इंटरनेट और लघुकथा / रामेश्वर काम्बोज‘हिमांशु’

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इक्कीसवीं सदी इण्टरनेट की सदी है और साथ ही साहित्य की उन विधाओं की भी सदी है; जो समयाभाव से जूझते पाठक को भले ही कुछ एक पल लिए, साहित्य से जोड़ने का कार्य कर रही हैं। इसी सशक्त माध्यम के कारण लघुकथा, ग़ज़ल और हाइकु जैसी विधाएँ तमाम अवरोधों और अधकचरे रचनाकारों की मार खाकर भी पाठकों के बीच अपना स्थान बनाए रखने के लिए प्रयासरत हैं। लघुकथा ने लघुकथा डॉट कॉम (सुकेश साहनी एवं निशान्त काम्बोज) के माध्यम से 2000 में इण्टरनेट की दुनिया में क़दम रखा। फ़ोण्ट की समस्याओं का समाधान होने पर जुलाई 2007 से सुकेश साहनी एवं रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ने इसे नियमित मासिक का रूप दिया। तब से आज तक इसकी यात्रा हिन्दी-जगत् में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा रही है और विश्व के अनेक देशों तक अपनी पहुँच बना चुकी है। नवम्बर 2014 तक लघुकथा डॉट कॉम स्टैटिक (स्थैतिक) रूप में थी, जिसे इस रूप की तकनीकी जानकारी रखने वाले ही वेबसाइट को अपडेट कर पाते थे। यूनिकोड में होने के कारण हमारी निर्भरता उन्हीं के ऊपर थी। इसे अब http: / /old.laghukatha. com / लिंक पर पढ़ा जा सकता है। दिसम्बर 2014 से लघुकथा डॉट कॉम को नए एवं उत्कृष्ट रूप देने के लिए इसे डाइनैमिक (गतिक) वेबसाइट https: / /www. laghukatha. com के रूप में बनवाया गया। इसकी गणना तकनीकी रूप से आज हिन्दी की उत्कृष्ट वेबसाइट के रूप में होती है। इसे यह स्वरूप प्रदान करने के तरुणा काम्बोज और सुशान्त काम्बोज ने अथक परिश्रम किया। इसमें एडॉब देवनागरी फ़ोण्ट का समावेश किया गया, जिससे पाठक इसका उत्कृष्ट प्रिण्ट भी ले सकते हैं। अब सम्पादक द्वय ही इसको प्रकाशित करते हैं। लघुकथा डॉट कॉम में ऑडियो और विडियो भी दिए गए हैं। ऑडियो कका कार्य नवम्बर 2018 से ऋतु कौशिक अपने सधे हुए स्वर में समर्पण भाव से कर रही हैं। लघुकथा डॉट कॉम के प्रारम्भिक समय से पिछले वर्ष तक बहुत से लेखकों की रचनाएँ हस्तलिखित रूप में आती थीं, जिनको टाइप करके वेबसाइट तक पहुँचाने का कार्य श्रीमती रीता साहनी जी ने किया। इनकी कार्य-कुशलता के बिना यह सम्भव नहीं था।

1-नवम्बर-दिसम्बर 2007 में इसके 'बाल मनोवैज्ञानिक लघुकथाएँ' विशेषांक ने पाठकों में काफ़ी लोकप्रियता प्राप्त की है। सत्य साईं केन्द्र दिल्ली ने इस अंक का उपयोग विभिन्न केन्द्रीय और नवोदय विद्यालयों के प्राचार्यों की वर्कशॉप में प्रेरक सामग्री के रूप में किया। किताबघर ने इसके पुस्तक रूप में दो संस्करण भी प्रस्तुत किए हैं।

