चुके हैं। आपके प्रकाशित ग्रन्थहैं 'समुद्र र क्षुधा (1950)', 'विष कन्या र कहानी (1955)', 'शेष बसंत रचिट्ठी (1964)', 'आबू पुरुष और अन्यान्य कहानी (1964)', ', मनोज दासंकरकथा ओ कहानी (1971)', ' लक्ष्मी र अभिसार (1974)', 'धुम्राभ दिगंत(1977)मनोज पंच विंशति(1983)','अबोल्कारा कहानी (1997), ' इत्यादि जाने माने 24 कहानी संग्रह है। मनोज दास की प्रस्तुत कहानी 'आरण्यक ' सन 1971 के जून माह के इलास्त्रेतेड विकली में 'ए ट्रिप इनटू जंगल ' शीर्षक से प्रकशित हुई थी। इस कहानी के आधार पर डायरेक्टर के .वीर के निर्देशन में "आरण्यक " फिल्म बनाई गई थी, जिसे अन्तराष्ट्रीय फिल्म समारोह में सम्मानित किया गया। इसके अलावा प्रख्यात साहित्यकार और गवेषक डॉ. प्रफुल्ल कुमार मोहंती ने इस कहानी पर दूरदर्शन डाक्यूमेंट्री फिल्म भी प्रस्तुत की थी।
1 मिसेस मीटी ने दरवाजे पर खटखटाहट की एक धीमी आवाज सुनी । उसकी आँख खुलने से पहले कई बार इस तरह से ठक-ठक की आवाज हुई थी। बहुत धीमे-धीमे दरवाजा खटखटाने से उत्पन्न हो रही थी वह आवाज। बीच में एक-एक मिनट का व्यवधान। वह जानती थीं कि यह आवाज चौकीदार की नहीं हो सकती है।
मिसेस मीटी ने उस बड़े कमरे के अन्दर के चारों तरफ अपनी नजरें डाली। उसके पाँव के पास पड़े हुए थे राजा साहब..। गन्दगी का एक ढेर। राजा साहब के फूले-फूले होंठ के ऊपर लगभग आधी दर्जन मक्खियाँ पिकनिक मना रही थी। और बेचारा मिस्टर चाकोड़ी जंगली सूअर के प्रतिवाद करने जैसे खर्राटे ले रहे थे ।
मिस्टर मीटी और मिसेस चाकोड़ी फर्श पर एक दूसरे की तरफ मुँह करके सोए हुए थे, शायद एक दूसरे के साथ आलिंगनबद्ध होने का प्रयास करते हुए बेहोश हो गए थे।
दरवाजे पर एक बार और खटखट की आवाज। मिसेस मीटी की तन्द्रावस्था टूटने लगी। उनकी चेतना के ऊपर पर्वत की भाँति जो जड़ता जमकर बैठी हुई थी, उस आवाज से मानो उसका एक हिस्सा धसक गया हो। हालाँकि वे सब कब सो गए थे उस बात की याद करने की कोशिश करते हुए भी याद नहीं कर पा रहे थे। लेकिन अधमरे जंगली सूअर को आग में फेंक देना, उसके बाद उसके चारों तरफ नाच-नाचकर मदिरापान के साथ उसमें से अधपके मांस को थोड़ा-थोड़ा काटकर खाने तक का सब-कुछ याद है। कभी हजारों साल पहले इंसान की जो उन्मत्त और जंगली अवस्था थी, एक रात के लिए उसीमें लौट जाना उनका उद्देश्य था। मिस्टर चाकोड़ी थे प्रागैतिहासिक युग की अदम्य प्रवृत्ति और निर्बोध स्वतन्त्रता के एक पक्षधर विशेषज्ञ।
उस तरह की सामयिक मनमानी स्वतंत्रता से स्वास्थ्य-लाभ विषय पर एक लम्बा-चौड़ा भाषण पानाहार (सुरापान और आहार) शुरु होने से पहले ही उसने दिया था। (कौन सुन रहा था उसके बकवास तथ्यों को)। दरवाजे पर फिर एक आघात। इस बार मिसेस मीटी के स्मृतिपटल पर सारी घटनाएँ तरो-ताजा हो गई।
2
पहले दिन की दोपहर। मीलों दूर से झाड़ियों को पीसती, धूल उड़ाती और पत्थरों को काटती जंगल के अन्दर के इस परित्यक्त बंगले की तरफ जीप आ रही थी। एक जख्मी तितली के चक्के के नीचे आ जाते ही मिसेस मीटी चिल्ला उठी।" ओह ! बहुत ही करुण दृश्य।" उसके कुम्हड़े की भाँति चिकने चेहरे पर भाव-भंगिमा इस तरह दिखाई दे रही थी , जैसे कि उसकी समस्त करूणा अभी अभी पिघलकर धारा बनकर बह जाएगी.
