आवारा बनाम श्री 420 छद्‌म छाया युद्ध / जयप्रकाश चौकसे

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आवारा बनाम श्री 420 छद्‌म छाया युद्ध
प्रकाशन तिथि :02 जून 2015


आज राज कपूर की 27वीं पुण्यतिथि है और उनके घर हवन पूजा पाठ हर वर्ष की तरह किया जा रहा है। इस वर्ष शशि कपूर को भी दादा फालके पुरस्कार मिला है, इस तरह 'आवारा' में अभिनय करने वाले तीनों कपूर पुरस्कृत हुए हैं। शशि कपूर ने राज कपूर के बचपन की भूमिका की थी। 'आवारा' में जज की भूमिका में बशेसर नाथ थे, जो पृथ्वीराज के पिता थे। कपूर परिवार के अधिकांश सदस्य एवं अनेक समालोचक भी यह मानते हैं कि 'श्री 420' 'आवारा' से बेहतर फिल्म है परंतु इस नज़रिये का कारण यह संभव है कि 'श्री 420' एक छंद की तरह रची गई है और 'आवारा' की बुनावट एक महाकाव्य जैसी है। इस युग में महाकाव्य के मूल्यांकन का धैर्य कहां, यह तो बोनसाई स्वरूप की प्रशंसा का काल खंड है। यह मुद्‌दा इतना गहरा है कि युवा रनवीर कपूर ने भी 'आवारा' के नए संस्करण के बदले श्री 420 को तरजीह दी, यद्यपि वह जानता है कि उसके दादा की किसी भी फिल्म का नया संस्करण मूल फिल्म से बेहतर नहीं हो सकता। इसे ऐसे बताया जा सकता है कि शशि कपूर ने आग्रह किया कि 'सत्यम शिवम सुंदरम' का स्वप्न दृश्य आवारा के स्वप्न दृश्य की तरह हो या उससे बेहतर हो। राज कपूर ने कहा कि यह संभव है अगर शैलेंद्र, शंकर-जयकिशन और नरगिस को ला सको। वे भी जानते थे कि सृजन की वह सुनहरी सुबह और वह टीम दोबारा नहीं बनाई जा सकती।

बहरहाल आवारा बनाम श्री 420 का छाया युद्ध कराने वाले दोनों फिल्मों के निर्माण के समय राज कपूर की मन:स्थिति को नजरअंदाज कर देते हैं। 'आवारा' राज कपूर की तीसरी फिल्म थी और पहली बार वे पिता पृथ्वीराज को निर्देशित कर रहे थे। ज्ञातव्य है कि जब ख्वाजा अहमद अब्बास ने पृथ्वीराज को 'आवारा' की पटकथा सुनाई तो उन्होंने मुस्कराते हुए पूछा कि क्या अब्बास अब मेरे ये दिन आ गए है कि मैं नायक के बदले चरित्र नायक बन रहा हूं। अब्बास साहब ने कहा, 'आप इस कथा के नायक हैं और राज कपूर आपके बेटे की भूमिका करने जा रहा है।' कथा में कुछ हद तक रामायण का रूपक भी है और जज के पात्र का नाम भी रघुनाथ है तथा वह पत्नी को रिश्तेदारों की शंका के कारण गर्भवती अवस्था में निष्कासित करता है। शैलेंद्र का गीत 'राम की प्यारी, फिरे मारी मारी, जुलम सहे मारी जनक दुलारी।'

राज कपूर के जीवन और सृजन प्रक्रिया का आधार स्तम्भ उनके पिता थे। वे मानते थे कि उन्होंने पिता की तुलना में कम काम किया और कम सफल रहे हैं। यह कोई विनम्रता का प्रदर्शन नहीं था, वे सचमुच पिता को पूजते थे। उनकी कंपनी की सारी फिल्में पृथ्वीराज द्वारा शिव पूजन से प्रारंभ होती हैं। ज्ञातव्य है कि हवन की पृथ्वीराज की परंपरा को आज भी उनका परिवार निभाता है। संक्षेप में पृथ्वीराज का मूल्य आप इस बात से करें कि उस दौर में बीए, एलएलबी पास पृथ्वीराज को ब्रिटिश हुकूमत कोई भी बड़ा पद दे सकती थी परंतु उन्होंने मंुबई आकर संघर्ष किया और एंडरसन कंपनी के नाटक में उन्हें देखकर ही न्यू थियेटर्स, कोलकाता के बीएन सरकार ने उन्हें 'सीता' में नायक की भूमिका दी।

बहरहाल राज कपूर 'आवारा' की हर फ्रेम को संपूर्णता के साथ शूट करते थे, क्योंकि उन्हें पिता को प्रभावित करना था। उनके लिए पिता के प्रमाण-पत्र से बड़ा कुछ नहीं था। अत: आवारा क्लासिक की बुनावट में रची गई। फिल्म में जज रघुनाथ का हर शॉट ऐसे कोण से लिया गया है कि वे भव्यतर लगें और क्लाइमैक्स में रघुनाथ अपनी गलती मानकर सजा काटने से पहले पुत्र से मिलने जाते हैं तब कैमरा इस कोण से रखा गया कि वे छोटे और वास्तविक स्वरूप में दिखें, क्योंकि उनकी गलत धारणा ने अनेक लोगों के जीवन को दु:खी किया है। जब राज जेल की कोठरी में बंद है और जज रघुनाथ बाहर खड़े हैं संकेत है कि अपराधी स्वतंत्र है और नायक उनके गुनाह की सजा काट रहा है। राज कपूर रोशनदान के सामने खड़ा है और रोशनी चेहरे पर पड़ रही है, पश्चाताप करते जज रघुनाथ का चेहरा अंधेरे में है। हर फ्रेम का विवरण एक किताब का विषय है। राज कपूर के लिए आवारा परीक्षा की तरह थी और पिता से प्रमाण-पत्र पाना था जबकि श्री 420 प्रमाण पत्र पाकर खुशी में झूमते व्यक्ति द्वारा रचा छंद था। यह अावारा बनाम श्री 420 छद्‌म छाया युद्ध हैं। आज की पीढ़ी को पिता का प्रमाण पत्र नहीं, कॉर्पोरेट मेंनियुक्ति पत्र चाहिए।