आशंकित मन / सुरेश सर्वेद
सुषमा को देखने जो वर पक्ष वाले आने वाले थे, वे नियत समय पर आये। उनमें लड़का जीवेश सहित उसके पिता यशपाल और मामा आये थे। सुषमा उन्हें चाय नास्ता देने गयी। उन लोगों की दृष्टि सुषमा पर जा टिकी। सुषमा भय और लज्या से घबरायी हुई थी मगर उसने आगंतुकों को चाय नास्ता दिया और कनखियों से जीवेश को देख भी लिया। उसने जीवेश को पसंद कर लिया, और वह वापस हो गई।
यशपाल, जयदेव और मामा इधर - उधर की बातें करने लगे। जीवेश की आँख अभी भर नहीं पाई थी। वह पुनः सुषमा को देखने का इच्छुक था। मगर कहे तो कहे किससे ? मामा से कह सकता था मगर वे तो जीवेश की ओर दृष्टि ही नहीं डाल रहे थे।
मामा की दृष्टि जैसे ही जीवेश पर पड़ी। जीवेश ने आंखों ही आंखों में इशारा कर दिया। मामा को इशारा समझने में कठिनाई नहीं हुई। कुछ ही देर बाद मामा ने जयदेव से सुषमा को पुनः देखने का अनुरोध किया।
सुषमा तक आवाज पहुंच चुकी थी। उसने तो सोचा था - देखने - दिखाने की औपचारिकता खत्म हो गई। मगर यहाँ पुनः देखने का अनुरोध हो चुका था। उसे मामा पर क्रोध आया - मुझे प्रदर्शनी की वस्तु बना रहे हैं। - तत्क्षण उसके विचार में परिवर्तन आया - मामा ने कोई गलती नहीं की है। शायद वे मुझसे कुछ बातें करना चाहते होंगे। आखिर लड़की बहरी - गूंगी भी तो हो सकती है....।
सुषमा आयी,उसे कुर्सी पर बैठने को कहा गया। वह कुर्सी पर बैठ गई।
सुषमा के लिए क्षण - क्षण भारी पड़ रहा था। वह चाह रही थी कि जो भी पूछना चाहते हैं जल्दी पूछे और जाने की अनुमति दें।
यशपाल ने पूछा - सुषमा, तुम कहाँ तक पढ़ी हो ?’’
- जी स्नातक हूँ.... ।‘’ सुषमा का उत्तर था
- कढ़ाई - बुनाई का ज्ञान होगा ही।‘’
- जी हां....।‘’
अब वर पक्ष वाले संतुष्ट थे। इतनी ही बातों से वे जाँच चुके कि लड़की न गूंगी है न बहरी। उन्हें सुषमा पसंद आ गयी। सवाल - जवाब हो चुके थे। सुषमा भीतर चली गयी।
भोजन का समय हो चुका था। जयदेव ने मेहमानों से भोजन करने का आग्रह किया। वे टालने लगे। सुषमा के मन में विचार उठने लगा - ये लोग भोजन करना क्यों अस्वीकार रहे हैं ? कहीं ये लोग पहले लेन - देन की बात तो करना नहीं चाहते । पिताजी चुप्पी साधे क्यों बैठे हैं। उन्हें जो देना है स्पष्ट क्यों नहीं कर देते ? अंततः जयदेव के अनुरोध को वर पक्ष वालों को मानना ही पड़ा। वे भोजन करने बैठ गये। रजनी ने सुषमा को भोजन परोसने के लिए कहा। सुषमा खीझ गयी पर यह मात्र दिखावा था। वह स्वयं जीवेश को आंखें भरते तक देखना चाहती थी। वह थोड़ा ना - नुकूर के बाद भोजन परोसने लग गयी।
यशपाल और मामा एक दूसरे के समीप बैठे थे। वे भोजन करने के साथ साथ धीरे - धीरे वार्तालाप भी कर रहे थे। सुषमा सोचने लगी - इन्हें मेरा बनाया भोजन रुचिकर लगा कि नहीं ? मैंने तो आज अन्य दिनो की अपेक्षा अधिक रुचिकर भोजन बनाने का प्रयास किया है। अवश्य इन्हें मेरा बनाया हुआ भोजन अच्छा लगा होगा....... जीवेश से भी विवाह के विषय में पूछा गया है या नहीं ? मुझे जीवन व्यतीत तो उसके साथ ही करना है। मैं पिता जी से तो नहीं कह सकती। हां, मां से अवश्य कहूंगी। -
भोजन करके वे बैठक में आये। जयदेव अभी भी अनिश्चय की स्थिति में था। उसने पूछा - तो क्या मैं विवाह को पक्का समझूं ? अगर आप लोगों की कोई माँग हो तो निः संकोच कहिए। मुझसे बन पड़ेगा तो हाँ कहूंगा।‘’
- हम दहेज के लालची नहीं। हमें सुन्दर - सुशील - गृहकार्य में दक्ष वधू चाहिए और हमने यह सब गुण सुषमा में देख लिये । हम आशा करेगे कि सुषमा हमारे परिवार के सुख दुख बांटेगी। आपस में सामंजस्य स्थापित करके परिवार को चलाएगी।‘’ यशपाल ने कहा
- आपके उच्च विचार का मैं सम्मान करता हूँ । मगर पिता होने के नाते मुझे यह सब पूछना पड़ रहा है। बारातियों के आने जाने का खर्च मैं वहन करुंगा। साथ ही पाँच तोले सोने व पचास तोले चाँदी के जेवरात कन्या को दूंगा।‘’
- आप जो देना चाहे उसका न हम विरोध करेंगे और न ही जो न देना चाहे उसका आग्रह...।‘’ यशपाल ने मामा की ओर दृष्टि डाल कर कहा - क्यों, मैंने कोई अनुचित शब्द तो नहीं कहे ?’’