2-नवम्बर–दिसम्बर 2009 (संयुक्तांक) मानवीय मूल्यों की लघुकथाओं पर केन्द्रित था। विशेषांक ने अपने सामाजिक दायित्व का भी पूरी तरह निर्वाह किया है। जीवन मूल्यों की लघुकथाएँ नवम्बर 2009 में प्रकाशित की गई जो पुस्तक रूप में-'लघुकथाएँ जीवन मूल्यों की' : सम्पादक सुकेश साहनी-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' : प्रकाशक: हिन्दी साहित्य निकेतन, 16 साहित्यविहार, बिजनौर (उ प्र) 246701; पृष्ठ; 96, मूल्य: 50 रुपये (पेपर बैक) , संस्करण: 2013' प्रकाशित और चर्चित हुई।

3-मेरी पसन्द स्तम्भ की शुरूआत फ़रवरी 2008 में शुभाष नीरव के लेख से की गई थी। तब से आज तक इस स्तम्भ में पाठकों, लघुकथाकारों एव अन्य विधा के रचनाकारों के माध्यम से उनकी पसन्द के दो अलग-अलग लेखकों की लघुकथाओं पर विचार प्रस्तुत किए जाते हैं। इससे शोधार्थियों को रचना का मर्म समझने में भी सहायता मिलती है। पुस्तक रूप में भाई भूपाल सूद ने इस शृंखला का आरम्भ 2012 में किया। अब तक प्रकाशित इसके पाँच खण्डों में (25+25+29+36+36=151) 151 वैश्विक लेखकों की 'मेरी पसन्द' को स्थान दिया गया है।

4-हिन्दी चेतना का अक्टूबर–दिसम्बर 2012 का लघुकथा विशेषांक प्रकाशित हुआ, जो पुस्तक-रूप में 'लघुकथा देश-देशान्तर: सम्पादक द्वयः सुकेश साहनी-रामेश्वर काम्बोज' हिमांशु' , पृष्ठ: 176; मूल्य: 300 रुपये (सज़िल्द) , संस्करण: 2013, ISBN: 978-81-7408-604-4; प्रकाशक-अयन प्रकाशन, 1 / 20, महरौली, नई दिल्ली-110030

5-भाषान्तर के माध्यम से अंग्रेज़ी, जर्मन, संस्कृत, पंजाबी, सिन्धी, मराठी, नेपाली, उड़िया, बांग्ला, तेलुगु और उर्दू भाषाओं में भी लघुकथाएँ प्रस्तुत की गईं। साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं में भी प्रकाशन हुआ। लोक भाषाओं में भी अनुवाद की यात्रा जारी है। लघुकथा डॉट कॉम में प्रकाशित गढ़वाली लघुकथाएँ-लघुकथा डॉट कॉमःभाषान्तर-गढ़वाली अनुवाद: डॉ. कविता भट्ट का प्रकाशन 2024 में शैलपुत्री फ़ाउण्डेशन से हुआ। इस संग्रह में चुने हुए 45 लघुकथाकारों की रचनाओं का उत्तम अनुवाद प्रस्तुत किया गया है।

उपर्युक्त सभी पुस्तकें सभी लेखकों को निःशुल्क दी गई हैं।

6-हिन्दी और अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. कुँवर दिनेश सिंह जी ने लघुकथाओं का उत्कृष्ट अनुवाद प्रस्तुत किया है, जिनमें अधिक लघुकथाएँ नई लघुकथा डॉट कॉम पर पढ़ी जा सकती हैं। 62 लघुकथाओं का अनुवाद 2021 में Beyond Semblance के नाम से प्रकाशित हुआ है।

7-गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद के 'स्नातकोत्तर डिप्लोमा अनुवाद' की परियोजना में डॉ. तृप्ति जोशी द्वारा गुजराती में अनूदित रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' की 50 लघुकथाएँ स्वीकृत। चर्चा दिसम्बर, 2024 में अंक तालिका देखी जा सकती है।

