आराम कुर्सी से निर्देशक कुर्सी का सवाल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :22 जून 2016
अमिताभ बच्चन की नातिन नव्या नवेली और शाहरुख के सुपुत्र आर्यन के बीच गहरी मित्रता है। वे साथ-साथ डिस्को करते हैं, पांच सितारा होटल में भोज करते हैं। उनके कमसिन उम्र के होने के साथ ही यह भी समानता है कि वे प्रसिद्ध एवं धनाढ्य परिवारों की संतानें हैं। हमारे समाज में अमीर और गरीब के बीच की खाई हमेशा रही है और हमने विशिष्ट लोगों को अतिरिक्त महत्व भी दिया है। साधारण और सरल होने जैसे गुणों को हाशिये पर डाल दिया गया है। हमने चवन्नी सालाना फीस वाले म्युनिसिपल स्कूल में पढ़ाई की जहां टाटपट्टी पर सभी आर्थिक वर्गों के छात्र बैठते थे परंतु आज विशिष्ट वर्ग के लिए फैशनेबल स्कूल बन गए हैं। मुंबई की एक संस्था में सारे शिक्षक विदेशी हैं और संस्था के संचालक को घोर दु:ख है कि उसे संस्था के सफाई कर्मचारी और अन्य स्टाफ के लिए भारतीय लोगों को लेना पड़ा। अब स्वदेशी हर क्षेत्र से खारिज है। भारत बोलना भी प्रतिबंधित हो सकता है और हमें इंडिया ही बोलना पड़ेगा। भारत का जो इंडियाकरण वर्तमान में हो रहा है, वह तो अंग्रेज भी अपने दो सौ वर्षों की हुकूमत में नहीं कर पाए। अंग्रेजों के अधूरे सपने हम पूरे कर रहे हैं।
सितारा संतान सुरक्षाकर्मियों के साथ जाती है अौर जब रेस्तरां में ये बच्चे खा-पी रहे होते हैं, तब इनके ड्राइवर और बॉडीगार्ड आपस में बतियाते हैं। हर सेवक को वेतन से अधिक टिप मिलती है। ये सितारा संतानें हमेशा हॉलीवुड की फिल्में देखते हैं, चीनी या कॉन्टीनेंटल भोजन ग्रहण करते हैं। अपने पिता के व्यवसाय के प्रति उनके मन में कोई विशेष आदर नहीं है और यह कुछ कम नहीं कि वितृष्णा नहीं है। ये छुटि्टयों में भारत के भ्रमण पर नहीं, स्विट्जरलैंड जाते हैं। सारे सितारे अपने पुत्रों को भी अभिनय संसार में लाना चाहते हैं परंतु पुत्रियों का विवाह उद्योगपति घरानों में करना चाहते हैं। आप किसी भी आर्थिक वर्ग के हों परंतु पुत्र और पुत्रियों पर आपकी सोच दकियानूसी है, क्योंकि पुत्र को हाथ में हथियार व पुत्री को सिर पर लटकती तलवार मानने की सोच से इन्हें कोई आजादी नहीं है। रणधीर कपूर, सुनील शेट्टी और महेश भट्ट अपवाद हैं, जिनकी बेटियां भी फिल्मों में अाई हैं। महेश भट्ट ने अपनी पहली पत्नी की सुपुत्री पूजा को अभिनय व निर्देशन क्षेत्र में सक्रिय किया परंतु पूजा का कॅरिअर नहीं बन पाया। दूसरी पत्नी राजदान की बेटी आलिया अपने दम-खम पर अभिनय क्षेत्र में डटी है और ताजा प्रदर्शित 'उड़ता पंजाब' मंे आलिया भट्ट ने प्रशंसनीय काम किया है। यहां तक कि प्रवीण करीना कपूर की नाक के नीचे से उसने फिल्म का श्रेय प्राप्त कर लिया है। महेश भट्ट अरसे पहले निर्देशन छोड़ चुके हैं और विशेष फिल्म के वे प्रमुख चिंतक हैं। भाइयों के बीच बड़ा स्पष्ट बंटवारा है। कला पक्ष की निगरानी महेश भट्ट करते हैं और व्यवसाय पक्ष मुकेश का उत्तरदायित्व है। महेश भट्ट स्वीकार करते हैं कि सृजन पक्ष में वे केवल मार्गदर्शन करते हैं। स्वयं न पटकथा लिखते हैं और न ही निर्देशन करते हैं। वे गाइड, गुरु एवं दार्शनिक की भूमिका में हैं परंतु आलिया की प्रतिभा अब उनके लिए चुनौती है। वह बोलती नहीं परंतु उसकी उत्सुक, जागरूक आंखों में पिता के लिए सवाल है कि क्या आप एक विलक्षण चुनौतीपूर्ण पटकथा उसके लिए लिख सकते हैं और निर्देशक की कुर्सी भी उनके बैठने के लिए बेकरार है। प्रतिभाशाली पुत्री अब एक खामोश चुनौती की तरह सामने खड़ी है। आलिया भट्ट करीना कपूर की तरह सुंदर नहीं है और न ही उसके पास इच्छाएं जगाने वाला कैटरीना कैफ नुमा जिस्म है परंतु अभिनय प्रतिभा है, जो इस समय सुसुप्त ज्वालामुखी की तरह है।
अब महेश गुरु का चोला उतारें और इस ज्वालामुखी का लावा बह सके ऐसी फिल्म की रचना करें। उन्हें स्मरण होगा कि आलिया की मां के साथ उन्होंने 'सारांश' बनाई थी और अब तक उस श्रेणी की फिल्म वे नहीं बना पाए हैं। महेश भट्ट यह भी जानते हैं कि 'सारांश' के समय जो देश के हालात थे, उससे बदतर आज हैं और वर्तमान की चमक तांबे के बर्तन पर श्वेत कलई मात्र है। अब घर-घर जाकर बर्तन पर कलई करने के व्यवसाय का लोप हो चुका है, क्योंकि स्टेनलेस स्टील के बर्तन आ गए हैं, जिनमें पके खाने में वह तांबत्व कहां। क्या बरतन पर तांबत्व और संबंधों में अपनत्व का कोई रिश्ता है? महेश भट्ट स्वयं ही सुसुुप्तावस्था में बसे ज्वालामुखी हैं और आलिया के सवाल भीतर मौजूद लावे से हैं। कब तक महेश भट्ट अपने इस लावे को जानकर अनदेखा कर सकते हैं? भट्ट साहब, जो मोतियाबिंद आपको नहीं है, उसकी शल्य चिकित्सा नहीं हो सकती। विशेष फिल्म्स के संचालक पद की कुर्सी में शूल-सा अालिया का सवाल है कि निर्देशक की कुर्सी आवाज दे रही है।