- नहीं, तुम दोनों के विचार मुझे पसंद आये। विवाह पूर्व लेन - देन की बात स्पष्ट हो ही जानी चाहिए। अन्यथा ठीक विवाह के समय विवाद खड़ा हो जाता है । ‘’
बैठक की आवाज सुषमा तक पहुंच रही थी। उसके मन में विचार उठा - क्या बिना दहेज के विवाह संभव है ? यहाँ तो कम दहेज मिलने पर लड़कियां जला दी जाती है। कहीं मुझे भी। । । नहीं, नहीं। । मुझे ऐसी रुग्ण मानसिकता नहीं रखनी चाहिए।
सुषमा पुनः उन लोगों की बातें सुनने लगी। जयदेव ने कहा - तो सगाई का कार्यक्रम पूर्ण करके ही जाइये।‘’
- हाँ, हम लोग भी यही चाह रहे ....।‘’
सगाई का कार्यक्रम तत्काल निपटा दिया गया। जैसे - जैसे विवाह के दिन नजदीक आ रहे थे , सुषमा सोचे जा रही थी कि अब मैं ससुराल चली जाऊंगी। वहां नया जीवन शुरु होगा। सब लोग नये होंगे। माता - पिता छूटेंगे। सहेलियाँ छूटेंगी। उफ् ! बचपन से जुड़े लोगों से अलग हो जाऊंगी।
एक - एक करके दिन सरकते गये निश्चित तिथि से वैवाहिक कार्यक्रम शुरु हो गया।
आज बारात आने वाली थी। बाराती दो बजे तक आने वाले थे मगर यहाँ तो चार बजने जा रहा था। सुषमा फिर विचारों के भँवरजाल में फंस गयी - कहीं बाराती आने से रह तो नहीं जायेंगे। मेरा विवाह अधर में तो नहीं लटक जायेगा। बारात की गाड़ी कहीं दुर्घटनाग्रस्त तो नहीं हो गयी ? ऐसा हो गया तो ..... नहीं, नहीं। । ऐसा नहीं होगा। वरना मुझ पर अभी से कुलक्षणी होने का आरोप लग जायेगा। । । उफ् ! मुझे ऐसे विचार मन में नहीं लाने चाहिए। बारात समय पर नहीं पहुंचने का कोई दूसरा कारण भी तो हो सकता है ....
अभी वह विचारों में उलझी हुई थी कि रमेश दौड़ता हुआ आया। और चिल्लाया - बारात आ गयी ...।‘’
बेचैनी और उदासी की बदली पलक झपकते छंट गयी। घराती दौड़ - दौड़ कर बारातियों का स्वागत करने लगे।
चाय - नास्ते का कार्यक्रम खत्म होते ही दूल्हें को मण्डप में लाया गया। फिर शुरु हुआ - मण्डप का कार्यक्रम।
बारात में कुछ मनचले युवक भी आये थे। वे इधर - उधर भटक कर घरातियों को परेशान कर रहे थे। लड़के - लड़कियाँ एक दूसरे से परिचित हो गप्पे लड़ा रहे थे। एक - दूसरे को फाँस रहे थे।
एक युवक जीवेश के पास आया। उसने जीवेश के कान में कुछ कहा। सुषमा के मन में शंका उठी कि यह युवक जीवेश को मोटर साइकिल मांगने के लिए तो नहीं उकसा रहा है ? पर हमने तो मोटर साइकिल नहीं खरीदी है। इन्हें दो पहिया वाहन मांगना ही था तो पहले क्यों नहीं बताया ?