उस पिघली हुई करूणा को झटपट चाट लेने का उद्यम करते हुए जैसे मिस्टर चाकोडी ने शेर -मूंछों से मंडित अपने विराटकाय चेहरे को यथासम्भव मिसेस मीटी के पास लाकर कहा -" छि ! इतना कोमल-दिल होने से चलेगा,चाइल्ड? " जैसे कि किसी दुर्गन्ध से नाक फटी जा रही हो, मिसेस चाकोड़ी उस तरह से नाक- भौं सिकोड़कर कहने लगी- "मीटी साहब जैसे बहादुर पति की तुलना में जरा ज्यादा कोमल हैं।"
जब मिसेस चाकोड़ी के किसी एक अक्षर के ऊपर जोर देते हुए शांत कंठ से शब्द उच्चारण करने के समय उनकी एक आँख बराबर बन्द हो जाती थी उस समय पर जो अदृश्य विष पूरे वातावरण में फ़ैल जाता था इस विष से तो स्वयं विषधर भी मर जाएगा। लेकिन उस जहर के अधिक सेवन के अभ्यस्त मिस्टर चाकोड़ी को कोई फर्क नहीं पड़ा।
मगर आत्मविस्मृति अवस्था में मिसेस मीटी की बातों की गाड़ी चलने का सिगनल डाउन हुआ, लम्बे चुरुट हाथों से छुए बिना होठों के एक कोने में ले आकर टपाक से नीचे कर दिया। मिस्टर चाकोड़ी ऊपर देखने लगे और उनके चेहरे पर खिल गई एक तरह की भावार्थसूचक छोटी-सी मुस्कराहट, 'बोलूँ? तुम लोग क्या समझोगे?' वह कोई सामान्य बात कहने नहीं जा रहे थे, यह सब उसी तरफ इंगित कर रहा था।
किसी व्यक्ति विशेष के ऊपर अपनी दृष्टि नहीं डालकर शून्य के साथ आँख मिलाते हुए वह कहने लगे- "मिसेस चाकोड़ी। यह जो नारीसुलभ कोमलता वाली बात मेरी समझ से परे है. यह मेरे लिए एक बड़ा रहस्य है। समझी .... मेरी कुछ समझ में नहीं आता। लेकिन अगर सच कहा जाय
आपकी मिसेस मीटी के पास ऐसा कुछ जरूर है जिसको मैं सबसे ज्यादा अच्छा मानता हूँ। यहाँ तक कि रणक्षेत्र में दुश्मन को ह्त्या करने की बलि से भी ज्यादा अच्छा मानता हूँ। हूँ... हूँ...। यह सच्ची बात है।"
"चुप करो, लक्कड़-बग्घे कहीं के। " उनकी बातों पर आपत्ति करते हुए मिसेस मीटी रुमाल से अपने चेहरे पर पंखा करने लगी।
मिसेस मीटी कुछ देर और उसी तरह से एक सुकोमल शिशु की तरह ढोंग करती रही। वह भी मिसेस चाकोडी के प्रबल अन्तर्दाह के बावजूद। उसके बाद अचानक उसकी दृष्टि उत्तेजना से भर गई।
"ओ, ड्राइवर ! रोको "
रास्ते के बाँए तरफ एक अर्ध वृत्ताकार क्षेत्र। जो तीनों तरफ से छोटी पहाड़ियों से घिरा हुआ। वहां पर जाकर जीप रुक गई। मात्र तितली उड़ने से हवा में उत्पन्न तरंगों से ही हिल जाने में अभ्यस्त मिसेस मीटी। लेकिन इस बार अचानक ब्रेक लगने पर भी वह निस्पंद। लेकिन लगभग एक आँख वाली मिसेस चकोड़ी की आँखे आश्चर्य ढंग से खुली की खुली रह गई। मीटी साहब की आत्मविस्मृति अवस्था लगभग ख़त्म हो गई थी तब तक।
पहाड़ की तलहटी में, उस अर्द्ध-वलय के अन्दर, एक हिरनी। काले बादलों की तरह मुगुनी देह पर जैसे एक झलक बिजली चमक गई हो।
