इंटरनेट और लघुकथा / रामेश्वर काम्बोज‘हिमांशु’

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इक्कीसवीं सदी इण्टरनेट की सदी है और साथ ही साहित्य की उन विधाओं की भी सदी है; जो समयाभाव से जूझते पाठक को भले ही कुछ एक पल लिए, साहित्य से जोड़ने का कार्य कर रही हैं। इसी सशक्त माध्यम के कारण लघुकथा, ग़ज़ल और हाइकु जैसी विधाएँ तमाम अवरोधों और अधकचरे रचनाकारों की मार खाकर भी पाठकों के बीच अपना स्थान बनाए रखने के लिए प्रयासरत हैं। लघुकथा ने लघुकथा डॉट कॉम (सुकेश साहनी एवं निशान्त काम्बोज) के माध्यम से 2000 में इण्टनेट की दुनिया में कदम रखा। फ़ोण्ट की समस्याओं का समाधान होने पर जुलाई 2007 से सुकेश साहनी एवं रामेश्वर काम्बोज ने इसे नियमित मासिक का रूप दिया। तब से आज तक इसकी यात्रा हिन्दी जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा रही है और विश्व के 40 देशों तक अपनी पहुँच बना चुकी है। नवम्बर-दिसम्बर 2007 में इसके 'बाल मनोवैज्ञानिक लघुकथाएँ' विशेषांक ने पाठकों में काफ़ी लोकप्रियता हासिल की है। सत्य साईं केन्द्र दिल्ली ने इस अंक का उपयोग विभिन्न केन्द्रीय और नवोदय विद्यालयों के प्राचार्यों की वर्कशॉप में प्रेरक सामग्री के रूप में किया। किताबघर ने इसे पुस्तक रूप में भी प्रस्तुत किया है। भाषान्तर के माध्यम से अंग्रेज़ी, जर्मन, संस्कृत, पंजाबी, सिन्धी, मराठी, नेपाली और उर्दू भाषाओं में भी लघुकथाएँ प्रस्तुत की गईं। नवम्बर-दिसम्बर 2009 में ' मानव मूल्यों की लघुकथाएँ" विशेषांक ने अपने सामाजिक दायित्व का भी पूरी तरह निर्वाह किया है। अब यह विशेषांक पुस्तक रूप में भी शीघ्र प्रकाश्य है। इस नेट पत्रिका के माध्यम से दस्तावेज़ के अन्तर्गत विभिन्न पुस्तकों की समीक्षाएँ, अध्ययन कक्ष और आलेख के माध्यम से लघुकथा के शिल्प पर व्यापक चर्चा होती रही है। देश भर के शोधार्थी भी इससे लाभान्वित होते रहे है।

अन्य नेट पत्रिकाओं में अभिव्यक्ति साप्ताहिक ने (जिसकी मासिक प्रसार संख्या लगभग 5 लाख है) अपने कॉलम 'महानगर की लघुकथाएँ' में सुश्री पूर्णिमा वर्मन और उनकी टीम ने चुनी हुई लघुकथाएँ प्रस्तुत करके अधिकतम पाठकों तक इस विधा को पहुँचाया है। अन्यथा डॉट कॉम, लेखनी डॉट नेट, गर्भनाल डॉट कॉंम (शीघ्र ही प्रिण्ट में भी आने वाली है) , साहित्य कुंज डॉट नेट, हिन्दी कुंज डॉट कॉम, साहित्य शिल्पी डॉट कॉम, हिन्दी युग्म, कर्मभूमि, लेखक मंच डॉट कॉंम आदि ने अन्य विधाओं के साथ लघुकथा का भी समावेश करके इस विधा को विश्व भर में पहुँचाया है। हिन्दी युग्म और लेखक मंच डॉट कॉंम के अलावा सभी नेट पत्रिकाओं ने चयन पर विशेष ध्यान दिया है। कोश की दृष्टि से देखें तो गद्यकोश की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसमें 15 लेख और 209 लघुकथाएँ संगृहीत हैं।

