आर यू श्योर / तरूण भटनागर
- श्रद्धांजली : एक अमेरिकी मौत पर
(कहानी में प्रयुक्त दस्तावेज ,कोर्ट में दिये बयान , चित्र , पेपरों , किताबों , आलेखों के उल्लेख आदि वास्तविक हैं । अमेरिका की लायब्रेरी आफ कांग्रेस की अमेरिकन मिलिट्री लीगल रिपोर्ट , रिचर्ड हैमर की किताब द कोर्ट माषZल आव लैफ्टिनैंट कैली , टाइम्स पति्रका का षुक्रवार 28 नवंबर 1969 का अंक , द हिंदू पेपर के 7सितंबर2004 के लेख इम्प्यूनिटी फ्राम माई लाय टू अबू घरैब , टाइम्स और लाइफ मैगजीन ,ण्ण्ण्ण् आदि ,आदि में इस बारे में काफी जानकारियां हैं । जिनमें से कुछ का इस कहानी में प्रयोग हुआ ।)
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- दिसंबर 2002 । उत्तरी अफगानिस्तान का एक कस्बा ।
बेन क्रिस्टन को पता चला कि , पहले यह इण्डिया के किसी कनिष्क नाम के राजा की राजधानी था । इण्डो ग्रीक और गांधार कला का गढ और आज , पिछले चालीस सालों से मोरटारों , मिसाइलों और गोलियों से खत्म कर दी गई एक बस्ती । तब याने प्रथम सदी इस्वी में इसका नाम कपिषा था और आज अमेरिकी सेना का अड्डा -बागरम । ज्यादा बेहतर नाम बागरम कलेक्षन सेंटर या बीण्सीण्पीण् । युद्धबंदी कैंप । इस जगह के कुछ और नाम भी हैं , बागरम मिलिट्री एयर बेस , बागरम इंफेंट्री बेस ण्ण्ण्ण् आदि , आदि जिनमें से कोई भी इसका असली नाम नहीं है और एक खत्म हो चुकी जगह जहां बावन हजार लोग कीडे मकोडों की तरह रहते हैं , बेनाम है । वहां लोगों से ज्यादा उनकी डरी हुई कहानियां रहती हैं ।
बाहर रोज की तरह बर्फ की सुंइयों वाली ठण्डी चुभती चुंधियाती धूप और दूर तक फैली मिट्टी और चूने की चौकोर छोटी खिडकियों वाली डब्बेनुमा घनाकार दीवारें और ईंट - पत्थरों का ढेर था । लोग पत्थरों और मलबे के इस ढेर में रहते हैं । क्रिस्टन को यहां काम करने वाली पीण्आरण्टीण् याने प्रोवेंषियल रिकंस्ट्रक्षन टीम के एक सिविल इंजीनियर ने इन कबाड बस्तियों को देखते हुए बताया था , कि अब दुनिया में दो तरह के लोग रह गये हैं - जीने के लिए चुने गये लोग और मरने के लिए चुने गये लोग । मरने को चुने गये लोगों के घर नहीं होते , सो उसकी जगह टूटी छतें और गोलियों और मोटाZर के छेदों वाली दीवारें छोड दी गई हैं । फिर भी मरने से पहले , यहां बरसों से बच्चों की किलकारी और हल्ला गुल्ला रह आया है । गोलियों और मिसाइलों के बीच का हल्ला , जो कभी - कभी एकदम से औरतों के रोने चीखने , और आदमियों की खौफनाक चीख पुकार के बाद , मनहूस मातमी चुप्पी में बदल जाता है ।
एक बार उसने इनमें से किसी से पूछा था , कि वे कहीं और क्यों नहीं चले जाते और फिर उसने मुस्कुराते हुए अपनी ऑंखें नीची कर लीं । उसकी मुस्कान नकली थी । उसके होंठो पर वह मुस्कान दूर की बेगानी जमीन से आई थी ।
उसने सिगरेट सुलगा ली । यहॉं यूं सरेआम सिगरेट पीना हराम माना जाता है, इसलिए वह सरेआम सिगरेट सुलगा लेता है । उसके भीतर से उठकर उसकी जुबान तक आकर एक चीख रूक जाती - `यू बास्टड´ । पर यह गाली नहीं है, उसे बीण्सीण्पीण् कैंप के एक अमेरिकी सैनिक ने बताया है , कि इन लोंगो के बीच पूरी दमदारी से रहना पडेगा । कम से कम, इस तरह कि ये लोग तुमसे कोई पंगा लेने का ना सोच सकें । ` यू बास्टड ´ उसके हजारों इसी तरह के सुरक्षा कवचों में से एक है । यद्यपि उसे लगता है, ये लोग इतने खतरनाक नहीं, जितना कि उसे बताया गया और यह भी कि वे किसी भी देष के दूसरे लोगों की तरह ही हैं । बस एक ही अंतर है, कि इतना होने पर भी अफगान आदमी के चेहरे पर उत्सुकता से चमकती दो आंखें होती हैं, जिन्हें देख वह अचकचा जाता है ।
कितना अजीब, कि लोग मानते हैं , कि 11 सितंबर की वल्र्ड ट्रेड सेंटर वाली घटना का अपराधी अलकायदा ऐसी ही उजाड बस्ती में रहता है । उसे शक होता , कि कहीं यह सब गलत तो नहीं । ये लोग जो अमेरिकी मदद से बाँटे जा रहे अनाज के लिए मरे जाते हैं । जहाँ कि एक औरत बताती है कि, खुदा के बाद दूसरा बडा रहनुमा वह है, जो उन्हें रोटी लाकर देता है और जिसकी वजह से आज तक उसके बच्चे जिंदा हैं । जहाँ के एक गुब्बारा बेचने वाले बाशिंदे के लिए हजारों डालर रूपयों का मतलब है, कि वह इतने पैसों में और ज्यादा गुब्बारे ले आयेगा और उसे बेचेगा, बस और कुछ नहीं ण्ण्ण्ण् हजारों डालर यानी कुछ और गुब्बारे, उससे ज्यादा वह सोच नहीं पाता, जानता भी नहीं । हजारों डालर इस तरह उसकी कल्पना से बाहर फेंके जा चुके हैं , कि उसे उसका अनुमान तक नहीं । जहां आज भी बिजली नहीं है और लोग बडे गर्व से बताते हैं , कि बावन हजार की जनसंख्या वाले इस कस्बे में आज से आठ साल पहले बिजली होती थी और इस चौराहे पर, हां इसी चौराहे पर एक सफेद दूधिया बल्ब जलता था और एक छोटी बच्ची उसकी षर्ट खींचकर पूछती है - बल्ब याने क्या ?
ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् वह बागरम कैंप के अपने हमवतन सैनिक से पूछता , तो वे बताते , कि उन्हें कहा गया है , कि यह बस्ती संसार के सबसे खूंखार दरिंदों की बस्ती है । यहाँ की औरतें और बच्चे भी खूंखार हैं । हाल के पैदा हुए बच्चे भी । किसी एटम बम की तरह वे करोडों लोगों को खत्म कर सकते हैं । उन्हें आर्डर है, कि उन अपराधियों को मारना हैण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्।
`आर यू श्योर ।´ ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्क्रिस्टन भौंचक सा उस सैनिक को देखता । वह सैनिक खिलखिलाकर हंस देता । क्रिस्टन झैंप जाता । वह भी पता नहीं, कैसी ऊटपटांग बातें पूछता है । वह बहुत पहले से इस तरह की ऊटपटांग बातें पूछता रहा है । जब वह छोकरा था, आज से चौंतीस साल पहले वह तब भी ऐसा पूछता । पर तब में और अब में एक अंतर है । उस समय वह खिलखिलाकर हंसते सैनिकों के साथ खुद भी हंस देता , पर आजकल नहीं हंसता है , चौंतीस सालों में यह तुच्छ सा बदलाव उसमें आया । उसने खुद से वादा कर रखा है , कि वह उसके हमवतन अमेरिकी सैनिकों के साथ नहीं हंसेगा ।
तुच्छ ।ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् क्रिस्टन मुडकर देखता है , चौंतीस साल पहले का एक दिन । उस दिन से यह तुच्छ नहीं रहा है । जिस दिन उसने सैनिकों के साथ खिलखिलाकर हंसना बंद किया, तबसे वह ` तुच्छ ´ एक अपराध हो गया । चौंतीस साल पहले वह आखरी बार सैनिकों के साथ हंसा था ।
`आर यू श्योर ।´ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्और वे सब खिलखिलाकर हंस दिये । उस दिन वे सब दक्षिण पूर्व एषिया के एक छोटे से गॉंव माई- लाय में थे ।
उसने अपने वैलेट से एक तस्वीर निकाली ।वह अक्सर इस तस्वीर को ध्यान से देखता था ।(इस कहानी में बाद में वह तस्वीर है )ण्ण्ण्उसे लगा जैसे फिर से मषीनगनों की आवाज होगी और बरसों बाद यह चित्र फिर से आयेगाण्ण्ण्और किसी गहराती अंधेरी रात में वह बिस्तर में अपना मुंह घुसाकर रो लेगा । जी भरकर ।
ण्ण्ण्ण्ण्ण्और आज चौंतीस सालों बाद उसे नहीं पता था , कि उसकी कहानी उसे पूरी तरह खत्म कर देने को तैय्यार हो चुकी थी । बागरम के मलबों और ढेर में कुछ था , जो चौंतीस साल पहले के उसके जीवन से उठकर आ चुका था ।
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चौंतीस साल पहले , वह 16 मार्च 1968 की सुबह थी । छह बजे के आसपास । दक्षिणी वियतनाम के पूर्व का एक क्षेत्र क्वेंग निंग ।
आप सोचते होंगे इतनी पुरानी बात क्यों ? यकीन मानें , कहानी वहीं से षुरु हुई थी । क्रिस्टन को भी सन 2002 में पहली बार पता चला , कि उसके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना जो उसे पता चलने को थी , जो उसे इन चौंतीस सालों में पता नहीं चल पाई , वियतनाम से ही षुरु हुई थी । वह घटना बाद में इसी कहानी में है ।
रिपोर्टस बताती हैं , कि अमेरिका ने क्वेंग निंग को वियेत कांग या वीण्सीण् नामक कम्यूनिस्ट छापामारों का अड्डा मानकर अपनी सेना के लिए फ्री फायर जोन अथाZत बिना किसी रूकावट के गोली चलाने का क्षेत्र , घोषित कर रखा था । वियतनाम की लडाई प