इंग्लैंड के फैसले का भारत पर प्रभाव / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :27 जून 2016
हुकूमत-ए-बरतानिया के यूरोपीय संघ से अलहदा होने के ताजे फैसले का भारतीय फिल्म उद्योग पर भी प्रभाव पड़ सकता है। विगत दो दशकों से भारतीय फिल्मकार इंग्लैंड में शूटिंग करते रहे हैं। विदेश के फिल्मकारों को ब्रिटेन में शूटिंग खर्च का 30 प्रतिशत धन निर्माता को लौटा दिया जाता था। इस रियायत के कुछ नियम भी थे और पूरी जांच पड़ताल के बाद रियायत दी जाती थी। यह रियायत देने से इंग्लैंड के व्यवसाय को लाभ मिलता था। यूनिट के लगभग सौ सदस्य होटल में ठहरते, खाते-पीते और सामान खरीदते थे। ब्रिटेन का अपना फिल्म उद्योग बुरे दौर से गुज़र रहा था। फिल्मों की शूटिंग से पर्यटन उद्योग को लाभ मिलता था। भारतीय फिल्मकार अपने देश में आउटडोर शूटिंग महज आठ घंटे ही कर सकता है, क्योंकि चार बजे तक रोशनी कम हो जाती है परंतु इंग्लैंड में सूर्यास्त भारतीय समय के हिसाब से रात दस बजे तक होता है। अत: वहां प्रतिदिन पंद्रह घंटे तक काम हो सकता है। अब अगर 30 प्रतिशत रकम की वापसी समाप्त होती है तो भारतीय फिल्मकार केवल पटकथा की आवश्यकता होने पर ही वहां जाएगा। पहले तो पात्र के स्वप्न दृश्य में गीतों के फिल्मांकन के लिए भी वहां जाते थे। इंग्लैंड में किसी भी स्थान पर शूटिंग के लिए इजाजत सहज ही मिल जाती है और सड़कों के अतिरिक्त किसी भी स्थान पर शूटिंग के लिए आज्ञा लेना अनावश्यक है। भारत में शूटिंग के लिए इजाजत लेने में रिश्वत देने पर भी अनावश्यक देरी होती है। भारत के ऐतिहासिक महत्व के स्थानों पर तो शूटिंग की आज्ञा ही नहीं मिलती, जबकि इंग्लैंड में महारानी के महल के बाहरी हिस्से तक के लिए आज्ञा-पत्र लेना नहीं पड़ता। इस घटना से पाउंड का अवमूल्यन वहां शूटिंग करने का सकारात्मक पहलू भी हो सकता है।
राज कपूर की 'संगम' पहली फिल्म थी, जिसकी शूटिंग लंदन, पेरिस और स्विट्जरलैंड में हुई थी। यश चोपड़ा ने तो स्विट्जरलैंड में इतनी शूटिंग की कि उन्हें वहां की सरकार ने सम्मानित किया था। चीन में केवल उनके विकसित स्थानों पर ही शूटिंग की आज्ञा मिलती है। चीन ने अपने एक क्षेत्र से विकास प्रारंभ किया और पूरे चीन के विकास के लिए पचास वर्ष की योजना बनाई है। चीन की पूर्व निर्धारित योजना में एक दिन की देर भी वहां सहन नहीं की जाती। चीन कम्युनिस्ट तौर-तरीकों से पूंजीवादी बनने का लक्ष्य प्राप्त करना चाहता है। इस तरह चीन का भी अमेरिकीकरण हो जाएगा। आज कोई भी देश किसी राजनीतिक विचारधारा के प्रति समर्पित नहीं है। सभी केवल सुविधा को साध रहे हैं। मानवता के लिए यह खतरनाक रास्ता है। राजनीतिक आदर्शविहीन दुनिया हमें प्रस्तर युग की अोर ले जा रही है।
नेहरू, नासिर, निकिता ख्रुश्चेव, माओ त्से तुंग, जॉन एफ. कैनेडी राजनीतिक आदर्श के प्रति समर्पित थे और उनका कद उनकी प्रतिबद्धता के कारण ऊंचा था। अब सत्ता बौनों के हाथ लग गई है और वे अपने छोटे कद के अनुरूप दुनिया को लघु बनाने में जुटे हैं। इसी तर्ज पर फिल्मकार भी छोटे कद वाले हो गए हैं। सिनेमा के तकनीकी विकास का लाभ लेने के लिए विज्ञान फंतासी फिल्में बनना शुरू हुई थीं। इस श्रेणी की फिल्मों की व्यावसायिक सफलता के कारण हॉलीवुड सिनेमा से मानवीय करुणा का लोप होता गया और यह धारा भी उसी सुविधा का प्रतीक है, जिसका जिक्र इस लेख में अन्यत्र किया गया है।
भारत और ब्रिटेन के रिश्ते बदलते रहे हैं। उनके राज में हिंदुस्तान के अमीर घरानों के युवा ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए और लौटकर उन्होंने हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस संदर्भ में महत्वपूर्ण बात यह है कि लॉर्ड मैकाले ने भारत में अंग्रेजी पढ़ने की हिमायत की। उस समय यह संदेह व्यक्त किया गया कि इंग्लैंड में पढ़ने वाले लोग लौटकर स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनेंगे। तब लॉर्ड मैकाले ने दलील पेश की कि उनकी शिक्षा प्रणाली भारत में लागू नहीं करने पर भी देर-अबेर से आजादी उन्हें प्राप्त होगी, क्योंकि किसी भी देश को हमेशा के लिए गुलाम नहीं रखा जा सकता परंतु इस ब्रिटेश ढंग की शिक्षा से अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी की विचार प्रक्रिया इस अनंत देश में हमेशा के लिए जम जाएगी और राजनीतिक आज़ादी के बाद भी अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजियत अक्षुण्ण रहेगी। लॉर्ड मैकाले की भविष्यवणी सत्य सिद्ध हुई है। यहां तक कि हमारा गणतंत्र और संसद भी ब्रिटिश प्रेरणा से बना है परंतु अब संसद का भारतीयकरण हो चुका है। गोयाकि अंग्रेजों के जाने के बाद भी अंग्रेजियत कायम रही। परंतु उसमें अब बहस नहीं होती वरन् राजनीतिक दलों ने अपने विवादों और स्वार्थ के लिए उसे मोहल्ले का नुक्कड़ बना दिया है। संसद का यह सौ प्रतिशत भारतीयकरण देश प्रेम का प्रतीक नहीं है वरन् अपने पुराने आपसी विवाद में बंटे रहने का प्रतीक है।
इंग्लैंड में किए गए जनमत संग्रह के नतीजों से स्पष्ट होता है कि वहां का युवा वर्ग ब्रिटेन के यूरोपीय संघ के साथ गठबंधन से आज़ादी चाहता है परंतु वहां के उम्रदराज लोगों ने उस गठबंधन में बने रहने के लिए मत दिया है। यह भविष्य का संकेत है कि सभी देशों की सत्ता में युवा वर्ग का प्रवेश होगा और युवा वय के लोग ही तमाम निर्णय लेंगे। उम्र से प्राप्त अनुभव पर युवा आयु का भारी पड़ना कोई शुभ संकेत नहीं है। युवा ऊर्जा और उम्रदराज लोगों के अनुभव से प्राप्त ज्ञान का संयोग आवश्यक है।