आरोही / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी

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(अनुवाद :सुकेश साहनी)

(एक)

हम सभी उस पवित्र पर्वत की चोटी पर पहुँचना चाह रहे हैं। क्या हमारा रास्ता छोटा नहीं हो जाएगा अगर हम अपने अतीत को मार्गदर्शक न मानकर एक मानचित्र समझें?

(दो)

हम सभी अपने दिलों में छिपी असीम इच्छाओं के शिखर पर चढ़ रहे हैं। ऐसे में यदि कोई सहयात्री हमारी पीठ पर लदे सामान में से कुछ चुरा लेता है तो हमें उस पर तरस खाना चाहिए क्योंकि इससे हमारा भार कुछ कम ही होगा।

जबकि इस चोरी से उसकी चढ़ाई और भी कठिन और रास्ता लम्बा हो जाएगा।

यदि आप उसे बुरी तरह हांफते हुए देखें तो उसे चढ़ने में थोड़ी-सी मदद करें, इससे आपकी चाल में और तेजी आ जाएगी।