पाठ्यक्रमः

1-केरल सरकार के पाठ्यक्रम में सुकेश साहनी की लघुकथा कई वर्ष से पढ़ाई जा रही है।

2-बलराम ने विश्वविद्यालय के स्नातक पाठयक्रम के लिए कई संकलन सम्पादित किए हैं।

3-अर्चना राय की लघुकथा केरल यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम-'विधा निदर्श' में संकलित। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय–एम. ए. पंजाबी (तृतीय सत्र 2025-26) के पाठ्यक्रम में पंजाबी मिन्नी कहाणी (लघुकथा) सम्मिलित।

4-मध्य प्रदेश के महाविद्यालयों के बी. ए. ऑनर्स के पाठ्यक्रम में 12 लघुकथाकार और उनकी लघुकथाएँ दी गई हैं। ये लघुकथाकार हैं1-विष्णु प्रभाकर, 2-हरिशंकर परसाई, 3-सूर्यकान्त नागर, 4-सतीश दुबे, 5-सतीशराज पुष्करणा, 6-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' , 7-रमेश बत्तरा, 8-बलराम अग्रवाल, 9-सुभाष नीरव, 10-अशोक भाटिया, 11-सुकेश साहनी, 12-चैतन्य त्रिवेदी।

5-केरल सरकार के स्कूली पाठयक्रम में अंजू खरबन्दा की लघुकथा का समावेश किया गया है।

6-सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के द्वितीय वर्ष कला हिन्दी के पाठ्यक्रम में 10 लेखकों की 2-2 लघुकथाएँ लगाई गई हैं।

https: / / www. laghukatha. com नेट पत्रिका के माध्यम से दस्तावेज़ के अन्तर्गत विभिन्न पुस्तकों की समीक्षाएँ, अध्ययन कक्ष के माध्यम से लघुकथा के शिल्प पर व्यापक चर्चा होती रही है। मेरी पसन्द (दो लेखकों की एक-एक लघुकथा पर समीक्षात्मक लघुलेख और दोनों लघुकथाएँ) , भाषान्तर, देशान्तर, संचयन (एक ही लेखक की कई लघुकथाएँ) , देश (कई लेखकों की एक-एक लघुकथा) , चर्चा में लघुकथा के क्षेत्र में किए गए नवीन कार्यों की जानकारी सम्मिलित की जाती है। देश भर के पाठक, लेखक और शोधार्थी इससे लाभान्वित होते रहे है।

लोकमत ने लघुकथाओं को अपने सामान्य अंको और विशेषांकों में स्थान देने का कार्य उच्चतम कार्य किया है। इस दैनिक में प्रकाशित लघुकथाएँ लाखों पाठकों तक पहुँचती हैं। लघुकथा स्तम्भ का संचालन करने वाले सम्पादक बधाई के पात्र हैं। अमर उजाला, दैनिक ट्रिब्यून, दैनिक भास्कर और अहा ज़िन्दगी के अंक इस विधा की उत्कृष्ट रचनाओं को निरन्तर प्रश्रय देते रहे हैं।

हिन्दी चेतना में जुलाई-सितम्बर 2011 से लघुकथाएँ प्रकाशित हो रही हैं। अक्तुबर-दिसम्बर-2012 (पुस्तक रूप में 'देश-देशान्तर की लघुकथाएँ' से नाम से) , जुलाई-सितम्बर 2019 (पुस्तक रूप में 'दस्तक' नाम से) एवं जुलाई-सितम्बर 2024 में लघुकथा विशेषांक प्रकाशित किए गए, जो चर्चा में रहे।

शोध दिशा के अक्तुबर-मार्च14-15 अंक लघुकथा विशेषांक के रूप में प्रकाशित हुए। उदन्ती निरन्तर लघुकथाएँ प्रकाशित करती है। फरवरी 2015 का अंक लघुकथाओं पर केन्द्रित रहा। इसका लिंक सन्दर्भ के अन्तर्गत दिया गया है। साहित्य अमृत का जनवरी 2017 लघुकथा विशेषांक, परिन्दे द्विमासिक, विभोम स्वर त्रैमासिक में भी लघुकथाओं का प्रकाशन होता रहा है। ये सभी पत्रिकाएँ कविता कोश एवं गद्यकोश के ई-पत्रिकाएँ स्तम्भ में पढ़ी जा सकती हैं। ई-पुस्तक के रूप में लघुकथा का वर्त्तमान परिदृश्य (रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ) और लघुकथा सर्जन और रचना-कौशल (सुकेश साहनी) भी इसी मंच पर पढ़ी जा सकती है।