अब क्या होगा ? ये लोग माँग रखेंगे। पिताजी असमर्थता व्यक्त करेंगे। इनके समक्ष हाथ जोड़ेंगे। पर ये अपनी माँग पर ध्रुव की तरह अटल रहेंगे। पिताजी नाराज हो जायेंगे। आरक्षी केन्द्र में प्राथमिकी दर्ज करा देंगे। वर कारागृह जायेगा और मैं अविवाहित रह जाऊंगी। लोग तरह - तरह के दोषारोपण करेंगे। मुझ पर चरित्रहीनता का भी दोष मढ़ा जा सकता है। नहीं। । नहीं, ऐसा समय नहीं आयेगा। वर पक्ष वाले इतना नहीं गिर सकते। विषम परिस्थिति आने पर कोई न कोई रास्ता अवश्य निकलेगा ... -
विवाह धूमधाम से हुआ। बारात लौट गयी। जीवेश ने मोटर साइकिल तो क्या हाथ घड़ी तक की मांग नहीं की। सुषमा ससुराल आ गयी।
एक दिन जीवेश की माँ अमृता ने कहा - जीवेश, तुम पाँच लीटर मिट्टीतेल तो ले आओ।‘’
- मिट्टीतेल - शब्द ने सुषमा को भयाक्रांत कर दिया। उसे लगा - अब मुझ पर मिट्टीतेल छिड़का जायेगा। मुझे जला दिया जायेगा।
जीवेश मिट्टी तेल ले आया। मिट्टी तेल देख सुषमा के सामने दृश्य उपस्थित हो गया - सुषमा को रस्सी से बांध दिया गया है। अमृता उस पर मिट्टीतेल छिड़क रही है। सुषमा - बचाओ - बचाओ - चिल्लाने का प्रयास कर रही है पर मुंह में कपड़ा ठूंसा गया है। इससे आवाज बाहर नहीं निकल रही है।
इधर अमृता ने जीवेश से कहा - जीवेश, तुम एक लीटर मिट्टीतेल सरोजनी को दे आओ। बिजली चली गयी थी इसलिए मैं उनसे उधार लायी थी।‘’
जीवेश सरोजनी को मिट्टीतेल देने चला गया। अमृता ने बहू को आवाज दी - बहू, दो लीटर मिट्टीतेल स्टोव्ह में डाल दो। शेष को सुरक्षित स्थान पर रख दो। और हाँ, स्टोव्ह सावधानी पूर्वक जलाना। इसके कारण बहुत दुर्घटनाएँ घट रही है।‘’
सुषमा भयाक्रांत थी। वह कांपती हुई अमृता के समीप आयी। अमृता ने देखा - सुषमा, पसीने से तरबतर है। उसकी मनःस्थिति भी ठीक नहीं है। वह घबरा गयी। उसने सुषमा से पूछा - अरी सुषमा, तुम्हारी तबियत तो ठीक है न ? फिर जोर - जोर से चिल्लाने लगी - सब मर गये क्या ? अरे, कोई डॉक्टर को तो बुला लाओ ...
अमृता बेचैन हो गयी। वह सुषमा से बार - बार उसकी हालात पूछ रही थी। सुषमा ने उसकी बेचैनी ताड़ ली। कहा - मुझे कुछ नहीं हुआ है माँ । डॉक्टर को बुलाने की आवश्यकता नहीं। मैं पूर्ण स्वस्थ हूं।
- कैसी बातें करती हो। पसीने से नहा गयी हो। शरीर में कंपकंपी छूट रही है। और तुम कहती हो -स्वस्थ हूं.... नहीं बेटी, नहीं। डॉक्टर को बुलाना ही पड़ेगा। ‘’
सास के वात्सल्य भरे शब्दों ने सुषमा को झकझोर कर रख दिया। अमृता की आंखों से छलकती ममता को देखकर सुषमा स्वयं को सम्हाल नहीं पायी। वह ‘’ मां ‘’ कहती हुई अमृता के सीने से लिपट गयी। उसकी सारी शंकाएँ और भ्रम आँसू बनकर प्रवाहित होने लगे और पूरी तरह स्थिर हो गया उसका आशंकित मन।