आ बैल मुझे मार/ प्रमोद यादव
मेरे एक मित्र हैं – अनुराग, निहायत ही शरीफ, नम्र, हंसमुख और ईमानदार. हम दोनों के आफिस एक ही इमारत में है, लेकिन विभाग अलग-अलग है. जब भी वे खाली होते हैं, हमारे आफिस में आकर सबसे मिलते-जुलते हैं, कुशलक्षेम पूछते हैं और ज्यादा समय रहा तो गप्पबाजी भी कर लेते हैं. उनका मुख्य काम है - यूनिट के अधिकारियों के लिये रेल्वे की टिकिट आरक्षित कराना. इस सिलसिले मे वे अक्सर रेल्वे स्टेशन आते-जाते रहते हैं.
एक बार की घटना है, मुझे किसी कार्यवश रेल्वे स्टेशन जाना था. मैंने अनुराग से पूछा तो उसने कहा – ‘ घंटे भर बाद चलते हैं, मुझे भी काम है.’ ठीक एक घंटे बाद वे अपनी स्कूटर में आये, मैं उनके पीछे बैठ गया. रास्ते भर इधर-उधर की बातें करते बढते रहे. स्टेशन से फर्लांग भर पहले एक चौक है जहाँ कुछ ट्रेफिक पुलिस के जवान व अधिकारी दुपहिया वाहनों को रोककर वाहनों के कागजात देख रहे थे और गाड़ियों का चालान भी कर रहे थे. एक जवान ने अनुराग के स्कूटर को भी रुकने का संकेत दिया लेकिन वह बातचीत में इतना मशगूल था कि ध्यान ही नहीं दिया और रफ़्तार से आगे बढ़ गया. मैं पीछे बैठे सब देख रहा था. फर्लांग भर आगे बढ़ने के बाद मैंने जब बताया कि पुलिसवाले रोकने कह रहे थे पर तुम रुके नहीं तो वह हडबडा गया, एकदम से ब्रेक लगाया, स्कूटर को किनारे कर कहा – ‘ अरे यार, मैं देख नहीं पाया..चलो वापस चलते हैं..’ मैंने कहा – ‘ अरे नहीं यार..अब निकल आये हैं तो चलो आगे बढ़ो..वापस नहीं जाते..’ वह नहीं माना, बोला – ‘ नहीं यार..हमें ट्रफिक के नियमों का पालन करना चाहिए, सम्मान करना चाहिए...’
और अंततः वापस चौक पर तैनात अधिकारी के पास पहुँच विनती करने लगा – ‘ सर जी, गलती हो गई..मैं आगे बढ़ गया था...कागजात दिखाऊँ ? ‘
अधिकारी बोले – ‘ हाँ...दिखाइये..’
अनुराग ने डिक्की से .कागजात निकाल उनके हवाले किया. उन्होंने सरसरी निगाह से कागजात देख ‘ ठीक है ‘ कहते वापस लौटा दिया. डिक्की में कागजात रखते-रखते अनुराग ने अधिकारी से कहा – ‘ इंश्योरेंस के कागज भी दिखाऊँ क्या सर ? ‘
अधिकारी बोले – ‘ लाओ भई..वो भी देख लेते हैं...
’ अनुराग ने फिर कागजात निकाल अधिकारी को दिया. इस बार उसने काफी देर तक पढ़ा और रूखे शब्दों में कहा – ‘ ये तो पिछले साल का है जनाब...इस साल का दिखाइये..’ मैं पास ही खड़े अनुराग के मूर्खतापूर्ण क्रियाकलापों पर अपना सिर पीट रहा था. वह पूरी डिक्की को छान मारा, पर और कोई कागजात नहीं मिला. अधिकारी ने अपने मातहत को संबोधित करते कहा – ‘ अरे कदम..इनका चालन काटो...इनके पास इंश्योरेंस के कागज नहीं है. मातहत ने स्कूटर का नंबर व नाम-पता लिख दो सौ रूपये का चालान काटा. इस प्रक्रिया के बाद जैसे उसे सांप सूंघ गया...एकदम ख़ामोशी से स्कूटर चलाता स्टेशन पहुंचा. मैं भी चुप्पी साधे बैठा रहा.
उस दिन मुझे ज्ञानबोध हुआ कि व्यक्ति को ‘ आ बैल मुझे मार ‘ वाला काम भूलकर भी नहीं करना चाहिए.