अरंडी के बीज प्रस्फुटित होने जैसे जीप में से सब छिटक गए। झाड़ियों को छिरती हुई हिरनी गोली की रफ़्तार से भागने लगी। एक-दो-तीन फिर तीन-दो-एक। उस एक ही गति की पुनरावृत्ति। तीनों तरफ से उसका रास्ता रोक रही थी पहाड़ियाँ। सिर्फ एक ही खुली दिशा जिसको घेर कर खड़े थे छ आदमी। उनके हाथों में पाँच बंदूके।केवल मिसेस चकोड़ी के हाथ में बंदूक नहीं। लेकिन उसकी आँखें दो जलती हुए बुलेट से कम नहीं थीं।
एक मिनट इधर-उधर होने के बाद हिरनी ने एक दुस्साहसिक कदम उठाया। ड्राइवर श्यामलेन्दु की तैयार बन्दूक के सामने से होकर दूसरे तरफ की घनी झाड़ी की तरफ झपट कर चली गई।
"शूट !" मिसेस मीटी चिल्ला उठी।
लेकिन श्यामल ने ट्रिगर नहीं दबाया। दूसरी तरफ झाड़ियों के अन्दर हिरनी सोने की छुरी की भाँति भेद करती हुई अदृश्य हो गई। उसके बाद श्यामल ने अपनी बंदूक नीचे कर दी।
उसके बाद पाँच-पाँच क्रोध भरे सवालों की सफाई में अपना जवाब प्रस्तुत किया श्यामल ने।
"हाथ नहीं चला क्योंकि वह हिरनी गर्भवती थी।"
रुमाल की मदद से चेहरा पोंछते हुए कहने लगी मिसेस मीटी - "अरे ! कितना गंदा काम। "
लगभग वह रोने जा रही थी। लेकिन मिस्टर चकोड़ी ने संभाल लिया, "बेचारी ! आप फिर इतनी भावुक हो गई, मैडम ! अगली बार आप खुद गोली चलाएँगी। ठीक है? बन्दूक अपने पास रख लीजिये। "
इस बार मिसेस मीटी ड्राइवर श्यामल के पास बैठ गई। वह उद्दंड युवक बाकी पांचों की वेदना और आवेग के प्रति थोड़ा भी ध्यान देते नहीं लग रहा था। उसका कारण यह था कि उसका मालिक राजा साहब उसका सौतेला भाई था। दिवंगत बूढ़े राजा की अनेक संतानों में से श्यामल भी एक था। हालांकि उसकी माँ राजा की अधिकृत रखैलों में से नहीं थी जिसके कारण उसका दर्जा काफी नीचे था। हमेशा उदास मगर सुदर्शन विलक्षण शिकारी श्यामल के चहरे पर स्वर्गीय राजा की तरह राजसी आभिजात्य झलकता था। लेकिन बूढ़े राजा का उत्तराधिकारी यानी आज का राजा साहब एक आभाहीन जीवमाल था। जीवन शक्ति का अर्वाचीन और अनर्गल खर्च ने उनको बहुत दिन से एक अक्षम दयनीय भिखारी बना दिया था। केवल नारियों के साथ लम्बा समय बिता कर उनकी सुगन्ध को आघ्राण करना ही उनका एक मात्र भोग-विलास रह गया था। खासकर इसी काम के लिए अपने पुराने वर्जित अरण्य निवास को हाल ही में ही रहने योग्य बनाया था।
बंगले में पहुँचने तक राजा साहब हर पाँच मिनट बाद श्यामल की भूल के बारे में याद करके अभिशाप दे रहे थे। मगर श्यामल बिना कुछ बोले गाड़ी चला रहा था।
दोपहर को बंगले में पहुँचकर कुछ हल्के जलपान के बाद वे सब शिकार के लिए निकल गए लेकिन श्यामल तैयार नहीं हुआ। कुछ समय तक उस पर गरजने के बाद राजा साहब चुप हो गए। उस हिरनी से जुड़े व्यर्थ के शोक में डूबी मिसेस मीटी भी बंगले में रह गई।
