आरूषि तलवार, इंद्राणी और तलवार की मूठ / जयप्रकाश चौकसे

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आरूषि तलवार, इंद्राणी और तलवार की मूठ
प्रकाशन तिथि :03 सितम्बर 2015


आरूषि हत्याकांड पर कम बजट की फिल्म प्रदर्शित हो चुकी है और विशाल भारद्वाज द्वारा निर्मित तथा मेघना गुलजार द्वारा निर्देशित 'तलवार' भी उसी विषय पर बनी फिल्म है। इसके साथ यह भी खबर आई है कि मार्च में महेश भट्‌ट ने एक काल्पनिक कथा लिखी थी, जिसमें एक मां अपने पहले पति से जन्मी पुत्री की हत्या कर देती है। इंद्राणी मुखर्जी प्रकरण भी इसी तरह का है। महेश भट्‌ट की कथा और यथार्थ घटनाक्रम में कुछ साम्य है। 1898 में अमेरिका के उपन्यासकार रिचर्डसन द्वारा लिखी काल्पनिक कथा का बहुत साम्य था 1912 में 'टाइटैनिक' दुर्घटना से, जिस पर केमरन ने अमर फिल्म रच दी। गौरतलब है कि भविष्य की घटनाएं कैसे किसी लेखक की कल्पना में उभर आती है और यह भविष्यवाणियां नहीं है तथा दुनिया के आमूल नष्ट होने के शिगूफे भी नहीं है।

यह जिप्सी महिला का जामेजम (कांच का गोल बर्तन) नहीं है, जिसमें भविष्य बताया जाता है। हमने अपनी सुविधा के लिए समय को भूत, वर्तमान और भविष्य में बांटा है परंतु समय की अनवरत बहती नदी में जो ऊपरी सतह हमें दिखाई देती है, वह वर्तमान है और उसके नीचे बहती धारा भूतकाल है तथा नदी के तल में प्रवाहित धारा भविष्यकाल है। यह संभव है कि तीन सतहों पर बहता पानी कभी कहीं एक जगह उतंग लहर से दिखाई पड़ता है और कोई सृजनशील व्यक्ति उस समय नदी के किनारे बैठ लहरों और सतहों के इस संगम को देख लेता है। समय और सृजन दोनों ही नदियां हैं और किसी पहाड़ या समतल पर नहीं वरन् सृष्टि के अदृश्य पटल पर बहती है।

बहरहाल, महेश भट्‌ट ने जीवन में विविध अनुभव प्राप्त किए हैं और विविध प्रकार की फिल्में भी बनाई हैं। विगत कुछ वर्षों से महेश मनुष्य अवचेतन की अंधेरी कंदरा पर अमेरिकन नोए किस्म की फिल्में बना रहे हैं। अत: इंद्राणी की तरह के प्रकरण पर उनका लिखना स्वाभाविक है। कोई चालीस या पचास वर्ष पूर्व 'चेतना' के लिए प्रसिद्ध बाबूराम इशारा ने शबाना आजमी अभिनीत फिल्म बनाई थी, जिसका नाम था 'लोग क्या कहेंगे?' उस फिल्म में एक विवाहित महिला चोरी-छिपे किसी और से इश्क करती है और एक दिन उसका पुत्र यह देख लेता है। वह अपने पुत्र की हत्या कर देती है। गौरतलब है कि समाज और पड़ोस के लोग क्या कहेंगे- इस भय के कारण अनेक अपराध मनुष्य को विवश होकर करना पड़ते हैं। इस तथाकथित समाज की जबान बहुत लंबी है और कानों में वह सुनने की क्षमता भी है, जो कहा नहीं गया परंतु इसके हाथ नहीं हैं, जो बिरादरी के लड़खड़ाते लोगों को थाम सकें, इसके पैर भी नहीं है, जो पड़ोसी के जलते घर को बचाने के लिए दौड़ सकें, इसके पास तर्कसम्मत विचार करने वाला दिमाग भी नहीं है। इसके पास बस लपलपाती लंबी जबान है।

बहरहाल, इंद्राणी मुखर्जी रहस्य अभी तक उजागर नहीं हुआ है और आरूषि हत्याकांड भी कुछ कोहरे में ही है, क्योंकि हमारी पुलिस और गुप्तचर संस्थाएं तत्पर कदम नहीं उठातीं और कई बार सत्य जानकर भी उजागर नहीं करती, क्योंकि उसे अपने राजनीतिक आकाओं की इच्छा का भी ख्याल रखना पड़ता है। क्या हम स्वतंत्र निष्पक्ष पुलिस की रचना नहीं कर सकते, जिस पर किसी किस्म का दबाव नहीं हो। यह प्रदेश नहीं वरन् अखिल भारतीय स्वरूप वाली संस्था होनी चाहिए। यह भी गौरतलब है कि इसी पुलिस नामक संस्था ने अंग्रेजों के राज में बड़ी सक्षमता दिखाई थी परंतु अपने आकाओं के कहने पर स्वतंत्रता संग्राम में लगे लोगों पर लाठियां भी बरसाई हैं। अत: पूरी तरह स्वतंत्र व निष्पक्ष वह तब भी नहीं थी। इस संदर्भ में गौरतलब है कि स्कॉटलैंड पुलिस का बड़ा नाम है। सच तो यह है कि स्कॉटलैंड का हर नागरिक जागरूक है और संदेहास्पद बातों की रिपोर्ट हमेशा पुलिस को करता रहता है। यह 'अवैतनिक पुलिस वाला' ही वहां की सक्षम पुलिस की असली ताकत है। गौर करें या आत्मावलोकर करें कि हम कितने मुस्तैद नागरिक हैं? याद आती है धर्मवीर भारती की 'प्रमुथ्यु गाथा' की प्रारंभिक पंक्तियां, 'हम सब के माथे पर दाग, हम सबकी आत्मा में झूठ, हम सैनिक अपराजेय, हमारे हाथों में सिर्फ तलवारों की मूठ।'