आह-कथा, वाह-कथा / प्रमोद यादव
पुराने ज़माने के मशहूर कलाकार देवानंद और सुरैया कई फल्मो में साथ-साथ काम किए। एक बार शूटिंग के दौरान एक हादसा हुआ और दोनों करीब आ गए। फिल्म “विद्या” की एक गाने की शूटिंग में सुरैया की नाव पानी में डूब गई। देवानंद ने ‘रियल लाइफ’ में बहादुरी दिखाते सुरैया को बचा लिया। बस, यंहीं से निकटता बढ़ी, कसमे-वादे परवान चढ़े। पर सुरैया मुसलिम थी इसलिए सुरैया की नानी के विरोध के चलते दोनों का प्रेम-प्रसंग वहीँ खत्म हो गया। देवानंद ने काफी मशक्कत की, पर बेचारे को दुखी होना था, जिंदगी भर दुखी रहे। प्रेम-दुःख छुपाने हमेशा मुस्कुराते रहे। जिंदगी से रुखसत होने के कुछ दिनों पूर्व एक इंटरव्यू में आखिर सच्ची बात बोल ही गए-”सुरैया साथ होती तो जीवन कुछ और ही होता।
सुनीलदत्त और नरगिस की सदाबहार फिल्म “मदर इडिया” में भरी जवानी में नरगिस ने माँ की भूमिका अदा की। डाकू बिरजू(सुनीलदत्त) की माँ बनी थी नरगिस। महबूबखान ने शूटिंग के लिए सेट तैयार रखा था। सीन था- नरगिस का चारों तरफ से आग से घिर जाना और सुनीलदत्त द्वारा उसे बचाना। आग में नरगिस सचमुच घिर जाती है। येन मौके पर सुनीलदत्त आग में न कूदते तो शायद नरगिस की वह आखिरी फिल्म होती। इस हादसे ने दोनों को बहुत करीब ला दिया। फिल्म रिलीज होने के पहले ही दोनों ने अग्नि के फेरे ले, परिणय-सूत्र में बंध गए। कहीं कुछ विरोध नहीं हुआ। सालो-साल दोनों सुखी रहे।
उपरोक्त दोनों कथाये- ‘आह’ और ‘वाह’ कथा है। मेरे शहर का गबरू जवान चुन्नीलाल अब तक न आह-कथा में है न वाह-कथा में। उसे भी एक हादसे का इंतजार है। हादसा कब-कैसे होगा, वह खुद नहीं जानता। अपनी बहादुरी का परिचय आग की लपटों में देगा या पानी में गोते लगाकर-उसे नहीं मालूम। वैसे अक्सर भगवान से दुआ मांगता है कि आग और पानी वाले हादसे की नौबत न आये। उसे दोनों से बहुत डर लगता है।
दो गली छोड़, तीसरी गली का चौथा मकान मास्टरजी का है। उसकी बेटी मुन्नी उसे बहुत पसंद है। चुन्नी का मुन्नी के घर आना-जाना आम है। मास्टरजी अपनी मुन्नी, चुन्नी को देने सहर्ष राजी है पर चुन्नी को ‘हादसे’ का भूत सवार है। उसका कहना है कि कोई देवानंद- सुरैया या सुनीलदत्त- नरगिस जैसा हादसा हो, तभी शादी करेगा। वह अपनी कोई बहादुरी दिखाकर ही शादी करेगा। सीधे-सपाट शादी को वह उचित नहीं मानता, उसे एडवेंचर पसंद है।
पिछले दो सालो से परेशान है मास्टरजी। चुन्नी उसकी अपनी पसंद है। चुन्नी के सिवा किसी और को देना नहीं चाहते अपनी मुन्नी। और चुन्नी है कि उसे हादसा पसंद है। एक दिन मास्टरजी बड़े दुखी स्वर में बोले-चुन्नीलाल, ऐसा लगता है, अब मुझे ही कोई’हादसा’ प्लान करना होगा, नहीं तो मेरी मुन्नी बुड्ढी हो जायेगी। बोलो, किस तरह के हादसे से तुम उसे उपकृत करना चाहोगे?तुम कहो तो किसी दिन उसके बिस्तर के चारों ओर मिटटी-तेल छिड़क, आग लगा देता हूँ, तुम आकर बचा लेना या कहो तो उसे कुंए में धकेल देता हूँ, तुम कूदकर बचा लेना। बताओ, क्या करना है?
चुन्नी बोला-’नहीं मास्टरजी। ये सब पुराना हो गया, कुछ नया करना है’ मास्टरजी आवेश में बोले-‘ऐसा करता हूँ, मुन्नी को गुलाबजामुन में कुत्ते मारने का जहर मिलाकर दे देता हूँ-तुम उसे अस्पताल ले जाकर बचा लेना।’ चुन्नी तमककर बोला-’मास्टरजी रहम करो, सरकार तक आजकल कुत्तों को गुलाबजामुन नहीं देती, ऐसी जालिमाना हरकत आप बेटी के साथ करोगे?‘ चुन्नी को प्लान पसंद नहीं आया।
“अच्छा। ऐसा करते हैं-मैं मुन्नी को रेल की पटरी पर बांध देता हूँ। रेल आती दिखे तो तुम रस्सी खोल उसे बचा लेना।” मास्टरजी ने दूसरा प्लान बताया। चुन्नी भड़का-’मास्टरजी। आप तो पूरी तरह हमें “फार्मेट” करने पर तुले हो। कंही समय पर रस्सी न खुली तो हम-दोनों के दस-बीस टुकड़े “कोई यहाँ गिरा, कोई वहाँ गिरा“ के अंदाज में बिखर जायेंगे। अब आप सोचना बंद करो। मैं ही कुछ सोचता हूँ।’
सोचते-सोचते, हादसा प्लान करते-करते छः महीने और निकल गए। अचानक एक दिन सुबह-सबेरे, हांफते-दौडते मास्टरजी चुन्नी के घर पहुंचे। चुन्नी को लगा कि मास्टरजी कुछ ‘फाइनल’ कर आये हैं। पूछा- “क्या प्लान है मास्टरजी?“ मास्टरजी बिफरे- “प्लान गया भाड़ में बेवकूफ। हादसा हो चूका। मुन्नी पड़ोस के फोटोग्राफर रमेश के साथ भाग गयी। एक चिट्ठी छोड़ गयी है मेरे नाम। लिखी है- “मेरे बहादुर रमेश ने दो पागलों (मैं और तुम) से उसकी जान बचाई है, इसलिए वह उससे शादी करने जा रही है। ”चुन्नी आगे कुछ न सुन सका और “आह“ में (कोमा में) चला गया।