आ क्यू की सच्ची कहानी / अध्याय 4 / लू शुन

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प्रेम की दुखांत कहानी

कुछ विजेता ऐसे होते हैं, जो अपनी जीत से तब तक खुश नहीं होते, जब तक उनके प्रतिद्वंद्वी बाघ या बाज की तरह खूँखार न हों, अगर उनके प्रतिद्वंद्वी भेड़-बकरी या मुर्गी की तरह डरपोक हों, तो उन्हें अपनी जीत बिल्कुल खोखली प्रतीत होती है। कुछ दूसरे विजेता ऐसे होते हैं, जो अपनी सभी प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़कर, सभी शत्रुओं को मौत के घाट उतारकर या उनसे आत्मसमर्पण करवाकर और सरासर नाक रगड़वाकर यह महसूस करने लगते हैं कि उनका शत्रु प्रतिद्वंद्वी या मित्र नहीं रहा, केवल स्वयं ही रह गए हैं सर्वोच्च, एकाकी, निराश और परित्यक्त। तब वे अपनी जीत को केवल एक दुखांत घटना समझने लगते हैं, परन्तु हमारा हीरो इतना कमजोर नहीं था। वह सदा विजयोल्लास से भरा रहता था। यह शायद इस बात का प्रमाण था कि चीन नैतिक दृष्टि से बाकी दुनिया की तुलना में श्रेष्ठ है।

जरा आ क्यू को तो देखिए, वह कितना हल्का और प्रफुल्लित अनुभव कर रहा है जैसे उड़ने को तैयार हो।

यह जीत वास्तव में विचित्र परिणामों से रहित नहीं थी। काफी समय तक से ऐसा महसूस होता रहा, जैसे उड़ने को तैयार हो, और शीघ्र ही वह उड़ता हुआ कुल-देवता के मंदिर में जा पहुँचा, जहाँ वह प्रायः लेटते ही खर्राटे भरने लगता था, लेकिन आज रात उसकी आँखों से नींद भाग चुकी थी, उसे महसूस हो रहा था कि उसके अँगूठे और तर्जनी को न मालूम क्या हो गया है। उसमें आम दिनों की तुलना में अधिक कोमलता आ गई थी। यह कहना कठिन था कि उस छोटी भिक्षुणी के चेहरे की मुलायम व कोमल वस्तु उसकी उँगलियों से चिपक गई थी या भिक्षुणी के गालों की रगड़ से उसकी उँगलियाँ मुलायम हो गई थीं।

"आ क्यू, तू निपूता ही मर जाए।"

ये शब्द आ क्यू के कानों में बार-बार गूँज रहे थे। वह सोचने लगा, "ठीक है, मेरी भी पत्नी होनी चाहिए। अगर कोई आदमी निपूता ही मर जाए, तो मृतात्मा का पिंडदान कौन करेगा? मेरी पत्नी अवश्य होना चाहिए।" जैसी कि कहावत है, "जिसके पुत्र नहीं होता, उसका जैसा व्यवहार होता है, उसके तीन रूप होते हैं, जिसमें सबसे बुरा निःसंतान होना।" यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि "निःसंतान मृतात्मा भूखी ही रह जाती है।" स्पष्ट है कि उसके विचार ऋषि-मुनियों की शिक्षा के बिल्कुल अनुकूल थे, पर बड़े दुख की बात है कि बाद में उसके सिर पर पागलपन का भूत सवार हो गया।

औरत! औरत! - उसने सोचा।

वह भिक्षु उसका स्पर्श करता है... औरत! औरत!… औरत… औरत! - उसने फिर सोचा।

हम यह कभी नहीं जान पाएँगे कि उस रात आ क्यू कब सोया, मगर इसके बाद शायद हमेशा ही उसे अपनी उँगलियाँ थोड़ी मुलायम महसूस होने लगीं, उसके दिमाग में एक नशा-सा छाने लगा। औरत... वह लगातार सोचता रहता।

इससे हम देख सकते हैं कि औरत मानव जाति के लिए अभिशाप है। चीन के अधिकांश पुरुषों को अगर स्त्रियाँ बर्बाद न कर देतीं, तो शायद वे ऋषि-मुनि बन गए होते। शाड़ राजवंश का विनाश ता ची ने किया था और चओ राजवंश का उऩ्मूलन पाओ स ने। जहाँ तक छिन राजवंश का सवाल है, जबकि इस बात का ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, फिर भी यदि हम यह मान लें कि उसका पतन भी किसी औरत के कारण ही हुआ, तो शायद गलत नहीं होगा। यह सच है कि तुड़ च्वो की मृत्यु का कारण भी त्याओ छान ही थी।