विशेषः पुष्पांजलि (सम्पादक-गोविन्द मूँदड़ा) जुलाई 2020 से लघुकथाएँ प्रकाशित कर रही है। इसके 4 लघुकथा विशेषांक-जून-2021, जून-2023, मई-2024 और अप्रैल-2025 (अतिथि सम्पादक-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ) भी प्रकाशित हुए। इसके अंक पीडीएफ़ के माध्यम से पाठकों तक पहुँचते हैं। तकनीकी रूप से उन्नत इस पत्रिका में पुस्तकें, बोलती लघुकथाएँ ऑडियो के रूप में ॠतु कौशिक के स्वर में सुनी भी जा सकती हैं। हर अंक में अन्त में पिछले 6 अंकों के लिंक दिए रहते हैं, जिनसे विगत अंक भी पढ़े जा सकते हैं। इस पत्रिका में रचना के प्रकाशन का आधार है-उसकी उत्कृष्टता और सकारात्मकता । स्थापित और नए सभी रचनाकार इस पत्रिका में स्थान पाते हैं। गोविन्द मूँदड़ा जी के अनुसार-'साहित्य एक सत्संग है' , जिसका वे पूर्णतया पालन करते हैं। आपके द्वारा यह पत्रिका लगभग 10-12 हज़ार लोगों को वाट्स एप के माध्यम से भेजी जाती है।

अन्य नेट पत्रिकाओं में अभिव्यक्ति (सम्पादक-पूर्णिमा वर्मन) ने अपने कॉलम 'महानगर की लघुकथाएँ' में चुनी हुई लघुकथाएँ प्रस्तुत करके अधिकतम पाठकों तक इस विधा को पहुँचाया है। अन्यथा डॉट कॉम, लेखनी डॉट नेट, गर्भनाल डॉट कॉंम साहित्य कुंज डॉट नेट, हिन्दी कुंज डॉट कॉम, साहित्य शिल्पी डॉट कॉम, कर्मभूमि, आदि ने अन्य विधाओं के साथ लघुकथा का भी समावेश करके इस विधा को विश्व भर में पहुँचाया है। कोश की दृष्टि से देखें, तो इसमें गद्यकोश की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसमें सैंकड़ों लेख और कई सौ लघुकथाएँ संगृहीत हैं। ई-पुस्तकें और ई पत्रिका के मंच पर लघुकथा की विशिष्ट पत्रिकाएँ और पुस्तकें उपलब्ध हैं, सामान्य पाठक और शोधार्थी इनका लाभ उठा रहे हैं। इसका श्रेय ललित कुमार एवं शारदा सुमन को जाता है।

उर्दू की नेट और प्रिण्ट पत्रिका 'कसौटी जदीद' डॉट कॉम (सम्पादक द्वय: अनवर शमीम, मु अफ़ज़ल खान) ने अपने सितम्बर 2010 के अंक में लघुकथा डॉट कॉम की हिन्दी और विदेशी लेखकों की रचनाओं को उर्दू में प्रस्तुत किया है। नवम्बर-दिसम्बर 2009 में 'मानव मूल्यों की लघुकथाएँ' विशेषांक की लघुकथाओं को उर्दू के पाठकों तक पहुँचाने की योजना पर भी कसौटी के सम्पादक कार्य कर रहे हैं।