मिसेस चाकोड़ी ने मिसेस मीटी की तरफ एक तिरछी नजर डाली । लेकिन मिसेस मीटी को मालूम था कि मिसेस चाकोड़ी मीटी साहब के आरण्यक-सानिध्य को छोड़कर नहीं रह पाएगी। बुद्धू पति मिस्टर चाकोड़ी की उपस्थिति के बावजूद खूब सारे भावपूर्ण ईशारों के आदान-प्रदान करने का मौका मिल रहा था मिस्टर मीटी और मिसेस चाकोड़ी को। साँझ ढल रही थी।
एक भौतिक निरवता.... बीच-बीच में अनजानी आवाज, डर, उत्सुकता और एक प्रबल इच्छा के समावेश में मिसेस मीटी सिहर उठी। फिर अकेले सुरापान करने के कुछ देर बाद उसका अहम् श्यामल के निरासक्त, उद्घत और अरुचिपन के विरोध में विद्रोह कर उठा।
ठीक उसी समय दूर से एक भयानक आवाज आई।-
"ये किसकी आवाज हो सकती है? " मिसेस मीटी ने श्यामल से पूछा।
श्यामल ने कहा- " शेर की आवाज, मैडम।" मिसेस मीटी एक ही बार में खड़ी हो गई और बरामदे में से दौड़कर अन्दर जाते समय पूरे एक शास्त्रीय ढंग से ठोकर लगने का नाटक करती हुई गिर गई।
यहाँ तक कि श्यामल के आने तक उठने का प्रयास भी नहीं किया। और जब श्यामल आया, उस समय उसको पूरा आलिंगन करने का मौका देने के बाद ही वह उठकर खड़ी हुई।
कुछ देर पहले वाली घटना के बारे में कुछ भी न बोलते हुए होठो पर एक कुटिल हँसी हंसते हुए मिसेस मीटी ने कहा,-" तुम एक उस्ताद शिकारी हो, श्यामल ! "
श्यामल समझ गया, मिसेस मीटी उसको बीस साल पहले वाली साथी खिलाड़ी लगने लगी। जों कि सहज भाव से एक खेल का तरीका सिखाना चाह रही है। मगर श्यामल ने भी एक सरल बालक की तरह व्यवहार किया। फिर भी उसके होठों से हल्की विद्रूप भरी हँसी रूक नहीं सकी। उस नीरव हँसी ने मिसेस मिटी को केवल विजय की तृप्ति से वंचित ही नही किया बल्कि उसके मन में भर दिया जबरदस्त अपमान और पराजय का अन्धकार।
3
राजा साहब और बाकी तीनों के जंगल से लौटने तक घना अंधकार हो गया था. मिसेस मीटी की क्लांत-नींद टूट गई। वह बुखार जैसा अनुभव कर रही थीं। दरवाजा खोलते ही सबसे पहले उनकी दृष्टि पड़ी मिसेस चाकोड़ी की आँखों पर। मिसेस चाकोड़ी बहुत कुछ कल्पना कर रही थी और उस बात को समझने में उसको विलम्ब नहीं लगा। शीघ्र ही कमरे के एक कोने में फर्श पर सोए हुए श्यामल की तरफ मिसेस चाकोड़ी खतरनाक निगाहों से देखने लगी। उसकी आँखों से यह स्पष्ट हो रहा था कि वह बुरी तरह से अपने आप को प्रताड़ित महसूस कर रही थी।
"डार्लिंग, तुमको अकेले छोड़कर चले जाने के कारण से मिसेस चाकोड़ी इस प्रकार से अशांत हो रही थी कि क्या कहूँ। उम्मीद करता हूँ कि तुम्हें कोई दिक्कत नहीं हुई होगी।" मिस्टर मीटी ने कहा। उस समय तक मदिरा, निद्रा, अन्धकार और उस भौतिक नीरवता से उत्पन्न विचित्र प्रभाव से पूरी तरह मुक्त नहीं हुई थी मिसेस मीटी।लेकिन मिसेस चाकोड़ी की सारी कल्पना और श्यामल के होठों पर अभी तक मौजूद उस विद्रूप भरी हँसी के बारे में सोचकर मिसेस मीटी आशंकित हो गई थी, उसी को शीघ्र ही विस्मृत करने का संकल्प लेकर वह मिस्टर मीटी को बेल्ट से पकड़कर कमरे के अन्दर खींच कर ले गई। अचानक भर्राए हुए गले से बोलने लगी- "जानते हो, उस जानवर को आज मैंने एक जबर्दस्त थप्पड़ मारा है। "