आ क्यू भी शुरू में पक्के नैतिक मूल्योंवाला आदमी था जबकि हमें इस बात की जानकारी नहीं थी कि उसका मार्गदर्शन अच्छे शिक्षक ने किया था या नहीं, वह 'स्त्री-पुरुष को दृढ़ता से एक दूसरे से अलग रखने' के सिद्धांत का हमेशा बड़ी ईमानदारी से पालन करता था और छोटी भिक्षुणी और नकली विदेशी दरिंदे के पाखंडीपन की ईमानदारी से भर्त्सना करने में कभी पीछे नहीं रहता था। उसकी राय थी, "सभी भिक्षुणियाँ गुप्त रूप से भिक्षुओं के साथ अवैध संबंध रखती हैं। अगर कोई औरत रास्ते में अकेली चल रही हो, तो वह जरूर बुरे मर्दों को फुसलाना चाहती है। जब कोई मर्द और औरत आपस में बात कर रहे हों, तो जरूर अपनी मुलाकात का स्थान व समय निश्चित कर रहे होंगे।" इस तरह के लोगों को सुधारने के लिए वह उन्हें बड़े खूँखार ढंग से घूरता था, ऊँची आवाज में तीखा व्यंग्य करता था, या अगर एकांत हो, तो पीछे से पत्थर तक मार देता था।

कौन कह सकता था कि लगभग तीस बरस की आयु में, जबकि एक आदमी को दृढ़ता से खड़ा होना चाहिए, वह इस तरह एक छोटी भिक्षुणी पर फिसल जाएगा? शास्त्रों के अनुसार इस तरह का छोटापन अत्यंत निंदनीय होता है, स्त्री सचमुच ही घृणा का पात्र होती है। यदि उस छोटी भिक्षुणी का चेहरा मुलायम नहीं होता, तो आ क्यू उस पर मोहित न होता, उसका चेहरा किसी कपड़े से ढका होता, तो भी ऐसी स्थिति न आती। आज से पाँच-छह साल पहले खुले मंच पर आपेरा देखते समय उसने एक दर्शक स्त्री के पैर में चुटकी भर ली थी।

लेकिन चूँकि उसके पैर पाजामे से ढके थे, इसलिए उस घटना से आ क्यू को ऐसे उन्माद की अनुभूति नहीं हुई थी, जैसी कि आज हो रही है। छोटी भिक्षुणी का चेहरा ढका हुआ नहीं था, जो उसके घिनौने पाखंडीपन का एक दूसरा सबूत था।

औरत, आ क्यू सोचता रहा।

वह उन औरतों पर कड़ी नजर रखता, जिनके बारे में उसे खयाल होता कि वे "बुरे मर्दों को फुसलाना चाहती हैं।" लेकिन वे उसकी ओर देखकर मुस्कराती ही नहीं थीं। जब कभी कोई औरत उससे बात करती, तो वह बड़े ध्यान से सुनता था, लेकिन अब तक उसे एक भी औरत ऐसी नहीं मिली थी, जिसने उससे गुप्त रूप से मिलने के बारे में कोई बात कही हो। ओह, यह औरत के घिनौनेपन का एक दूसरा सबूत है, वे सब दरअसल एक झूठी शालीनता का लबादा ओढ़े रहती हैं।

एक दिन जब आ क्यू चाओ साहब के घर चावल पीस रहा था, तो रात का भोजन करने के बाद वह रसोई में बैठकर चिलम सुलगाने लगा। अगर किसी और का घर होता, तो भोजन के बाद वह फौरन घर लौट गया होता। लेकिन चाओ परिवार के लोग रात का खाना थोड़ा जल्दी खा लेते थे, जबकि वहाँ यह नियम था कि खाना खाने के बाद कोई रोशनी नहीं कर सकता था और सब बिस्तर में पहुँच जाते थे, लेकिन कभी-कभी इसका अपवाद भी देखने को मिलता था। चाओ साहब के पुत्र को काउंटी की सरकारी परीक्षा पास करने से पहले इस बात की अनुमति थी कि वह रोशनी करके परीक्षा में आने वाले निबंधों की तैयारी करे, इसी तरह जब आ क्यू वहाँ काम करने जाता था, तो उसे इस बात की अनुमति थी कि चावल पीसने के लिए रोशनी किए रखे। इस अपवाद के कारण अपना काम शुरू करने के पहले आ क्यू अब भी रसोई में बैठा चिलम पी रहा था।

चाओ परिवार की एकमात्र नौकरानी आमा ऊ ने जब घर के बर्तन माँज लिए, तो वह भी लम्बी बेंच पर बैठकर आ क्यू से बातें करने लगी, "मालकिन ने दो दिन से कुछ नहीं खाया, क्योंकि मालिक रखैल लाना चाहते हैं... "

