आर्थिक विकास पर एक टपोरी चिंतन / कमलेश पाण्डेय
क्या है न ये इंसान अक्खा टाइम कोई न कोई साइड पकड के विकास करता रहता है. बोले तो- अगर अक्ल पीछू भी छूट जाय तो आपका बॉडी, बाल, नाखून वगैरा का विकास फिर भी चालू रहता. अब्भी कंट्री का जुगराफिया तो विकास कर नहीं सकता, मगर ज़मीन के ऊपर जितना भी आइटम है, जैसे आम आदमी, गवर्मेंट, सेठ लोग - सब विकास करता रहता. इन लोगों के धंधा और रोकड़ा में जो विकास होता, उसको आर्थिक विकास बोलते.
आपका बॉडी, बाल और नाखून बढ़ता हुआ दिखता क्या? नई न.. मगर बरोबर बढ़ता..उसी का माफिक आर्थिक विकास होता रहता मगर दिखता नईं. इसको देखने का वास्ते आंकड़ों का चश्मा मांगता. इस चश्मा में भोत सारा फिगर होता. इसको किसी हसीन आइटम का फीगर नई समझने का...फिगर बोले तो नंबर, जैसा सट्टा का होता. मगर एक लफडा है..सबका चश्मा अलग-अलग नंबर का होता. सरकार ऑथेंटिक बोलके अपना आंकड़ा के प्रोजेक्टर से जो फिलिम दिखाती, उसको देखेगा तो सब कुछ एकदम फुल्टू झक्कास, रोज़ी-रोज़ी माफिक नज़र आयेंगा, मगर प्रेस-मीडिया का चश्मा में वोईच फोटू थोड़ा धुंधला होयेंगा. अब्भी मीडिया भी चश्मा पोंछ के सरकार का माफिक साफ़-साफ़ दिखाने लगा है. अपोजीशन का चश्मा से विकास का फोटू हमेशा उलटाईच दिखेंगा. मगर सच्ची बोले तो कई बार ये उलटा फोटू ही सीधा तस्वीर दिखाता. अपुन का माफिक आम लोग की कमज़ोर नज़र से फ़क़त चमकदार आइटम ही दिखता, उसका पीछू क्या-क्या लिखा-छुपा है, वो नईं.
विकास नापने का सिंपल मगर फुल्टू मीटर को बोलते- जीडीपी. ये ज़रा ऊपर नीचे हुआ नईं कि ग्यानी लोक फट्ट से जान लेते कि विकास हो रेला कि किदर पे अटकेला है. देश का अक्खा धंधा-पानी का हिसाब रखता ये जीडीपी. कितना कमाया, कितना खरचा. जीडीपी का विकास बोले तो देश का आर्थिक विकास. इसका ग्रोथ रेट में आधा परसेंट भी झोल आया तो समझो सिस्टम के अन्दर कोई लोचा है. इदर एक साल में पूरा एक परसेंट का लोचा हुआ, सो अपुन के भेजे में भी कुछ चिन्तन टाइप चल रेला है.
सत्तर साल में अपुन लोग कितना विकास किया, सबको मालूम, पण, इदर तीन साल में क्या हुआ बोल के सरकार, भीतर-बाहर का बड़ा-बड़ा बैंक और ग्यानी लोग खाली-पीली बहस कर रेले हैं. सबको मालूम सरकार कितना काम कर रेली है. बड़ा सेठ एफएमसाब बताया न कि फक्त नोटबंदी करके और जीएसटी लगा के बेईमान पब्लिक से कितना पेटी, कितना खोखा रोकडा निकलवा लिया. एकदम बिंदास, अपने सलीम टकला भाई का वसूली-स्टाइल. ये भी बताया कि इदर सवा लाख किलोमीटर हाईवे बनाया, उदर ज्यादा लोग एयरोप्लेन में सफर करना चालू कर दिया. बड़ा लोग नया कार खरीदने के काबिल हुआ. बड़ा कारोबारी के धंधे का रास्ता आसान बनाया. पीएमसाब भी बरोबर बोलता है कि विकास एकदम सॉलिड हो रेला है. अपुन की बस्ती से आसमान अब और कम दिखता है, कितना सारा मल्टी-स्टोरी और मॉल बन गया बाजू में. बस्ती के एक बाजू बुलेट ट्रेन का ट्रैक और दूसरा बाजू सिक्स-लेन हाईवे बनेगा-बोलके बस्ती को थोड़ा और स्लिम-ट्रिम कर दिया. इतना काम किया, ज़रा स्लो-डाउन हुआ तो क्या, विकास का काम कहीं पे चालू तो है.
मगर भाई, दिल से सच्ची बोलता है, इदर का हाल गड़बड़ है. धंधा पानी बंद होने से आधा बस्ती फुटपाथ पे आ गियेला है. टपोरीगिरी में कम्पटीशन बढ़ गयेला है. भाईगिरी में भी बरक़त नई, पब्लिक के पास कैश नई, वसूली किससे करेंगा. छोटा सेठ लोग धंधा चालू रखने का वास्ते रोकडा निकालने में डरता है. काम मांगो तो जीएसटी का नाम लेके खुदीच रोने लगता है. रामू भाग के गाँव गया तो उदर भी खेती-बारी में फाकामस्ती चालू. उसका बापू सल्फास खाके टपक गया. सोनू का जॉब गया, फॅमिली भूखा मरता. मालूम होता है, देश का जो जीडीपी गिरेला है सारा अपुन की बस्ती का ही गिरेला है.
क्या मालूम विकास इस झोंपडपट्टी में भी किदर छुप के हो रेला होएंगा, मगर दिखता तो नई. पीएमसाब बोला कि विकास को खोजने का नईं, महसूस करने का. अपुन पूरा जोर लगा के महसूस करने को ट्राई करता, मगर ऐसा लगता कि अपुन के जोर में अब जोर बचा ही नई.
जोर आयेंगा किदर से?...कमाई नईं, पढाई नईं, दवाई नईं!