"श्यामल के बारे में कह रही हो? "
"और क्या ! बहुत बड़ा शैतान है वह आदमी।"
कुछ समय के लिए श्मशान जैसा नीरव हो गया पूरा माहौल। जिन्दगी भर श्यामल के विरुद्ध हमेशा शिकायत लाने वाले राजा साहब निद्रित श्यामल की तरफ दौड़ पड़े। लेकिन उसके बाद क्या करेंगे समझ नहीं पाए और खड़े होकर केवल बडबडाने लगे अपना पसीना पोछते हुए।
मिस्टर मीटी और मिस्टर चाकोड़ी चुपचाप खड़े रह गए जैसेकि कोई बिजली गिर गई हो। लेकिन उनकी किंकर्तव्यविमूढ़ता वाली अवस्था तोड़ दी मिसेस चकोड़ी ने। वह अचानक रो पड़ी और श्यामल की तरफ भागते हुए जाकर उसके शरीर पर जोर से एक लात मारी।
नींद से उठकर श्यामल बड़ी-बड़ी आखें लिए खड़ा हो गया। लेकिन ज्यादा समय तक नहीं। मिसेस मीटी को छोड़कर बाकी सब मिसेस चकोड़ी द्वारा दिखाई राह पर चलते हुए उसको पीटने लगे। मिसेस मीटी पागल की भाँति चिल्लाते हुए बेहोश हो गई। श्यामल के खून से लथपथ बेहाल शरीर को वे लोग घसीटते हुए ले गए पास वाले एक छोटे कमरे के अन्दर जहाँ अभी-अभी शिकार करके लाए एक अधमरे जंगली सूअर को रखा गया था। कुछ ही मिनटो में ही इतना सब कुछ हो गया। उसके बाद सब बैठकर उखड़ी-उखड़ी साँसे लेने लगे।
सुबह जल्दी हाजिर होने का आदेश देकर चौकीदार को विदाकर दिया गया। अन्दर से अच्छी प्रकार खिड़की-दरवाजे सब बन्द कर दिए गए। पिछली तरफ दीवार से घिरे किचन -गार्डन में अग्निकुँड लाया गया।
उसको घेरकर सब बैठकर और पीने लगे। जब आग जोर-जोर से जलने लगी तब उन लोगों ने उस अधमरे जंगली सूअर को घसीटते हुए बाहर लाकर उसी आग में झोंक दिया। और उसमें से थोड़ा-थोड़ा मांस काटकर खाने लगे, खाते-खाते गाने लगे, नाचने लगे। देर रात होने तक यह सब चलता रहा।
4
दरवाजे पर फिर वही धक्का। मिसेस मीटी उठकर बैठ गई। खिड़की खोलकर बाहर झाँकने लगी। अभी तक अंधेरा बाकी। अचानक उस अंधेरे में से उनके ऊपर झपट पड़ा एक शीतल आतंक।
धीरे-धीरे पूरे शरीर को संक्रमित कर गया। खून में भर जाने के बाद जो बचा-खुचा बाकी रह गया वह पसीने के बिन्दु बनकर शरीर से बाहर निकलने लगा। वह दूसरों को बुलाने लगी। चौकीदार समझ गया कि सब उठ गए हैं और उसने दरवाजा खटखटाना रोक दिया।
राजा साहब ने कहा-" सुप्रभात बन्धुगण ! चाय बनाई जाए। क्या बातचीत कर रहे हैं आप लोग। मैं देखता हूँ वह बदमाश श्यामल क्या कर रहा है।"
श्यामल को बन्द करके रखे गए कमरे की तरफ राजा साहब ने अपना कदम बढ़ाया।
"मत जाइए!" चिल्ला कर मिसेस मीटी ने राजा साहब को रोक दिया। चकित होकर राजा साहब जैसे- तैसे पूछने लगे- "क्या..., क्या...। लेकिन....। कु.....। क्या....?"
