इंद्र मणि बडोनी : एक पुनर्मूल्यांकन / अशोक कुमार शुक्ला
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लेखक :राजीव नयन बहुगुणा
उत्तरा खंड राज्य की अवधारणा के मूल पुरुषों में एक , इंद्र मणि बडोनी मूलतः संस्कृति कर्मी थे । टिहरी गढवाल के एक अति दुर्गम क्षेत्र ग्यारह गाँव हीन्दाव पट्टी के अखोड़ी गाँव में उनका जन्म पिछली सदी के दुसरे दशक में हुआ था । उनके गाँव में स्वादिष्ट काठे जंगली अखरोट होते थे । प्रारम्भिक शिक्षा के बाद परिवार की तंग माली हालत की वजह से उन्होंने कुछ समय नैनीताल में रिक्शा खींचा । फिर घर लौट आये और सामान्य से अधिक वय में इंटर तथा बी ए किया । स्नातक होने के बाद नौकरी न की । गाँव के प्रधान रहे । पचास के दशक में गांधी जी की चर्चित शिष्या मीरा बहन उनके इलाके में समाज सेवा के निमित्त आयीं । उन्होंने गाँव वालों से पूछा की क्या यहाँ कोई ग्रेजुएट लड़का भी है ? गाँव वालों ने जवाब दिया कि है तो सही , पर वह आजकल भैंस चराने डांडे गया है । जो युवक इलाके में एक मात्र ग्रेजुएट होकर भी भैस चराने पर्वत पर गया हो , वह अवश्य विलक्षण होगा , मीरा बहन ने यह भांप लिया । उन्होंने कुछ दिन बडोनी के डांडे से लौटने का वेट किया और फिर उन्हें गांधी जी के आश्रम सेवाग्राम में ट्रेनिंग के लिए भेज दिया । मेरे पिता सुंन्दर लाल बहुगुणा बताते हैं कि उनकी शादी में दाल भात बनाने के इंचार्ज इंद्र मणि बडोनी ही थे ।
इंद्र मणि बडोनी राज्य के समकालीन राज नेताओं में संभवतः सर्वाधिक पूजनीय पुरुष हैं । वह एक मात्र ऐसे गैर कांग्रेसी और भाजपाई दिवंगत नेता हैं जिनकी प्रतिमा कोंग्रेस और भाजपा सरकार ने स्थापित की है । ऐसा उनकी लोक प्रियता को भुनाने के लिए किया गया है । अन्यथा 2 अक्तूबर 1994 को दिल्ली में अलग राज्य की मांग को लेकर हुए विशाल प्रदर्शन के दौरान उन्हें पत्थर मार मार कर लहू लुहान करने वाले मुलायम सिंह यादव के लोग न थे । अपितु अपने ही लोग थे । इस घटना से अँगरेज़ विवेचक एत्किंसन के इस निष्कर्ष की पुष्टि होती है की - गढवाली वफादार नौकर तो होते हैं लेकिन स्वामी नहीं हो सकते । तथा यह कौम अपने सगे व्यक्ति से ईर्ष्या करती है । " देश में अन्य प्रान्तों में नेता भ्रष्ट हैं लेकिन उत्तराखंड में जनता भ्रष्ट है । यह मैं आये दिन देखता हूँ कि देहरादून में गढवाल के सुदूर इलाकों से लोग मंत्रियों के पास कोई सार्वजनिक कार्य लेकर नहीं बल्कि अपने साले का ट्रांसफर कराने या भतीजे को ठेका दिलाने के लिए आते हैं । यहाँ के भ्रष्ट मतदाताओं ने पैसे खा कर चन्द्र सिंह गढ़वाली और इंद्र मणि बडोनी को चुनाव हराया । यह स्थिति आज भी कायम है । इंद्र मणि बडोनी स्वयं भी एक समर्पित , निष्ठावान तथा ईमानदार राजनेता थे , लेकिन राजनितिक दृष्टि से विचार शून्य भी थे , इसी लिए उनके चारों और रेत ,बजरी और लकड़ी के चोर ठेकेदारों का जमावड़ा रहता था । यद्यपि बडोनी स्वयं एक पवित्र व्यक्ति थे लेकिन ठेकेदारों को खूब प्रश्रय देते थे । ((जारी )