"औरत... आमा ऊ..... यह छोटी-सी विधवा।" आ क्यू ने सोचा।

"हमारी युवा मालकिन आठवें चंद्र-मास में बच्चा पैदा करने वाली है।"

"औरत... ।" आ क्यू सोचता रहा।

उसने अपनी चिलम एक ओर रख दी और खड़ा हो गया।

"हमारी युवा मालिकन... " आमा ऊ बोलती गई।

"आ, मेरे साथ सो जा।" आ क्यू ने अचानक कहा और आगे बढ़कर उसके पैरों पर गिर पड़ा।

एक पल के लिए वहाँ बिल्कुल सन्नाटा छा गया।

"उई माँ... " आमा ऊ अवाक रह गई। सहसा वह काँप उठी और चीखती हुई वहाँ से भाग गई। कुछ देर बाद उसके सिसकने की आवाज आने लगी।

दीवार के सामने घुटनों के बल बैठा आ क्यू भी अवाक रह गया। खाली बेंच को दोनों हाथों से पकड़कर वह धीरे-धीरे उठा। उसे एक धुँधला-सा अहसास हो रहा था कि कुछ-न -कुछ गड़बड़ अवश्य हो गई है। वास्तव में इस समय वह खुद भी बहुत घबराया हुआ था। हड़बड़ाकर उसने अपनी चिलम कमरबंद में खोंस ली और चावल पीसने के लिए जाने लगा, लेकिन तभी किसी ने जोर से उसके सिर पर वार किया। घूमकर देखा, तो काउंटी की सरकारी परीक्षा में सफल प्रत्याशी सामने खड़ा दिखाई दिया। उसके हाथ में एक लंबा-सा बाँस था।

"तेरी हिम्मत कैसे हुई... इतनी हिम्मत कैसे हुई?"

लंबा बाँस आ क्यू के कंधों के ऊपर पहुँच गया। जब उसने अपना सिर दोनों हाथों से ढक लिया, तो वार उसकी उँगलियों के पोरों पर पड़ा। वह दर्द से कराह उठा। जब वह रसोई के दरवाजे से भाग रहा था, तो उसे लगा पीठ पर भी बाँस का वार हुआ है।

"अरे ओ कछुए की औलाद!" सफल प्रत्याशी ने पीछे से टकसाली जबान में जोर से गाली दी।

आ क्यू भागकर धान कूटने के बरामदे में जा पहुँचा। वहाँ वह अकेला ही खड़ा था। उसकी उँगलियों के पोरों में अब भी दर्द हो रहा था। "कछुए की औलाद!" ये शब्द उसके कानों में अब भी गूँज रहे थे। इसे केवल वे धनी लोग ही इस्तेमाल करते थे, जो किसी-न-किसी रूप में सरकारी अफसर रह चुके थे। इसकी वजह से वह और अधिक डर गया और इस घटना का उसके मस्तिष्क पर बहुत गहरा असर पड़ा था। अब तक औरत के बारे में सभी तरह के विचार उसके मस्तिष्क से गायब हो चुके थे। गालियाँ और मार खाने के बाद उसे ऐसा लगा था जैसे वह सारा मामला खत्म हो चुका हो। खुश होकर वह फिर से चावल पीसने लगा। कुछ देर चावल पीसने के बाद उसे गर्मी लगने लगी और वह अपनी कमीज उतारने के लिए रुक गया।

जब आ क्यू अपनी कमीज उतार रहा था तो उसे बाहर शोर सुनाई दिया। चूँकि आ क्यू को इस तरह के शोर-शराबे में शामिल होना पसंद था, इसलिए शोर का पता लगाता हुआ वह बाहर निकला। वह सीधे चाओ साहब के अंदरवाले आँगन में जा पहुँचा। जबकि शाम का समय हो चुका था, फिर भी बहुत-से लोग वहाँ जमा थे। चाओ परिवार के सभी लोग मौजूद थे, जिनमें वह मालकिन भी थी, जिसने दो दिन से खाना नहीं खाया था। इसके अलावा पड़ोसिन श्रीमती चओ और संबंधी चाओ पाए-येन व चाओ स-छन भी मौजूद थे।

युवा मालकिन आमा ऊ को नौकरों के कमरे से बाहर ले जाते हुए कह रही थीं, "बाहर चल... अपने कमरे में बैठकर दुखी क्यों हो रही है?"