मिसेस मीटी ने कहा- "मुझे नहीं मालूम, लेकिन कमरे के अन्दर अगर श्यामल के बदले सूअर मिला तो? "
लेकिन हम लोगों ने पिछली रात सूअर को ही भून कर खाया था।
"क्या मैं ठीक कह रहा हूँ न? "
"मान लीजिए अगर आप कमरे के अन्दर श्यामल के बदले सूअर को देखते हैं? " लम्बे समय तक फ़ैल गई एक मृत्युशीतल निस्तब्धता। उसके बाद किसी एक ने कहा- "चलिए किचन गार्डन में देख लेते हैं। सूअर का कुछ अंश जरूर अभी तक वहाँ पड़ा होगा।"
"राम राम ! कभी नहीं। "एक साथ मिसेस मीटी और मिसेस चाकोड़ी चिल्ला उठी, "जो कुछ वहाँ पड़ा हुआ मिलेगा वह सब अगर सूअर का नहीं होगा तो? "
फिर एक बार मृत्युशीतल निस्तब्धता। सब देख रहे थे और काँप रहे थे। दो घंटे बाद। मिस्टर मीटी जीप चला रहे थे। बालू से भरी बोरियों की तरह निष्प्राण होकर लदे हुए थे दूसरे लोग।
राजा साहब हँसने की चेष्टा करते हुए कहने लगे- "कितनी अजीब है आपकी कल्पना या सपना कह लीजिए... मिसेस मीटी। जो भी हो आपने हमारे खून को हिम की तरह जमा दिया। वास्तव में बड़ी अजीब हैं आप !"
मिसेस मीटी या किसी ने कुछ नहीं कहा। इसीलिए राजा साहब फिर बोलने लगे-"हालाँकि मैंने अपने भरोसेमंद चौकीदार को निर्देश दे दिए हैं कि नशे की हालत में अगर हमसे कोई भूल हो गई हो तो किसी को कानों-कान खबर न लगे, इसकी वह सही व्यवस्था कर दे। लेकिन मुझे संदेह हो रहा है कि मिसेस मीटी की आशंकाए भूत जैसी अवास्तविक है।"
मिस्टर चाकोड़ी और मिस्टर मीटी ने एक साथ कहा-, "सही में संदेह हो रहा है ! उस कमरे को नहीं खोलना और किचन गार्डन की तरफ जाकर नहीं देखना हमारी मूर्खता ही है।
"हालाँकि भूत अवास्तविक है इस बात को लेकर मैं कभी- कभी दुविधा में पड़ जाता हूँ। उस बंगले में कुछ भूत रहते हैं- ऐसा लोग कहते हैं। भूत विभिन्न प्रकार की गड़बड़ी करते हैं। हो सकता है कि भूतों ने हमारे साथ कोई खेल खेला हो और हम लोगों को मूर्ख बनाया हो " राजा साहब ने कहा।
मिसेस मीटी अचानक रोने लगी। मिसेस चकोड़ी अट्टहास करने लगी। दूसरे लोग बालू की बोरी जैसे निस्तब्ध।
जीप की आवाज में उनका रोना और हँसना दोनों जैसे पिसे जा रहे हो।