इंदिरा गांधी पर बायोपिक संभव / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :29 जून 2015
रहस्य के निर्देशक मनीष गुप्ता ने इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित अपनी बायोपिक की पटकथा विद्या बालन को सुनाई है और विद्या को पसंद है परंतु अभी तक वे अपना मन नहीं बना पाई हैं। दूसरी बात यह है कि सोनिया गांधी की स्वीकृति के बिना इस तरह की फिल्म नहीं बन सकती। कुछ वर्ष पूर्व उज्जैन में जन्मी टेलीविजन कलाकार नवनी परिहार को लेकर इंदिरा गांधी पर फिल्म बनाने की योजना बनी थी और कलाकार की शक्ल तथा इंदिरा गांधी में कॉफी समानता भी थी। श्याम बेनेगल ने टेलीविजन के लिए किसी श्रेष्ट कार्यक्रम में नवनी परिहार को ही इंदिरा की भूमिका दी थी और नवनी ने उसे बखूबी निभाया था।
मनीष गुप्ता को अभी यह जानकारी नहीं है कि अमेरिका की एक शिखर फिल्म निर्माण कंपनी भी इंदिरा गांधी पर फिल्म की तैयारी कर रही है और उनके यहां प्रोस्थेटिक मेक-अप विद्या इतनी विकसित है कि वे किसी अमेरिकन स्टार को लेकर ही फिल्म बनाएंगे, क्योंकि सब जगह फिल्म व्यवसाय सितारा केंद्रित है। रिचर्ड एटनबरो की गांधी अब तक की श्रेष्ठ बायोपिक है और श्याम बेनेगल ने अफ्रीका में बिताए वर्षों पर 'मेकिंग ऑफ महात्मा' नामक श्रेष्ठ फिल्म बनाई थी। हिंदुस्तान में ही किसी राजनेता के जीवन पर फिल्म बनाने में अनगिनत कठिनाई आती हैं। ओलिवर स्टोन की 'जे.एफ.के.' इस विधा की श्रेष्ठ फिल्म थी और मार्गरेट थेचर पर बनी 'आयरन लेडी' भी कमाल की फिल्म थी। ज्ञातव्य है कि दूरदर्शन पर नेताजी सुभाषचंद्र पर बना विश्वसनीय सीरियल रोक दिया गया, क्योंकि बंगाल में नेताजी को शराब पीते दिखाने वाले दृश्य पर बवाल खड़ा कर दिया गया था।
अमेरिका का निर्माता आसानी से सरकारी आज्ञा ले लेगा। अभी मात्र दो सप्ताह पूर्व दिल्ली में सरकार ने फिल्म उद्योग से सुझाव मांगे थे कि विदेशी निर्माताओं को भारत में शूटिंग के लिए आमंत्रित करने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए। यह आश्चर्य की बात है कि सरकार भारतीय फिल्मकारों को भारत में शूटिंग करने के लिए प्रोत्साहित करने के विषय में सोचती ही नहीं है। देशी निर्माता उनके लिए अदृश्य समान हैं। मुंबई के उपनगर में सड़क पर शूटिंग करने के लिए लगभग एक लाख रुपए देने होते हैं। मुंबई से कश्मीर की हवाई यात्रा स्विट्जरलैंड से अधिक है। विदेशों में किसी लोकेशन के लिए धन नहीं देना पड़ता वरन् अनेक देश निर्माता द्वारा उनके देश की शूटिंग पर किए गए व्यय का तीस से पचास प्रतिशत धन निर्माता को वापस लौटाते हैं। विदेशी धन से देश के विकास की इतनी ललक क्यों है? भारत में धन की कमी नहीं है। सरकार की अपनी फिजूलखर्ची क्या कम जुल्म ढहा रही है।
बहरहाल, इंदिरा गांधी के जीवन और नृशंस हत्या पर प्रभावोत्पादक फिल्म बन सकती है। नेहरू परिवार का उपनाम (सरनेम) नहर से प्रेरित है, जो उनके मूल निवास के पास से गुजरती थी। 1857 के गदर की नाकामी के बाद दिल्ली में अंग्रेजों के अंधे जुल्म के कारण परिवार इलाहाबाद आ गया, जो अपेक्षाकृत शांत था। मोतीलाल नेहरू सफल वकील थे और अंग्रेजों की तरह रहते थे। उनके एकमात्र पुत्र जवाहर की एकमात्र पुत्री इंदिरा का जब जन्म हुआ तब उनकी मां मात्र अठारह वर्ष की थीं और उनकी मृत्यु के समय इंदिरा मात्र उन्नीस की थीं। शांति निकेतन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टेगोर के शांति निकेतन में उन्होंने शिक्षा पाई। अपनी शिक्षा अधूरी छोड़कर उन्हें अपनी बीमार के इलाज के लिए स्विट्जरलैंड जाना पड़ा, क्योंकि पिता जेल में थे। घर में स्वतंत्रता आंदोलन का ऐसा वातावरण था कि इंदिरा ने 12 वर्ष की आयु में वानर सेना का गठन किया था, जिसमें 1000 बच्चे शामिल हुए और वे कांग्रेस के कई काम करते थे। बहरहाल, इंदिरा का जीवन चंद शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता। बालिका इंदिरा के बारे में फ्रा टेलर ने कहा था 'फूलों-सी नाजुक यह कन्या हवा में खेल सकती है परंतु टूट नहीं सकती'।