आशिकाना मौसम बेईमान हो गया / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 02 अगस्त 2021
ताजा खबर है कि न्यूयॉर्क में लोग गर्मी के प्रकोप से परेशान हैं। आलम यह है कि वहां पर गर्मी से त्रस्त लोग नेकटाई को भी अनावश्यक वस्त्र मान रहे हैं। दूसरी ओर जर्मनी और बेल्जियम में कहीं तापमान अधिक होने के कारण लोग मर रहे हैं, तो कहीं बाढ़ में डूब रहे हैं। गोयाकि मौसम का मिजाज तो रूठी हुई प्रेमिका से भी अधिक बौरा गया है। मौसम के प्रकोप से त्रस्त लोग तरह-तरह के जतन कर रहे हैं और बचने के उपाय खोज रहे हैं। कुछ स्थानों पर लोग लकड़ी की ऊंची कुर्सियां बनवा रहे हैं, ताकि बाढ़ का पानी घर में घुस आए तो वे ऊंची कुर्सी पर बैठकर खुद को बाढ़ के पानी से काफी हद तक बचा सकें। यही नहीं कहीं-कहीं तो पेड़ों पर भी मचाननुमा मकान बनाए जा रहे हैं ताकि ऊंचाई पर उनके बचने की उम्मीदें बढ़ सकें।
बहरहाल, मौसम दुनिया के सभी देशों में बदल रहे हैं। कहीं-कहीं ऋतु चक्र विपरीत दिशा में घूम रहा है। गांधी जी के सूत कातने के चरखे के साथ भी यही प्रायोजित किया गया है। मौसम के इस परिवर्तन पर वर्षों पूर्व अनुपम मिश्र ने दो किताबें लिखी थीं, ‘राजस्थान की रजत बूंदें’ और ‘ आज भी खरे हैं तालाब।’ गौरतलब है कि कुओं में सीढ़ियां बनाई जाती थीं ताकि जलस्तर घटने पर नीचे उतरकर जल लाया जा सके। आधुनिकीकरण के जोश में मकानों की आवश्यकता को देखते हुए, कुछ सूखे हुए कुओं को पाटकर उन पर मकान बना लिए गए। रिकार्ड बुक्स में कुएं थे ही नहीं ऐसी इबारत दर्ज की गई है।
पानी की परेशानी को समझ कर एक प्रांतीय सरकार ने जिलाधीशों को आदेश दिया कि वे अपने क्षेत्र में तालाब बनवाएं और पुराने सूख गए तालाबों के स्थान पर मजदूरों से खुदाई करवा कर उन्हें पुन: प्राण दें। एक भ्रष्ट अधिकारी द्वारा यह फर्जी काम किया गया। फर्जी मजदूरों के अंगूठों के निशान कागज पर लेकर उन्हें भुगतान किया गया, यह दिखाया गया। कुछ बाबुओं और चपरासियों ने कई बार अपने अंगूठों के निशान बनाए। उनके हाथ बार-बार धोने की व्यवस्था की गई। गौरतलब है कि इस काम में लगभग उतना ही जल खर्च हुआ जितना उस काल्पनिक तालाब से मिलने की उम्मीद थी। कुछ समय बाद जिलाधीश महोदय का तबादला अन्य शहर में किया गया, जिसका कारण उनका भ्रष्टाचार नहीं था, वरन तबादले किए ही जाते हैं वजह यह थी। नए आए जिलाधीश ने चार्ज लेते समय रिकार्ड देखा और जांच में पाया कि वह तालाब तो मात्र कागज पर ही रचा गया है असल में बना ही नहीं था। नए जिलाधीश को यह बताया गया कि अब आप यह रपट दर्ज करें कि उस तालाब से जल पीने वाले पशु मर गए। अत: तालाब को जनहित में पाटने के लिए मजदूर लगाए गए। इस तरह नया जिलाधीश भी धन कमा सकता है। इस कथा को शरद जोशी ने लिखा था। हरिशंकर परसाई और शरद जोशी ने व्यंग्य विधा के हिमालय खड़े किए हैं। वर्तमान में इस विधा में वह धार नहीं है। इसी तरह कार्टून विधा के पितामह आर.के लक्ष्मण की तरह का महान काम वर्तमान में नहीं हो रहा है। अगर लक्ष्मण के कार्टून वर्तमान में पुन: प्रकाशित किए जाएं, तो वे आज के समाज का विवरण भी दे सकते हैं। मौसम के मिजाज की तरह व्यवस्था का ढर्रा नहीं बदलता। वह अटल प्रमाणित दस्तावेज की तरह रहता है। कुछ गांवों में लोग वृक्ष इस तरह लगाते हैं कि नदी के दोनों किनारों पर लगे वृक्ष नदी पर एक नैसर्गिक पुल सा बना देते हैं।
आज फ्लाईओवर के निर्माण में लगा हुआ धन व्यर्थ खर्च लगने लगा है। वर्तमान में आर्किटेक्चर विधा में आमूल परिवर्तन करना आवश्यक हो गया है। संगमरमरी बहुमंजिला इमारतें धरती की छाती में खंजर के समान धंस गई हैं। कत्ल हुए हैं, परंतु कहीं रक्त नजर नहीं आता।