आर्थिक उदारवाद, शाहरुख खान और फैन / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :02 नवम्बर 2015
आज शाहरुख खान का जन्म दिन है। इस वर्ष मार्च में आमिर खान पचास के हो गए हैं और 27 दिसंबर को सलमान खान भी पचास के होने जा रहे हैं। सिनेमा दर्शक संरचना में सबसे बड़ा वर्ग युवा का है और सबसे अधिक लोकप्रिय सितारे आधी सदी पार कर रहे हैं गोयाकि युवा वर्ग को बुढ़ाते हुए सितारे पसंद हैं। अब गौरतलब यह है कि देव आनंद को सदाबहार हीरो कहते थे, क्योंकि समय के सख्त नाखून उनके चेहरे पर कोई खरोच नहीं बना पाए थे परंतु खान तिकड़ी में शाहरुख के चेहरे पर समय के पंजे का हल्का-सा निशान उभर आया है। दरअसल, वे अपने समकालीन सितारों से अधिक परिश्रम करते हैं और रात को भी बहुत देर से ही सो पाते हैं। उनका व्यवसाय साम्राज्य बहुत बड़ा है और उसे भी वे कुछ वक्त तो देते ही हैं। इस तरह से वे संभवत: बमुश्किल चार घंटे ही सो पाते हैं। अनिंद्रा क्रूर होती है।
शाहरुख खान और अमिताभ बच्चन सबसे अमीर फिल्म वाले हैं और आर्थिक साम्राज्य बहुत कुरबानियां मांगता है। मुकेश अंबानी भी प्रतिदिन अठारह घंटे काम करते हैं। भारत निहायत ही गरीब देश है और एक सर्वे के अनुसार सबसे अधिक अस्वस्थ लोग यहीं रहते हैं तथा भ्रष्टाचार के कारण भी उसे नैतिकता के मानदंड पर बीमार देश ही कहते हैं। लुगदी साहित्य व फूहड़ फिल्मों सहित हमारी लोकप्रिय संस्कृति ने भी सदियों से ऐसी लहर बनाई है मानो धनवान होना कोई बुरी बात है, जबकि हमारा सबसे बड़े त्योहार दीपावली में लक्ष्मी पूजन होता है। धन कमाना कठिन होता है और उससे कठिन होता है उसे सहेजना। यह कंजूसी के पक्ष या समाजवाद की मुखालफत नहीं है वरन् ईमानदारी से की गई कमाई की प्रशंसा है।
कोई पच्चीस वर्ष पूर्व दिल्ली के एक पढ़े-लिखे मध्यम वर्ग का महत्वाकांक्षी युवा मुंबई मनोरंजन उद्योग में आया। उसके पास एक छोटा सूटकेस और दिमाग में अनगिनत सपने थे। शायद इसीलिए कुछ वर्ष बाद उसने 'ड्रीम्ज़ अनलिमिटेड' नामक फिल्म निर्माण संस्था रची, जिसमें उसके संघर्ष काल के साथी अजीज मिर्जा और जूही चावला भागीदार थोे। बाद में उसके सपने अनलिमिटेड से भी अधिक हो गए तो उसने 'रेड चिलीज' नामक निर्माण संस्था खोली। उसने 'फौजी' नामक सीरियल में भूमिका की और अजीज मिर्जा ने उसके साथ 'राजू बन गया जेंटलमैन' प्रारंभ की। उस दौर की शिखर सितारा जूही चावला ने सहर्ष नए कलाकार के साथ काम किया। इस फिल्म के पहले ही उसकी ऋषि कपूर और दिव्या अभिनीत 'दीवाना' प्रदर्शित हुई, जिसमें उसे सराहा गया परंतु उसे सितारा हैसियत अब्बास मस्तान की 'बाजीगर' से मिली, जिसमें उसने नकारात्मक भूमिका की थी। संभवत: इसी छवि के कारण यश चोपड़ा ने उसे अपनी सफल 'डर' में लिया और बाद में आदित्य चोपड़ा की 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' ने उसे सितारा दूल्हा बना दिया।
यह एक दृष्टिकोण है कि शाहरुख खान का उदय आर्थिक उदारवाद लागू होने के कालखंड में हुआ है। यह भी सच है कि 1989 में वाशिंगटन के आकाओं ने भारत पर दबाव डाला कि वह आर्थिक उदारीकरण की अर्थनीति अपनाए। इस आर्थिक उदारवाद ने सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन किया, जिसे टेक्नोलॉजी ने अपने चमत्कार से विराट ताकत बना दिया। अब उदारवाद और टेक्नोलॉजी की मिली-जुली विराट शक्ति एक जिन्न की तरह हो गई है, जिसे सलमान रश्दी की भाषा में 'स्मोकलेस फायर' अर्थात धुआंविहीन अग्नि कहते हैं। यह 'जिन्न' सब अार्थिक वर्गों के लोगों के अवचेतन में रहता है और वही उसका पोस्टल एड्रेस है। इस काल-खंड के सुपर सितारे हैं शाहरुख खान। उनके समकालीन आमिर खान भी इस 'जिन्न' से प्रभावित हैं परंतु सामाजिक सौद्देश्यता उन्होंने अपनी फिल्मों में बचाए रखी है। सलमान खान तो है ही हातिमताई जो नेकी कर दरिया में डालता है। दरअसल, शाहरुख ही इस कालखंड के प्रतिनिधि सितारे हैं जैसे राज कपूर और दिलीप कुमार नेहरू युग के प्रतिनिधि थे।
शाहरुख की दिक्कत उसकी असीम ऊर्जा ही है। वे कभी खाली नहीं बैठते गोयाकि उन्होंने भागते हुए वक्त के साथ स्पर्द्धा कर ली है। उन्होंने अपना कॅरिअर समाजवादी अजीज मिर्जा और कुंदन शाह के साथ शुरू किया था परंतु घोर व्यावसायिकता की फरहा खान उसकी कुंडली में आ गईं और उन्हें लगा कि फिलम में एक लगाकर सवा करने से बेहतर है दुगना और चार गुना करने वाली फिल्में बनाए। रोहित शेट्टी ने उनके लिए यह कर दिखाया। आदित्य चोपड़ा की 'फैन' में वे 45 वर्षीय सुपर सितारा भी हैं और अपनी हमशक्ल का बाइस वर्षीय दर्शक भी है। शायद अंग्रेजी फिल्म 'फेडोरा' से प्रेरित है। यह संभव है कि इसमें प्रशंसक की भूमिका उन्हें अपनी यात्रा का प्रारंभ याद दिला दे।