हिन्दी-जगत् में अपनी विशिष्ट पहचान वाली पत्रिका 'कथादेश' और 'हंस' मासिक ने शुरू से ही इस विधा को महत्त्व दिया है। अपने इण्टरनेट संस्करण 'हंस मंथली डॉट इन' के माध्यम से इस विधा को और भी विस्तार दिया है। इस दिशा में 'कथादेश' (सम्पादक-हरिनारायण) में उच्च स्तरीय लघुकथा निरन्तर छप रही हैं। सामान्य अंकों के अतिरिक्त पिछले 16 वर्षों में कथादेश द्वारा आयोजित 16 प्रतियोगिताओं की पुरस्कृत लघुकथाएँ और उन कथाओं पर केन्द्रित सुकेश साहनी के 16 गम्भीर लेख भी जन-जन तक पहुँचे हैं। ये लेख और रचनाएँ लघुकथा डॉट कॉम पर उपलब्ध हैं। इनमें से 11 प्रतियोगिताओं की पुरस्कृत लघुकथाएँ 'कथादेश-पुरस्कृत लघुकथाएँ' (सम्पादक द्वय: हरिनारायण, सुकेश साहनी) के नाम से 2020 में प्रकाशित हो चुकी है।

पाखी डॉट इन, उदन्ती डॉट कॉम, राजस्थान पत्रिका डॉट कॉम, हिन्दी वेब दुनिया डॉट कॉम। इन संस्करणों में उदन्ती डॉट कॉम और राजस्थान साहित्य अकादमी की मधुमती मासिक, कथा प्रधान त्रैमासिक कथाबिम्ब ने दोनों ही संस्करणों में लघुकथा और तत्सम्बन्धी लेखों को वरीयता से प्रकाशित किया है। मधुमती ने मासिक आवर्तिका होने के कारण समीक्षा एवं कलापक्ष से जुड़े गम्भीर लेखों को ज़्यादा स्थान दिया है। वीणा मासिक का इस दिशा में योगदान सराहनीय है।

नीलाम्बरा अर्धवार्षिक पत्रिका (सम्पादक: डॉ. कविता भट्ट) जनवरी2021 से लघुकथाएँ प्रकाशित कर रही है। लोक भाषा और अँगेज़ी की लघुकथाएँ भी इस पत्रिका में प्रकाशित हो रही हैं। जुलाई-दिसम्बर-24 , अंक 8 में चुनी हुई लघुकथाएँ, पुस्तक समीक्षाएँ एवं विधागत लेख दिए गए हैं । इस पत्रिका को कविताकोश के ई-पत्रिकाएँ विभाग में पढ़ा जा सकता है।

वेब साइट के क्षेत्र में काम करने वालों में श्री रवि श्रीवास्तव जी (रवि रतलामी नाम से चर्चित) ने ‘रचनाकार’ https://www.rachanakar.org/ के माध्यम से हज़ारों लघुकथाएँ पाठकों तक पहुँचाने का रिकार्ड स्थापित किया है। इन्होंने प्रतियोगिता के आयोजन और सम्मानजनक पुरस्कार के माध्यम से लेखकों को इस विधा की ओर आकर्षित किया है। हिन्दी- जगत् को इण्टरनेट और फोण्ट की सुविधा से जुड़ी हर तकनीकी जानकारी देने वाला यह उदार मौन साधक आज हमारे बीच में नहीं है। (अद्यतन किया गया)

-0- मुख्य सन्दर्भ-

http://www.laghukatha.com

https://www.hindichetna.com

http://gadyakosh.org

https://www.udanti.com/2015/02/?m=0

https://nilambara.shailputri.in

https://www.rachanakar.org/

https://www.bhaskar.com/magazine/aha-zindagi

http://www.webdunia.com

http://abhivyakti-hindi.org

http://anyatha.com

http://sahityakunj.net

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http://www.kathabimb.com

http://www.laghukatha.com

http://www.lakesparadise.com/madhumati

http://www.pakhi.in

http://www.rajasthanpatrika.com

http://www.sahityashilpi.com