"हर आदमी जानता है कि तू एक भली औरत है...", श्रीमती चाओ पास से बोली, "तुझे आत्महत्या का विचार दिमाग से निकाल देना चाहिए।"

आमा ऊ रोती रही और मन-ही-मन कुछ बड़बड़ाती रही।

"यह खूब नाटक है," आ क्यू ने सोचा। "यह जरा-सी विधवा न जाने कैसे-कैसे गुल खिलाना चाहती है?" पता लगाने के लिए वह चाओ स-छन के पास जा ही रहा था कि अचानक उसकी नजर चाओ साहब के बड़े लड़के पर पड़ी, जो लंबा बाँस हाथ में उठाए उसकी ओर बढ़ रहा था। लंबे बाँस को देखते ही उसे याद आ गया कि उसकी पिटाई हो चुकी है और वह समझ गया कि यहाँ जो हंगामा मचा हुआ है, उसका किसी-न-किसी रूप में उसके साथ अवश्य संबंध है। वह पीछे मुड़ा और भाग खड़ा हुआ, इस आशा से कि धान कूटने के आँगन में जा छिपेगा, लेकिन यह नहीं सोच सका कि लंबा बाँस उसे पीछे नहीं लौटने देगा। इसके बाद वह फिर मुड़ा और दूसरी दिशा में भागता हुआ बिना कोई गड़बड़ किए पिछले दरवाजे से बाहर चला गया। कुछ ही समय में वह कुल-देवता के मंदिर में जा पहुँचा।

कुछ देर ऐसे ही बैठने के बाद आ क्यू सर्दी से ठिठुरने लगा और उसके रोंगटे खड़े हो गए। जबकि वसंत आ चुका था, फिर भी रातें काफी ठंडी थीं, और कमर नंगी नहीं ऱखी जा सकती थी। उसे याद आया कि उसकी कमीज चाओ परिवार के घर रह गई है। डर था कि अगर उसे लेने गया, तो सफल प्रत्याशी के लंबे बाँस की मार का मजा कहीं फिर न चखना पड़े।

और तभी बेलिफ अंदर आया। "तेरा सत्यानास हो आ क्यू के बच्चे!" बेलिफ ने कहा। "अरे ओ गद्दार, तू चाओ परिवार की नौकरानी पर हाथ रखने से मानेगा नहीं क्या? तूने मेरी नींद हराम कर दी है। तेरा सत्यानास हो जाए।"

इस तरह गालियों की बौछार होने पर यह स्वाभाविक था कि आ क्यू चुप ही रहता। रात का समय था, इसलिए आ क्यू को बेलिफ के हाथ में दोगुने पैसे, यानी चार सौ ताँबे के सिक्के रखने थे, लेकिन उसके पास एक कौड़ी भी नहीं थी, इसलिए उसने अपना फैल्टहैट जमानत के तौर पर देकर नीचे लिखी पाँच शर्तें मंजूर कर लीं -

1. अगले दिन सुबह आ क्यू एक पौंडवाली दो लाल मोमबत्तियाँ और एक बंडल अगरबत्तियाँ चाओ परिवार के पास भेजकर अपने पाप का प्रायश्चित करेगा।

2. ताओ धर्म के उस पुजारी की दक्षिणा आ क्यू देगा, जिसे चाओ परिवार के भूत-प्रेतों को भगाने के लिए बुलाया गया है।

3. भविष्य में आ क्यू चाओ परिवार के घर में बिल्कुल कदम नहीं रखेगा।

4. अगर आमा ऊ को दुर्भाग्य से कुछ हो गया, तो उसके लिए आ क्यू को ही दोषी ठहराया जाएगा।

5. आ क्यू अपनी उजरत और कमीज लेने चाओ परिवार के घर नहीं जाएगा।

आ क्यू ने सारी शर्तें मान लीं, पर अफसोस की बात है कि उसके पास नकद पैसा बिल्कुल नहीं था। भाग्य से वसंत का मौसम आ चुका था और रूई के लिहाफ के बिना भी गुजारा हो सकता था। अतः उसने अपना लिहाफ दो हजार ताँबे के सिक्कों के बदले रहन पखकर सारी शर्तें पूरी कर लीं। अपनी नंगी पीठ झुकाकर नाक रगड़ने के बाद भी आ क्यू के पास कुछ ताँबे के सिक्के शेष रह गए थे, पर उन्हें देकर बेलिफ से अपनी फैल्ट हैट छुड़ाने के बदले उसने सारा पैसा शराब में उड़ा दिया।

चाओ परिवार ने न तो आ क्यू की दी हुई अगरबत्तियाँ जलाईं और न मोमबत्तियाँ। उनका इस्तेमाल मालकिन भगवान बुद्ध की पूजा के लिए कर सकती थीं, इसलिए उन्हें अलग रख दिया। आ क्यू की फटी-पुरानी कमीज से युवा मालकिन के उस बच्चे की लँगोटियाँ बना दी गईं, जो आठवें चंद्र-मास में जन्मा। बचे हुए चिथड़ों से आमा ऊ ने अपने जूते का सोल तैयार कर लिया।