आश्वस्त / हरदर्शन सहगल
Gadya Kosh से
'तो अब मैं चलूं?'
'ठीक है, परसों अपने कागज ले जाइएगा।'
'काम हो जाएगा ना? '
'आप घुमाफिराकर यही बात और कितनी बार पूछेंगे।'
'आप बुरा मत मानिए साहब, बस जरा...'
'यकीन नहीं होता, यही ना...'
'विश्वास तो सभी पर रखना पड़ता है, पर...'
'कह तो दिया आपका काम हो जाएगा। अब आप ही बताइए आपको कैसे विश्वास दिलाऊं? '
'बस, आप जरा पचास का यह नोट रख लीजिए।'