आस्था / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

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पुरुषोत्तम जी घोर नास्तिक हैं. ईश्वर में उनका कतई विश्वास नहीं है.

एक दिन कार्य से उनके घर पहुंचा तो देखा की वहां सत्यनारायण जी की कथा हो रही है. पुरुषोत्तम जी अपनी पत्नी के साथ बरते कथा श्रवण कर रहे हैं.कथा के उपरान्त हवन और आरती में भी उनका समर्पण -भाव देखते बनता था.

कथा पूरी होने के बाद मैंने उनसे पूछ लिया- पुरुषोत्तम जी, आप तो अनीश्वरवादी है?

हाँ उन्होंने उत्तर दिया.

मैंने पूछा- अभी थोड़ी देर पहले जो मैंने देखा,वह क्या था?

पुरुषोत्तम जी ने समझाया- मेरी ईश्वर में आस्था नहीं है तो क्या हुआ ? अपनी पत्नी में तो

आस्था है. उससे प्रेम है. क्या हम अपनों की ख़ुशी के लिए वह नहीं कर सकते जो उन्हें अच्छा लगे?