उर्दू की नेट और प्रिण्ट पत्रिका 'कसौटी जदीद' डॉट कॉम (सम्पादक द्वय: अनवर शमीम, मु अफ़ज़ल खान) ने अपने सितम्बर 2010 के अंक में लघुकथा डॉट कॉम की हिन्दी और विदेशी लेखकों की रचनाओं को उर्दू में प्रस्तुत किया है। नवम्बर-दिसम्बर 2009 में 'मानव मूल्यों की लघुकथाएँ' विशेषांक की लघुकथाओं को उर्दू के पाठकों तक पहुँचाने की योजना पर भी कसौटी के सम्पादक कार्य कर रहे हैं।

हिन्दी जगत् में अपनी विशिष्ट पहचान वाली पत्रिका 'हंस' मासिक ने शुरू से ही इस विधा को महत्त्व दिया है। अपने इण्टरनेट संस्करण 'हंस मंथली डॉट इन' के माध्यम से इस विधा को और भी विस्तार दिया है। इस दिशा में पाखी डॉट इन, उदन्ती डॉट कॉम, अमर उजाला डॉट कॉम, राजस्थान पत्रिका डॉट कॉम, हिन्दी वेब दुनिया डॉट कॉम, हिन्दी गौरव डॉट कॉम (अक्तुबर से प्रिण्ट में भी उपलब्ध) आदि प्रमुख हैं। इन संस्करणों में उदन्ती डॉट कॉम और अमर उजाला डॉट कॉम, हिन्दी गौरव डॉट कॉम का चयन गुणात्मक रूप से अधिक कसा हुआ है। राजस्थान साहित्य अकादमी की मधुमती मासिक, कथा प्रधान त्रैमासिक कथाबिम्ब ने दोनों ही संस्करणों में लघुकथा और तत्सम्बन्धी लेखों को वरीयता से प्रकाशित किया है। मधुमती ने मासिक आवर्तिका होने के कारण समीक्षा एवं कलापक्ष से जुड़े गम्भीर लेखों को ज़्यादा स्थान दिया है।

वेब साइट के अतिरिक्त लघुकथा जगत में ब्लॉग का भी कम योगदान नहीं है। इस क्षेत्र में काम करने वालों में सर्वश्री रवि श्रीवास्तव (रचनाकार) , सुकेश साहनी (हिन्दी-एव अंग्रेज़ी) , बलराम अग्रवाल (जनगाथा, कथा यात्रा) श्याम सुन्दर अग्रवाल, जगदीश कश्यप, सुभाष नीरव (कथा पंजाब) , रूप सिह चन्देल, ओम्प्रकाश कश्यप (हिन्दी) , सतीशराज पुष्करणा, दिलीप आचार्य और कुमुद अधिकारी (नेपाली) , तनदीप तमन्ना (पंजाबी आरसी) सक्रिय हैं। ब्लॉग पर निरन्तर गम्भीर चर्चा होने के कारण हिन्दी और पंजाबी लघुकथा अधिक लोगों तक पहुँच रही है। श्यामसुन्दर अग्रवाल जी का हिन्दी और पंजाबी भाषा पर समान अधिकार है, अत: ये पंजाबी मिन्नी (पंजाबी) , पंजाबी लघुकथा (पंजाबी लघुकथा हिन्दी में) , मेहमान मिन्नी (पंजाबीतर लेखक हिन्दी में) , पंजाबी मिन्नी लेख (लघुकथा विषयक लेख पंजाबी में) पंजाबी लेखकों की रचनाएँ हिन्दी जगत तक और हिन्दी रचनाएँ पंजाबी पाठकों तक पहुँचाने का कार्य अनवरत कर रहे हैं साथ ही लघुकथा के शिल्प पर भी गम्भीर लेख पाठकों तक पहुँचा रहे हैं।

'रचानाकार' ब्लॉग के माध्यम से रवि श्रीवास्तव ने सर्वाधिक लघुकथाएँ पाठकों तक पहुँचाने का रिकार्ड स्थापित किया है। 

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